दिसंबर के दूसरे हफ़्ते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संकेत दिये कि वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं। इसके कुछ दिन बाद ही भाजपा की कोर टीम ने देश की उन 160 लोकसभा (पहले 144 की थीं) सीटों को चिह्नित किया, जहाँ वह ख़ुद को कमज़ोर मानती है और उन पर काम करना चाहती है। पटना और हैदराबाद की बैठकों में उसने इस पर मंथन किया है।
ग़ैर-कांग्रेसी विपक्ष (तीसरा मोर्चा) समय का इंतज़ार कर रहा है, जबकि कांग्रेस राहुल गाँधी के नेतृत्व वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के ज़रिये पहले ही जनता में पहुँच चुकी है। भाजपा के विपरीत कांग्रेस को देश भर की अधिकतर सीटों पर मेहनत की ज़रूरत है, जिनमें से काफ़ी उसके सहयोगियों और भाजपा के पास हैं। गुजरात में तीसरे नंबर पर रहने और हिमाचल में सभी सीटों पर जमानत गँवा देने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प बनने का सपना अभी अधूरा लगता है; लेकिन इसके बावजूद कुछ राज्यों में अपनी उपस्थिति दिखाने की उसकी कोशिश होगी। ऐसी ही स्थिति तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की है, जो पश्चिम बंगाल से बाहर ज़्यादा कुछ नहीं कर पायी है। हालाँकि यह भी सच है कि पार्टी की नेता ममता बनर्जी की देशव्यापी छवि है और विपक्ष के काफ़ी दलों में उनकी स्वीकार्यता भी है।
पहले बात करते हैं भाजपा की, जो सीट-दर-सीट अपनी ख़ामियों और मज़बूती का आँकड़ों और जातीय समीकरणों के आधार पर आँकलन कर रही है। उसने ऐसी 160 लोकसभा सीटों को पाया है, जहाँ वह समझती है कि यदि रणनीति में फेरबदल नहीं करती, तो हार भी सकती है। इस लिहाज़ से देखा जाए, तो उसे देश भर की उन आधी से ज़्यादा सीटों, जिन पर वह लड़ती है; पर मेहनत की दरकार है। ज़ाहिर है प्रधानमंत्री मोदी जैसा ब्रांड नाम और अमित शाह और जे.पी. नड्डा जैसे मझे रणनीतिकार पास होते हुए भाजपा को उम्मीद है कि वह इस संख्या को काफ़ी कम कर लेगी।
दक्षिण अभी भी भाजपा की कमज़ोर नस बना हुआ है। भाजपा की चिह्नित की इन 160 सीटों में अधिकतर दक्षिण क्षेत्र की हैं, जहाँ भाजपा की उपस्थिति नाममात्र की ही है। जैसे तमिलनाडु की 36, आंध्र प्रदेश की 25, केरल की 20, तेलंगाना की 12 सीटें शामिल हैं। यही नहीं महाराष्ट्र, जहाँ भाजपा शिंदे वाली शिवसेना के साथ सत्ता में है, वहाँ की भी काफ़ी सीटों को उसने चुनौतीपूर्ण माना है।
पश्चिम बंगाल, जहाँ ममता बनर्जी मज़बूती से पाँच जमाये हुए हैं; की 23 सीटों पर भाजपा को लगता है कि जीतने के लिए उसे मेहनत करने की ज़रूरत है। और नीतीश कुमार से गठबंधन टूटने के बाद विपक्ष में बैठी भाजपा बिहार में 22 सीटों को कमज़ोर मानती है। पिछला चुनाव वहाँ उसने जिन नीतीश कुमार के साथ चुनाव लड़ा था, अब वो तेजस्वी यादव की राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में हैं। अन्य बड़े राज्य, जहाँ भाजपा की लिस्ट में कमज़ोर शब्द लिखा है, वह उत्तर प्रदेश की 12 और इतनी ही ओडिशा की लोकसभा सीटें हैं।
यदि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर रहता है, तो दक्षिण में भाजपा के लिए अगले चुनाव में कठिनाई पैदा हो सकती है। कर्नाटक में भाजपा ख़ुद को सिर्फ पाँच ही सीटों पर कमज़ोर मानती है; लेकिन वहाँ कांग्रेस बेहतर कर सकती है। कर्नाटक में अगले साल विधानसभा का चुनाव है और वहाँ भाजपा को अपनी सरकार को दोहराना होगा, अन्यथा संकट की स्थिति बन सकती है।
