क्या भाजपा की नैया पार लगा पाएँगे धामी?

उत्तराखण्ड में धामी के मुख्यमंत्री बनने से वरिष्ठ विधायकों में नाराज़गी

उत्तराखण्ड में तीरथ सिंह रावत से अचानक इस्तीफ़ा लेने को भाजपा आलाकमान ने भले उपचुनाव न हो सकने से उपजा संवैधानिक कारण बताया हो, लेकिन यह सच नहीं है। इस पहाड़ी राज्य में भाजपा की वर्तमान स्थिति की असली कहानी तीरथ को हटाने के पीछे ही छिपी है। यह संवैधानिक संकट से ज़्यादा तीरथ के उपचुनाव में हार जाने के ख़तरे का नतीजा था। भाजपा के अपने सर्वे से ज़ाहिर हो रहा था कि तीरथ चुनाव हार जाएँगे। भाजपा को लगा कि देश में इसका बहुत ख़राब सन्देश जाएगा कि उसका मुख्यमंत्री ही उपचुनाव में हार गया। लिहाज़ा उसने तीरथ का ही पत्ता साफ़ कर दिया। युवा पुष्कर सिंह धामी को अब बेशक भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया है, लेकिन अगले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की मुश्किलें आसानी से ख़त्म होने वाली नहीं हैं। पार्टी के भीतर वरिष्ठ विधायक धामी की ताजपोशी से ख़फ़ा हैं और अगले चुनाव से पहले यदि धामी पार्टी को बेहतर स्थिति में नहीं ला पाये, तो इनमें से कई पाला बदलने में देर नहीं करेंगे।
धामी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यह सन्देश देने की कोशिश की है कि युवा नेता को अवसर दिया गया है। लेकिन पार्टी के भीतर इससे नाराज़गी है। भले परदे के सामने अब सब कुछ शान्त दिखता हो, भीतर सुगबुगाहट है। धामी और मंत्रियों की शपथ के बाद वरिष्ठ मंत्री सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत जिस तेवर के साथ वहाँ से गये, उससे भविष्य का संकेत मिलता है। यह दोनों पहले कांग्रेस में रह चुके हैं। शपथ के बाद यह दोनों बिना किसी पार्टी नेता, समर्थक या अन्य से बात किये वहाँ से निकल गये थे। भीतर का यह आक्रोश थोड़ी-सी चिंगारी से ही लपटों में बदल सकता है। भाजपा आलाकमान के आंतरिक सर्वे में उत्तराखण्ड में उसकी जैसी स्थिति आयी है, उससे वह चिन्तित है। यही कारण है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के हाल के विस्तार में उत्तराखण्ड से अजय भट्ट को मंत्री बना दिया गया है। भाजपा भट्ट को भविष्य के नेता के रूप में उभारना चाहती है। भट्ट पहली बार सांसद बने हैं; लेकिन उन्होंने उत्तराखण्ड में मंत्री के रूप में कई मंत्रालयों में काम किया है। अभी 60 साल के हैं; लिहाज़ा उनके लिए पार्टी में सम्भावनाएँ हैं।
धामी की अगले कुछ महीनों की राह आसान नहीं है। वह भी जानते हैं कि उनके सर पर काँटों का ताज रखा गया है। वर्तमान कार्यकाल में ही भाजपा ने उनके रूप में तीसरा मुख्यमंत्री बनाया है। युवा नेता के प्रदेश की कमान सँभालने से प्रदेश के लोगों की उम्मीदें भी बहुत हैं। हाल के महीनों में कोरोना वायरस ने इस पहाड़ी सूबे में विकास, शिक्षा, उद्योग और पर्यटन के साथ-साथ रोज़गार को भी चौपट कर दिया है। सिर्फ़ सात महीने में प्रदेश को इस संकट से बाहर निकालने की मुश्किल चुनौती धामी के सामने है। उनकी सबसे बड़ी दिक़्कत प्रशासनिक अनुभव की कमी है। मुख्यमंत्री बनने से पहले वह कभी मंत्री तक नहीं रहे हैं। भले उनके मंत्रिमंडल सहयोगी तजुर्बेकार हैं, पर उनका कितना सहयोग मिलेगा? यह सबसे बड़ा सवाल है।
बहुत जल्दी-जल्दी मुख्यमंत्री बदलने से भाजपा को नुक़सान हुआ है। क्योंकि जिन इलाक़ों के मुख्यमंत्री पहले बनाये और फिर हटा दिये; वहाँ लोग पार्टी से नाराज़ हुए हैं। चार महीने पहले ही तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री हुए थे। वह सांसद हैं और उनके मन में भी खटास रह गयी। ऊपर से केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में भी उन्हें जगह नहीं मिली। भाजपा का ‘संवैधानिक विवशता’ का बहाना किसी के गले नहीं उतरा है।
विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को राज्य में पटरी पर लाने के लिए धामी को सिर्फ़ सात महीने ही मिले हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की भाजपा आलाकमान की घोषणा के बाद पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की। यह माना जाता है कि सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, बिशन सिंह चुफाल जैसे वरिष्ठ नेता नाराज़ हैं। उनकी नाराज़गी को देखते हुए अमित शाह को दो नेताओं से फोन पर बात करनी पड़ी। धामी इसके बाद सबको साथ लेकर चलने की बात कह चुके हैं। यह माना जाता है कि प्रदेश भाजपा की गुटीय राजनीति में धामी कभी तटस्थ नहीं रहे हैं। नहीं भूलना चाहिए कि प्रदेश में इस समय जो भाजपा के अन्य मंत्री हैं, उनमें से आधे तो सन् 2016 में कांग्रेस से भाजपा में आये थे। कुल 12 मंत्रियों में से 5 कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं। भाजपा भले कह रही हो कि पार्टी और सरकार में नाराज़गी की बात कांग्रेस नेता उछाल रहे हैं और हक़्क़ीत में ऐसा नहीं है; पर ऐसा ही है।
विपक्षी कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अनुभव हरीश रावत को वापस प्रदेश लाकर चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप पेश करने की तैयारी कर चुकी है। फ़िलहाल रावत पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी हैं और वहाँ का संकट निबटते ही उन्हें उत्तराखण्ड में सक्रिय होने के लिए आलाकमान कह चुकी है। रावत भले पिछला चुनाव हार गये थे; लेकिन उन्हें बहुत अनुभवी नेता माना जाता है और अगले चुनाव में उनके मैदान में रहने से धामी और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती रहेगी; ख़ासकर ऐसे हालत में, जब उसकी सरकार पिछले चार साल में जनता पर कोई असर नहीं छोड़ नहीं पायी है।

