गाय और गोमांस की राजनीति

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फोटो- विजय पांडेय

‘शाकाहार विचार और कार्य की पवित्रता के लिए अपरिहार्य है. यह साधन की पवित्रता का एक प्रकार है. आप जो बोते हैं, वही काटते हैं. बूचड़खानों में ले जाए जाने वाले बेजुबान जानवरों का दर्द हमें सुनना और समझना है.’

नरेंद्र मोदी, तत्कालीन मुख्यमंत्री, गुजरात, 2 अक्टूबर 2003 को

महात्मा गांधी की 135वीं जयंती पर पोरबंदर में आयोजित कार्यक्रम में.

‘हम हिंदू गाय को अपनी माता मानते हैं. हम उसे पवित्र मानते हैं. मुसलमानों ने गाय को मारा है. यह जागने और बदला लेने का समय है. उनके इस क्रूर कृत्य के लिए उन्हें पीट-पीटकर मार डालना चाहिए. मुस्लिमों के वेष में शैतान, जिन्होंने गाय काटने जैसा यह क्रूरतापूर्ण कृत्य किया है, उन्हें मार देना हमारा असली धर्म और पवित्र कर्तव्य है.’

हिंदूवादी संगठन हिंदू युवक मंडल द्वारा प्रकाशित पम्फलेट 

भ्रमित न हों, यह पम्फलेट उत्तर प्रदेश के दादरी का नहीं है, जहां 28 सितंबर को एक 50 वर्षीय अखलाक को गाय चुराकर मारने और गोमांस खाने के आरोप में हिंदू कट्टरपंथियों की भीड़ ने पीटकर मार डाला. गुजराती भाषा में छपा यह पर्चा 1985 का है जब अहमदाबाद सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में था. उन दिनों दंगों की अगुवाई करते हुए संघ परिवार के कार्यकर्ताओं द्वारा इसे बड़े पैमाने पर बांटा गया था.

इस पम्फलेट ने यह अफवाह फैलाने में मदद की कि मुसलमानों ने सरयूदासजी मंदिर की एक गाय ‘जसोला’ का सिर काटकर उसे मंदिर के दरवाजे पर छोड़ दिया और उसके खून से लिखा, ‘हिंदू काफिर और सूअर हैं.’ इतिहासकार ओरनीत शानी का कहना है, ‘इस अफवाह ने 1985 के दंगों को फैलाने में अहम किरदार निभाया, जो कि सवर्ण जातियों ने मिलकर शुरू किया था. यह आरक्षण का लाभ पाने वाले दलितों के प्रति गुस्सा था, इसलिए उन्हें निशाना बनाया गया. जसोला को लेकर अफवाह हिंदुत्व कार्यकर्ताओं ने फैलाई थी. ऐसा राजनीतिक रूप से मुखर दलितों (जो वास्तव में खानपान की आदतों और वर्गीय अवस्थिति के मामले में मुस्लिमों के ही समान थे) को मुस्लिमों के खिलाफ संगठित करने के लिए किया गया.’

क्या इससे यह समझने में मदद मिलती है कि दादरी की घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों मौन हैं? इतिहासकार केएन पनिक्कर कहते हैं, ‘अफवाहें, खासकर गोहत्या से जुड़ी अफवाहें, हमेशा से ही मुसलमानों के खिलाफ आरएसएस का प्रमुख हथियार रही हैं, जिसे उसने मुसलमानों की झूठी छवि गढ़ने के लिए इस्तेमाल किया है कि वे ‘भारत माता’ के हत्यारे या लुटेरे हैं.’ मोदी ने अपनी ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की छवि बनाने के लिए ‘गाय और गोमांस की राजनीति’ का सुविधाजनक ढंग से प्रयोग किया है. मोदी के पोरबंदर के भाषण को देखा जा सकता है. सामाजिक मानवविज्ञानी पारविस घासेम फाचंदी का एक शोध आलेख है. यह ‘पोग्रोम इन गुजरात शीर्षक’ से है. इसमें उन्होंने मोदी (जिन पर उस समय न्यूटन के गति के नियम पर आधारित ‘क्रिया की प्रतिक्रिया होती है’ के जरिये तबाही को उकसाने के लिए चौतरफा हमले हो रहे थे.) के भाषण के अंशों पर ध्यान दिलाया है जिसमें वे बड़े शातिराना तरीके से शाकाहार और मांसाहार में अंतर करते हैं.