राहुल की यात्रा के बाद कर्नाटक में कांग्रेस का काडर सक्रिय होता दिख रहा है, जिसकी कांग्रेस को बहुत ज़रूरत थी। यदि वह विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है, तो भाजपा को लोकसभा चुनाव के लिए कहीं ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। कांग्रेस का मक़सद साफ़ है, वह 2024 के लिए तैयारी कर रही है। राहुल की यात्रा के बाद पार्टी राज्य बार भारत जोड़ो यात्रा निकलने की योजना बना चुकी है, जिससे उसे अपने कार्यकर्ता को ज़मीन पर सक्रिय करने में बहुत मदद मिलेगी। राज्य में देवेगौड़ा की जेडीएस भी है, जिसका काफ़ी इलाक़ों में आधार है।
2019 बनाम 2024
भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत में ही ज़्यादातर सीटें जीती थीं। कुछ राज्यों में तो सभी की सभी। लिहाज़ा यदि वह यह प्रदर्शन नहीं दोहरा पाती है, तो इसकी भरपाई वह कहाँ से करेगी, इस पर वह मंथन कर रही है। हालाँकि यह इतना आसान नहीं होगा। दक्षिण उसके लिए विकल्प था; लेकिन अब वहाँ उसकी राह आसान नहीं दिखती। उसे उत्तर भारत में अपना पिछले प्रदर्शन पूरी तरह दोहराना होगा। भाजपा ने पिछले चुनाव में 303 सीटें जीतीं थीं, जो लोकसभा की कुल सीटों में बहुमत से 31 ही ज़्यादा है। सीटों का थोड़ा-बहुत अनुपात दाएँ-बाएँ होने से ही उसके लिए संकट बन सकता है।
कर्नाटक में मई, 2023 में विधानसभा चुनाव हैं। साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने 28 सीटों में 25 जीत ली थीं। वर्तमान में 224 विधानसभा सीटों में भाजपा के पास 104 सीटें हैं। कर्नाटक भाजपा के लिए इस बार चुनौतीपूर्ण रह सकता है। साल के आख़िर में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव हैं। दो जगह कांग्रेस सत्ता में है। निश्चित ही भाजपा को इन राज्यों में कांग्रेस की सीधे चुनौती होगी, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसने राजस्थान (25) और मध्य प्रदेश (29) की सभी सीटें जीत ली थीं। छत्तीसगढ़ में 11 में से नौ उसके पास हैं। मध्य प्रदेश में भी भाजपा को सन् 2019 वाला प्रदर्शन दोहराने में कठिनाई हो सकती है।
दक्षिण में दिसंबर, 2023 में तेलंगाना के चुनाव हैं। वहाँ भाजपा के पास महज़ एक विधानसभा, जबकि 4 लोकसभा सीटें हैं। भाजपा के लिए वहाँ कठिन चुनौती है। केसीआर सरकार को सत्ता से बाहर करना कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए मुश्किल है। हालाँकि भाजपा को लगता है कि वह ऐसा कर सकती है। विधानसभा चुनाव जीत गये, तो केसीआर लोकसभा के चुनाव में भी इस बार ज़्यादा ज़ोर लगाएँगे। वह राष्ट्रीय राजनीति को लेकर अपनी महत्त्वाकांक्षा जगज़ाहिर कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए ममता बनर्जी एक मुश्किल चुनौती हैं। सन् 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता यह साबित कर चुकी हैं। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 42 में 18 सीट जीत गयी थीं। उस समय प्रधानमंत्री मोदी का जादू शिखर पर था। सन् 2024 में स्थिति क्या होगी, अभी कहना कठिन है। बिहार में भाजपा ने पिछली बार 40 में 17 विधानसभा सीटें जीतीं थीं; लेकिन तब उसके साथ नीतीश कुमार थे। अब उसे कमोवेश अकेले लडऩा होगा।
