भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर किये जाने से मायूस हैं दोनों दिग्गज
भाजपा संसदीय बोर्ड से हटाये जाने के क़रीब एक हफ़्ते बाद आरएसएस के मुख्यालय नागपुर में लक्ष्मणराव मानकर स्मृति संस्था के एक कार्यक्रम में वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भाजपा के सत्ता में आने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और दीनदयाल उपाध्याय के कार्यों को दिया। साथ ही यह भी कहा कि देश निर्माण की सोचने वाला सामाजिक-आर्थिक सुधारक एक सदी से दूसरी सदी तक की सोचता है, जबकि नेता अगले चुनाव की सोचता है। उन्होंने अपने पूर्व राज्य में मंत्री पद के कार्यकाल का उदाहरण देते हुए बताया कि वह मंत्री पद की परवाह नहीं करते। क्योंकि वह ज़मीनी आदमी हैं। गडकरी के शब्दों से उनकी नाराज़गी उजागर होती है। गडकरी के अलावा भाजपा की सर्वोच्च और सबसे ताक़तवर संस्था संसदीय बोर्ड से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी हाल में बाहर कर दिया गया था और कुछ हलक़ों में इसे इस दृष्टि से देखा गया कि क्योंकि यह दोनों नेता ‘भविष्य में भाजपा नेतृत्व के लिए चुनौती’ बन सकते थे, उनके पर कतर दिये गये।
राजनीतिक हलक़ों में भाजपा के भीतर तनाव की ख़बरें भले कांग्रेस जैसी न हों, फिर भी इक्का-दुक्का बाहर आती रहती हैं। गडकरी को मोदी सरकार में सबसे बेहतर काम करने वाले मंत्रियों में गिना जाता है। हालाँकि उनकी छवि प्रधानमंत्री मोदी भक्त की कभी नहीं रही, बल्कि वे नागपुर (आरएसएस) के प्रतिनधि माने जाते हैं। भाजपा के कामयाब अध्यक्ष रहे हैं और भाजपा में उनका क़द तीन बड़े नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की टक्कर का है। ऐसे में उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड से बाहर करने के बाद राजनीतिक गलियारों में लगातार चर्चा है कि वह इससे प्रसन्न नहीं हैं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी भाजपा में प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जाते रहे हैं। भले पार्टी में नेतृत्व को लेकर विरोधी सुर खुले रूप से भाजपा के भीतर नहीं सुनने को मिलते हैं। लेकिन यह माना जाता है कि पार्टी में कुछ ऐसे नेता हैं, जो भाजपा के भीतर लोकतंत्र कमज़ोर होने की बात ढके-छिपे स्वर में कहते हैं। यह भी कहा जाता है कि भाजपा दो प्रमुख लोगों के ही इर्द-गिर्द सिमट गयी है। यही स्थिति इंदिरा गाँधी के ज़माने में कांग्रेस में थी, जब राज्यों के क़द्दावर नेताओं के पर कतर दिये जाते थे, ताकि वे नेतृत्व के ख़िलाफ़ बोलने की जुर्रत न करें। नेतृत्व की इसी नीति ने कांग्रेस को ज़मीन पर कमज़ोर कर दिया।
भाजपा की दो बड़ी समितियों में यह फेरबदल सिर्फ़ भविष्य की राजनीति को लक्ष्य में रखकर किया गया फेरबदल भर नहीं है। होता, तो 79 साल के येदियुरप्पा दोनों समितियों में जगह नहीं पाते। इस लिहाज़ से शिवराज सिंह चौहान अभी महज़ 63 साल के हैं, जबकि नितिन गडकरी 65 साल के। राजनीति में यह कोई ज़्यादा उम्र नहीं मानी जाती। लिहाज़ा उम्र का तक़ाज़ा भी यहाँ लागू नहीं होता; क्योंकि यह दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (71 वर्ष) की उम्र से भी कम के नेता हैं। ऐसे में गडकरी और चौहान को संसदीय बोर्ड से बाहर करने पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा होना स्वाभाविक है।