1991 के आर्थिक सुधारों यानी उदारीकरण के बाद देश में तमाम देसी-विदेशी कार कंपनियां आईं, लेकिन मारुति 800 का जलवा बरकरार रहा. कंपनी ने पहले साल केवल 850 कारों का निर्माण किया, लेकिन उसकी छोटी-सी दस्तक ने देश के कार बाजार को पूरी तरह बदल दिया था. दो साल के अंदर यह बाजार सालाना 40,000 से बढ़कर एक लाख का आंकड़ा पार कर गया था. 1997 के आंकड़े बताते हैं कि उस साल देश में बिकने वाली हर 10 कारों में से आठ मारुति की थीं और मारुति का अर्थ था मारुति 800.
प्रीमियर पद्मिनी और एंबेसडर के भारी-भरकम और गोल आकार के उलट शुरुआती मारुति 800 काफी स्पोर्टी नजर आती थी. इस बात ने युवाओं में इस कार को जबरदस्त लोकप्रियता दिलाई. उन्होंने इन कारों को खरीदा और अपने मनपसंद ढंग से सजाया-संवारा. उसमें टेलीविजन और एसी लगाए यहां तक कि 50,000 रुपये की कार की सजावट पर लोगों ने 60,000 रुपये तक खर्च कर दिए. यह दीवानापन था, जुनून था, प्रेम था… यह मारुति थी.
सात फरवरी 2014, को कंपनी ने कहा कि उसने 18 जनवरी, 2014 से इस कार का निर्माण बंद कर दिया है. कहा गया कि उत्सर्जन मानकों में सुधार के चलते इसे अपग्रेड करना होगा जिससे इसकी कीमत बहुत अधिक बढ़ जाएगी.
मारुति की छाप देश पर इतनी गहरी पड़ी कि उसने ग्राहकों को लगभग विकल्पहीन बना दिया था. वह यूं ही दशकों तक देश की सबसे अधिक बिकने वाली कार नहीं बनी रही. आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और हाल ही में भारत रत्न से सम्मानित किए गए दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर की पहली कार भी देश के लाखों अन्य लोगों की तरह मारुति 800 ही थी. मारुति 800 हमारे मां-बाप की कार थी, वह हमारी भी कार थी. हमारे बाद वाली पीढ़ी जब बड़ी होगी तो हो सकता है उसे मारुति 800 का किस्सा कुछ इस तरह सुनाया जाए- दुनिया में दो तरह के लोग हैं, एक जिन्होंने मारुति 800 देखी है और दूसरे जिन्होंने नहीं देखी.
Amazingly touching writeup. Keep writing Poojaji. You have a brilliant storytelling brain.