क्या फिर बड़ा आन्दोलन करेंगे किसान?

योगेश

पंजाब और हरियाणा के किसानों के आन्दोलन के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य और दूसरी 20 माँगों को लेकर देश भर के किसान फिर से बड़ा आन्दोलन कर सकते हैं। इसकी घोषणा हरिद्वार से भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कर चुके हैं। राकेश टिकैत ने हरिद्वार किसान कुंभ-2024 के मंच से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आन्दोलन की चेतावनी देते हुए किसानों और युवाओं की समस्याओं का समाधान करने को कहा है। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों की माँगें पूरी करें और बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार दें।

हरिद्वार में 14 जून से 18 जून तक चार दिवसीय हरिद्वार किसान कुंभ 2024 का आयोजन हुआ था, जिसमें 18 जून को किसान कुंभ के समापन के दौरान भाकियू की महापंचायत में किसानों और भाकियू के कार्यकर्ताओं से 100 दिन के एजेंडे पर संघर्ष करने की रणनीति अपनाने का आह्वान राकेश टिकैत ने किया। इस महापंचायत में किसानों और देश के युवाओं की 21+5 सूत्रीय माँगों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से एक बार फिर अपील की गयी। 21+5 में 21 माँगें किसानों हैं और पाँच माँगें युवाओं की हैं। ये सभी माँगें महापंचायत की रणनीति में प्रमुखता से शामिल की गयी हैं और सरकारों के इन माँगों को पूरा न करने पर किसान आन्दोलन में इन माँगों को पूरा करने की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से माँग की जाएगी।

किसानों की 21 माँगों में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 23 फ़सलों का एमएसपी गारंटी क़ानून बनाना प्रमुख माँग है। इसमें किसानों की माँग है कि केंद्र सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में नयी समिति बनाकर तत्काल एमएसपी क़ानून बनाये, जिसमें स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के सी2+50 प्रतिशत के फार्मूले के हिसाब से एमएसपी लागू करे। इसके अलावा देश में अलग से किसान आयोग का गठन हो। कई राज्यों की तरह सभी राज्य सरकारें किसानों को मुफ़्त बिजली दें। उत्तर प्रदेश में ट्यूबवेलों पर बिजली मीटर लगाने को लेकर स्पष्टीकरण देते हुए इस काम को वहाँ की सरकार रोके। सभी राज्यों में आवारा पशुओं से फ़सलों के नुक़सान को रोकने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर सरकारी परती की ज़मीनों पर अस्थायी पशु शालाएँ बनें, जिससे किसानों को खेती और जान-माल का नुक़सान न हो। गन्ने का भाव कम-से-कम 400 रुपये प्रति कुंटल तय हो और गन्ना किसानों का बक़ाया पैसा डिजिटल भुगतान से तुरंत दिया जाए।

अलग से योजनाएँ बनाकर छोटे किसानों के परिवारों के स्वास्थ्य और उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था हो। छोटे किसानों को ब्याज मुक्त कृषि ऋण दिया जाए। किसान क्रेडिट कार्ड पर लिये गये पैसे को लौटाने की मीयाद कम-से-कम पाँच साल हो और उस ऋण पर सिर्फ़ एक प्रतिशत ब्याज दर ली जाए। सरकारी कर्मचारियों की तरह किसानों और उनके परिवारों का कम-से-कम पाँच लाख का बीमा एक रुपये की प्रीमियम पर किया जाए। किसानों की सामाजिक सुरक्षा का दायरा मज़बूत हो। हर गाँव में साफ़ पीने योग्य पानी की सप्लाई करते हुए इसे स्वच्छ जल योजना के दायरे में लाया जाए। खादों, बीजों और कीटनाशकों के नाम पर कम्पनियों को दी जाने वाली सब्सिडी किसानों को दी जाए।

