लगता है केंद्र सरकार को यह अहसास है कि वह जल्द से जल्द सुधार लाकर विकास को एक ऊंचाई दे। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था पर काले बादल छाए हुए दिखते हैं। फिर भी हालात बहुत खराब नहीं हैं। बता रहे हैं चरणजीत आहुजा
अभी हाल आर्थिक सलाहकार परिषद तब बनी जब यह पाया गया कि पिछले कुछ महीनों से भारत दुनिया की सबसे तेज बढऩे वाली अर्थव्यवस्था का दर्जा खो रहा है। भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य और दो बार वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने
पिछले दिनों अपने एक लेख में लिखा कि अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है और इसके लिए उन्होंने विमुद्रीकरण को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि इसकी रूपरेखा बहुत खराब बनाई गई थी और बेहद खराब तरीके से इस पर अमल किया गया। गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) के अमल में आने के बाद तो व्यापार ही चौपट हो गए।
इसके बाद तो जो हुआ वह और भी रोचक है। सिन्हा के पुत्र जयंत जो भाजपा सरकार में मंत्री हैं वे फौरन सरकार के समर्थन में आगे आए। उन्होंने तर्क दिया कि लंबे काल में लाभ पाने के लिए अल्पकालिक तकलीफ बर्दाशत करना ज़रूरी है। एक बेटे का पिता के खिलाफ मोर्चा खोलना सोशल मीडिया में ज़रूर चर्चा में रहा। वित्तमंत्री अरूण जेटली ने फिर यशंवत सिन्हा पर हमला बोला। उन्हें याद दिलाया कि 1998-2002 में बैंकों में नान परफार्मिंग एसेट्स का अनुपात कुल पेशगी का पंद्रह फीसद हो गया था। जब उन्होंने कार्यालय छोड़ा तो विदेशी मुद्रा कोष घट कर चार बिलियन डालर रह गया था।
भारत में अर्थव्यवस्था में मंदी तब दिख रही है जबकि ज़्यादातर बेहतर अर्थव्यवस्थाएं जो कमज़ोर थीं अब दुरूस्त हो रही हैं। सरकार का निश्चय ही इस बात पर चिंतित होना स्वाभाविक है जब अर्थशास़्ित्रयों ने विमुद्रीकरण और गुड्स और सर्विस टैक्स के अमल होने पर आलोचना शुरू कर दी। डीजल और पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी और नौकरियों के अभाव से सोशल मीडिया में काफी शोर-शराबा शुरू हो गया। विकास की दर ज़रूर बढ़ सकती है जब दो इंजन इसे चलाएं यानी सरकार का खर्च और उपभोक्ता की खरीद दोनों साथ-साथ चलें। एक बेहद ज़रूरी बात है जिसके तहत सार्वजनिक और निजी तौर पर करों में कटौती हो जिससे चीजों की खरीद हो, वेतन का भुगतान हो और छोटे, लघु-मझोले व्यापार चलें। लेकिन मांग और नौकरियां गिरनी ही हैं।
अभी हाल में गठित आर्थिक सलाहकार परिषद में प्रधानमंत्री किसी भी मुद्दे का विवेचन कर सकते हैं। आर्थिक या फिर और कोई। जिसे प्रधानमंत्री ने उन्हें भेजा हो या फिर उस पर राय दी हो। यह मैक्रोनॉमिक महत्व के मुद्दों पर भी प्रधानमंत्री को सलाह दे सकती है। यह एक स्वतंत्र इकाई होगी जो भारत सरकार को संबंधित मुद्दों पर सलाह दे सकती है। पहले भी इस तरह की परिषद थी लेकिन जब यूपीए सरकार ने 2014 में कार्यालय छोड़ा तो यह निष्क्रिय हो गई।
इस परिषद का इस समय गठन यह संभावना ज़रूर जताता है कि यह अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने में एक भूमिका अदा कर सकता है। पिछली कुछ तिमाही से विकास में ठहराव है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास 5.7 फीसद था। जो पिछले साल की विकास दर 7.9 फीसद से काफी कम है। ऐसा लगता है कि कमजोर आर्थिक दरों के चलते सरकार बाध्य हुई है। कुछ करने के लिए। घरेलू सकल उत्पाद दर 2017-18 में 5.7 फीसद रही और औद्यौगिक विकास लक्ष्य जुलाई में 1.2 फीसद घटा जबकि एक साल पहले इसी अवस्था में 4.5 फीसद थी। इसके अलावा रिटेल कीमत में महंगाई बढ़ कर पांच महीने ऊंची यानी3.36 फीसद अगस्त में हुई जो जुलाई में 2.36 फीसद थी।