उत्तर प्रदेश की सियासत को हासिल करने के लिए कोई भी राजनीतिक दल नागरिकों के लिए कितने ही बड़े-बड़े दावे क्यों न कर लें। लेकिन चुनाव आते–आते पूरी राजनीति हिंदू-मुसलमान जातीय धुव्रीकरण के बीच फंस कर रह जाती है। चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी और विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे गौड़ हो जायेगें। जिसका नतीजा यह हो जाता है कि पूरी राजनीति धुव्रीकरण पर ही निर्भर दिखने लगती है।
उत्तर प्रदेश के सियासत के जानकारों का कहना है कि, मौजूदा समय में प्रदेश में जिस तरह एक दल धार्मिक कार्यो पर जोर दें रहा है। तो, वही अन्य दल इस बात को लेकर उलझन में है कि वे भाजपा कि इस रणनीति की क्या काट निकाले।
चुनाव की तिथि की सुगबुगाहट की चर्चा उत्तर प्रदेश की दिल्ली में सुनाई दें रही है। तमाम तरह के कयास लगाये जा रहे है। कि जनवरी के पहले या दूसरे सप्ताह में चुनाव तिथि की घोषणा कर दी जायेगी। कुल मिलाकर चुनाव को लेकर राजनीतिक दल कमर कस चुके है। चुनावी बिसात में भाजपा को छोड़ अन्य विपक्षी राजनीतिक दल इस बार महंगाई, बेरोजगारी और किसान आंदोलन में मारे गये किसानों जैसे गंभीर मुद्दों के साथ सरकार को घेर सकते है।