इसके अलावा गिरते भू-जल स्तर को ऊपर उठाने के लिए सभी नदियों को आपस में जोड़ा जाए और वाटर रिचार्ज की योजना को धरातल पर उतारा जाए। नदियों पर चेकडेम बनाने के साथ उनकी सफ़ाई करायी जाए और छोटी नहरों में रिचार्ज कूप योजना लागू करते हुए उनमें भरपूर पानी छोड़ा जाए। अभी 24 घंटे बिजली सप्लाई नहीं हो रही है। इसके लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें गाँवों में सोलर पैनल लगाने का काम करें, जिससे किसानों को 24 घंटे मुफ़्त बिजली मिल सके। जिन किसानों की छतों पर और खेतों में सोलर पैनल लगे हैं, उन्हें उसकी सब्सिडी दी जाए और किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाए, जिससे गाँवों की बिजली पर निर्भरता कम हो सके। मंडी व्यवस्था मज़बूत की जाए और सभी फ़सलों की ख़रीद को नक़दी में सुनिश्चित हो, जिससे किसानों को अपने ही पैसे के लिए इंतज़ार न करना पड़े और पैसे के अभाव में उनकी अगली फ़सल की बुवाई में देर न हो। गाँवों के उजाड़ने या उजड़ने पर सभी ग्रामीणों के उत्थान के लिए विशेष योजनाएँ बनें, जिसके तहत किसानों को बाज़ार भाव से उनकी ज़मीनों का मुआवज़ा दिया जाए।

पूरे देश में बनी मंडियों को मज़बूत बनाकर किसान और स्थानीय लोगों को खाने के लिए सस्ता अनाज उनमें देने की व्यवस्था की जाए। भारत में खेती यहाँ की जीवन पद्धति का हिस्सा है, इसलिए फ़सलों को व्यापार से बाहर रखते हुए लूटने वालों का मुनाफ़ा कम करने के लिए खेती को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से अलग किया जाए। किसानों के अलावा केंद्र सरकार मछुआरों को भी सब्सिडी दे और उनके परिवारों को मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य प्रदान करे। किसानों पर फ़सल अवशेषों को जलाने और दूसरे एनजीटी के नियमों के तहत ज़ुर्माने के प्रावधान वापस लिये जाएँ। इसके अलावा कृषि यंत्रों पर कृषि करने के संसाधनों के उपयोग पर किसानों को समय-सीमा में छूट दी जाए। प्राइवेट और कमर्शियल वाहनों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित करके किलोमीटर के हिसाब से उनकी मीयाद की गारंटी निर्धारित की जाए। राजस्थान की ईस्टर्न कनाल परियोजना को केंद्रीय योजना के अंतर्गत लाया जाए, जिससे राजस्थान के 13 ज़िलों की जीवन-शैली प्रभावित न हो। पहाड़ी राज्यों में पहाड़ी कृषि नीति के तहत स्थानीय संसाधनों और बाज़ार व्यवस्था लागू की जाए। पहाड़ के निवासियों का पलायन रोकने के लिए वहीं पर रोज़गार की व्यवस्था हो। उन्हें पशुपालन, बाग़वानी और औषधीय खेती के लिए आर्थिक मदद, प्रशिक्षण आदि मिले। आदिवासी इलाक़ों में जल, जंगल और ज़मीन बचाने के लिए केंद्र सरकार और आदिवासी राज्यों की सरकारें आदिवासियों के कल्याण के लिए योजनाएँ बनाएँ और उन्हें ज़मीनों का मालिकाना हक़ दिलाते हुए भूमि अधिग्रहण और जंगलों के कटान को रोकें। भूमि अधिग्रहण क़ानून को उद्योगपतियों और पूँजीपतियों के हित में नहीं, किसानों के अनुकूल बनाया जाए। देश में फैली विद्युत लाइनों के जाल से किसानों को हो रहे नुक़सान की भरपाई किसानों को मुआवज़ा देकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें करें।