धामी की क़िस्मत
तीरथ सिंह रावत के इस्तीफ़े के बाद पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने की ज़्यादा चर्चा कहीं भी नहीं थी। धामी उत्तराखण्ड के ऊधम सिंह नगर ज़िले की खटीमा सीट से लगातार दो बार चुनाव जीते हैं। और अब तक उत्तराखण्ड में सबसे कम उम्र (45 साल) के मुख्यमंत्री भी हैं। धामी उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बहुत क़रीबी माने जाते हैं। एक समय जब कोश्यारी मुख्यमंत्री थे और धामी उनके ओएसडी हुआ करते थे। उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल के राजपूत धामी तीरथ सिंह रावत के विपरीत सत्ता सँभालने के बाद विवादित बयान देने से तो अभी तक बचे ही हैं, वह सभी वरिष्ठों को भी साथ लेने की कोशिश में जुटे हैं। विदित हो कि त्रिवेन्द्र रावत के इस्तीफ़े के बाद पौड़ी गढ़वाल के सांसद तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद बहुत बचकाने वाले बयान दिये थे और विवाद पैदा किया था। यह बहुत दिलचस्प बात है कि सन् 2000 में उत्तराखण्ड के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस और भाजपा 10-10 साल सत्ता में रहे हैं। हालाँकि भाजपा इन 10 वर्षों में 7 मुख्यमंत्री बना चुकी है, जबकि कांग्रेस ने 3 ही मुख्यमंत्री बनाये हैं। भाजपा को इसका नुक़सान भी हो सकता है; क्योंकि बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से विकास की गति धीमी होती है। वैसे भी कोरोना से इस पहाड़ी सूबे में विकास का बंटाधार हुआ है। ‘तहलका’ ने कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से फोन पर बात की, तो उन्होंने कहा- ‘धामी को मुख्यमंत्री बनने पर बधाई और शुभकामनाएँ। लेकिन भाजपा जिस तरह राज्य में मुख्यमंत्री बदल रही है, उससे लोगों में निराशा है। क्योंकि उनके काम ठप पड़े हैं। भाजपा का कोरोना के कारण उपचुनाव न करवाने का बहाना भी किसी मज़ाक़ से कम नहीं। सच यह है कि राज्य में उसकी हालत बहुत ख़राब है और जनता का सरकार पर से भरोसा उठा है।’

