जंबईबुरू से जंगल के और अंदर करीब चार किलोमीटर की दूरी पर बालेहातु गांव है. इस गांव की 69 वर्षीया सोमारी जानकारी देती हैं कि उनके गांव में 26 परिवार रहते हैं. यहां के कुछ बच्चे पढ़ने के लिए थोलकोबाद जाते हैं. बालेहातु के ही खोतो होनहागा बताते हैं कि इस गांव में कोई मुखिया या बीडीओ कभी नहीं आया. इस गांव के आगे चेरवांलोर, कादोडीह, धरनादिरी गांवों की भी ऐसी ही स्थिति है.
सारंडा में करमपदा एक बड़ा गांव है जिसका तमाम सरकारी दस्तावेजों में नाम आता है लेकिन इसी के पास कई और गांव हैं जो अपना नाम अब तक इनमें दर्ज नहीं करवा पाए हैं. करमपदा के बिमल होनहागा का दावा है कि इस इलाके में करीब चालीस ऐसे गांव हैं जिन्हें अब तक वनग्राम घोषित नहीं किया गया है और जो हर तरह की सुविधा से वंचित हंै. उनके मुताबिक यहां चेरवांलोर, धरनादिरी, कादोडीह, टोपकोय, कलमकुली, ओकेतबा, कुलातुपु, सरचीकुदर, तोगबो, जोजोबा, बनरेड़ा आदि गांव बसे हैं.
संरक्षित वन, असंरक्षित लोग
ह्यूमन राइट्स एेंड लॉ नेटवर्क नाम की संस्था से जुड़े चाईबासा हाई कोर्ट के अधिवक्ता अली हैदर इसे विडंबना मानते हैं कि आजादी के 64 साल बाद भी सारंडा के अंदर कई गांवों को वनग्राम का दर्जा नहीं मिला है और वे सरकारी, गैरसरकारी सुविधाओं से पूरी तरह वंचित हैं. वे इस बात को व्यंग्यात्मक लहजे में कहते हैं, ‘ जबकि इसी बीच जंगलों को संरक्षित वन घोषित कर दिया गया है.’ रांची हाई कोर्ट के अधिवक्ता अनूप अग्रवाल कहते हैं, ‘ यहां कोई कम आबादी नहीं है. 25,000 लोग रहते हैं जंगल के बीच. ऐसे में सरकारी जिम्मेदारी बनती है कि वह सर्वे के माध्यम से ऐसे गुमनाम गांवों का पता लगाए और उन्हें वनग्राम व राजस्व ग्राम घोषित करे.’
सरकार इन गांवों से पूरी तरह अनजान नहीं है लेकिन वह जिस कछुआ गति से आगे बढ़ रही है उससे इन गांवों को सरकारी पहचान मिलने में सालों लग सकते हैं. जगन्नाथपुर अनुमंडल एसडीओ जयकिशोर प्रसाद कहते हैं कि ऐसे गांवों का सर्वे होकर उन्हें बहुत पहले ही वनग्राम घोषित किया जाना चाहिए था. लेकिन अब इसकी जानकारी धीरे-धीरे मिल रही है. फिर भी काम प्रक्रिया के तहत होगा. सर्वे होने, वनग्राम घोषित करने, मतदाता सूची में नाम जाने में अभी लंबा समय लग सकता है. नोवामुंडी प्रखंड भाग-एक की जिला परिषद सदस्य देवकी कुमारी के अनुसार इस समय पांच गांवों को चिह्नित किया गया है. इनमें जंबईबुरू, बालेहातु, धरनादिरी, चेरवांलोर व कादोडीह शामिल हैं. ये पांचों नोवामुंडी प्रखंड भाग-एक के अंतर्गत आते हैं. चाईबासा के डिप्टी कलेक्टर अबुबकर सिद्दीकी ने नोटिफिकेशन पेपर दे दिया है. इसमें इन गांवों को राजस्व ग्राम घोषित करने की बात कही गई है. अब इन गांवों में ग्रामसभा कराना बाकी है. देवकी कुमारी खुद बताती हंै, ‘अभी लगभग सौ और ऐसे गांव हैं, जिन्हें ढूंढ कर राजस्व ग्राम घोषित करना है.’
फिलहाल सारंडा के अंदर दीघा गांव को छोड़कर और कहीं विकास की कोई रोशनी नहीं पहुंच रही है. दरअसल सारंडा के जंगल को ‘ प्रोटेक्टेड फोरेस्ट’ घोषित करने के पहले पूरे क्षेत्र का गहन सर्वे जरूरी था. जंगल के अंदर के अचिह्नित गांवों की पहचान करके उन्हें वनग्राम और राजस्व ग्राम घोषित करना था. ग्रामीणों को वनभूमि का पट्टा देना था. पर सरकार ने बिना सर्वे कराए ही पूरे वनक्षेत्र को संरक्षित कर दिया. ऐसे में सरकार वहां पहुंची नहीं और उस एक चूक ने इन हजारों लोगों की जिंदगी कई और महीनों के लिए पीछे धकेल दी.
सरकारी फाइलों में सब कुछ ठीक है।सारे प्रतिवेदन अद्यतन ही होँगे।प्रशासनिक सुधार और लोकतान्त्रिक प्रयोगों के मद्देनज़र ,भोले वनवासियों को ”SAIL’ की रोटी,’JINDAL’का कपड़ा और ‘TISCO’का मकान के साथ एक सड़ी हुई संस्कृति का तोहफा देने भड़वों की पूरी बारात खड़ी है।…….”कोई उम्मीद बर नहीं आती,कोई रस्ता नज़र नहीं आता।”
(अ).क्या भारत में अभी असली लोकतंत्र है?
(ब).क्या भारत में अभी नकली लोकतंत्र है?
(स).भारत में अभी लोक है या तंत्र है?
“वेद में जिनका हवाला,हाशिये पैर भी नहीं;
वे अभागे आस्था-विश्वास ले कर क्या करें ”
-अदम गोंडवी