इसके अलावा देश में रोज़गार के लिए परेशान युवाओं के लिए भी रोज़गार की व्यवस्था सरकार करे। अन्य कामों के अलावा खेती को भी आकर्षक और लाभकारी बनाते हुए युवाओं को रोज़गार दिया जाए और स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसके अलावा अग्निपथ योजना की मीयाद चार साल ज़्यादा की जाए और चयनित युवाओं की चार साल में 75 फ़ीसदी छँटनी रोकी जाए। इन युवाओं को पुलिस, अर्द्धसैनिक बलों में प्राथमिकता के आधार पर भर्ती किया जाए। चयन न होने तक उन्हें बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए। देश केंद्र सरकार एक युवा आयोग का गठन करके उसे संवैधानिक दर्जा दे, जिसमें युवाओं की शिकायतों का तत्काल निपटारा किया जाए। रोज़गार पाने की आयु-सीमा पार कर चुके युवाओं को इसके तहत लाभ दिलाया जाए। इसके अलावा बार-बार भर्ती परीक्षाओं में घोटालों और पेपर लीक रोकने के लिए केंद्र सरकार कड़े क़दम उठाए। युवा किसानों को खेती से सम्बन्धित कुटीर व लघु उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और दलालों पर रोक लगाते हुए समय से उनके काम सीधे तौर पर किये जाएँ। 50 या 100 युवाओं के दल बनाकर उनके अपने-अपने इलाक़े में फ़सल चक्र, खेती करने और अनाज, फलों की प्रोसेसिंग के लिए उन्हें सब्सिडी दी जाए, जिससे वे खेती में रोज़गार तय कर सकें। कृषि विषय को निम्न स्तर से लेकर हर तरह के विद्यालयों में अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाए, जिससे देश के युवाओं को खेती का ज्ञान हो और खाद्य पदार्थों की अहमियत मालूम हो सके। किसानों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए पंचायत स्तर पर खेल के मैदान बनाकर उनकी समितियों को ही रख-रखाव की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए। युवक मंगल दल जैसे मॉडलों के माध्यम से उनको प्रोत्साहन दिया जाए। इसके अलावा किसानों ने शिक्षित युवतियों के लिए महिला समूह का गठन करने और उनके हितों में अन्य योजनाएँ लागू करने की माँग रखी है।

हरिद्वार किसान कुंभ 2024 के समापन के दिन महापंचायत में भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसानों से कहा कि किसान संगठन को मज़बूत करने की ज़रूरत है, क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों की एक भी नहीं सुन रही हैं। किसानों को अपनी माँगें मनवाने के लिए एक और बड़ा आन्दोलन करना होगा और इसके लिए ज़्यादा समय नहीं है। कांवड़ यात्रा के बाद उत्तराखण्ड में आन्दोलन युवाओं को करना होगा। पूरे देश में बड़ा आन्दोलन करना होगा, जिससे किसानों और देश के युवाओं के साथ सरकारें धोखा न कर सकें और उनकी उचित माँगें पूरी हो सकें। राकेश टिकैत ने इस दौरान साल 2025 तक देश भर में 25 किसान भवन बनाने का भी लक्ष्य रखा। महापंचायत में तय किया गया कि इस बार हर राज्य में किसानों को आन्दोलन करना होगा।

आन्दोलन बड़े स्तर पर हो या न हो; लेकिन किसानों की माँगों और युवाओं की माँगों को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मान लेना चाहिए। आज भी पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और देश के ज़्यादातर राज्यों के किसान अपनी माँगों को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं; लेकिन केंद्र सरकार उनकी बात नहीं सुन रही। उलटे किसानों पर हमले करवाये जा रहे हैं। डेढ़ महीने पहले ही किसानों पर ख़ूब हमले हुए, जिसमें कई किसानों की जान चली गयी। लेकिन केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार ने हमलावरों पर कार्रवाई करने की जगह किसानों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की। इससे किसान काफ़ी आहत हैं।