मुख्यमंत्री बनकर क्या बोले धामी?


मेरे पास बतौर मुख्यमंत्री वक़्त बहुत कम है। सात महीने बाद चुनाव हैं और इन महीनों में हमारी सरकार बातें कम और काम ज़्यादा की नीति पर चलेगी। मेरा रोज़गार और स्वरोज़गार पर ज़ोर रहेगा और क़रीब 22,000 रिक्त पद भरने की हम योजना बना रहे हैं। इसमें से आधे बहुत जल्दी भरी जाने की कोशिश करेंगे। मेरा सौभाग्य है कि सरकार में काफ़ी अनुभवी मंत्री हैं, जिनके अनुभव का लाभ सरकार और जनता दोनों को मिलेगा। जिस काम को शुरू किया जाएगा, उसे पूरा किया जाएगा। हमारी नीति शिलान्यास तक सीमित रहने की नहीं, लोकार्पण तक पहुँचने की होगी। पिछले चुनाव के बाद भाजपा सरकार ने काफ़ी विकास कार्य किये हैं। काफ़ी वादे पूरे किये गये हैं। अब रोज़गार, स्वरोज़गार, कोरोना प्रभावित लोगों को राहत, कोविड से प्रभावित चारधाम यात्रा से जुड़े लोगों को राहत देना सरकार की प्राथमिकता पर है। युवाओं पर भी काम होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके राज्य का ध्यान युवा नीति पर रहेगा। मंत्रियों को ज़िलों का प्रभार दिया गया है, जिससे आम लोगों तक सरकार की पहुँच और बेहतर होगी।

21 साल में 11 मुख्यमंत्री
1. नित्यानंद स्वामी (भाजपा) : 9 नवंबर, 2000 से 29 अक्टूबर, 2001 तक (354 दिन)।
2. भगत सिंह कोश्यारी (भाजपा) : 30 अक्टूबर, 2001 से 01 मार्च, 2002 तक (122 दिन)।
3. नारायण दत्त तिवारी (कांग्रेस) : 2 मार्च, 2002 से 7 मार्च, 2007 तक (5 साल 5 दिन)।
4. भुवन चन्द्र खंडूड़ी (भाजपा) : 7 मार्च, 2007 से 26 जून, 2009 तक (2 साल 111 दिन)।
5. रमेश पोखरियाल निशंक (भाजपा) : 27 जून, 2009 से 10 सितंबर, 2011 तक (2 साल
75 दिन)।
6. भुवन चन्द्र खंडूड़ी (भाजपा) : 11 सितंबर, 2011 से 13 मार्च, 2012 तक (184 दिन)।
7. विजय बहुगुणा (कांग्रेस) : 13 मार्च, 2012 से 31 जनवरी, 2014 तक (1 साल 324 दिन)।
8. हरीश रावत (कांग्रेस) : 1 फरवरी, 2014 से 18 मार्च, 2017 तक (3 साल 2 दिन)। इस दौरान राष्ट्रपति शासन के चलते 27 मार्च, 2016 और 22 अप्रैल, 2016 को क्रमश: एक और 19 दिनों के लिए दो बार उनका कार्यकाल बाधित हुआ।
9. त्रिवेन्द्र सिंह रावत (भाजपा) : 18 मार्च, 2017 से 10 मार्च, 2021 तक (3 साल 357 दिन)।
10. तीरथ सिंह रावत (भाजपा) : 10 मार्च, 2021 से 02 जुलाई, 2021 तक (114 दिन)।
11. पुष्कर सिंह धामी (भाजपा) : 4 जुलाई, 2021 से अब तक।