
नागालैंड में सेना के हाथों 14 लोगों की मौत के बाद अफ्सपा हटाने की माँग तेज़
देश भर में जहाँ-जहाँ अफ्सपा लागू है, वहाँ से अक्सर इस क़ानून के दुरुपयोग के आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं। पूर्वोत्तर हो या जम्मू-कश्मीर या देश के दूसरे राज्य, लोगों का आरोप है कि सुरक्षा बलों को अपनी ही जनता के ख़िलाफ़ इतने असीमित अधिकार दे देने से मानवाधिकार के उल्लंघन की घटनाएँ बड़े पैमाने पर होती रही हैं। अब नागालैंड के सोम ज़िले में काम से लौट रहे ग्रामीण युवकों को ले जा रही एक पिकअप बैन पर सेना द्वारा अकारण गोलीबारी से 14 लोगों की मौत से व्यापक जनाक्रोश पैदा हो गया है। नागालैंड की इस घटना पर नवा ठाकुरिया की ग्राउंड ज़ीरो रिपोर्ट :-
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम-1958 (एएफएसपीए) के ख़िलाफ़ वैसे तो पूर्वोत्तर भारत में हमेशा ही विरोध के सुर मज़बूत रहे हैं; लेकिन हाल में सेना की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत ने आग में घी का काम किया है। वर्षों पहले मणिपुर ने इस कठोर क़ानून के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विद्रोह देखा था, जो उग्रवाद विरोधी अभियानों में लगे हुए सुरक्षाकर्मियों को अशान्त क्षेत्रों में उनकी उपयुक्तता के अनुसार नागरिक अदालतों से पूरी छूट के साथ कार्य करने का अधिकार देता है। यही वो दौर था, जब टी. मनोरमा देवी और शर्मिला इरोम चन्नू क्षेत्र में अफ्सपा विरोधी स्थिति के दौरान मैतेई समाज में लगभग देवताओं के रूप में उभरे।
हाल ही में नागालैंड के ओटिंग गाँव की घटना के साथ विरोध के स्वर फिर जीवंत हो गये हैं। इस घटना में अफ्सपा के इस्तेमाल के कारण 14 नागरिकों की जान चली गयी। अब स्थानीय गाँवों से लेकर राज्य स्तर के संगठनों तक, उत्तर-पूर्व से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की तरफ से छ: दशक पुराने अधिनियम के ख़िलाफ़ आवाज़ और बुलंद हो गयी है और इसे तत्काल निरस्त करने की माँग ज़ोर पकड़ रही है। कुछ संगठनों ने नई दिल्ली में केंद्र सरकार को क़ानून के ख़िलाफ़ चुनौती दी है और इसमें आतंकवाद से त्रस्त मध्य भारतीय प्रान्त के लोग शामिल हैं।
यह 4 दिसंबर, 2021 की घटना है, जब नागालैंड के मोन ज़िले से बेहद परेशान करने वाली यह ख़बर आयी। जहाँ सुरक्षा बलों ने तिरू घाटी कोयला खदान में दैनिक काम से निपटकर गाँव लौट रहे युवाओं के एक समूह को ले जा रहे एक वाहन पर गोलियाँ चला दीं। भारतीय सेना के 21 पैरा कमांडोज को तिरू-ओटिंग ग्रामीण इलाक़े में कुछ सशस्त्र विद्रोहियों के आन्दोलन के बारे में एक जानकारी मिली थी। इसके बाद पैरा कमांडोज ने घात लगाकर इन लोगों के वाहन पर हमला किया। दरअसल सशस्त्र विद्रोहियों के वाहन की जगह कुछ ही देर में जब युवकों की गाड़ी वहाँ पहुँची सुरक्षाकर्मियों ने उसे रुकने का आदेश दिया। लेकिन कथित तौर पर वाहन धीमा नहीं हुआ, तो यह सन्देह करते हुए उन्होंने उस पर फायरिंग कर दी कि विद्रोही उसमें यात्रा कर रहे थे।
वाहन में सवार छ: लोगों की मौके पर ही मौत हो गयी और दो गम्भीर रूप से घायल हो गये। किसी भी यात्री के पास हथियार या गोला-बारूद नहीं होने की ग़लती का अहसास होने के तुरन्त बाद, सुरक्षाकर्मी इन घायल ग्रामीणों को पास के अस्पताल ले गये। लेकिन इस घटना के बाद ग्रामीणों में जबरदस्त नाराज़गी उभर आयी और वहाँ हंगामा मच गया। ग़ुस्से से भरे लोगों ने अलग-अलग जगह सुरक्षा बलों को निशाना बनाया। दो दिनों के भीतर, विरोध-प्रदर्शनों में आठ अन्य ग्रामीण मारे गये, जबकि असम राइफल्स के एक जवान की भी जान चली गयी।
