ख़िराज-ए-अक़ीदत
11/12/1922 – 07/07/2021
साहिब-ए-आज़म मोहम्मद यूसुफ़ ख़ान उर्फ़ दिलीप कुमार महज़ बॉलीवुड के अदाकार (अभिनेता) के तौर पर ही नहीं जाने जाएँगे, बल्कि उनका मक़ाम इससे कहीं ज़्यादा था। उनको भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल के तौर पर भी मान्यता मिली थी। कट्टरपंथी पार्टी शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे उनके अज़ीज़ दोस्त थे, तो पाकिस्तान ने दिलीप कुमार को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ से नवाज़ा था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी उनकी अच्छी बनती थी। फ़िल्में उन्होंने चुनिंदा कीं; पर जो कीं, तो दिल से कीं। अभिनय में डूबकर कीं। ऐसा काम किया कि ख़ुद उसकी गिरफ़्त में आ गये। इस महान् अभिनेता ने 7 जुलाई को 98 साल की उम्र मुम्बई में आख़िरी साँस ली। भारत-पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े दिग्गजों ने उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत (श्रद्धांजलि) पेश की। मुम्बई स्थित जुहू क़ब्रिस्तान में राजकीय सम्मान के साथ उनको सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।
मोहम्मद यूसुफ़ ख़ान के पिता फल कारोबारी थे और बँटवारे से पहले पेशावर से आकर मुम्बई (तब बम्बई) में बस गये थे। सन् 1940 के दशक में नैनीताल के रामगढ़ में उन्होंने फलों का बाग़ान लिया था, जहाँ पर यूसुफ़ भी कारोबार में पिता का हाथ बँटाते थे। यहीं पर पहली बार उनकी मुलाक़ात तब की मशहूर अदाकारा देविका रानी से हुई। उन्होंने पहली नज़र में ही ख़ूबसूरत यूसुफ़ को देखकर कहा कि फ़िल्मों में काम कीजिए और आकर मुझसे बम्बई में मिलिए। हालाँकि इससे पहले भी उनको दो फ़िल्मों का प्रस्ताव मिल चुका था; लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया था। पर देविका के बार-बार कहने के बाद वह फ़िल्मी दुनिया में उतरने को राज़ी हो गये।
देविका रानी उनको रोमांटिक हीरो की भूमिका अदा करना चाहती थीं। बात नाम को लेकर आयी, तो कहा गया कि मोहम्मद यूसफ़ ख़ान नाम जँचेगा नहीं। इसलिए नये नाम की तलाश शुरू हुई। तब लखनऊ में रहने वाले जाने-माने साहित्यकार और फ़िल्म के पठकथा लेखक (स्क्रिप्ट राइटर) भगवती चरण वर्मा ने उनको दिलीप कुमार नाम दिया। इसके बाद तो लोग यूसुफ़ साहब को भूल गये और उनका फ़िल्मी नाम दिलीप कुमार ही असली नाम होकर रह गया। दिलीप साहब कहते थे कि जब कोई फ़नकार अपनी कला की गहराई में सुलगता है, तभी वह अपने शिल्प को ख़ालिस सोने में बदल पाता है।
1950 के दशक में यानी काले और सफ़ेद (ब्लैक एंड व्हाइट) के ज़माने में देवदास फ़िल्म करने के बाद उनको ट्रेजडी किंग की उपाधि मिली। बताते हैं कि इस फ़िल्म की शूटिंग के बाद वह अवसाद में चले गये थे। उनके क़िरदारों के जितने भी रूप देखिए, दिलचस्पी कम नहीं होगी। कहते हैं कि उनके बाद अधिकतर कलाकार उनकी नक़ल करते नज़र आये। लेकिन वह कहते रहे कि उनकी अदाकारी की नक़ल कोई नहीं करता। दिलीप साहब के जाने के बाद उनके अज़ीज़ साथी और दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र बेहद भावुक हो गये। उनके जनाज़े के पास ऐसे बैठे, मानो महबूब हों। उन्होंने कहा- ‘वह अक्सर आईने से बात करते थे कि क्या मैं दिलीप कुमार जैसा अभिनय कर सकता हूँ?’
द ग्रेट दिलीप कुमार के जाने के साथ ही अभिनय की दुनिया के एक विश्वविद्यालय, एक बेहतरीन इंसान, एक अज़ीज़ दोस्त और फ़िल्मी दुनिया के एक युग का अन्त हो गया। सदी के अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कहा है- ‘उनके फ़ानी दुनिया से चले जाने के साथ ही बॉलीवुड को दिलीप कुमार के पहले और उनके बाद के युग के तौर पर जाना जाएगा।’