काले सोने के काले नाग

शनिवार 17 जुलाई की सुरमई शाम थी। बादल गरजकर बरस चुके थे; लेकिन घटाएँ अभी भी घुमड़ रही थी। बारिश में भीगी हवाओं ने हल्की-फुल्की ठिठुरन पैदा कर दी थी। कोटा के ‘हैंगिंग ब्रिज’ टोल नाके के पास भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के नायब पुलिस अधीक्षक अजीत सिंह बागडोलिया अपनी टीम के साथ पूरी मुस्तेदी से निगरानी बनाये हुए थे। एसीबी को सूचना मिली थी कि उत्तर प्रदेश ग़ाज़ीपुर स्थित अफीम फैक्ट्री के महाप्रबन्धक शशांक यादव नीमच में अफीम काश्तकारों से 15-16 लाख रुपये रिश्वत के तौर पर वसूलकर चित्तौडग़ढ़ से कोटा होते हुए ग़ाज़ीपुर जा रहा है। शशांक यादव के पास नीमच स्थित फैक्ट्री का भी अतिरिक्त चार्ज था। शशांक यादव ने काश्तकारों से यह रक़म अवैध रूप से वसूली थी। सूचना के मुताबिक, यादव कार में सफ़र कर रहा था। टोल नाके पर पूरी सतर्कता से वाहनों की जाँच (चेकिंग) की जा रही थी। इंतज़ार की घडिय़ाँ लम्बी हुईं, तो नायब पुलिस अधीक्षक (एसपी)बागडोलिया ने एसीबी कोटा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रशील ठाकुर को फोन करके अपना संदेह व्यक्त किया- ‘सर! कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारा शिकार हमें मात देने की कोशिश में किसी और रास्ते से निकल गया हो?’ एएसपी ठाकुर के शब्द पूरी तरह आत्मविश्वास से भरे हुए थे- ‘यह मात नहीं, शुरुआत है। आप निराश मत होइए। हमें सफलता ज़रूर मिलेगी। अलबत्ता बारिश का मौसम है। इसलिए इंतज़ार लम्बा हो सकता है।’

 

उन्होंने मशविरा देते हुए कहा- ‘आपको हर गाड़ी यहाँ तक की स्कूटर की भी जाँच करनी है। अपनी टीम के कुछ लोगों को छिपाकर भी तैनात करिए, ताकि किसी को शक न हो; और हाँ किसी अधिकारी को जीप लेकर सतर्क रखिए, ताकि ज़रूरत पडऩे पर पीछा किया जा सके।’

‘लेकिन सर! क्या वाक़र्इ हमारे पास पुख़्ता सूचना है?’ -नायब पुलिस अधीक्षक ने पूछा।

एएसपी ठाकुर को एकाएक इस सवाल का उत्तर नहीं सूझा। अलबत्ता उन्होंने इतना ही कहा- ‘कुछ गुप्त सूचनाएँ ऐसी हैं, जिन्हें हम फिर साझा करेंगे। अब इसे पुख़्ता समझें या नहीं? आख़िर तुम भी उसी टीम में शामिल हो, जो पिछले 15 दिनों से शशांक यादव की निगरानी कर रही है।’

बागडोलिया से कुछ कहते नहीं बना; लेकिन उन्होंने सब कुछ समझते हुए आगे कोई सवाल खड़ा नहीं किया। तभी तेज़ बारिश का झोंका आया, तो बागडोलिया बैरियर (अवरोधक) की ओट में पहुँचे। अभी वह तेज़ बारिश से बचाव के लिए ओट लेने की कोशिश में ही थे कि पुलिस का लोगो लगी सफ़ेद गाड़ी बैरियर पर थमती नज़र आयी। पुलिस वैन होने के नाते उन्होंने उसे अनदेखी करने की कोशिश की। लेकिन वह यह देखकर चौंक गये कि गाड़ी के चारों दरवाज़े और शीशों पर क़रीब दसों जगह पुलिस लिखा था। कार पर लाल-नीली बत्ती (रेड-ब्लू लाइट) लगी हुई थी। इसका मतलब था- पुलिस का कोई बड़ा अधिकारी सफ़र कर रहा था। बागडोलिया तेज़ी से कार की तरफ़ लपके। खिडक़ी पर पहुँचते ही उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह कोई पुलिस का उच्चाधिकारी नहीं, बल्कि उनका शिकार शशांक यादव था। बागडोलिया ने एक पल की भी देर किये बिना शशांक यादव को घेर लिया। अचानक हुई इस घटना से हक्का-बक्का हुआ यादव कहता ही रह गया कि क्या कर रहे हो? जानते नहीं कौन हूँ मैं। एएसपी बागडोलिया ने यादव के कन्धों पर अपनी पकड़ सख़्त बनाते हुए कहा- ‘चिन्ता मत करिए यादव साहब! अब तो आपको हमें जानना होगा।’

