क्या दिल्ली का भला कर सकेंगी मुख्यमंत्री रेखा?

हाल के वर्षों में भाजपा ने मुख्यमंत्रियों की अपनी पसंद से राजनीतिक पर्यवेक्षकों को आश्चर्यचकित करने की आदत विकसित कर ली है। चाहे वो छत्तीसगढ़ हो, राजस्थान हो, मध्य प्रदेश हो, गुजरात हो या हरियाणा हो; और अब राष्ट्रीय राजधानी भी इसका अपवाद नहीं है। पहली बार विधायक और पूर्व पार्षद रेखा गुप्ता के चयन ने पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा और तीन बार के विधायक विजेंद्र गुप्ता जैसे प्रमुख दावेदारों को निराश किया है। रेखा गुप्ता की नियुक्ति से संघ परिवार के मज़बूत प्रभाव का पता चलता है। उन्होंने संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) के भीतर अपने राजनीतिक कौशल को निखारा था।

‘तहलका’ की इस बार की आवरण कथा- ‘संघ के दम पर दिल्ली जीती भाजपा?’ शहर पर प्रभावी ढंग से शासन करने के साथ-साथ पार्टी के आंतरिक मतभेदों को प्रबंधित करने की चुनौतियों पर प्रकाश डालती है। 27 साल के अंतराल के बाद भाजपा ने दिल्ली में सत्ता हासिल कर ली है। भाजपा के लिए यह एक उपलब्धि है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों से केंद्र में और 20 से अधिक राज्यों में सत्ता में रहने के बावजूद उन्हें संघ का सहारा लेते हुए पूरे संगठन के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा। दिल्ली की अंतिम भाजपा मुख्यमंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज ने 03 दिसंबर, 1998 तक पदभार सँभाला था। इसके बाद से इस विधानसभा चुनाव से पहले तक भाजपा दिल्ली विधानसभा को सुरक्षित करने में विफल रही थी, जिससे यह जीत एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बन गयी है।

भाजपा के लिए राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करना कोई आसान उपलब्धि नहीं है। सफलता सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी, पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा नेतृत्व ने रणनीतिक रूप से संघ और उसके समर्पित काडर पर भरोसा किया, जो हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस रणनीतिक क़दम ने भाजपा मशीनरी को फिर से जीवंत कर दिया है, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने जबरदस्त प्रदर्शन के बाद भी थकान के संकेत दिखाये थे। अब पार्टी फिर से अपनी रफ़्तार पकड़ती नज़र आ रही है।

जीत और अपनी नियुक्ति से उत्साहित रेखा गुप्ता ने अपने पहले भाषण में दिल्ली को नयी ऊँचाइयों पर ले जाने का वादा किया है। दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत और केंद्र का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। हालाँकि इस वादे को पूरा करने के लिए बयानबाज़ी से कहीं अधिक काम करने की आवश्यकता होगी। वायु और जल प्रदूषण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है। इसके साथ ही पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा शुरू की गयी कल्याणकारी योजनाओं सहित उन्हें पार्टी के चुनावी वादों को पूरा करने की भी ज़रूरत है। भाजपा की डबल इंजन की सरकार क़ानून और व्यवस्था और स्थानीय प्रशासन दोनों की देख-रेख करती है; इन अपेक्षाओं को पूरा करना उसकी शासन क्षमताओं की सच्ची परीक्षा होगी।

इस बीच राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए अटकलें तेज़ हैं कि पार्टी आगामी पंजाब विधानसभा उपचुनाव में अपने एक राज्यसभा सांसद को मैदान में उतार सकती है, ताकि संभावित रूप से उच्च सदन में उनके स्थानांतरण का मार्ग प्रशस्त हो सके। वर्तमान में आम आदमी पार्टी के पास 10 राज्यसभा सीटें हैं- तीन दिल्ली से और सात पंजाब से। इसलिए पार्टी उसके प्रवेश के लिए सबसे व्यवहार्य मार्ग प्रस्तुत करती है। चूँकि आम आदमी पार्टी ने हाल ही में एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया है, इसलिए राज्यसभा सीट हासिल करने से केजरीवाल का राष्ट्रीय प्रभाव बढ़ सकता है। हालाँकि यह देखना अभी बाक़ी है कि क्या वह यह रणनीतिक क़दम उठाएँगे?