उम्र और खिलाड़ी

‘जब तक जीऊँगी, तब तक खेलूँगी’ -यह दिल्ली के पास नजफगढ़ की 95 वर्षीय एथलीट भगवानी देवी डागर के शब्द हैं। वह मार्च में पोलैंड के टोरून में हुई वल्र्ड मास्टर्स एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप से भारत के लिए तीन गोल्ड मेडल जीतकर लायीं। ज़िन्दगी को जीवटता से जीने के लिए इससे ज़्यादा प्रेरणादायी शब्द भला और क्या हो सकते हैं?

भगवानी देवी यानी एथलीट दादी की इस उपलब्धि से कुछ ही दिन पहले भारत की चार युवा वीरांगनाएँ विश्व चैंपियन बन गयीं, वह भी बॉक्सिंग जैसे खेल में। भारत में जिन महिलाओं को ‘चूल्हे-चौके की रानियाँ’ और ‘नाज़ुक’ कहा जाता था, उनकी यह उपलब्धि भारतीय खेल के इतिहास की बड़ी घटना है।

एथलीट भगवानी देवी डागर

भगवानी देवी की बात करें, तो उनका विवाह सिर्फ़ 12 साल की उम्र में हो गया था। और महज़ 30 साल की उम्र में वे विधवा हो गयीं। उन्होंने अपना सारा वक़्त और ऊर्जा अपनी बेटी और पेट में पल रहे बच्चे के लिए लगा दिया। चार साल बाद उनकी बेटी भी असमय दुनिया छोड़ गयी। ज़िन्दगी में मिले ऐसे झटकों से कोई भी टूट सकता है; लेकिन भगवानी देवी ने इस ग़म को ही अपनी शक्ति बना लिया। आज वह तीन बड़े युवाओं की दादी हैं। सिर्फ़ देशी घी में बना खाना खाने की शौक़ीन भगवानी रोज़ पार्क में सैर करती हैं।

मूलत: हरियाणा के खेकड़ा गाँव की भगवानी देवी का एक पोता विकास डागर, पारा एथलेटिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है और खेल रत्न अवॉर्ड उन्हें मिला है। वे एशियन गेम्स चैंपियन रहे हैं। यहाँ दिलचस्प यह है कि विकास के ही कारण भगवानी देवी स्पोट्र्स की दुनिया में पहुँची और आज 95 साल की उम्र में भी ऊर्जा से भरी दिखती हैं।

जीवनयापन के लिए भगवानी देवी दिल्ली नगर निगम में क्लर्क की नौकरी कर चुकी हैं। साल 2022 में फिनलैंड में भी दादी भगवानी तीन मेडल जीतकर लौटी थीं। भगवानी देवी की उपलब्धि और भी बड़ी इसलिए हो जाती है कि इस साल पोलैंड के जिस टोरून शहर में उन्होंने यह मेडल जीतकर इतिहास रचा, वहाँ का न्यूनतम तापमान आजकल शून्य से भी काफ़ी नीचे चला जाता है। पोलैंड के टोरून जाने से पहले भगवानी देवी एक कार्यक्रम में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में थीं।

पोलैंड की 9वीं वल्र्ड मास्टर्स एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप के लिए उन्हें सामाजिक संगठन ‘अपराजिता’ ने स्पांसर करने के लिए यह कार्यक्रम रखा था। दिलचस्प यह भी है कि ‘सन्मार्ग अपराजिता’ की जूरी ने भगवानी देवी ‘अपराजिता यू इंस्पायर-स्पोट्र्स जूरी अवॉर्ड-2022’ से नवाज़ा है। इस उम्र में भी उनकी ऊर्जा देखते बनती थी। कार्यक्रम में उनकी बस एक ही ज़िद थी- ‘पीला मेडल ले के आऊँगी।’ और भगवानी देवी ने अपनी ज़िद एक नहीं तीन पीले मेडल जीतकर पूरी की; -60 मीटर दौड़, चक्का फेंक और गोला फेंक में। पोलैंड की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भगवानी देवी 60 मीटर की दौड़ इतनी गति से दौड़ीं कि अन्य प्रतियोगी उनसे पीछे छूट गये।

भगवानी देवी जहाँ उम्रदराज़ हैं। वहीं नीतू घणघस, स्वीटी बूरी, निकहत ज़रीन और लवलीना बोरगोहेन युवा हैं, जिन्होंने मार्च की महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत की झोली में चार स्वर्ण पदक डाले। उम्र हर जगह अपना काम करती है, क्योंकि बॉक्सिंग ताक़त का खेल है। हाँ; जज़्बा एक ऐसा कारक है, जो हर जगह काम करता है। -भगवानी देवी से लेकर निकहत और नीतू तक। महिला मुक्केबाज़ों की इस सफलता से प्रधानमंत्री मोदी भी प्रभावित दिखे, जिन्होंने उन्हें अपने बधाई सन्देश में कहा- ‘आपको बधाई! आपने देश का सिर गर्व से ऊँचा किया है।’ 

