इंजीनियरिंग से लेकर समाजवाद और राजनीति तक का शरद यादव का सफ़र अद्भुत था। राजनीति की उनकी भाषा-शैली में तंज भी होता था, उपदेश भी, गम्भीरता भी, तहज़ीब भी और ईमानदारी भी। शरद यादव लोहिया के विचार से प्रभावित थे; लेकिन वर्तमान राजनीति में भी काफ़ी प्रासंगिक रहे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई का ही असर था कि उन्होंने अपने राजनीतिक विचार और उच्च मूल्यों को हमेशा जीवित रखा। शरद यादव का जाना देश की राजनीति में एक ख़ालीपन भरता है क्योंकि उनके तेवर और ईमानदारी वाले नेता अब इक्के-दुक्के ही बचे हैं।
शरद यादव से मोहब्बत करने वाले हर व्यक्ति को उनका जाना बहुत पीड़ा देकर गया है। शरद 11 बार सांसद रहे। और भी दिलचस्प यह है कि वह तीन अलग-अलग राज्यों- बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की विभिन्न सीटों से चुने गये। यादव पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े तो उनकी उम्र सिर्फ़ 25 साल थी। वह जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन का दौर था। शरद यादव मीसा क़ानून के तहत तब जेल में थे। जेल में उन्हें डालने का कारण था- सरदार सरोवर डैम की ऊँचाई बढ़ाये जाने विरोधी आन्दोलन में हिस्सा लेना। आपातकाल के दौरान शरद एक बार सात महीने (आपातकाल लागू होने से पहले ही) और दूसरी बार 11 महीने जेल में रहे।
यही वह समय था, जब शरद जेल में सर्वोदय विचारधारा के विचारक दादा धर्माधिकारी के सम्पर्क में आये, जो जयप्रकाश नारायण (जे.पी.) के $करीबी मित्र थे। उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सेठ गोविंद दास के निधन से ख़ाली हुई, जबलपुर सीट से जेपी ने शरद को पीपुल्स पार्टी का उम्मीदवार बना दिया। हालाँकि तब शरद यादव जेल में बन्द थे। लेकिन शरद कांग्रेस के गढ़ से एक लाख से भी ज़्यादा वोट से जीते। इस तरह उनका संसदीय राजनीति का सफ़र शुरू हुआ।
शरद समाजवाद की एक बुलंद आवाज़ थे। शरद यादव का जन्म भले मध्य प्रदेश में हुआ था; लेकिन उनकी आवाज़ छात्र राजनीति में कॉलेज से लेकर लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत संसद तक ख़ूब और पूरी मज़बूती से गूँजती रही। भले शरद मूल रूप से मध्य प्रदेश के थे, उनकी राजनीति का केंद्र बाद में बिहार और उत्तर प्रदेश बने। वैसे उनका राजनीतिक दबदबा मध्य प्रदेश से लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश तक था। राष्ट्रीय राजनीति में तो वह अलग मुक़ाम पर रहे ही।
01 जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गाँव में उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई में होशियार शरद की इच्छा इंजीनियर बनने की थी। लिहाज़ा इस सपने को पूरा करते हुए जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की डिग्री गोल्ड मेडल के साथ हासिल ली। इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र संघ के वे अध्यक्ष भी रहे। राजनीति में उनकी रुचि तभी सामने आ गयी थी, जब उन्होंने कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (रॉबर्टसन मॉडल साइंस कॉलेज) के छात्र संघ अध्यक्ष बने।
राममनोहर लोहिया के समाजवाद के विचार से वह बहुत ज़्यादा प्रभावित थे। यह वही दौर था, जब देश पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण के लोकतंत्र वाद और राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रान्ति की लहरों से ओतप्रोत था। युवा नेता के रूप में शरद यादव ने कई आन्दोलनों में हिस्सा लिया। आपातकाल में मीसा बंदी के रूप में जेल में रहे और 27 साल की उम्र में लोकसभा का चुनाव जीता। मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट के अलावा वह उत्तर प्रदेश की बदायूँ लोकसभा सीट और बाद में बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी सांसद चुने गये। राज्यसभा के सदस्य भी वे रहे।
शरद यादव जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वह सन् 1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री भी रहे। उन्हें सन् 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। सन् 1996 में बिहार से वह पाँचवीं बार लोकसभा सांसद बने। सन् 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और सन् 1998 में जॉर्ज फर्नांडिस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड पार्टी (जदयू) बनायी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बने। सन् 2004 में शरद यादव राज्यसभा गये। सन् 2009 में सातवीं बार सांसद बने; लेकिन सन् 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि जीवन के अन्तिम पड़ाव में अपने घनिष्ठ सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मन-मुटाव भी हुआ। इसलिए, शरद यादव ने जदयू से नाता तोड़ लिया था। उनकी बेटी सुभाषिनी यादव कांग्रेस की नेता हैं।