असंगठित विपक्ष से सत्ता पक्ष मज़बूत

एनडीए पक्ष की द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुने जाने से खुली विपक्षी दलों की एकता की पोल

सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गयीं। वह दूसरी महिला और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। मुर्मू ने काफ़ी विपरीत परिस्थितियों का जीवन में सामना किया और जीवटता का परिचय दिया। निश्चित ही मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश के लोकतंत्र के लिए सुखद संकेत है।
विपक्ष इस चुनाव में बिखरा-बिखरा सा दिखा और कभी भी नहीं लगा कि वह अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को जिताने के लिए गम्भीर है। इसके विपरीत एनडीए, ख़ासकर भाजपा ने सारा गुणा, भाग, जोड़ करके काम किया और अपनी उम्मीदवार को बड़े अन्तर से जीत दिलायी।

बेशक लोकसभा और राष्ट्रपति के चुनाव में अन्तर है। लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की बड़ी जीत इस बात का साफ़ संकेत है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल मानसिक रूप से एक साथ आने के लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेस ने भले टीएमसी के नेता यशवंत सिन्हा का खुलकर समर्थन किया; लेकिन इसके बाद जब उप राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की मार्गरेट अल्वा को विपक्ष ने अपना साझा उम्मीदवार घोषित किया, तो टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने यह कहकर इस चुनाव में मत (वोट) न देने का ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी को भरोसे में लिए बिना यह फ़ैसला हुआ। इससे ज़ाहिर होता है कि विपक्षी एकता का राग वास्तव में कितना बेसुरा है।

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार की जीत तभी सुनिश्चित हो गयी थी, जब उसने द्रोपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। विपक्ष अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के पक्ष में मत जुटाने में तो नाकाम रहा ही, उलटा उसके अपने 17 सांसदों और 110 विधायकों ने ही मुर्मू के पक्ष में मतदान कर दिया। बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, अकाली दल, शिवसेना, तेलगू देशम पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं थे; लेकिन विपक्ष इनमें से एक को भी अपने साथ नहीं जोड़ पाया। उलटे उसके अपने सहयोगी मुर्मू के साथ जा खड़े हुए। विपक्षी एकता में दरार का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है?

मुर्मू के पक्ष में नतीजे आने के साथ ही विपक्षी नेताओं में एकता के दावे तब हवा हो गये। ख़ूब प्रति मतदान (क्रॉस वोटिंग) हुई। इसके विपरीत भाजपा ने मुर्मू के बहाने आदिवासी समाज में बड़ी सेंध लगा दी है, जो भविष्य के चुनावों में उसके काम आएगी। विपक्ष लाख कोशिश के बावजूद अपनी एकता बरक़रार नहीं रख पाया। उदाहरण के लिए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी पार्टी है; लेकिन उसने मुर्मू को समर्थन दिया।