निश्चित रूप से महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारतीय महिला मुक्केबाज़ों ने लाजवाब प्रदर्शन किया है; चाहे घरेलू दर्शकों के सामने ही। नीतू ने 45 से 48 किलोग्राम भारवर्ग में एक रोमांचक मु$काबले में मंगोलियाई की लुत्साइखान को मात दी। अंत तक विजेता का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था। स्वीटी बूरा ने 75-81 किलोग्राम भारवर्ग में चीन की लिना वोंग को पटखनी दी। दो राउंड में स्वीटी की 3-2 की बढ़त के बाद तीसरे राउंड के बाद फ़ैसला रिव्यू के लिए गया, जिसमें नतीजा स्वीटी के हक़ में रहा।

पिछली विश्व चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीतने वाली निकहत ज़रीन ने 48 से 50 किलोग्राम भारवर्ग में वियतनाम की न्यूगेन थी ताम को फाइनल में हराया। निकहत शुरू से शानदार और अपने रुतबे के मुताबिक खेली। तीसरे राउंड में वियतनाम की मुक्केबाज़ के चेहरे पर उनका पंच इतना ज़ोरदार था कि रेफरी ने मैच रोककर वियतनामी मुक्केबाज़ का हाल-चाल पूछना पड़ा। उनकी 5-0 की जीत निकहत के दबदबे की कहानी ख़ुद कहती है। लवलीना बोरगोहेन ने 70-75 किलोग्राम भारवर्ग में ऑस्ट्रेलिया की कैटलिन एन. पार्कर को 3-2 से हराया। आख़िरी राउंड में दोनों की टक्कर काँटेदार थी और अन्त में रिव्यू में लवलीना विजयी रहीं। इससे पहले 2006 में दिल्ली की विश्व चैम्पियनशिप में भारत ने एक साथ 4 स्वर्ण पदक जीते थे।

हालाँकि तब महिला मुक्केबाज़ी ओलम्पिक में शामिल नहीं की गयी थी। इसे 2012 में ओलम्पिक में शामिल किया गया था। इनसे पहले छ: बार विश्व चैम्पियन रहीं एमसी मैरीकॉम के अलावा सरिता देवी, जेनी आरएल और लेखा सी भारत के लिए विश्व ख़िताब जीत चुकी हैं।

ज़ाहिर है निकहत ज़रीन, नीतू घणघस, स्वीटी बूरी और लवलीना बोरगोहेन ने 2024 में पेरिस में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए बेहतरीन उम्मीदें जगायी हैं। तकनीक और समझ के लिहाज़ से निकहत ज़रीन की दिल्ली की विश्व चैम्पियनशिप के दौरान काफ़ी तारीफ़ हुई है और उन्हें ओलम्पिक मेडल का ‘स्टफ’ बताया गया है। ऐसी ही उम्मीद अन्य महिला मुक्केबाज़ों से भी है। उम्मीद है अगले साल भारत का महिला मुक्केबाज़ी में मेडल का सूखा ख़त्म होगा !

सलीम दुर्रानी

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में जन्मे भारतीय खिलाड़ी सलीम दुर्रानी ने इसी 2 अप्रैल को 88 साल की उम्र में देह त्याग दी। उम्र एक पड़ाव पर आपका साथ छोड़ देती है। सलीम की दो ख़ासियतें थीं। एक, वह जिस भी शहर में क्रिकेट खेलने गये, वहीं उन्होंने दोस्त बना लिये। दूसरी, वह स्टेडियम के उसी दिशा में छक्का मार देते थे, जहाँ दर्शक माँग कर रहे होते थे। वह हैंडसम तो थे ही, दोस्त बनाने में भी माहिर थे। वह बेहतरीन ऑफ स्पिनर होने के साथ शानदार आलराउंडर थे।

क्रिकेट प्रेमियों में उनका इतना क्रेज था कि 1972 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ ईडन गार्डन्स पर अर्धशतक मारने के बाद जब उन्हें कानपुर टेस्ट में नहीं चुना गया, तो लोगों ने वहाँ पोस्टर चिपका दिये थे, जिन पर लिखा था- ‘नो सलीम, नो टेस्ट।’

ईडन गार्डन्स, जिसमें तब भी क़रीब 90,000 दर्शक बैठने की क्षमता थी; में जब दर्शक ‘वे वांट सिक्सर’ चिल्लाते थे, तो सलीम अपने बल्ले से अगली ही गेंद को वहाँ पहुँचा देते थे। सुनील गावस्कर ने एक बार कहा था कि सलीम दुर्रानी आत्मकथा लिखेंगे, तो उसका शीर्षक होगा- ‘आस्क फॉर अ सिक्स।’

हस्तियों पर अपनी अद्भुत जानकारी रखने वाले लेखक विवेक शुक्ला सलीम दुर्रानी को लेकर कहते हैं- ‘सलीम दुर्रानी यारबाश क़िस्म के इंसान थे। उनकी शामें प्रेस क्लब में गुजरतीं। वहाँ पर उन्हें दोस्त घेरे रहते। वे कैरम भी खेलते और आमतौर पर जीत जाते। दोस्तों के साथ ड्रिंक्स कर रहे होते थे। रात को कोई उन्हें उनके घर छोड़ देता। उनके पास क्रिकेट की दुनिया से जुड़े तमाम क़िस्से थे।’

एक शानदार इंसान और बेहतरीन खिलाड़ी को श्रंद्धाजलि!

रिकॉर्ड

टेस्ट 29, रन 1202, एक शतक

(7 अर्धशतक बनाने के अलावा 75 विकेट भी सलीम दुर्रानी ने लिए)