अक्सर ऐसा कहा जाता है कि भाजपा में वही होता है, जो गुजराती लॉबी यानी शीर्ष नेतृत्व चाहता है। और पिछले तकरीबन 11 साल से पूरी भाजपा टीम यानी एक-एक नेता और एक-एक कार्यकर्ता इसी शीर्ष नेतृत्व के नीचे और इसी नेतृत्व के इशारे पर काम कर रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि ये नेतृत्व किसी और का नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी का है, जो इस समय केंद्र की सत्ता में दो शीर्ष पदों पर हैं और हर भाजपा शासित राज्य को कंट्रोल करते हैं। यह देखा गया है कि भाजपा के हर छोटे-बड़े नेताओं को इस जोड़ी की आज्ञा का पालन करना ही होता है; लेकिन फिर भी भाजपा के भीतर बग़ावत के सुर नहीं दब रहे हैं। और ऐसे दावे किये जा रहे हैं कि बग़ावत कोई और नहीं, बल्कि कुछ शीर्ष नेता कर रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो साल 2014 में भाजपा को केंद्र की सत्ता में आने का मौक़ा ही जिनकी वजह से मिला, आज उन्हीं के ख़िलाफ़ पार्टी में हवा तेज़ हो गयी है और इस हवा को चारों तरफ़ डर का पर्दा लगाकर रोकने की कोशिश की जा रही है कि अगर किसी ने खुलकर विरोध किया और वो हवा बाहर गयी, तो पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी। हालाँकि फिर भी कुछ मज़बूत नेताओं के बग़ावत के सुर कहीं-न-कहीं कानों तक आ रहे हैं या उनकी गतिविधियों से बग़ावत की बू भी आ रही है।
दरअसल, पिछले 8-9 वर्षों से ये आरोप लगते रहे हैं कि मोदी सरकार में सांसदों की बात तो दूर, मंत्रियों की भी नहीं सुनी जाती है। कथित तौर पर इस बात की कई बार चर्चा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की इच्छा के बग़ैर पार्टी और सरकार में एक पत्ता भी नहीं हिलता है। हालाँकि यह भी कहा जाता है कि बीच-बीच में उनकी बात को काटने या अपनी बात मनवाने के लिए संघ अपनी शक्तियों का उपयोग करता रहता है, जिसके चलते कई बार संघ और गुजरात की इस शीर्ष जोड़ी में टकराव भी हो चुका है। और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो कभी अमित शाह के ख़ास माने जाते थे; से भी अब मोदी-शाह का टकराव उभर रहा है। अब उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री की जगह केशव प्रसाद मौर्य और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने ले ली है और केशव प्रसाद मौर्य तो अमित शाह के ख़ासमख़ास माने जाने लगे हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लाख न चाहते हुए भी उनकी अपनी ही सरकार में विधायक दो गुटों में बँटे हुए हैं, जिनमें से एक धड़ा इस मौक़े के इंतज़ार में है कि उन्हें कब उत्तर प्रदेश की शीर्ष कुर्सी से हटाया जाए। और दूसरे इस इंतज़ार में है कि कब योगी प्रधानमंत्री बनें। इस बीच योगी को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए शीर्ष नेतृत्व बेचैन है। सवाल यह है कि क्या मोदी-शाह की जोड़ी, जिसकी बिना मज़ीर् के पार्टी और सरकार में एक पत्ता भी नहीं हिलता; मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हिला पाएँगे?
योगी ने सपा सांसद के रामजीलाल सुमन के बहाने करणी सेना की ताक़त से यह दिखा दिया कि अगर शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें छेड़ने की कोशिश की, तो राजपूत इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
रामजीलाल पर हमला हुआ, जिसे सपा प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने पुरज़ोर तरीक़े से उठाया है। इसका नुक़सान भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव में हो सकता है। भाजपा में गुजराती लॉबी के समर्थक कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वजह से प्रदेश का माहौल ख़राब हो रहा है और जातिवाद को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे राजपूतों को छोड़कर बाक़ी जातियों के लोग योगी से सख़्त नाराज़ हैं, जिसका ख़ामियाजा भाजपा ने साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में भुगत लिया और अब आगे भी भुगतना पड़ सकता है। हालाँकि योगी तो ख़ुद को इतना मज़बूत बना चुके कि उन्हें हिला पाना आसान नहीं होगा। लेकिन फिर भी उत्तर प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर इसका असर पड़ेगा। बहरहाल, इस साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी पूरे 75 साल के हो जाएँगे और उन्हीं के बनाये पार्टी नियम के मुताबिक उन्हें पार्टी के सलाहकार मंडल में शामिल होना पड़ेगा। क्या वे ऐसा करेंगे?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)