मोदी ने कहा था, ‘भारत के वेदों के मुताबिक, पेट रूपी कुंड में अग्नि है. इस अग्नि में अगर सब्जी, फल या अनाज डाला जाता है तो इस अग्नि कुंड को यज्ञ (बलिदान) कुंड कहते हैं, लेकिन अगर इस अग्नि में मांस डाला जाता है तो यह ‘श्मशान भूमि’ की अग्नि बन जाती है, यानी चिता की आग बन जाती है. यज्ञ की अग्नि जीवन, ऊर्जा, शक्ति आैैर धर्मनिष्ठा प्रदान करती है, जबकि ‘श्मशान’ की अग्नि गंदगी को गंदगी में और राख को राख में बदल देती है.’

घासेम फाचंदी का तर्क है कि ‘मोदी ने ‘यज्ञ और श्मशान’ में जो फर्क किया कि बलिदान जीवन देता है और मांस खाना मौत का प्रतीक है, वह शाकाहारी और मांसाहारी के बीच का अंतर है, जो कि हिंदू और मुसलमान में है. जो लोग शाकाहार लेते हैं वे मांस का त्याग करके बलिदान देते हैं और जीवन प्राप्त करते हैं. जो लोग मांसाहार लेते हैं, वे खुद को चिता में बदल लेते हैं. वे मांसाहार के रूप में जो भी खाते हैं, उससे मृत्यु प्राप्त करते हैं.’ यह विचार परियोजना ऐसी धारणा पेश करती है कि जो लोग मांसाहार लेते हैं वे हिंदुओं और भारतीय संस्कृति के लिए किसी दूसरे ग्रह के प्राणी हैं.

गुजरात में 2001 में मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद मोदी ने मुस्लिमों द्वारा कथित तौर पर गैरकानूनी बूचड़खाने चलाने और ‘गाय माता को चुराकर मारने’ जैसे विवादास्पद भाषण देकर सांप्रदायिक आधार पर विभाजक रेखा खींची. गुजरात के मानवाधिकार कार्यकर्ता सागर रबाड़ी याद करते हैं कि मोदी सरकार ने गोरक्षा अधिकार संगठनों (ज्यादातर गैर सरकारी संगठन-एनजीओ) और दूसरे गोरक्षा कार्यकर्ता समूहों के साथ काम किया, जो संघ परिवार से जुड़े थे. मोदी ने मुस्लिमों द्वारा चलाए जाने वाले बूचड़खानों पर पुलिस कार्रवाई की शुरुआत की, जहां कथित तौर पर गोहत्याएं होती थीं और स्थानीय मीडिया ने आधे सच आधे झूठ के साथ इस मामले को सनसनीखेज सुर्खियों के साथ उछाला.

इन संगठनों द्वारा प्रसारित प्रचार साहित्य पर निगाह डालने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनकी दिलचस्पी गाय की रक्षा करने के बजाय ‘गोमांस खाने वाले मुसलमानों’ को मारने में ज्यादा है. उनका अभियान हमेशा गुजरात की अहिंसा की समृद्ध परंपरा का आह्वान करता रहा लेकिन गाय को मारने और गोमांस खाने वाले मुस्लिमों के प्रति हिंसक ही रहा. अभियान में चालाकी से यह संकेत किया गया कि मुसलमानों की खानपान संबंधी हिंसक प्रवृत्तियां उनकी दैहिक इच्छाओं और क्रियाओं पर भी प्रतिबिंबित होती हैं. उन्हाेंने मुसलमान पुरुषों की कामेच्छा को भी खतरनाक ढंग से उत्तेजक और तामसिक बताया. इस अभियान में डर का पुट जोड़कर, ऐसे पुरुषों को शाकाहारी (सात्विक) उच्च जातीय हिंदू और जैन महिलाओं के लिए खतरा बताकर पेश किया गया. इस अभियान ने एक बड़े सजातीय वर्ग की सामान्य समझ को प्रभावित किया जो हिंदुओं के ध्रुवीकरण में सहायक हुआ.