शशांक यादव की कार की तलाशी ली गयी, तो मिठाई के डिब्बे में 15 लाख रुपये तथा बैग और पर्स में रखे 1.32 लाख समेत कुल 16,32,000 रुपये मिले। इतनी बड़ी रक़म के बारे में डीएसपी बागडोलिया के सवाल से हड़बड़ाये यादव को कोई जवाब कैसे सूझता? अलबत्ता यादव ने बागडोलिया की बाँह थामते हुए एक तरफ़ ले जाने की कोशिश करते हुए कहा- ‘सवाल-जवाब छोडि़ए और ले-देकर मामला निपटा लीजिए।’ यादव के रवैये से बुरी तरह झल्लाये हुए नायब एस.पी. बागडोलिया झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद करते हए उस पर बरस पड़े- ‘तुम सीधे-सीधे सब कुछ बताओगे या फिर घसीटकर ले चलूँ।’ पासा उलटा पडऩे से सन्नाटे में आये यादव ने हकलाते हुए बमुश्किल इतना ही कहा- ‘कौन हैं आप लोग?’ नायब एसपी बागडोलिया ने यादव की गिरहबान थामते हुए उसे झिंझोडक़र रख दिया- ‘हम एसीबी से हैं और अफीम काश्तकारों से अवैध वसूली के इल्ज़ाम में आपको गिरफ़्तार कर रहे हैं।’

यादव तेवर बदलते हुए एएसपी बागडोलिया से उलझ पड़ा- ‘ अरे कैसी अवैध वसूली? यह मेरे अपने पैसे हैं। मैं क्यों बताऊँ? कहाँ से आये? या किसने दिये? अफीम काश्तकारों से भला क्यों वसूली करूँगा मैं?’

नायब एस.पी. बागडोलिया ने फटकारते हुए कहा- ‘मतलब आप सीधे-सीधे कुछ नहीं बताएँगे। कोई बात नहीं, हमें सच उगलवाना आता है। हम अफीम काश्तकारों से अवैध वसूली के आरोप में आपको गिरफ़्तार करते हैं।’

यह कार्रवाई भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते ने महकमे के अतिरिक्त महानिदेशक दिनेश एम.एन. के निर्देशन में की गयी। एसीबी कोटा इकाई के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चन्द्रशील ठाकुर की निगरानी में सर्किल इंस्पेक्टर अजीत बागडोलिया ने अपनी टीम के साथ इसे अंजाम दिया था। महाप्रबन्धक सरीखे क़द्दावर अफ़सर की गिरफ़्तारी की ख़बर कोटा समेत पूरे राजस्थान में आग की तरह फैली, तो जैसे हडक़म्प मच गया। एसीबी के अतिरिक्त महानिदेशक दिनेश एमएन का कहना था- ‘हम पिछले सात दिनों से सूचनाओं की पुष्टि करने में जुटे हुए थे। जब हमें लगा कि सूचना पुख़्ता है, तो हमने यादव को रंगे हाथ गिरफ़्तार करने की कार्रवाई को अंजाम दिया। एसीबी के अनुसार, शशांक ने नीमच में अफीम फैक्ट्री में कार्यरत अन्य कर्मचारी अजीत सिंह व कोडिंग टीम के दीपक कुमार के माध्यम से दलालों के ज़रिये अफीम के बढिय़ा गाढ़ेपन एवं मारफीन प्रतिशत ज़्यादा बताकर 60 से 80 हज़ाक रुपये प्रति किसान वसूले थे। यह वसूली चित्तौडग़ढ़ प्रतापगढ़ कोटा एवं झालावाड़ के अफीम किसानों से की गयी थी। अजीत सिंह और दीपक ने दलालों के माध्यम से 6,000 से अधिक अफीम किसानों से 10-12 आरी के पट्टे दिलावाने के नाम पर 30 से 36 करोड़ रुपये अग्रिम तौर पर वसूल लिये थे। शेष 40,000 से अधिक किसानों की अफीम की जाँच होनी अभी बाक़ीथी।