अवैध भरती की धरती!

shiv

राजनीति में आरोप लगना कोई अनोखी बात नहीं है. लेकिन बीते नौ साल में यह शायद पहली बार होगा कि खुदपर आरोप लगने के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सारे पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम रद्द करके पार्टी नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने हाजिरी देने दिल्ली जाना पड़ा हो. बीते 24  जून को ऐसा ही हुआ. राज्य में हुए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाले की आग फैलते-फैलते उनकी देहरी तक भी आ पहुंची है. चौहान की सफाई सुनने वाला संघ खुद भी इस घोटाले की चपेट में आता दिख रहा है.

हालत यह है कि करीब 2000  करोड़ रुपये के बताए जा रहे इस घोटाले की जांच को एक साल होने को आया, कई मछलियां जांच के इस जाल में फंस चुकी हैं, लेकिन अब भी कहना मुश्किल है कि भ्रष्टाचार के इस नेटवर्क का ओर-छोर कहां तक है. इस मामले में पुलिस, मुख्यमंत्री के बेहद करीबी कहे जाने वाले उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार कर चुकी है. उनकी गिरफ्तारी के बाद खबर लिखे जाने तक पुलिस सूबे के अलग-अलग इलाकों में छापे मारकर  100  विद्यार्थियों को भी हिरासत में ले चुकी थी. इसके अलावा पिछले एक साल में करीब 500  अन्य लोगों को पुलिस हिरासत में लिया जा चुका है. इनमें से कुछ को पूछताछ करके छोड़ दिया गया, जबकि कुछ जेल की सलाखों के पीछे हैं. इस घोटाले में मुख्यमंत्री की पत्नी के अलावा और भी जितने और जैसे लोग शक और आरोपों के घेरे में हैं उससे प्रदेश की राजनीति तो क्या सारी व्यवस्था के ही बुरी तरह हिल जाने का खतरा आ खड़ा हुआ है. घोटाले के तार राज्य से बाहर भी जाते दिख रहे हैं. हाल ही में दिल्ली पुलिस की एक भर्ती परीक्षा का पेपर लीक करवाने वाले गिरोह से पूछताछ में पता चला है कि इसने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की कई परीक्षाओं के पेपर भी बेचे थे. इस गिरोह का सरगना दिनेश कपिल रेलवे का एक बड़ा अधिकारी रह चुका है. पुलिस अब उससे भी पूछताछ करने की तैयारी में है.

व्यापम मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग-मेडिकल के कोर्सों और अलग-अलग सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए परीक्षाओं का आयोजन करने वाली संस्था है. आरोप हैं कि इसके द्वारा पिछले नौ सालों में आयोजित 150 से अधिक परीक्षाओं के जरिये बहुत बड़ी संख्या में अयोग्य लोगों को नौकरियां या डिग्रियां दिलवाई गईं. 2004 से चल रहे इस गोरखधंधे के तहत फर्जी नियुक्तियां करवाने के लिए कई सरकारी नियमों को ढीला किया गया, कई नियम बदले गए तो कइयों को हटा ही दिया गया. इस पूरे मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाले भोपाल के एडवोकेट आनंद कहते हैं, ‘प्रदेश में अकेले संविदा शिक्षकों की ही 80 हजार भर्तियां हुई हैं. यहां 53 विभाग हैं, सबकी भर्ती परीक्षाएं व्यापम ही कराता है. अब तक उसने 81 परीक्षाएं आयोजित की हैं. इनमें एक करोड़ चार लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया और कुल चार लाख भर्ती हुईं.’ आनंद आरोप लगाते हैं कि इनमें से 80 फीसदी भर्तियां फर्जी हैं, ‘अब तो खुद मुख्यमंत्री विधानसभा में मान चुके हैं कि एक हजार भर्तियां फर्जी हैं. भले ही वे आंकड़ा कम बता रहे हैं, लेकिन यह तो मान रहे हैं कि फर्जी भर्तियां हुई हैं. सच्चाई से पर्दा उठाने के लिए इतना ही काफी है.’

