यह 27 नवंबर, 2020 का दिन था, जब केंद्र सरकार के बनाये गये तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान पर किसान दिल्ली की सीमाओं की ओर रवाना हो गये। मौसम की बेरूख़ी, कड़ाके की ठण्ड, बारिश, भीषण गर्मी, पुलिस की कार्रवाई और कोरोना वायरस महामारी, निजी नुक़सान और यातनाओं के बावजूद किसानों ने अपनी सम्पत्ति और परिजनों के संकट में होने के बावजूद आन्दोलन जारी रखा है। किसानों के इस संघर्ष को लेकर बता रहे हैं सविंदर बाजवा :-
किसान आन्दोलन चरम पर है। किसानों के दबाव में पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़ और दिल्ली की राज्य सरकारें इन तीन विवादास्पद क़ानूनों के विरोध में पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं। किसानों ने साफ़ सन्देश दिया है कि वे एक लम्बी लड़ाई के लिए तैयार हैं और अगर तीन विवादित क़ानूनों को निरस्त नहीं किया गया, तो वे आन्दोलन को और बढ़ाने के लिए तैयार हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या, सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारियों की मौत और किसानों पर सरकार के दुश्मनों जैसे बर्ताव वाली घटनाएँ भी उनका हौसला नहीं तोड़ पायी हैं। हर गुज़रते दिन के साथ प्रदर्शनकारी किसानों को समाज के अधिकाधिक वर्गों का समर्थन मिल रहा है।
किसान आन्दोलन के लिए 26 नवंबर का दिन ख़ास है; क्योंकि एक साल पहले इसी दिन उनका आन्दोलन दिल्ली की सीमाओं से शुरू हुआ था। अब एक साल बाद सत्ता में बैठे उन मठाधीशों को गहन निराशा हुई है, जो यह मान कर चल रहे थे कि यह आन्दोलन बीच में ही टूट जाएगा। हक़ीक़त में हुआ यह है कि दबाव और प्रताडऩा के तमाम हथकंडे अपनाये जाने के बावजूद किसान आन्दोलन समय के साथ और ताक़त हासिल करता गया है। आन्दोलनों के इतिहास में यह किसान आन्दोलन अब तक का सबसे लम्बे विरोध वाला आन्दोलन में बन चुका है।
अब संयुक्त किसान मोर्चा ने घोषणा की है कि आन्दोलन का एक साल पूरा होने पर इसी 29 नवंबर से 500 चुनिंदा किसान हर दिन संसद की ओर कूच (मार्च) करेंगे। संसद मार्च 29 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र के साथ प्रारम्भ होगा। संसद का शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर तक चलेगा।