
आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग के ताज़ा विवाद का वास्ता सिर्फ क्रिकेट में चली आई गंदगी से नहीं, बल्कि एक ज्यादा बड़ी सड़ांध से है जो हमारी नई पूंजीपरस्त व्यवस्था में मौजूद है. इस व्यवस्था को पूंजी और सत्ता का एक गठजोड़ चलाता है जो तटस्थ होने का दिखावा करता है, लेकिन मूलतः भ्रष्ट है. जब कोई बड़ा खुलासा आता है तो उसकी तटस्थता तार-तार हो जाती है, उसका गठजोड़ उजागर हो जाता है.
आईपीएल में भी यही हुआ है. पहले बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन को बचाने की कोशिश हुई और जब लगा कि यह संभव नहीं होगा तो उस शख्स को लाकर बिठा दिया गया, जिस पर कभी बीसीसीआई ने ही गंभीर आरोप लगाए थे. अब जगमोहन डालमिया खेल की गंदगी दूर करने की बात कर रहे हैं. यह सब उस बीसीसीआई में हो रहा है जिसकी प्रशासकीय कमेटी में कांग्रेस के राजीव शुक्ला और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं और बीजेपी के अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी भी, और जिसके अलग-अलग आयोजनों में किसी न किसी रूप से देश के कई बड़े औद्योगिक घराने जुड़े हुए हैं. शुचिता की खूब बात करने वाली बीजेपी के सबसे बड़े नेता यहां किसी का इस्तीफा नहीं मांग रहे, बीच का रास्ता खोज रहे हैं कि विवादों का सांप भी मर जाए और गठजोड़ की लाठी भी बची रहे.
दरअसल यह पूंजी का खेल है जो अपने नियम और अपनी संस्कृति गढ़ रही है. सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, हमारी राजनीति, हमारे मनोरंजन, समूचे सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों के निर्धारण और नियमन में यह पूंजी सबसे बड़ी भूमिका निभा रही है. कभी कभी तो वह स्वयं नियामक भी हो जाती है और तर्क भी. बहुत सारे स्कूल, अस्पताल और कारखाने इसलिए बंद कर दिए जा रहे हैं कि वे मुनाफा नहीं दे रहे या पूंजी पैदा नहीं कर रहे. जिन दूसरे खेलों और उपक्रमों को पूंजी का यह आशीर्वाद हासिल नहीं है, वे विपन्न हैं, पीछे छूटे हुए हैं.