आर्थिक पहलू के अलावा इस घोटाले के इससे भी अहम कई पहलू और भी हैं: इसके चलते कई योग्य युवा मौकों से वंचित रह गए. यह घोटाला कई सालों से चल रहा था. इस दौरान पैसे और सिफारिश के जरिये चुने गए उम्मीदवारों ने अपनी जिम्मेदारियों का किस तरह निर्वाह किया होगा, इस व्यवस्था को कैसे घुन की तरह खोखला किया होगा, यह भी गंभीर सवाल हैं. डॉक्टरी जैसे पेशे में तो यह लाखों लोगों की जानों से खेलने वाला खतरनाक खेल भी बन जाता है. इन सड़ी मछलियों की वजह से प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने बूते सफल रहीं वास्तविक प्रतिभाओं पर भी शक का दाग लग गया है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य डॉक्टर सीसी चौबल कहते भी हैं कि एमपी के पीएमटी घोटाले की वजह से उन डॉक्टरों को भी संदेह की नजर से देखा जाने लगा है जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से एमबीबीएस की डिग्री ली होगी. इसके अलावा व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण कवायद तो बेकार हुई ही, वह समय भी व्यर्थ हुआ जिसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं हो सकती.

इस घोटाले का भंडाफोड़ पिछले साल 2013 में तब हुआ जब पुलिस पीएमटी में गलत तरीके से विद्यार्थियों को पास करवाने वाले एक रैकेट तक पहुंची. जुलाई, 2013 में इंदौर में कुछ छात्र फर्जी नाम पर पीएमटी की प्रवेश परीक्षा देते पकड़े गए थे. इनसे पूछताछ में पता चला कि यह नेटवर्क शहर का कोई डॉ जगदीश सागर चला रहा है. उसके घर पर छापेमारी में भारी मात्रा में नकदी, सोना और अवैध संपत्ति का खुलासा हुआ. सागर इस मामले की अहम कड़ी साबित हुआ. पूछताछ में उसने बताया कि फर्जीवाड़े का यह गोरखधंधा मेडिकल की परीक्षा में ही नहीं बल्कि सरकारी नौकरियों की भर्ती में भी चल रहा है. यहीं से व्यापम के तहत हुई तमाम परीक्षाओं में हो रहे फर्जीवाड़े की पोल खुलती चली गई. पीएमटी फर्जीवाड़े से शुरू हुई भ्रष्टाचार की यह कहानी पटवारी भर्ती परीक्षा, संविदा शिक्षक भर्ती परीक्षा, पुलिस आरक्षी भर्ती परीक्षा, बीडीएस भर्ती परीक्षा, वन रक्षक भर्ती परीक्षा और संस्कृत बोर्ड भर्ती परीक्षा तक पहुंच गई. इसके बाद तो मध्य प्रदेश के नेता, मंत्री, संतरी, आईएएस, आईपीएस अफसर, रिटायर्ड जज, डॉक्टर्स, मीडियाकर्मी जैसे कई लोग इसकी जद में आ गए. घोटाले के तार राजभवन तक चले गए. बात बढ़ती देख राज्य सरकार ने भर्ती परीक्षाओं में हुए भ्रष्टाचार की जांच स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को सौंप दी जो अब हाई कोर्ट की निगरानी में जांच कर रहा है. लेकिन अब प्रदेश में लगातार मामले की सीबीआई जांच की मांग उठ रही है.

भर्ती परीक्षाओं के फर्जीवाड़े में पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी ओपी शुक्ला, राज्यपाल रामनरेश यादव के ओएसडी धनराज यादव, व्यापम के पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और भाजपा नेता सुधीर शर्मा सहित करीब 150 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है. इसके अलावा सीएम हाउस, प्रदेश का राजभवन, कुछ शीर्ष आईएएस अफसर और अपर मुख्य सचिव अजिता बाजपेई पांडे के पति अमित पांडे समेत कुछ मीडिया संस्थान भी शक के दायरे में हैं. फर्जीवाड़े के छींटे केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती पर भी पड़ रहे हैं. उन पर भी आरोप है कि उन्होंने संविदा शिक्षकों के पदों पर कई अयोग्य लोगों की भर्तियां करवाई हैं. इस मामले में संघ भी कटघरे में है. पूर्व सरसंघचालक केएस सुदर्शन (अब दिवंगत) और संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी सुरेश सोनी का नाम भी घोटाले से जुड़ रहा है.

laxmi

शिवराज की पत्नी साधना सिंह पर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री निवास से किसी महिला ने व्यापम कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी और सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा को 139 बार फोन किया. पार्टी का कहना था कि व्यापम के तहत हुई परिवहन निरीक्षक भर्ती में 19 नियुक्तियां शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह के पीहर गोदिंया (महाराष्ट्र) से हुई हैं. उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट करके कहा कि कॉल डीटेल रिपोर्ट में ये आरोप कहीं नहीं ठहरते. उन्होंने यह भी कहा कि परिवहन आरक्षक भर्ती में चयनित हुए सभी उम्मीदवारों के नाम विभाग की वेबसाइट पर मौजूद हैं जिससे यह आरोप झूठा साबित होता है. कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने शिवराज सिंह के कथित मामा फूल सिंह पर भी आरोप लगाए हैं. मिश्रा के अनुसार पंकज त्रिवेदी के जेल जाने के बाद भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मामा फूल सिंह चौहान उनके संपर्क में थे. उधर, मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से मिश्रा के खिलाफ दायर मानहानि के मामले में स्पष्ट किया गया है कि शिवराज सिंह के किसी मामा का नाम फूल सिंह नहीं है. मुख्यमंत्री के एक ही मामा थे, जिनका निधन हो चुका है.

