इस्तेमाल नहीं हुए गांगुली

सौरव गांगुली क्रिकेट के कई क़िरदारों में दिखे हैं। क्रिकेट के मैदान से बाहर की राजनीति में भी वह कभी कमज़ोर नहीं रहे और यह उनके क्रिकेट एसोसिएशन आफ बंगाल (कैब) से लेकर बीसीसीआई तक की कमान सँभालने से ज़ाहिर हो जाता है। भारतीय टीम के कप्तान बने, तो ठसके से कप्तानी की। मर्ज़ी की टीम बनायी और उसे शिखर तक ले गये। उनकी कप्तानी में ही भारतीय क्रिकेट के कई और मज़बूत क़िरदार सामने आये- युवराज सिंह, ज़हीर ख़ान, हरभजन सिंह, वीरेंद्र सहवाग और एमएस धोनी।

सौरव तब कप्तान बने थे, जब स्पॉट फिक्सिंग में फँसी भारतीय क्रिकेट संकट में दिख रही थी। सौरव न सिर्फ़ उसे इससे बाहर निकाल लाए, बल्कि उन्होंने अपने नेतृत्व में एक ऐसी टीम खड़ी की, जिसके तेवर ही अलग थे और जो जीत के लिए मैदान में विरोधी के सामने हौसले से खड़ी दिखती थी। यही गांगुली अक्टूबर के तीसरे हफ्ते भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) से कुछ बेआबरू करके बाहर कर दिये गये। कहते हैं कि उन पर भाजपा में शामिल होने का दबाव था, जिसे सौरव ने नहीं माना।

क़िरदारों की यह कहानी काफ़ी दिलचस्प है। सौरव को क्रिकेट की दुनिया में दादा और बंगाल टाइगर के नाम से जाना जाता है। बहादुर फ़ैसले करना सौरव के ख़ून में है।

बीसीसीआई से बाहर होने के बाद भी उनकी टिपण्णी ग़ौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने कहा- ‘मैं एक प्रशासक रहा हूँ और मैं किसी और चीज़ पर आगे बढ़ूँगा। आप हमेशा के लिए खिलाड़ी नहीं हो सकते, आप हमेशा के लिए प्रशासक नहीं हो सकते। दोनों काम करके बहुत अच्छा लगा।’

सौरव आईसीसी के अध्यक्ष बनना चाहते थे। वह इसके क़ाबिल भी थे। लेकिन यह माना जाता है कि भाजपा में कुछ ताक़तवर लोगों ने उनकी यह राह भी रोक ली। भाजपा सौरव को साथ लाना चाहती थी, यह चर्चा तब और पुख़्ता हुई थी, जब गृह मंत्री अमित शाह कुछ महीने पहले बंगाल में उनके घर तशरीफ़ ले गये थे। बता दें कि अंमित शाह के बेटे जय शाह बीसीसीआई में लगातार दूसरी बार सचिव के पद पर बरक़रार हैं।

भाजपा बंगाल में ममता बनर्जी जैसी ताक़तवर नेता के ख़िलाफ़ किसी बड़े और लोकप्रिय चेहरे की तलाश में है; क्योंकि उसे वहाँ मनमाफ़िक़ राजनीतिक सफलता नहीं मिली है। भाजपा को सौरव अपनी इस ज़रूरत में फिट बैठते दिखे; लेकिन ख़ुद सौरव शायद राजनीति में नहीं जाना चाहते। सवाल यह है कि क्या भाजपा इसलिए उनसे नाराज़ हुई और उन्हें बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से जाना पड़ा? जो भी हो, सौरव ने बीसीसीआई के महत्त्वपूर्ण पद को छोडऩा मुनासिब समझा; लेकिन राजनीति के लिए इस्तेमाल नहीं हुए।

सौरव फिर बंगाल क्रिकेट की राजनीति में लौट रहे हैं और बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन (कैब) के अध्यक्ष बन सकते हैं। कैब के वर्तमान अध्यक्ष अभिषेक डालमिया उन्हें अगले अध्यक्ष के रूप में समर्थन की बात कह चुके हैं। सौरव को वर्तमान घटनाक्रम में बंगाल में सत्तारूढ़ ममता बनर्जी से अप्रत्याशित रूप से मज़बूत समर्थन मिला है। मुख्यमंत्री ममता जानती हैं कि सौरव गांगुली बंगाल की जनता में कितने लोकप्रिय हैं। उनके अध्यक्ष पद से हटने में भाजपा का हाथ होने की बात जनता में फैलना ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक लाभदायक और भाजपा को नुक़सानदायक है। लेकिन सौरव राजनीति में न पड़ते हुए भी राजनीति के इस तिरस्कार और समर्थन का आनन्द ले रहे हैं।

