कांग्रेस को मिली संजीवनी

विपक्ष के पास है अब भाजपा पर हावी होने का अवसर

कर्नाटक में भाजपा की हार से विपक्ष में कितनी जान आ गयी है, यह नतीजे आने के सिर्फ़ एक दिन बाद ही महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन, जिसमें उद्धव ठाकरे शिव सेना-कांग्रेस-एनसीपी शामिल हैं; की भविष्य की रणनीति के लिए की गयी बैठक से ज़ाहिर हो जाता है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर फ़ारूक़ अब्दुला-महबूबा मुफ़्ती और शरद पवार से लेकर अखिलेश यादव और उद्धव ठाकरे के कर्नाटक नतीजों पर बयान ज़ाहिर करते हैं कि हाल के वर्षों में निराशा में भरे रहे विपक्ष को मानो कोई संजीवनी मिल गयी है। इन नतीजों से कांग्रेस को विपक्ष का अगुआ बनने और राज्यों में नेतृत्व की लड़ाई को नियंत्रण में रखने में भी मदद मिलेगी। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत कांग्रेस और विपक्ष दोनों के ही लिए अपने पंख फैलाने का सुनहरा मौक़ा है।

दक्षिण के दुर्ग पर अब कांग्रेस का झंडा फहरा रहा है। कर्नाटक दक्षिण का सबसे अहम राजनीतिक गढ़ है। पहले भी दक्षिण भाजपा की कमज़ोर कड़ी थी। अब उसकी पकड़ दक्षिण पर और कमज़ोर हो गयी है। कर्नाटक के नतीजे से यह भी ज़ाहिर होता है कि भाजपा जिसे ‘मोदी मैजिक’ कहती है- ‘उसकी भी अपनी सीमाएँ हैं। और हर बार हर जगह यह नहीं चल पाता। दो साल पहले पश्चिम बंगाल, और हाल के छ: महीनों में यह मोदी मैजिक पहले हिमाचल और अब कर्नाटक में नहीं चला है। टीएमसी और कांग्रेस ने इन राज्यों में बड़े बहुमत से सरकारें बनायी हैं।

कर्नाटक में रणनीति बुनने में कांग्रेस भाजपा से चतुर निकली। भाजपा के दिग्गज नेता अमित शाह को पार्टी के नेता ‘चाणक्य’ कहते हैं। लेकिन कांग्रेस के स्थानीय मुद्दों के विपरीत भाजपा ने बजरंग दल, बजरंग बली, पीएफआई, प्रधानमंत्री को गालियाँ आदि-आदि मुद्दे चुने। यह भाजपा की रणनीति की बड़ी चूक थी। जनता ने अपने वोट से बता दिया कि उसके महत्त्व के मुद्दे क्या हैं। कांग्रेस ने तो नतीजे आने के बाद कहा भी कि बजरंग बली ने भाजपा नहीं उसका साथ दिया; क्योंकि वह सच्चे दिल से जनता की भलाई की लड़ाई लड़ रही थी।

यह नतीजे भाजपा के लिए सबक़ हैं और कांग्रेस के लिए अवसर कि वह अब एकजुट होकर और इस जीत के अहंकार से बचते हुए राज्यों में अपनी हालत ठीक करे। तभी 2024 के आम चुनाव से पहले वह विपक्ष की अगुआ बनने की अपनी कल्पना साकार कर पाएगी। कांग्रेस को कर्नाटक के बाद इस साल तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा से सीधा मुक़ाबला करना है। यदि कांग्रेस जीतती है तो इसका राष्ट्रीय फ़लक पर उसे बहुत लाभ मिलेगा। ख़ासकर 2024 में विपक्ष का नेतृत्व करने के मामले में। दो अन्य चुनाव वाले राज्य तेलंगाना और मिजोरम हैं, जहाँ भाजपा-कांग्रेस के अलावा और मैदान में होंगे। इनके अलावा जम्मू-कश्मीर भी है, जहाँ चुनाव को लेकर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

