क्या पंजाब से उखड़ सकेंगी मादक पदार्थों की गहरी जड़ें

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प्ंाजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पंजाब में मादक पदार्थों के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है फिर भी न जाने क्यों मादक पदार्थों पर रोक नहीं लग पा रही है। यहां राज्य में पहले शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के तालमेल की सरकार थी। तब कहा जाता था कि मादक पदार्थों की जड़ें राज्य में बहुत गहरी हैं। इन्हें उखाड़ा नहीं जा सकता। उस समय एक कैबिनेट मंत्री पर आरोप भी लगाा था कि वह इस माफिया व्यापारी को संरक्षण दे रहा हैं। राज्य के पुलिस महानिदेशक का कहना है कि राज्य में मादक पदार्थों के व्यापार में कहीं कोई बड़ी हस्ती नहीं है। यानी पुलिस की कड़ी कार्रवाई के चलते ये लोग हाल-फिलहाल राज्य से बाहर हैं।
मादक पदार्थों का मामला सर्वव्यापी है, क्योंकि इसका पूरा मायाजाल है। इस कारण मादक पदार्थों का प्रसार होता है। इस बात पर आम सहमति है कि सीमा पार बड़ी तादात में महिलाएं मादक पादर्थों की तस्करी में भी लगी हैं। यह माना हुआ सच है कि कोई अवैध व्यापार भले ही वह मादक पदार्थों का हो बिना संरक्षण के पनप नहीं सकता। यह संरक्षण लोगों के इसमें शिरकत करने, राजनीतिक नेताओं के वरदहस्त और भ्रष्ट अधिकारियों के बिना चल नहीं सकता।
एक बेहद चुस्त और सतर्क प्रशासन जो लालच और घमकियों में न आए उसकी ज़रूरत है जो अपने काम को ईमानदारी से कर सके। मादक पदार्थों का मुद्दा काफी जटिल है इसे दुरुस्त करने के लिए एक उचित तरीका अपनाने की ज़रूरत हैं।
मौजूदा सरकार ने ज़रूर कुछ कड़े कदम उठाए हैं लेकिन उसका सही असर नही दिख रहा है। सरकार हमेशा मादक पदार्थो की ‘सप्लाई चेनÓ पर हमला करती है। मादक पदार्थ हमेशा मांग आधारित व्यापार से जुड़े हैं। इसे हल किया जाना चाहिए। इसका तुरंत समाधान भी होना चाहिए और जो लोग ज़मीनी हकीकत जानते हैं उन्हें अपनी राय बताने की आज़ादी मिलनी ही चाहिए। यदि वे चुने हुए जनप्रतिनिधि हों तो और भी अच्छा।
यदि पंजाब में मादक पदार्थों की समस्या पाकिस्तान के कारण है तो इसके फैलाव की बात सिर्फ पिछले दशक में ही क्यों उठी। विभिन्न सर्वे बताते है कि पंजाब की गा्रमीण जनसंख्या का एक तिहाई हिस्सा अफीम खाता है। अफीम खाने की यह आदत ग्रामीण जनसंख्या में वैसी ही है जैसे शहरों में पूरे दिन कीे मेहनत के बाद शराब के दो घंूट। पांरपरिक तौर पर काफी कम तादाद में पंजाब में अफीम का उत्पादन होता हैं।
प्ंाजाब को अपनी ज़रूरत सीमाई राजस्थान से पूरी करनी होती है। सरकार ने अफीम की छोटी-छोटी खपत पर रोक लगाने के लिए पंजाव के अफीम उत्पादक क्षेत्रों को नष्ट किया और राजस्थान से आ रही अफीम को रोका। यह फैसला 1980 के दशक में लिया गया। जबकि सन 2000 में इस पर पाबंदी लगी। राजस्थान की राह बंद हो जाने से मादक पदार्थो में हुई कमी को पूरा करने के लिए फार्मेसी की दवाएं और हेरोइन जोड़ दी गई। अफीम की तुलना में हेरोइन तीन गुना ज़्यादा प्रभावी हैं।
सिर्फ बिगड़े हुए रईस बच्चे या रॉक स्टार ही पंजाब में मादक पदार्थ नहीं लेते जैसा पंजाब की फिल्में बताती हैं। एम्स के नेशनत ड्रग डिपेंडेस ट्रीटमेंट सेंटर की ओर से पंजाब ओपिड डिपेंडेसी सर्वे कराया गया। इसमें पाया गया कि ज़्यादातर अफीमची आर्थिक तौर पर कमज़ोर आय वर्ग के हैं। जिनकी शिक्षा ज़्यादा नहीं होती है और नौकरी भी छोटी मोटी ही होती है। ज़्यादातर नशेबाज छोटे किस्म के ही लोग होते है।