दादा को शानदार वापसी करने के लिए जाना जाता है। जीत के बाद लॉड्र्स में टीशर्ट उतारकर हवा में लहराने, ग्रेग चैपल प्रकरण, टीम में धमाकेदार वापसी से लेकर बीसीसीआई के बॉस के पद से उनकी अप्रत्याशित छुट्टी तक कई घटनाएँ हैं, जो सौरव से जुड़ी हैं। सौरव ने जब टीम इंडिया की कमान सँभाली थी, तब आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में भारतीय टीम आठवें नंबर पर थी, जिसे वह दूसरी रैंकिंग तक लेकर आ गये। सन् 2003 में गांगुली की कप्तानी में टीम इंडिया विश्व कप में फाइनल तक पहुँची।

सौरव किस मिजाज़ और तेवर के खिलाड़ी हैं, यह सन् 2006 में आये एक विज्ञापन से ज़ाहिर हो जाता है; जिसमें वे कहते हैं- ‘मेरा नाम सौरव गांगुली है। आप सभी मुझे भूले तो नहीं। मैं टीम में वापस आने के लिए बहुत-बहुत कोशिश कर रहा हूँ। क्या पता हवा में टी-शर्ट घुमाने का एक और मौक़ा मिल जाए। मैं चुप बैठने वाला नहीं हूँ।’

इसके बाद टीम में उन्होंने सच में धमाकेदार वापसी की थी। सन् 2008 में जब आईपीएल शुरू हुआ, तो दादा ही कोलकाता नाईट राइडर्स (केकेआर) के कप्तान बने।

गांगुली सन् 2015 से 2019 तक क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष रहे और इसके बाद सन् 2019 में बीसीसीआई में अध्यक्ष बने। उनका कार्यकाल निश्चित ही बेहतरीन रहा। कुछ विवाद होते हैं, जिन्हें टाला नहीं जा सकता। सौरव को भी उनका सामना करना पड़ा।

सौरव के समय में नवंबर, 2019 में पिंक बॉल से पहला डे-नाइट अन्तरराष्ट्रीय टेस्ट मैच भारत और बांग्लादेश के बीच कोलकाता के ईडन गार्डन स्टेडियम में हुआ। घरेलू खिलाडिय़ों की फीस बढ़ाने से लेकर कोरोना-काल में आईपीएल मैच सफलतापूर्वक आयोजन करवाना भी दादा ही कर सकते थे।

दादा अब भले ही बीसीसीआई के अध्यक्ष नहीं रहे। लेकिन बहुत-से लोग कहते हैं कि अभी उनका दौर $खत्म नहीं हुआ। पिछले दो दशक का उनका इतिहास उनके जीवट की कहानी कहता है। फ़िलहाल वह बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन पर फोकस कर रहे हैं। शायद वह भविष्य में दोबारा देश की क्रिकेट के संचालन में बड़ी भूमिका निभाएँ, इसकी सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील कर चुकी हैं कि सौरव गांगुली की योग्यता को देखते हुए उन्हें आईसीसी अध्यक्ष पद के लिए बीसीसीआई का उम्मीदवार बनाया जाए।

हालाँकि सम्भावना कम है कि ऐसा होगा; क्योंकि इसके पीछे अब राजनीतिक कारण जुड़ गये हैं। लेकिन ख़ुद दादा कह चुके हैं कि वह कुछ नया करेंगे। क्या वह ममता बनर्जी की इच्छा को पूरा करेंगे कि संसद में जाएँ? कहा नहीं जा सकता। फ़िलहाल तो सौरव क्रिकेट में ही रमते दिखते हैं।

बीसीसीआई के नये बॉस रोजर बिन्नी

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि स्कॉटिश मूल के भारतीय रोजर बिन्नी जेवेलियन थ्रो में इतने माहिर थे कि उन्होंने जूनियर वर्ग में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। एक खेल पत्रकार की सन्तान रोजर बिन्नी की ईमानदारी इतनी थी कि बीसीसीआई में राष्ट्रीय चयनकर्ता रहते हुए वह बैठक से तब बाहर चले जाते थे, जब उनके बेटे स्टुअर्ट बिन्नी के चयन पर चर्चा होती थी, ताकि कोई उन पर पक्षपात का आरोप न लगाए। यही बिन्नी अब बीसीसीआई के अध्यक्ष हो गये हैं। बिन्नी ऑलराउंडर रहे और सन् 1983 में विश्व कप जीतने वाली भारत की टीम के स्टार खिलाड़ी थे।

कपिल देव के नेतृत्व में उस विश्व कप में बिन्नी ने आठ मैच खेलकर सबसे ज़्यादा 18 विकेट लिये थे। कई बार ज़रूरत के समय भारत को अपनी बल्लेबाज़ी से भी उन्होंने सँभाला। बीसीसीआई के अन्य पदाधिकारियों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह सचिव, महाराष्ट्र भाजपा के नेता आशीष शेलार कोषाध्यक्ष, कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला उपाध्यक्ष और देवजीत सैकिया संयुक्त सचिव चुने गये हैं।

हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के छोटे भाई अरुण धूमल आईपीएल के नये चेयरमैन बनाये गये हैं। देखना है कि बीसीसीआई किसे आईसीसी के अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाता है?