कब खुलेंगी पेगासस जासूसी मामले की परतें?

पेगासस का मसला अभी भी देश की राजनीति में तूफ़ान मचाये हुए है; भले मोदी सरकार मामले से मुँह मोडऩे की लाख कोशिश कर रही हो। इजरायल और फ्रांस में इस मामले में जाँच शुरू हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस और विपक्ष द्वारा इस मसले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जाँच की माँग से केंद्र सरकार इन्कार कर रही है। राफेल को लेकर पहले ही देश की जनता अनेक सवाल कर रही है और अब मोदी सरकार के पेगासस मामले पर चुप्पी साधने से यह सवाल और गहरा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस मसले पर सरकार को नोटिस जारी कर जबाव माँगने से उम्मीद बँधी है कि इस सवाल का शायद जवाब मिल जाए कि क्या केंद्र सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के ज़रिये अपने विरोधियों और अन्य प्रमुख लोगों की जासूसी करवायी? तमाम मसले पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

पेगासस स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के ज़रिये जासूसी के मामले में भारत और इजरायल-फ्रांस में क्या अन्तर है? इन दोनों देशों में इस मामले की जाँच हो रही है, जबकि भारत की सरकार ने इसे कोई मुद्दा मानने से ही इन्कार कर दिया है। संसद में विपक्ष ने लाख सवाल उठाये; लेकिन मोदी सरकार टस-से-मस नहीं हुई और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि संसद के मानसून सत्र से एक दिन पहले मीडिया में पेगासस से जुड़ी ख़बरों का आना संयोग नहीं हो सकता है। यह भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास है।

आख़िर क्यों मोदी सरकार पेगासस जैसे गम्भीर आरोपों वाले मसले पर चुप्पी साधे रखना चाहती है? सरकार से कांग्रेस सहित विपक्ष पूछ रहा है कि उसने पेगासस के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी या नहीं। सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं? लेकिन सरकार के जबाव गोलमोल हैं। अब 16 अगस्त को देश की सर्वोच्च न्यायालय ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब दाख़िल करने को कहा है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर रिपोर्ट सही है, तो इसमें कोई शक नहीं कि आरोप गम्भीर हैं। सन् 2019 में जासूसी की ख़बरें आयी थीं। मुझे नहीं पता कि अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कोई प्रयास किया गया या नहीं। मैं हरेक मामले के तथ्यों की बात नहीं कर रहा, कुछ लोगों ने दावा किया है कि फोन इंटरसेप्ट (अवरोधन) किया गया है। ऐसी शिकायतों के लिए टेलीग्राफ अधिनियम है। सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला अभी विचाराधीन है।

निश्चित रूप से रफाल लड़ाकू विमान ख़रीद विवाद के बाद पेगासस का मामला मोदी सरकार की बड़ी मुसीबत बनता दिख रहा है। इन दोनों मामलों की विदेश में जाँच होने से भारत में सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल बन रहा है, जिसका अंतत: मोदी सरकार को ही राजनीतिक नुक़सान होगा। लेकिन सरकार दोनों मसलों से पल्ला झाडऩे की कोशिश में दिख रही है, जिससे जनता में अविश्वास और गहरा रहा है और सवाल उभर रहे हैं कि सरकार आख़िर क्यों इन गम्भीर सवालों के जबाव सामने नहीं आने देना चाहती? क्या उसे सच सामने आने से किसी तरह की राजनीतिक चिन्ता है?

बड़ा सवाल यह है कि इजरायल और फ्रांस पेगासस जासूसी काण्ड की जाँच करवा सकते हैं, तो भारत सरकार क्यों नहीं? कौन है, जो सच या सही तथ्य सामने आने देना नहीं चाहता? और क्यों? ख़ुद के पारदर्शी सरकार होने का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी सरकार संसद से लेकर बाहर तक क्यों पेगासस जासूसी मामले पर पर्दे डाल देना चाहती है; क्योंकि उसके क़दमों से संदेश तो यही जा रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस

पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाख़िल करने को कहा। इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा कि उसने जो हलफ़नामा दायर किया है, वह पर्याप्त है। ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और मामले में हलफ़नामे में तथ्यों का ख़ुलासा नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश की बेंच ने कहा कि हम सोच रहे थे कि केंद्र सरकार का जवाब इस मामले में विस्तार से आएगा; लेकिन जवाब लिमिटेड था। हम इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हैं। 10 दिन के बाद मामले की सुनवाई की जाएगी। हम इस दौरान देखेंगे और सोचेंगे कि क्या किया जा सकता है? क्या कोर्स ऑफ एक्शन हो या तय करेंगें? क्या एक्सपर्ट समिति की ज़रूरत है? या किसी और समिति की? इस बारे में भी हम देखेंगे कि क्या करना है? हम केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करके कहा कि सरकार को उन आरोपों का जवाब देना चाहिए, जिनमें कहा गया है कि इजरायली स्पाईवेयर का इस्तेमाल अलग-अलग फोन पर किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही जाँच के लिए समिति बनाने पर फ़ैसला करेगा।

