आप का सपना: भाजपा-कांग्रेस मुक्त भारत

इन दिनों हिन्दुस्तान की सियासत में राजनीतिक बदलाव की वह आँधी-सी चल पड़ी है, जिसने कांग्रेस की रोशनी को बिल्कुल मद्धम कर दिया है। यह आँधी नरेंद्र मोदी की है, जिससे 2014 में कांग्रेस का केंद्र में जलने वाला दीपक बुझा और अब धीरे-धीरे कांग्रेस के राज्यों में जलने वाले दीपक भी बुझते जा रहे हैं। इस बदलाव की आँधी में कुछ काम आम आदमी पार्टी ने भी कर दिखाया है।

भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत का बयान शुरू में ही दे चुके हैं, तो आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति का सपना लोगों को दिखा रहे हैं। हालाँकि कुछ लोग इन दोनों को ही आरएसएस की बिसात के दो मोहरे बता रहे हैं और कह रहे हैं कि केजरीवाल भी मोदी की मुहिम को ही आगे बढ़ाने और उनके कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान में उनका सहयोग करते हुए हिटलरशाही को बढ़ावा दे रहे हैं। क्योंकि वह उसी हिन्दुत्व की राह पर चल पड़े हैं, जिस हिन्दुत्व पर भाजपा चलती आ रही है। हालाँकि उनमें और भाजपा की राजनीति में यह एक बड़ा अन्तर है कि अरविंद केजरीवाल को लोग भेदभाव की राजनीति से दूर मान रहे हैं। वह अपने कामों को लिए लोगों में इतने चर्चित हो रहे हैं और दूसरी पार्टियों को उनकी मुफ़्त की राजनीति का मजबूरन हिस्सा बनना पड़ रहा है। आज हाल यह है कि देश को कोई भी पार्टी मुफ़्त की इस राजनीति से अपने को दूर नहीं रख पा रही है। हाल ही में हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान सभी पार्टियों के घोषणा-पत्र इसका सुबूत हैं।

हालाँकि मुफ़्त सुविधाओं का भोग करने से लोगों की आदत $खराब होती है और इस पर दूसरे राजनीतिक दलों के नेता सवाल भी उठाते रहे हैं। लेकिन केजरीवाल उनका यह कहकर मुँह बन्द करने में माहिर हैं कि जब नेताओं और मंत्रियों को तमाम सुविधाएँ मुफ़्त में मिलती हैं, तो जनता को थोड़ी-बहुत सुविधाएँ देने पर इन लोगों के पेट में दर्द क्यों होने लगता है? ज़ाहिर है देश का निम्न ग़रीब और मध्यम वर्गीय तबक़ा, जो कि काफ़ी बड़ा है; केजरीवाल की इन बातों से प्रभावित हो रहा है और इस तबक़े को ऐसा लगने लगा है कि यही उसके हित की बात है। देश का यही बड़ा तबक़ा, जो महँगाई और बेरोज़गारी से त्रस्त दिख रहा है; कांग्रेस और भाजपा से मुक्त भारत चाहता है और एक ऐसे तीसरे मोर्चे अथवा दल की तलाश में है, जो इन दोनों पार्टियों की हेकड़ी निकालते हुए देश की सत्ता पर क़ाबिज़ हो सके और लोगों के हित में काम कर सके।

ख़ैर अब अगर इस तीसरे दल की बात करें, तो अभी तक कोई भी ऐसा दल लोगों के सामने इस लायक नज़र नहीं आ रहा है, जो केंद्र की सत्ता तक पहुँच बनाते हुए इन दोनों ही मज़बूत दलों को दरकिनार करके इन्हें गौण कर सके। ख़ासतौर पर भाजपा को देश की सत्ता से ख़ारिज़ करना फ़िलहाल किसी के वश में नहीं है। लेकिन ख़म बहुत-से नेता ठोक रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो काफ़ी समय से सक्रिय हैं और केजरीवाल पंजाब में जीत के बाद केंद्र की सत्ता में आने के ख़्वाब देखने लगे हैं। उनके लोगों ने अभी उन्हें 2024 का प्रधानमंत्री चेहरा घोषित करना शुरू कर दिया है।

