अपनी पत्नी, अपने दोनों सालों के बाद कुछ माह पहले अपने दोनों बेटों को राजनीति में उतारकर वे बताते रहे हैं कि वो पार्टी को घरेलू तरीके से चलाने में ज्यादा भरोसा रखते हैं. तेजप्रताप और तेजस्वी भले राजनीति में आ चुके हैं लेकिन इनके नेतृत्व में राजद के कई नेता चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होंगे, ऐसी प्रबल संभावना है. लालू की बेटी मीसा भारती भी आगामी लोकसभा चुनाव में दस्तक देनेवाली है लेकिन अब तक लालू प्रसाद ने मीसा को राजनीति में उताड़ने की घोषना नहीं की है, इसलिए यह थोड़ा मुश्किल होगा कि कि बेटी को राजनीति में लाने की घोषणा करने के तुरंत बाद उसे पार्टी का नेतृत्व भी सौंप दें, रामकृपाल यादव, जयप्रकाश यादव जैसे लालू के खास सिपहसलार तो किसी भी नेतृत्व को स्वीकार कर लेंगे लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह, जगतानंद सिंह, राजद कोटे से नए-नए सांसद बने प्रभुनाथ सिंह जैसे नेता इसके लिए तैयार नहीं होंगे. लालू प्रसाद जानते हैं कि अगर वे अपने परिवार के ही सदस्य को अपनी जगह आगे नहीं लाएंगे तो उनका जो कोर वोट बैंक यादवों का है, दरक भी सकता है.
आखिरी में एक विकल्प राबड़ी देवी बचेंगी. राबड़ी देवी पिछले विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर परास्त हो चुकी हैं. सामने विधानसभा चुनाव का मामला होता तो राबड़ी को फिर भी आगे कर लालू प्रसाद यादव सब मैनेज कर सकते थे लेकिन सामने लोकसभा चुनाव है. और लोकसभा में राबड़ी देवी को नेतृत्व सौंपकर लालू कोई चांस नहीं लेना चाहेंगे. सूचनाएं दूसरे किस्म की बहुत दिनों से हवा में फैली हुई हैं. वे सूचनाएं पहले से ही रह-रहकर लालू प्रसाद यादव को परेशान करते रहती हैं. कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव के दल से कुछ वरिष्ठ नेता लोकसभा चुनाव आते-आते नीतीश के पाले में जा सकते हैं. लालू प्रसाद का साथ छोड़कर नीतीश के खेमे में जानेवाले नेताओं की फेहरिश्त काफी लंबी रही है, इसलिए इसे कोई अनहोनी भी नहीं माना जा सकता. लालू प्रसाद दुविधा में हैं. 13 अगस्त के फैसले से पटना के राजद कार्यालय में दूसरे किस्म का माहौल बना दिया है. बिहार सरकार की नाकामी पर राजनीति करने की तैयारी में लगी राष्ट्रीय जनतादल पार्टी का खुद का क्या भविष्य होगा? निश्चिततौर पर आज यह सवाल लालू प्रसाद यादव को परेशान कर रहा होगा.