कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद लगा था कि कपड़ा उद्योग की गुजरात में लगी मिलें, फैक्ट्रियाँ पहले की तरह सुचारू रूप से चल सकेंगी। बीते साल 2021 के आख़िर तक इस उद्योग से जुड़े लोगों को यही उम्मीद रही और उन्हें लगा कि 2022 में सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन एक बार फिर कोरोना के ओमिक्रॉन रूप ने इस उद्योग से जुड़े हर आदमी को चिन्ता में डाल दिया है। सन् 2016 में हुई नोटबंदी के बाद से इस उद्योग पर जिस तरह मार पड़ी है, उससे न केवल कपड़ा फैक्ट्रियों, मिलों और कम्पनियों के मालिक, बल्कि इनमें काम करने वाले लोग भी बेहद कमज़ोर हुए। नोटबंदी और कोरोना ने इस उद्योग को बिल्कुल बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। इसके बाद पिछले साल पड़े कोयला संकट से उभरे बिजली संकट ने भी इस उद्योग को एक बड़ा झटका दिया था। उन दिनों कई-कई दिन तक मिलों, कम्पनियों और फैक्ट्रियों में काम नहीं हुआ था।
हालात यह हैं कि पिछले पाँच-छ: साल में बाज़ार में दर्ज़नों मिलों, फैक्ट्रियों और कम्पनियों पर ताले लग चुके हैं और अधिकतर की हालत पहले से काफ़ी कमज़ोर हुई है। कोरोना महामारी के दौरान कई-कई बार हुई तालाबन्दी ने एक तरफ़ इनमें काम करने वाले हज़ारों लोगों को अपने घर-गाँव लौटने को मजबूर किया। वहीं अब जब उनकी वापसी की उम्मीद बँधी थी, फिर से कोरोना के नये वारियंट ओमिक्रॉन ने दस्तक दे दी है, जिससे एक बार फिर तालाबंदी के हालात नज़र आ रहे हैं। इससे न केवल कपड़ा उद्योग से जुड़े मालिकों में, बल्कि काम करने वालों में भी रोज़गार को लेकर डर घर करने लगा है।
हालाँकि गुजरात सरकार ने तीसरी बार बढ़ते कोरोना के ओमिक्रॉन मामलों से बचाव के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिये हैं। नाइट कफ्र्यू लागू कर दिया है। लेकिन मिलों, कम्पनियों और फैक्ट्रियों को दिशा-निर्देश का पालन करते हुए दिन में चालू रखने के लिए कहा है। अब मिलों, कम्पनियों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों को सैनिटाइज करके, सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के साथ मास्क लगाकर काम करना है। काम करने वाले सभी लोगों के साथ-साथ मशीनों को भी सैनिटाइज किया जाना ज़रूरी है। लेकिन इन नियमों की वजह से मिलों, फैक्ट्रियों और कम्पनियों में काम उस गति से नहीं हो पा रहा है, क्योंकि अब लोगों की संख्या भी उतनी नहीं है और उत्पादन भी कम हो रहा है।
बन्द नहीं होगा काम
अहमदाबाद के नारोल में स्थित श्री साई इंपेक्स के मालिक ललित राजपूत कहते हैं कि अहमदाबाद में उन्हें कई दशक हो गये। लेकिन कपड़ा उद्योग की जैसी स्थिति अब हो गयी है, वैसी स्थिति कभी नहीं हुई। देश के दूर-दराज़ से इस क्षेत्र में करियर बनाने वाले लोग भी अब इस क्षेत्र में आने से डर रहे हैं। पहले हर कम्पनी में भर्तियाँ होती ही रहती थीं। लेकिन अब पुराने काम करने वालों को भी भरपूर काम नहीं मिल रहा है। इसके अलावा कोरोना के डर से व्यापारी लोगों का आना-जाना कम हो रहा है। ऑर्डर भी कम मिल रहे हैं। ऐसे में पहले जैसा काम अब कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में नहीं है।
एक प्राइवेट लिमिटेड में प्रबन्धन समिति में अधिकारी स्तर पर कार्यरत सतीश सिंह ने इस बारे में बताया कि पहले से कपड़ा उद्योग पर दो तरह से अन्तर आया है। एक तो कोरोना ने इसे कमज़ोर किया है। दूसरा पहले प्रोडक्शन (उत्पादन) में कपड़े पर पाँच फ़ीसदी कर (टैक्स) लगता था और अब 12 फ़ीसदी कर लगता है। यह प्रोसेसिंग (मिल या फैक्टरी में बनने वाले माल) में है, बाक़ी प्रोसेसिंग के बाद बाहर कितना कर लगता है, वो नहीं पता। इन दोनों कारणों से कपड़ा उद्योग पर फ़र्क़ इसलिए भी पड़ा है, क्योंकि लोगों की आमदनी घटी है। कुछ लोग बेरोज़गार भी हुए हैं। ऐसे में कपड़े की बिक्री भी कम हुई है। अब मिलों में या कम्पनियों और फैक्ट्रियों में पहले की तरह लगातार उत्पादन नहीं हो रहा है। क्योंकि पहले इस क्षेत्र से जुड़े मालिकों को यह डर नहीं था कि उत्पादन के बाद उनका कपड़ा बिकेगा या नहीं? लेकिन अब वे उतना ही कपड़ा तैयार करते हैं, जितना उन्हें ऑर्डर मिलता है। इन दिनों में बाज़ार में मंदी होने के चलते ज़ाहिर है कि प्रोडक्शन पहले की अपेक्षा काफ़ी कम हो रहा है। इसकी वजह यह है कि लोगों के पास पैसा ही नहीं है, तो बाज़ार में उछाल कहाँ से आएगा? बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हो चुके हैं।
अहमदाबाद के पीपलेज में स्थित अंजनी फैबरिक प्राइवेट लिमिटेड में काम करने वाले जगदीश भाई ने बताया कि काम तो पहले जैसा नहीं रहा। अब पहले की अपेक्षा क़रीब आधा काम रह गया है।
बेहद महँगी हुई कपास