घटनाओं की श्रृंखला में 14 ग्रामीणों को खोने वाले ओटिंग के निवासी, अफ्सपा को तत्काल रद्द करने की ज़ोरदार माँग के साथ जनजातियों के शीर्ष निकाय (कोन्याक संघ) के तहत सडक़ों पर उत्तर आये। नागरिक समाज समूहों, मानवाधिकार संगठनों, क्षेत्र के राजनीतिक दल के नेताओं के अलावा नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफिउ रियो और उनके मेघालय समकक्ष (कॉनराड के संगमा) ने भी इस क़ानून को निरस्त करने की माँग की है। पीडि़तों को श्रद्धांजलि देते हुए रियो ने एफएसपीए के ख़िलाफ़ कड़ा बयान दिया। रियो ने ओटिंग हत्याओं को अफ्सपा के दुरुपयोग और दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण बताया। घटना में 14 कोन्याक ग्रामीणों के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्होंने लोगों से संयम बरतने का आग्रह किया और कहा कि यह अहिंसा से क्रूरता को हराने का समय है।
मेघालय के मुख्यमंत्री संगमा, भले ही उनके राज्य में एएफएसपीए लागू नहीं है; ने भी इस क़ानून को निरस्त करने का आह्वान किया और कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से केंद्रीय मंत्रालय के साथ इस मुद्दे को उठाएँगे। संगमा ने स्पष्ट रूप से कहा कि सोम की घटना साबित करती है कि आज के समाज में अफ्सपा के लिए कोई जगह नहीं है।
मामला संसद तक पहुँचा, जहाँ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह स्वीकार करते हुए एक बयान दिया कि यह ग़लत पहचान का मामला है। शाह ने यह भी कहा कि नागालैंड में स्थिति गम्भीर बनी हुई है; लेकिन पूरी तरह नियंत्रण में है। उन्होंने कहा कि केंद्र घटना पर ख़ेद व्यक्त करता है और पीडि़त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। उन्होंने बताया कि मामले की जाँच के लिए एक विशेष जाँच दल का गठन किया गया है, जिसे एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है।
हालाँकि कोन्याक संघ ने शाह के बयान का कड़ा विरोध किया और यहाँ तक कि उनसे माफ़ी माँगने की भी माँग की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि केंद्रीय गृह मंत्री ने संसद को ओटिंग नरसंहार के बारे में ग़लत जानकारी दी थी। एक बयान में कहा गया कि शाह को कोन्याक लोगों और नागालैंड के निवासियों से स्पष्ट करना चाहिए और उनसे माफ़ी माँगनी चाहिए। कोन्याक लोगों के मंच ने इस बात पर भी नाराज़गी व्यक्त की कि भारत में स्थित समाचार चैनलों सहित कुछ मीडिया आउटलेट्स ने इसे सुरक्षा बलों और एनएससीएन विद्रोहियों के बीच एक टकराव के रूप में पेश करने की कोशिश की।
इससे पहले सेना ने एक बयान जारी करके घटना पर खेद जताया। उसने घटना की जाँच का भी वादा किया। नागालैंड पुलिस ने इस घटना को लेकर सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की और कोहिमा में सरकार ने प्रत्येक पीडि़त के परिवार को 5-5 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की। यहाँ तक कि नागालैंड (असम भी) के राज्यपाल प्रोफेसर जगदीश मुखी ने भी आधिकारिक तौर पर इस घटना की निंदा की।
अब राज्यपाल द्वारा सोम नागरिकों की हत्याओं की पृष्ठभूमि में अफ्सपा पर चर्चा के लिए 20 दिसंबर को नागालैंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की उम्मीद है। विशेष सत्र, जिसके लिए नागा मदर्स एसोसिएशन, नागा स्टूडेंट्स फेडरेशन, आदि सहित विभिन्न नागा समूहों द्वारा माँग की गयी थी, आफ्सपा को निरस्त करने के लिए एक प्रस्ताव पारित कर सकता है। इससे पहले 7 दिसंबर को रियो सरकार की एक आपात मंत्रिमंडल की बैठक में नागालैंड से अफ्सपा को तुरन्त ख़त्म करने का सर्वसम्मत निर्णय किया गया था। नागालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री टी.आर. जेलियांग ने कहा कि कोई भी कारण नागरिकों की हत्या को सही नहीं ठहरा सकता। उन्होंने कहा कि अफ्सपा हमारे लोगों के लिए केवल दर्द और पीड़ा लेकर आया है।