व्यापम के पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी ने एसटीएफ को बयान दिया है कि पूर्व तकनीकी परीक्षा और उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने फूड इंस्पेक्टर के पद के लिए मिहिर कुमार (रोल नंबर 702735) की सिफारिश की थी. त्रिवेदी के मुताबिक शर्मा ने उन्हें बताया कि मिहिर, सुदर्शन और सोनी के आदमी हैं. त्रिवेदी के इस बयान के आधार पर एसटीएफ ने मिहिर कुमार को भी हिरासत में ले लिया है. मिहिर ने भी यह बात मान ली है. उसका कहना है कि वह केएस सुदर्शन का सहायक हुआ करता था. 2012 में उसने फूड इंस्पेक्टर एग्जामिनेशन के अपने आवेदन फॉर्म की फोटोकॉपी सुदर्शन को दी और उनसे नौकरी के लिए गुजारिश की. सुदर्शन ने लक्ष्मीकांत शर्मा को फोन किया. शर्मा ने उसे नौकरी लगाने का भरोसा दिया और बाद में मदद भी की.

यह घोटाला बहुत ही व्यवस्थित तरीके से चल रहा था. आरोपों के मुताबिक व्यापम के अफसरों और दलालों ने हर परीक्षा के लिए अलग-अलग रेट लिस्ट तैयार कर रखी थी. चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए 50 हजार रुपए, तृतीय श्रेणी के लिए सवा लाख रुपए, द्वितीय श्रेणी अफसरों के लिए चार से 10 लाख रुपए, वेटनरी के लिए तीन लाख और पीएमटी परीक्षा पास करने के लिए 10 से 15 लाख रुपए लिए जाते थे. एसटीएफ को पंकज त्रिवेदी के कम्प्यूटर से ऐसे दस्तावेज मिले हैं जिनसे इन आरोपों की पुष्टि होती है . त्रिवेदी के कम्प्यूटर से बरामद छात्रों की एक सूची में सबसे अंतिम रिमार्क वाला कॉलम भी है. इस कॉलम में छह छात्रों के नाम के सामने मिनिस्टर, कुछ के सामने भाजपा की कद्दावर नेत्री उमा भारती और कुछ के सामने राजभवन लिखा पाया गया है  (दस्तावेजों की प्रति का एक अंश दायें पृष्ठ पर).

एसटीएफ ने पंकज त्रिवेदी के कंप्यूटर से छात्रों के नामों की कुछ सूचियां भी बरामद की हैं. इनमें छात्रों के नाम के आगे बने कॉलम में पास होने के लिए कितने अनिवार्य अंकों की जरूरत होगी, यह लिखा हुआ है. इन सूचियों में एक  ‘टू डू’ कॉलम है. इसमें पास होने के लिए जरूरी अंक लिखे गए हैं. एसटीएफ के अफसरों के मुताबिक परीक्षा देने के बाद व्यापम के अफसर छात्रों की ओएमआर शीट निकाल लेते थे और पास होने के लिए जरूरी संख्या में सवाल हल कर उन्हें जमा कर देते थे. यह नकल या पर्चा लीक करने से भी आसान तरीका था जिससे छात्रों को पास किया जा सकता था. मिहिर के बयान से भी इसकी पुष्टि होती है. उसने अपने बयान में कहा है, ‘सुदर्शन ने मुझसे कहा कि मैं एग्जाम में जितना जानता हूं, उतने सवालों के जवाब दूं और बाकी ओएमआर शीट खाली छोड़ दूं. मैंने हिंदी, इंग्लिश, रीजनिंग, मैथ्य, फिज़िक्स और जनरल नॉलेज के करीब 50 फीसदी सवालों के जवाब दिए और बाकी ओएमआर शीट खाली छोड़ दी. 18 अक्टूबर, 2012 को जब रिजल्ट आया तो मेरिट लिस्ट में मेरा नाम 7 वें नंबर पर था. इस परीक्षा को व्यापम ने सात अक्टूबर, 2012 को करवाया था.’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here