इसके अलावा हरियाणा में भाजपा सभी 10 सीटों पर जीती थी। गुजरात में सभी 26 और असम की 14 में से 9 सीटें भाजपा जीती थी। उत्तराखण्ड में भी सभी पाँच सीटें उसने ही जीती थीं। ज़ाहिर है 2019 का प्रदर्शन दोहराना भाजपा के लिए मशक्कत का काम होगा। महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखण्ड में भाजपा के लिए चुनौती। पंजाब में तो उसका कोई नामलेवा ही नहीं दिखता, बेशक उसने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने साथ मिला लिया है, जो ख़ुद 2022 का विधानसभा चुनाव हार गये थे।
महाराष्ट्र में भाजपा के पास 48 में 23 सीटें हैं और वह शिंदे की शिव सेना के साथ सत्ता में है। लेकिन दिसंबर 2022 में हुए पंचायत चुनाव के नतीजों से लगता है कि उद्धव-कांग्रेस-एनसीपी का महाविकास अघाड़ी गठबंधन अभी भी काफ़ी मज़बूत है। राज्य में भाजपा को इससे कड़ी चुनौती मिलेगी। पंजाब विधानसभा में भाजपा के पास 13 लोकसभा सीटों में से महज़ दो हैं, जबकि उसने लोकसभा के मद्देनज़र अब पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ को पार्टी में शामिल किया है।
केरल में भाजपा ख़ाली हाथ है। हालाँकि उसे पिछले चुनाव में 12.9 फ़ीसदी वोट मिले थे, जिसे अब वह बढ़ाना चाहेगी। इसी तरह तमिलनाडु में भी पार्टी शून्य है और वोट शेयर भी महज़ 3.9 फ़ीसदी मिले थे। तबसे अब तक भाजपा वहाँ कोई उलटफेर नहीं कर पायी है। लिहाज़ा भाजपा के लिए यह 39 सीटें कठिन रास्ता है। आंध्र प्रदेश तीसरा राज्य है जहाँ भाजपा 25 में से एक भी लोकसभा सीट नहीं जीती थी। हाँ, ओडिशा में भाजपा अपने लिए सम्भावनाएँ देखती है, जहाँ कांग्रेस की निष्क्रियता के कारण पार्टी के पास 21 में 8 लोकसभा सदस्य हैं। भाजपा लोकसभा चुनाव में मिले अपने 38.4 फ़ीसदी वोट को 45 फ़ीसदी करना चाहती है। झारखण्ड में भाजपा 14 में से 11 पर क़ाबिज़ है। अब वहाँ हेमंत सोरेन सरकार है। लिहाज़ा भाजपा को मेहनत करनी होगी। गोवा की दो में एक सीट भाजपा के पास है।
अन्य राज्यों में से सबसे बड़ा उत्तर प्रदेश है जहाँ भाजपा की असली ताक़त है। कुल 80 में से 62 सीटें उसने जीती थीं। वहाँ मायावती की बसपा अब ढीली पड़ चुकी है; लेकिन पिता को खोने के बाद अखिलेश यादव नये तेवर के साथ मैदान में हैं। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस भी वहाँ कुछ सक्रिय हुई है। ख़बर है कि 2024 का लोकसभा चुनाव राहुल गाँधी दोबारा अमेठी से लड़ सकते हैं।
साल 2023 में भाजपा को 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव झेलने हैं। इन राज्यों में लोकसभा की 116 सीटें हैं, जिनमें से 2019 में भाजपा ने 92 पर जीत दर्ज की थी। इन्हें 100 से पार ले जाना या बचाकर रखना भाजपा को आसान नहीं होगा।
उत्तर पूर्व की बात करें, तो त्रिपुरा और असम में भाजपा बेहतर दिखती है। त्रिपुरा में वह सरकार में है और दोनों लोकसभा सीट उसके पास हैं। मिजोरम में उसके पास कोई सीट नहीं। नागालैंड में भी भाजपा ढीली दिखती है। हालाँकि उसके पास 60 में से 12 विधानसभा सीटें हैं।
कांग्रेस की तैयारी