उत्तर बनाम दक्षिण भारत

अमूमन उत्तर के राज्यों का मिज़ाज दक्षिण से अलग रहता है। भाजपा का धार्मिक एजेंडा दक्षिण के मुक़ाबले उत्तर भारत, जिसमें मध्य भारत के कुछ राज्य भी शामिल हैं; में ज़्यादा काम करता है। लिहाज़ा इन राज्यों में 2024 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस को भाजपा के किले विधानसभा चुनावों में ध्वस्त करने पड़ेंगे। कहा जा रहा है कि आयोध्या में नवनिर्मित राममंदिर अगले साल जनवरी-फरवरी में आम जनता के लिए खुलेगा।

भाजपा चाहेगी कि यह लोकसभा चुनाव की घोषणा से ऐन पहले हो, ताकि वह इसे ‘हिन्दू गौरव’ से जोडक़र चुनाव में इसका राजनीतिक लाभ ले सके। नहीं भूलना चाहिए कि कर्नाटक में भाजपा को कांग्रेस से आधे से भी कुछ कम सीटें मिली हैं।

दक्षिण भारत (कर्नाटक) में धार्मिक मुद्दों के एजेंडे पर मात खा चुकी भाजपा अब भी पूरी तरह हिन्दुत्व के एजेंडे को ही अपनाएगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। यह उसकी राजनीतिक मजबूरी है। अन्यथा दो बार के कार्यकाल की ‘एन्टी इंकम्बेंसी’ उसकी नैया डुबो भी सकती है। इसमें बिलकुल भी संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्तर भी लोकप्रियता समय के साथ कम होने के बावजूद अभी भी काफ़ी हद तक बरकरार है। लेकिन यह भी सच है कि उत्तर भारत से बाहर दक्षिण और अन्य राज्यों में यह उतनी टिकाऊ नहीं दिखती। उत्तर भारत में भाजपा का सबसे बड़ा हथियार अभी भी ‘हिन्दुत्व’ ही है जिसे उसके राजनीतिक विरोधी ‘हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा’ भी कहते हैं। लेकिन समय के साथ विपक्ष यदि मोदी के मुक़ाबले अपना नेतृत्व सामने ले आता है, तो बात बन सकती है।

इन चुनाव नतीजों से ज़ाहिर हो गया है कि दक्षिण में भाजपा की दाल शायद ज़्यादा नहीं गल पाएगी। उसकी पूरी निर्भरता 2024 में उतर भारत और मध्य भारत के हिन्दी भाषी राज्य ही रहेंगे। कुछ हद तक पूर्वोत्तर में वह सीटें ला पाएगी, जिनमें असम और कुछ हद तक पूर्वी भारत का राज्य ओडिशा भी शामिल हैं। भाजपा को चिंता यह है कि आम चुनाव में उत्तर भारत में भी यदि उसका स्कोर पिछली बार के मुक़ाबले नीचे चला जाता है तो उसे सत्ता से बाहर होना पड़ेगा, यह तय है। ऐसी स्थिति में जोश से भरी कांग्रेस और एकजुट विपक्ष भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत बन सकते हैं।

मोदी पर निर्भरता

प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक में 17 विधानसभा हलक़ों में जो रैलियाँ की उनमें से 13 पर कांग्रेस जीत गयी, दो जेडीएस ने जीतीं, जबकि भाजपा के हिस्से भी महज़ दो ही सीटें आयीं। भाजपा जिस तरह मोदी पर निर्भर हुई है, उसके विपरीत नतीजे अब दिखने लगे हैं। एक समय कांग्रेस भी ऐसे ही इंदिरा गाँधी पर निर्भर हो गयी थी, जिससे राज्यों में उसके क्षेत्रीय नेता असरहीन हो गये।

हाल के वर्षों में देखा गया है कि भाजपा विधानसभा चुनाव की बात छोडिय़े, नगर निगम जैसे छोटे चुनावों में भी मोदी का चेहरा आगे कर देती है।

