उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 जातिगत समीकरण साधने में जुटीं पार्टियाँ

उत्तर प्रदेश की वर्ष 2017 में निर्वाचित वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 14 मई, 2022 को समाप्त हो रहा है। अर्थात् 2022 में देश के इस बड़े प्रदेश के विधानसभा चुनाव हैं, जो कि केंद्र की सत्ता में पहुँच बनाने से लेकर देश भर के राजनीतिक दृष्टिकोण से सभी राज्यों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। वैसे तो 2022 में पहले पाँच और फिर दो अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों की सम्भावना है; लेकिन उत्तर प्रदेश में चुनावी हलचल अभी से आँधी की तरह तेज़ हो गयी है।
इस बड़े और लोकसभा की सबसे अधिक सीटों वाले प्रदेश में इस बार सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुखता से मैदान में उतरेंगी। इनमें लगभग सभी पार्टियाँ सक्रिय हो चुकी हैं, जिनमें सबसे ज़्यादा ज़ोरशोर से भाजपा मैदान में दिखायी दे रही है। इस बड़े चुनाव में कौन जीतेगा और किस-किसको हार का मुँह देखना पड़ेगा, यह कहना-सुनना तो अभी अतिशयोक्ति होगी, अलबत्ता पार्टियों के अपने-अपने दावे ज़रूर सामने आ रहे हैं।


भाजपा का कहना है कि वह 300 से अधिक सीटें जीतकर फिर से सत्ता में वापसी करेगी। भाजपा नेता इस बात को पूरे विश्वास के साथ कह रहे हैं और इसके लिए वे प्रदेश में हुए ज़िला पंचायत अध्यक्ष और खण्ड (ब्लॉक) प्रमुख चुनावों में अपनी बड़ी जीत का उदाहरण दे रहे हैं। परन्तु यहाँ यह भी सच है कि ज़िला पंचायत के त्रिस्तरीय चुनावों में भाजपा को अपनी साख बचानी मुश्किल पड़ गयी थी; यहाँ तक कि उस पर ज़िला पंचायत से लेकर ब्लॉक प्रमुख तक सभी चुनावों में धाँधली और मारपीट के आरोप भी लगे हैं। सपा के नेता भी इस बार उत्तर प्रदेश में अपनी जीत पक्की बता रहे हैं। बाक़ी किसी ने इस तरह का दावा तो नहीं किया है, परन्तु भाजपा को हराने में योगदान ज़रूर देना चाहते हैं; सिवाय भाजपा समर्थित पार्टियों के। माना जा रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी को सपा को हराने और भाजपा को जिताने के लिए मैदान में उतारा गया है। अगर हम पिछले दिनों हुए एक केंद्र शासित प्रदेश समेत पाँच राज्यों के चुनावों की बात करें, तो भाजपा ने बंगाल में भी असदुद्दीन ओवैसी को इसी तरह इस्तेमाल करने का प्रयोग-प्रयास किया था, परन्तु वह पूरी तरह विफल रही। यूँ तो भाजपा के शीर्ष नेता कह रहे हैं कि भाजपा पुरानी ग़लतियों से सीख लेकर उत्तर प्रदेश और बाक़ी राज्यों के चुनावों में उतर रही है, परन्तु उसका एक भी पैंतरा बंगाल चुनाव से इतर अभी तक तो दिखा नहीं है।

कोशिश अपनी-अपनी


लोगों को आगामी विधानसभा चुनाव में साधने की कोशिश में सभी पार्टियाँ अपनी-अपनी तरह से तैयारियों में जुटी हैं। भाजपा की बात करें, तो उसने ज़िला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव जीतने के अलावा पूरे प्रदेश में बैनर-पोस्टर अभियान छेड़ रखा है, जिनमें मुफ़्त वैक्सीन, किसानों का गन्ना भुगतान, जिसे किसान ग़लत बता रहे हैं; हज़ारों करोड़ की परियोजनाओं की घोषणाएँ कर दी गयी हैं। कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार की तारीफ़ स्वयं प्रधानमंत्री काशी में कर चुके हैं; जबकि गंगा में मृत शरीर बहने की घटना और श्मशानों में शवदाह के लिए दो-दो दिन इंतज़ार के बुरे पल किसे याद नहीं हैं।
इसके अतिरिक्त भाजपा के बड़े से लेकर छोटे नेताओं तक ने अपने-अपने स्तर पर प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया है, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी से की है। इसी तरह बसपा, सपा, कांग्रेस, रालोद, आप और एआईएमआईएम ने भी अपनी कमर कस ली है।