उरूज़ पर फिर हिन्दोस्ताँ होगा

भारत ने वह कर दिखाया, जिसकी उम्मीद बहुत कम लोगों ने की थी। भारत के हॉकी खिलाड़ी न केवल कांस्य का पदक ले आये, बल्कि उन्होंने उन लोगों के मुँह पर एक करारा तमाचा भी जड़ दिया, जो लोग कुछ साल से यहाँ हॉकी का मर्सिया पढऩे में लगे थे। न केवल लडक़ों ने, बल्कि लड़कियों ने अन्तिम चार में पहुँचकर यह साबित कर दिया कि देश के लहू में हॉकी अभी ज़िन्दा है। ध्यान रहे कि ओलंपिक खेलों में महिला हॉकी सन् 1980 में शामिल की गयी थी। उस साल भारत की पुरुष टीम ने भास्करन के नेतृत्व में स्वर्ण पदक जीता था। पर महिला टीम कुछ ख़ास नहीं कर पायी थी। इसके बाद सन् 2012 तक महिला टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पायी। सन् 2016 रियो ओलंपिक में इस टीम ने दूसरी बार क्वालीफाई किया; पर प्रदर्शन काफ़ी कमज़ोर रहा। इस बार टोक्यो में इस टीम ने सभी को चकित करते हुए न केवल सेमीफाइनल में जगह बनायी, बल्कि इस उपलब्धि को हासिल करने की राह में आयी और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को भी पस्त किया।

भारत में हॉकी का स्वर्णिम इतिहास रहा है। लेकिन पिछले 41 साल से हम एक पदक के लिए तरस रहे थे। एमेस्ट्रम (1928) से लेकर मेलबर्न (1956) तक इस खेल में हम बादशाह थे। पर रोम (1960) में अपने हमसाया मुल्क पाकिस्तान ने नसीर बुंदा के पहले हाफ के 11वें मिनट में किये गोल से हमसे यह रुतबा छीन लिया। पूरे देश में मातम छा गया। भारत पहली बार रजत (चाँदी) का पदक लेकर लौटा था। टीम के कप्तान लेसली क्लॉडियस का यह चौथा ओलंपिक था, जो अन्तिम भी साबित हुआ। इतना ही नहीं सन् 1962 के एशियाई खेलों में भारत फिर पाकिस्तान से परास्त हो गया। अब लोगों में निराशा फैलने लगी थी। लोग भारतीय हॉकी को बीते दिनों की बात कहने लगे थे। उन्हीं दिनों ग़ज़ब के सेंटर हाफ चरणजीत सिंह को टीम का कप्तान बनाया गया। उन्हीं की अगुआई में टीम सन् 1964 के टोक्यो ओलंपिक पहुँच गयी। टीम में इस नया जोश था। यहाँ भारतीय टीम पूल-2 में थी। उसने अपने अभियान का आग़ाज़ बेल्जियम को 2-0 से हराकर किया। इसके बाद वह जर्मनी और स्पेन से 1-1 से ड्रॉ खेला, हॉन्गकॉन्ग को 6-0 से, मलेशिया को 3-1 से, कनाडा को 3-0 से और हॉलैंड को 2-1 से हराया। उधर पाकिस्तान ने पूल-1 में जापान को 1-0 से, केन्या को 5-2 से, रोडेशिया को 6-0 से, न्यूजीलैंड को 2-0 से और ऑस्ट्रेलिया को 2-1 से हराया। इस प्रकार पूल में पाकिस्तान ने 6 के 6 मैच जीते। उनके ख़िलाफ़ केवल 3 गोल हुए, जबकि उन्होंने लगभग 3 गोल प्रति मैच की औसत से 17 गोल दाग़े।

भारत ने पूल के 7 मैचों में से 5 जीते 2 बराबर रहे। इन मैचों में उन्होंने 18 गोल किये और मात्र 4 गोल खाये। भारत के गोलरक्षक शंकर लक्ष्मण के लिए यह ओलंपिक शानदार रहा।

सेमीफाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 3-1 से और पाकिस्तान ने स्पेन को 3-0 से हराया।

फाइनल में तीसरी बार भारत पाकिस्तान आमने-सामने थे। सभी को पाकिस्तान का पलड़ा भारी लग रहा था; पर भारत की रक्षा पंक्ति, ख़ासकर गोल में शंकर लक्ष्मण के अद्भुत खेल से भारत ने पाकिस्तान से अपना ताज फिर वापस छीन लिया। भारत के लिए एक मात्र गोल मोहिंदर लाल ने पेनल्टी स्ट्रोक पर किया।

खेल में गिरावट

भारतीय खेल में गिरावट जल्दी ही सामने आने लगी। हालाँकि सन् 1966 में भारत पहली बार एशियन खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीता; पर टीम में गुटबाज़ी काफ़ी थी।

हॉकी का पतन

मेक्सिको के लिए चुनी टीम काग़ज़ों पर बहुत मज़बूत थी; पर अन्दरख़ाने टीम भावना की कमी थी। इस ही वजह से पहली और शायद आख़िरी भी, टीम के दो कप्तान- पृथपाल सिंह और गुरबख़्श सिंह बनाये गये। टीम न्यूजीलैंड से अपना पहला ही मैच 1-2 से हर गयी। इतना ही नहीं, सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने भी हमें हराकर स्वर्ण पदक की दौड़ से बाहर कर दिया। वहाँ हमें पहली बार कांस्य पदक मिला। सन् 1972 के म्यूनिक ओलंपिक में भी हमें कांस्य पदक से ही सन्तोष करना पड़ा।

मॉन्ट्रियल (1976) में पहली बार हॉकी के मैच कृत्रिम मैदान पर खेले गये और भारत सीधा सातवें स्थान पर सरक गया।

मॉस्को (1980) में कई देशों के बायकॉट के कारण स्वर्ण पदक फिर भारत की गोद में आ गिरा। पर इसके बाद स्थिति बद से बदतर होती गयी और लॉस एंजेलिस (1984) में हम  पाँचवें, सिओल (1988) में छठे, बार्सिलोना (1992) में सातवें, अटलांटा (1996) में आठवें, सिडनी (2000) में सातवें, और एथेंस (2004) में सातवें स्थान पर रहे।

बीजिंग (2008) में हम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाये। लंदन (2012) में हमें 12वाँ स्थान मिला। रियो (2016) में हम आठवें स्थान पर थे। पिछले पाँच साल में भारतीय टीम में कई बदलाव किये गये। युवा खिलाडिय़ों पर भरोसा रखा गया और बिना दर जूनियर टीम के कई खिलाड़ी इस टीम में नज़र आ रहे हैं।