झगड़े से देश तो क्या परिवार भी नहीं चल सकता। मगर झगड़ा कभी न हो सके, इसकी कल्पना तब तक कल्पना ही रहेगी, जब तक क़ानून व्यवस्था गड़बड़ रहेगी। अध्यापक नरेश गंगवार कहते हैं कि उग्र लोग हर धर्म ओर हर समाज में हैं, मगर राजनीति उन्हें और अधिक उग्र बना देती है। दंगे भी ऐसे ही लोगों को इस्तेमाल करके करवाये जाते हैं, ये कभी अपने आप नहीं होते। इसमें राजनेता सदैव अपना लाभ देखते हैं, मगर सामान्य वर्ग बुरी तरह से पिस जाता है। हो न हो कानपुर दंगों के पीछे भी यही सब साज़िश निकलेगी, मगर उसके लिए सही रूप से जाँच होनी चाहिए। विदित हो कि कानपुर में हुए दंगों के पीछे भी पुलिस प्रशासन इसी साज़िश के सूत्र जुटाकर दंगे वाली घटना के प्रमाण जुटा तथा खंगाल रही है।
सूत्रों का कहना है कि कानपुर दंगों की योजना दंगा होने से नौ दिन पहले ही बन गयी थी। यहाँ प्रश्न किया जा सकता है कि अगर पुलिस प्रशासन को यह बात पहले से पता थी, तो वह सोता क्यों रहा? और अगर उसे इतनी बड़ी साज़िश की हवा ही नहीं लगी, तो क्यों नहीं लगी? कानपुर के बेकनगंज क्षेत्र की जिस नयी सड़क पर दंगे हुए वहाँ एक समुदाय के लोगों के पास पहले से ही पत्थर, हथियार कहाँ से आये? अब तक प्रकाशित समाचारों से पता चला है कि दंगा करने वालों में दर्ज़नों नाम पुलिस प्रशासन की हिट लिस्ट में हैं, जिनमें से 40 के नाम तथा फोटो दो-तीन दिन में ही पुलिस ने सार्वजनिक भी कर दिये। कानपुर निवासी आकाश कहते हैं कि दोपहर तक किसी को नहीं पता था कि कुछ अनर्थ होने वाला है। दोपहर बाद अचानक पूरे शहर में हालात बिगडऩे लगे और देखते-ही-देखते दुकानों तथा घरों के दरवाज़े बन्द होने लगे, पुलिस गश्त करने लगी। दंगों का पता बाद में फोन के माध्यम से लोगों को लगा। एक भाजपा कार्यकर्ता ने क्रोध भरे लहज़े में कहा कि उस दिन मुसलमानों की दुकानें बन्द थीं। वे लोग पहले से ही तैयारी करके बैठे थे कि कांड करना है। अगर यह बात सही है, तो इसका मतलब है कि दंगा अचानक नहीं हुआ।
विदित हो कि कानपुर दंगों का सबसे पहला निशाना चंद्रेश्वर हाता में रहने वाले लगभग 100 हिन्दू परिवार बने। समाचार पत्रों के माध्यम से ऐसी कथित सूचनाएँ भी आयी हैं कि हाता में कई दशकों से दंगों की साज़िशें रची जाती रही हैं। अंतत: 3 जून को जुमे की नमाज़ के बाद मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने हिन्दू बहुल इलाक़ों में दुकानों को जबरदस्ती बन्द करवाने की कोशिश की, पथराव किया, हवाई फायरिंग की, जिससे दंगा भड़क उठा।
यह दंगा तब हुआ, जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कानपुर के दौरे पर थे। पुलिस प्रशासन ने तुरन्त ही दंगों पर क़ाबू पाने हुए वीडियो फुटेज खंगाले तथा दंगाइयों को हिरासत में लिया। बताते हैं कि सैकड़ों लोग पुलिस प्रशासन की निशानदेही पर हैं। कुछ को पुलिस हिरासत में अदालत ने भेजा है, तो कुछ के ऊपर मुक़दमे दर्ज कर लिये गये हैं। कमिश्नर विजय सिंह मीणा तथा दूसरे अधिकारी इस मामले में बहुत गम्भीर हैं। हों भी क्यों नहीं, आख़िर मामला मात्र दंगों का ही नहीं है, बल्कि देश के सर्वोच्च नागरिकों राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री की सुरक्षा का पहले है।
पुलिस प्रशासन के सूत्रों का कहना है कि सभी दोषियों पर एफआईआर दर्ज कर ली गयी है तथा उनके ख़िलाफ़ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की जा रही है। दंगाइयों की सम्पत्ति भी ज़ब्त की जाएगी तथा उनके मकानों पर बुलडोज़र भी चलेगा। दंगों के बाद उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार का एक बयान आया था, जो यह स्पष्ट करता है कि बेकनगंज के हाता में नमाज़ के बाद मुसलमानों ने स्थानीय दुकानों को बन्द कराने का प्रयास किया, जिसके बाद टकराव व पत्थरबाज़ी हुई। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस फोर्स घटनास्थल पर पहुँची और पथराव करने वाली भीड़ को क़ाबू करने का प्रयास किया। जब भीड़ बेक़ाबू दिखी, तब पुलिस को मजबूर होकर लाठीचार्ज करने के साथ-साथ आँसू गैस के गोले छोडऩे पड़े।