सर्वोच्च न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली पीठ के सामने हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े तथ्यों का ख़ुलासा करने को नहीं कह रहे हैं, बल्कि हम यह जानना चाहते हैं कि पेगासस का इस्तेमाल सरकार ने सर्विलांस (जासूसी) के लिए किया है या नहीं? केंद्र सरकार ने जो हलफ़नामा दायर किया है, उसमें वह जवाब देने से बच रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने इससे एक दिन पहले केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वह मामले में विस्तृत हलफ़नामा दायर करना चाहती है? केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च अदालत में कहा कि केंद्र सरकार की ओर से जो हलफ़नामा पेश किया गया है, वह पर्याप्त है। इस मामले में किसी अतिरिक्त हलफ़नामे की ज़रूरत नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर सरकार हलफ़नामे में इस बात का ख़ुलासा कर देगी कि वह कौन-से सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है और कौन-से का नहीं? तो आतंकी गतिविधियों में शामिल लोग उससे बचने का तोड़ निकाल लेंगे। ऐसे में इस मामले को जनचर्चा में नहीं लाया जा सकता है। ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार बताए कि किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं होता है और किसका होता है? मान लिया जाए कि अगर यह बात झूठे तौर पर फैला दी जाए कि सैन्य उपकरण का इस्तेमाल अवैध तरीक़े से हो रहा है और इस बारे में याचिका दाख़िल कर दी जाए; तो क्या सैन्य उपकरण के इस्तेमाल की जानकारी के बारे में जवाब माँगा जा सकता है?

मेहता ने कहा कि अगर कोई आतंकी संगठन का स्लीपर सेल किसी डिवाइस का इस्तेमाल करता है और सरकार कहे कि वह किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सर्विलांस के लिए करती है, तो वह आतंकी संगठन अपने उपकरण को बदल देगा या उसके मॉड्यूल को बदल देगा। अगर सरकार ये बता दे कि पेगासस का इस्तेमाल होता है या नहीं, तो इससे आतंकियों की मदद हो जाएगी; क्योंकि वह इसका तोड़ निकाल लेंगें। इस पर सिब्बल ने कहा कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित जानकारी को उजागर नहीं करने को कह रहे हैं। हम केवल ये जानना चाहते हैं कि क्या सरकार ने पेगासस के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी थी? क्या सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं?

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हम न्यायालय से कुछ छिपाना नहीं चाह रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जिस प्रस्तावित एक्सपर्ट समिति के गठन की बात कही गयी है, उस समिति के सामने सरकार पूरा ब्यौरा पेश कर देगी; लेकिन जनचर्चा के लिए नहीं दे सकती। हमारे पास छिपाने को कुछ भी नहीं है; लेकिन ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम बतौर न्यायालय ये कभी नहीं चाहेंगे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता हो। लेकिन यहाँ आरोप है कि कुछ लोगों के मोबाइल को हैक किया गया और सर्विलांस किया गया। ये भी कंपिटेंट अथॉरिटी की इजाज़त से हो सकता है। इसमें क्या परेशानी है कि कंपिटेंट अथॉरिटी हमारे सामने इस बारे में हलफ़नामा पेश करे। कंपिटेंट अथॉरिटी नियम के तहत फ़ैसलाले कि किस हद तक जानकारी जनता में जा सकती है? सर्वोच्च न्यायालय ने साफ़ किया कि हम ऐसा नहीं चाहते कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित जानकारी उजागर करे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस पेगासस के कथित इस्तेमाल की न्यायालय की निगरानी में जाँच की माँग करने वाली जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद जारी किया है। न्यायालय ने केंद्र से 10 दिन के अन्दर जवाब देने का आदेश देते हुए कहा कि मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इस मामले में न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि हम यह नहीं चाहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया जाए; लेकिन लोगों का दावा है कि उनके फोन पर हमला किया गया है। उनके दावों के अनुसार, एक सक्षम प्राधिकारी ही इस पर प्रतिक्रिया दे सकता है। याद रहे द वायर सहित एक मीडिया संस्थान ने बड़ा ख़ुलासा करते हुए बताया था कि भारत के क़रीब 300 से ज़्यादा फोन इजरायली स्पाईवेयर फर्म एनएसओ के लीक डाटाबेस के सम्भावित लक्ष्यों की सूची में शुमार थे।

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि अगर मीडिया में आयी ख़बर सही है, तो आरोप सच में गम्भीर है। सर्वोच्च न्यायालय में पेगासस जासूसी मामले को लेकर विभिन्न याचिकाएँ दायर की गयी हैं और इन याचिकाओं में पेगासस जासूसी कांड की न्यायालय कि निगरानी में एसआईटी जाँच की माँग की गयी है। इनमें राजनेता, एक्टिविस्ट, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एन. राम और शशि कुमार की दी गयी अर्जियाँ भी शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना और न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ इसकी सुनवाई कर रही है।