ममता बनर्जी और केजरीवाल का उद्देश्य एक ही है, भाजपा और कांग्रेस मुक्त भारत। लेकिन फ़िलहाल इतना दमख़म दोनों में नहीं है कि वे अकेले अपने-अपने दम पर ऐसा कर सकें। एक तरफ़ ममता बनर्जी जहाँ कांग्रेस को छोड़कर बाक़ी अधिकतर छोटे दलों को साथ लेकर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश में लगी हैं, तो वहीं केजरीवाल 2024 से पहले बाक़ी जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से हिमाचल, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों को जीतकर यह चुनौती नरेंद्र मोदी को देना चाहते हैं। पिछले दिनों जिस तरह से गुजरात में अरविंद केजरीवाल की रैली में भीड़ दिखी और राजस्थान में जिस तरह आम आदमी पार्टी जनाधार बनाने के लिए एक मुहिम चला रही है, उससे कांग्रेस में ही नहीं, बल्कि भाजपा में भी एक डर बनता दिख रहा है। इन दिनों दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चरम पर है।

ग़ौरतलब है कि इससे पहले पिछले साल नेशनल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार तीसरे मोर्चे की क़वायद कर चुके हैं, जिसकी कोशिश चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने की थी, उन्होंने इसके लिए कांग्रेस समेत कई दलों के प्रमुखों से बातचीत भी कई थी। हालाँकि इस तीसरे मोर्चे का भ्रम तब टूट गया, जब राहुल गाँधी के नेतृत्व में बैठक में तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के समेत कई छोटे दल नहीं पहुँचे। शायद इन दलों को राहुल गाँधी का नेतृत्व स्वीकार नहीं। लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि राहुल गाँधी एक राष्ट्रीय चेहरा हैं और भाजपा को हर मोर्चे पर घेरे रहते हैं, भले ही भाजपा ने उन्हें पप्पू साबित करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है।

तीसरे मोर्चे की लगातार विफल कोशिशों के बीच भाजपा अपने को हर तरह से मज़बूत करने की कोशिश में लगी है। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी समेत तक़रीबन सभी केंद्रीय मंत्री और तमाम बड़े नेताओं की दिन-रात की मेहनत के बाद पाँच राज्यों में से चार में जीत के बाद 2024 में जीत के लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व काफ़ी आश्वस्त हुआ है। लेकिन अभी भाजपा का डर पूरी तरह से गया नहीं है। क्योंकि उसके पास इस समय पूर्ण रूप से केवल उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, गोवा और मणिपुर आदि 12 राज्यों की सत्ता है। जबकि देश में कुल 28 राज्य और आठ केंद्र शासित प्रदेश हैं। इन राज्यों में बिहार, नागालैंड, मेघालय और पुडुचेरी, इन चार राज्यों में भाजपा की गठबंधन वाली सरकारें हैं। इस हिसाब से भाजपा के पास कुल 16 राज्य हैं, जिनमें उसकी सत्ता है। वहीं कांग्रेस के पास राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पूर्ण सत्ता है, जबकि महाराष्ट्र और झारखण्ड में उसकी गठबंधन वाली सरकारें हैं। इसके अलावा दिल्ली व पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं।

वहीं क्षेत्रीय पार्टियों की अगर बात करें, तो ओडिशा में बीजू जनता दल की, केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) की, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस की, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति की, सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की, मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की और तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कडग़म की सरकार है। इसीलिए भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गयी है, जिसका एक उदाहरण दिल्ली के एमसीडी चुनाव से पहले उनका एकीकरण करने वाला केंद्र सरकार का क़दम है।