ज़ाहिर है उसके राज्यों में चेहरे चुनाव जिताने लायक नहीं रहे। राज्यों में नेताओं का करिश्मा ख़त्म होना भाजपा के लिए बड़ी चिन्ता की बात होनी चाहिए। इससे उसका आधार सिकुडऩे का ख़त्मा रहेगा। वैसे ही जैसा कांग्रेस के साथ हुआ है। आज भी यह माना जाता है कि भाजपा के अध्यक्ष तो जे.पी. नड्डा हैं; लेकिन पार्टी के फ़ैसलों में सबसे बड़ा प्रभाव मोदी-शाह का रहता है। ऐसा ही कुछ सरकार के मामले में भी माना जाता है।

खडग़े की तैयारी

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े कर्नाटक से निपटते ही राजस्थान पर फोकस करने जा रहे हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक गाँधी परिवार का पूरा भरोसा रखने वाले खडग़े मई में ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, जो कुछ नाराज चल रहे हैं, को दिल्ली तलब करने वाले हैं।

उन्हें साफ़ तौर पर आपसी मतभेद ख़त्म करने के लिए कहा जाएगा। पार्टी की आंतरिक रिपोर्ट में राजस्थान चुनाव को लेकर बहुत उत्साहजनक ख़त्म नहीं है। इसके मुताबिक, यदि गहलोत-पायलट की लड़ाई जारी रही, तो चुनाव में इसका नुक़सान हो सकता है।

खडग़े-राहुल गाँधी की टीम छत्तीसगढ़ में भी भाजपा पर दबाव बनाये रखने और उसे चुनाव से पहले कोई अवसर नहीं देने की रणनीति बना रही है। दोनों को मध्य प्रदेश के चुनाव में उत्साहजनक नतीजे आने की उम्मीद है जहाँ उसके लिए चुनाव रणनीतिकार सुनील कानूनगोलू काम कर रहे हैं।

कर्नाटक में भी कानूनगोलू ही कांग्रेस के रणनीतिकार थे। पार्टी के आंतरिक सर्वे में मध्य प्रदेश ऐसा राज्य बताया गया है, जहाँ उसकी सत्ता में लौटने की संभावनाएँ हैं। कर्नाटक की जीत ने खडग़े और गाँधी परिवार को पार्टी के भीतर और मज़बूत किया है। एनसीपी नेता शरद पवार तक ने नतीजों के बाद कहा कि राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का कांग्रेस को काफ़ी लाभ मिला है। बता दें ऐसी एक और यात्रा की योजना राहुल गाँधी के लिए कांग्रेस ने बनायी है।

विपक्ष की ख़ुशी

सभी विपक्षी दल कांग्रेस की जीत पर उसे बधाई दे चुके हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा कि बदलाव के पक्ष में निर्णायक जनादेश के लिए कर्नाटक के लोगों को सलाम है।  जहाँ भी कांग्रेस मज़बूत है, उन्हें लडऩे दीजिए। हम उन्हें समर्थन देंगे, इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। लेकिन उन्हें अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन करना होगा।’

शरद पवार ने तो नतीजों के अगले ही दिन महाराष्ट्र में विकास अघाड़ी (एमवीए) की बैठक कर ले जिसमें सभी गठबंधन दलों के नेता शामिल हुए। इसमें कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार पर ख़ुशी जतायी गयी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिल चुके हैं। हालाँकि उन्होंने भाजपा या कांग्रेस गठबंधन के साथ जाने में रुचि नहीं दिखायी है। इसके बाद नीतीश कुमार ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ मुलाक़ात कर विपक्षी एकता की दिशा में कुछ क़दम बढ़ाये हैं।

शरद पवार ने कहा कि कर्नाटक चुनाव के परिणाम का ट्रेंड 2024 तक चलता रहेगा। हमारा लक्ष्य भाजपा को हराना है। पवार ने कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस को राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा का फ़ायदा हुआ है और कर्नाटक के लोगों ने ‘मोदी है, तो मुमकिन है’ नारे का अस्वीकार कर दिया है।