2002 की हिंसा से जुड़े कई अध्ययनों में कहा गया है कि ‘मांसाहारी मुसलमानों की लैंगिकता’ के उस डर ने बहुत से हिंदू पुरुषों को मुस्लिम महिलाओं के प्रति क्रूर यौन हिंसा के लिए उकसाया. इन सब के बावजूद, इस हिंसा को गोधरा कांड की प्रतिक्रिया बताते हुए मोदी को गुजरात पर्यटन की ‘अहिंसा टूरिज्म’ की योजना की घोषणा करने में कोई हिचक महसूस नहीं हुई.

‘अहिंसा’ और पवित्र गाय का मिथक मोदी के लिए गुजरात में खुद की राजनीतिक स्थिति मजबूत करने में कारगर साबित हुआ और यहां तक कि उनके दिल्ली तक पहुंचने में भी यह तरीका काफी उपयोगी साबित हुआ. 2012 में मोदी ने जैन समुदाय के अंतराष्ट्रीय व्यापार संगठन के साथ बैठक में गोरक्षा का आह्वान किया और इसी साल महाराणा प्रताप की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में यही बात दोहराई. दो साल बाद, दिल्ली में बाबा रामदेव द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भी उन्होंने हूबहू वही बातें कहीं. मोदी के लोकसभा चुनाव प्रचार सभाओं के दौरान बिहार के नवादा और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में यही राग दोहराया गया.

‘पिंक रिवोल्यूशन’ (मांस व्यापार) को बढ़ावा देने वाली यूपीए सरकार से नजदीकी के लिए मुलायम सिंह यादव आैैर लालू यादव पर हमला करने के लिए मोदी ने बड़ी होशियारी से भगवान कृष्ण के गाय के प्रति अनुराग की छवि का इस्तेमाल किया. मुस्लिम कसाइयों की गायों को चुराती हुई तस्वीरों को भी व्यापक रूप से फैलाया गया.

गोरक्षा के लिए किए गए इतने प्रचार के बावजूद, मोदी जब सत्ता में आए तब उन्हाेंने भारत में बढ़ रहे बीफ निर्यात को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. वास्तविक स्थिति यह है कि मोदी सरकार के पहले साल में बीफ निर्यात में बढ़ोतरी हुई है. इस बीच, उनकी पार्टी के लोग उनकी शाकाहारी छवि पेश करने के लिए अतिरिक्त रूप से सतर्क हैं. दूसरी ओर बड़ी सावधानी से ‘दूसरे मांसाहारी’ लोगों की छवि हिंदू भारत में ‘म्लेच्छ’ के रूप में पेश की जा रही है.

वैज्ञानिक इतिहास लेखन ने यह सिद्ध किया है कि गाय कोई पवित्र जानवर नहीं है जैसा कि हिंदुत्व के स्वयंभू रक्षकों द्वारा दावा किया जाता है. मशहूर इतिहासकार डीएन झा के लीक से हटकर किए गए शोध में यह बताया गया है कि संघ परिवार जिस ऐतिहासिक काल की गाथा गाता है, उस वैदिक और उत्तर वैदिक युग में उच्च जातीय हिंदुओं द्वारा धड़ल्ले से गोहत्या की जाती थी और उसका मांस खाया जाता था. मुस्लिमों, दलितों, आदिवासियों और अन्य बीफ खाने वालों के बारे में रूढ़िबद्धता है, वह सीधे तौर पर हिंदुत्व से संबंधित है और हिंदू राष्ट्र के ड्रीम प्रोजेक्ट का अभिन्न हिस्सा है. इसलिए हिंदुत्व की राजनीति के माहिर हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी के लिए मोहम्मद अखलाक के परिवार के प्रति सच्ची संवेदनाएं जाहिर करना असंभव लगता है.