कांग्रेस देश की सबसे अनोखी पार्टी है। उसकी रणनीति और योजनाएँ किसी की समझा में नहीं आतीं। फिर भी वह देश की भाजपा के पास दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, पूरे देश में उसकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी और उसके लिए सबसे बड़ा ख़तरा भी। भले पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है; लेकिन इसके बावजूद भाजपा यदि किसी पार्टी से भय खाती है, तो वह कांग्रेस ही है; जिसके पास 2019 के लोकसभा चुनाव में अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन करने के बावजूद 11.50 से ज़्यादा का वोट बैंक था, जो भाजपा को मिले मतों से क़रीब 10.50 करोड़ कम था।
कांग्रेस के हाल में अपनी रणनीति में बदलाव किया है। जहाँ उसके पूर्व अध्यक्ष भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिये 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए लगातार दो बार हार से त्रस्त कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुटे हैं, वहीं प्रियंका गाँधी विधानसभा चुनाव में प्रचार का बड़ा चेहरा बन रही हैं। ज़मीनी स्तर पर देखें तो हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रियंका ने जैसी भूमिका निभायी, उसने कांग्रेस के बड़े नेताओं को प्रभावित किया है। प्रधानमंत्री मोदी को भाजपा का मुख्य चेहरा बनाने किए बावजूद हिमाचल में भाजपा को करारी मात मिली है और वह 44 सीटों से 25 पर सिमट गयी। पिछली बार से उसे क़रीब आठ फ़ीसदी वोट कम मिले हैं। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से भाजपा चिन्तित है?
हिमाचल में हाल में सत्ता में आई कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ‘तहलका’ से बातचीत में इसे लेकर कहा- ‘दक्षिण भारत में भाजपा फिसड्डी है। उसे पता है वहाँ कांग्रेस के सामने उसकी नहीं चलेगी। लेकिन जैसी भीड़ उत्तर भारत में भी राहुल गाँधी के समर्थन में उतरी है, उससे भाजपा की नींद हराम है। उसने कोरोना के बहाने राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा रोकने की चाल चली है।’
मल्लिकार्जुन खडग़े के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को सक्रिय किया जा रहा है। पार्टी में अनुशासन को भी महत्त्व देने पर ज़ोर दिया जा रहा है और जल्दी ही पार्टी हाल के सालों में कांग्रेस से बाहर गये कुछ प्रभावशाली नेताओं को संगठन में वापस लाने की क़वायद करने वाली है। लोकसभा का 2024 का चुनाव पार्टी राहुल गाँधी के ही नेतृत्व में लड़ेगी, यह लगभग साफ़ है। हालाँकि पार्टी प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में शायद अपने पत्ते नतीजों के बाद खोलेगी। पार्टी को उम्मीद है कि अगले लोकसभा चुनाव में उसकी सीटों की संख्या में इतनी बढ़ोतरी होगी कि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में होगी।
पार्टी दक्षिण पर फोकस कर रही है और साथ ही उत्तर भारत में अपने खोये जनाधार को वापस जीतने की भी कोशिश में है। इन राज्यों में उसका आधार तो है ही। कई जगह तो उसकी भाजपा से सीधी टक्कर है। कांग्रेस का फोकस अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार फिर बनाने, मध्य प्रदेश और दक्षिण राज्य कर्नाटक में भाजपा को हारने पर है। कांग्रेस महसूस करती है कि 2024 से पहले वह कम से कम 5-6 राज्यों में सत्ता में आ जाती है तो 2024 उसकी स्थिति कहीं बेहतर रह सकती है।