राजस्थान सरकार ने तय किया है कि अफीम की तमाम दुकानें पहली अप्रैल 2016 से बंद कर दी जाएंगी। अभी राजस्थान में डोडा के 264 ठेके हैं। इन्हें भी स्टेट एक्साइज विभाग से ही लाइसेंस मिलता है। राजस्थान सरकार डोडा बेचने के लिए 19 हजार लाइसेंस जारी करती है। इसी दौरान सरकार को यह पता लगा कि पंजाब में मादक पदार्थ उसी तरह सप्लाई समस्या के शिकार नहीं है जैसे अमूमन दुनिया में सभी जगह है। यानी सप्लाई की समस्या नहीं बल्कि मांग की है। सप्लाई को कम करने से मांग कभी नहीं घटती।
अलग-अलग सर्वे से लोग और भी कन्फयूज हुए। पिछली सरकार का दावा था कि पंजाब में मादक पदार्थों का मसला उतना खराब नहीं जितना यह नजऱ आता है। महज 0.06फीसद लोग ही मादक पदार्थों के शिकार थे। ‘राज्य की 2.77 करोड़ की जनसंख्या में सिर्फ 0.06 फीसद लोग ही इसके शौकीन थे। पूरे देश में यह सब से कम फीसद हैÓ। सरकार ने 2015 का एक अध्ययन पेश किया। एम्स ने पंजाब के एक लाख लोगों में अफीम पर निर्भर होने की बात अपने सर्वे में मानी 837 लोग ही अफीम पर निर्भर थे। यानी राज्य के 280 लाख की आबादी में 0.84 फीसद ही। यह तादाद अकेले तमाम तरह के मादक पदार्थ का शौक रखने वालों से तीन गुना ज़्यादा है। सामाजिक न्याय और सशाक्तिकरण के अनुमानों के अनुसार पूरे देश में 30 लाख लोग मादक द्रव्यों पर आश्रित हैं। यानी प्रति एक लाख पर ढाई सौ यानी भारतीय आबादी का कुल 0.25 फीसद।
यह तथ्य जताता है कि पंजाब में मादक पदार्थों का प्रचलन किस हद तक था। पंजाब में अफीम आश्रित लोगों की तादाद देश में दूसरी तमाम तरह के मादक पदार्थों का इस्तेमाल करने वालों की तुलना में तीन गुना ज़्यादा थी। इस साल 18 जनवरी को प्ंाजाब में 1.78 करोड़ की हेरोइन और अफीम बरामद की गई थी। गोवा में जो मादक पदार्थ मिला था वह 16.72 लाख था जबकि इतना ही लगभग माणिपुर में पकड़ा गया था जिसकी लागत सात लाख थी।
राज्य के सामाजिक सुरक्षा, महिला और बाल विकास विभाग के सचिव हरजीत सिंह ने अपने एक एफीडेविट में एक विभागीय सर्वे का उदाहरण कुछ मादक पदार्थ पुनर्वास केद्रों की ओर से दायर याचिका के प्रतिवाद में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में मई 2009 में दिया था। उसमें कहा गया था कि पंजाब की आबादी का 16 फीसद ‘हाईड्रगÓ की चपेट में है। दूसरी ओर कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जनवरी की शुरूआत में ही कहा था। बादल आज मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। लेकिन पूरा पंजाब आज वही कर रहा है जो मैं कह रहा था। डाटा आधारित ब्यौरे के अनुसार पंजाव में 18 से 35 साल की उम्र के 76 फीसद लोग अफीम का शौक रखते हैं। रपट के अनुसार 70 फीसद लोग राज्य में अफीम का शौक रखते है। जबकि पूरी आबादी में पंजाब का लत फीसद दस से 15 फीसद ही हैं।
जनवरी में राजनाथ सिंह ने कहा था कि हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान निश्चय की इस मुद्दे पर गड़बड़ कर रहा है। गृहमंत्री ने राज्य में ड्रग मीनेस के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। यह बात सच है कि पंजाब में मादक पदार्थ पाकिस्तान से आता है। पाकिस्तान के मादक पदार्थों में सरताज लोगों ने गरीब लोगों को इस काम में लगा लिया है। जो स्मगलरों के साथ सीमा में बतौर कूरियर यह काम करते हंै। यहां तक कि मालगाड़ी जो सीमेंट लेकर पाकिस्तान से अटारी-बाघा रूटस से भारत आती है तो उसमें हेरोइन भी आ जाती है। हर साल पाकिस्तानी और भारतीय तस्करों को पुलिस गिरफ्तार करती है हालांकि यह बात ज़रूर गृहमंत्री ने बताना पसंद नही ंकिया।