कमांडर हारा, सेना जीती

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इस चुनाव जंग में हिमाचल की यह दिलचस्प कहानी है जिसमें सेना तो जीत गयी लेकिन कमांडर हार गया। चुनाव के समय बनी अनिश्चितता के विपरीत पहाड़ के मतदाताओं ने आखिर 44 सीटों के साथ भाजपा को सत्ता की देहरी पार करवा दी। यह अलग बात है कि जिन प्रेम कुमार धूमल के बूते भाजपा ने धमाकेदार जीत हासिल की वे खुद अपनी सीट से हार गए। यही नहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती को भी हार झेलनी पड़ी। इसके विपरीत कांग्रेस चुनाव हार गयी लेकिन उसके मुख्यमंत्री पद के दावेदार वीरभद्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू दोनों जीत गए। जुझारू राजनीति के लिए जाने जाने वाले माकपा के राकेश सिंघा करीब 24 साल के बाद दोबारा विधानसभा की देहरी पार कर गए और ठियोग में उन्होंने जबरदस्त जीत दर्ज की।

यह चुनाव नतीजे प्रदेश में नई पीढ़ी के लिए रास्ता खोल गए हैं। भाजपा में जहाँ 54 साल के जगत प्रकाश नड्डा के लिए मुख्यमंत्री बनने की राह खुल रही है वहीं पार्टी में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जय राम ठाकुर भी अब मुख्यमंत्री पद की दौड़ में रहेंगे। उनके अलावा अजय जम्वाल का नाम भी चर्चा में है। इस तरह के संकेत भी हैं कि आलाकमान धूमल के नाम पर भी विचार कर सकती है क्योंकि उनके अनुभव और पार्टी के प्रति उनकी सेवा को आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, भले वे अपनी सीट से हार गए हैं। यदि ऐसी स्थिति बनी तो किसी विधायक से सीट खाली करवाकर धूमल को वहां से लड़वाया जा सकता है। कुटलैहड़ से जीते वीरेंद्र कँवर ने धूमल ही हार होते ही ऐलान कर दिया कि वे धूमल के लिए अपनी सीट छोडऩे को तैयार हैं।

यदि नड्डा के लिए मुख्यमंत्री पद के द्वार खुले तो बिलासपुर से जीते भाजपा विधायक को अपनी सीट खाली करनी पड़ेगी। इस बीच खबर यह भी है कि सराज से जीते जय राम ठाकुर को दिल्ली आने के लिए कहा गया है। वैसे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती के चुनाव हार जाने के बाद उनकी कुर्सी जा सकती है।

उधर कांग्रेस में निवर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 84 साल के हैं और पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव था। उनके लिए राहत की बात यही रही है कि उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण सीट से जीत गए। लिहाजा कांग्रेस में भई अब बदलाव की बयार दिख सकती है।  भाजपा आलाकमान ने जब धूमल की सीट हमीरपुर से सुजानपुर बदली थी, उस समय राजनीतिक गलियारों में यही चर्चा रही थी कि भाजपा के ही एक गुट ने इसमें भूमिका निभाई है। उस समय केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का नाम भाजपा के भीतर मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चा में था हालाँकि जब आलाकमान ने देखा कि धूमल को आगे किये बगैर पार्टी के लिए पहाड़ी सूबे में संकट खड़ा हो सकता है तो उसे मजबूरन धूमल का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित करना पड़ा। ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं भाजपा इस कारण ही इतनी ताकत से सत्ता में आ सकी।