के. रवि (दादा)
मराठी मानुस होना अपने आप में गौरव की बात मानी जाती है। राजतंत्र से लेकर पिछले कुछ दशक पहले तक मराठों ने बाहर से आये हुए लोगों की मदद ही की है। पर अब कुछ संगठन ग़ैर-मराठी लोगों से मार-पीट कर रहे हैं। पिछले 15-20 वर्षों में बिहार और यूपी वालों पर तो कई बार मुंबई में हमले हो चुके हैं। अब मायानगरी मुंबई में मराठी न बोल पाने पर कई महीने से बाहर के लोगों की पिटाई की जा रही है। पर ग़ैर-मराठी भाषी मानुसों पर हमला करना मराठा मानुसों की शान में कभी रहा ही नहीं है। मराठी से प्यार बुरी बात नहीं है, पर ग़ैर-मराठी मानुसों को प्यार से मराठी सिखायी जाए, तो अच्छा है।

मारपीट के आरोप महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं पर लग रहे हैं, जिसे संक्षेप में मनसे कहते हैं। मनसे के कार्यकर्ता उन लोगों के पास जाकर मराठी बोलने को कह रहे हैं, जो मुंबई कमाने-खाने को दूसरे राज्यों से आये हैं या सरकार द्वारा नियुक्त किये गये हैं। मराठी बोलने से मना करने एवं मराठी न बोल पाने पर उनकी पिटाई की जा रही है। अभी तक देखा गया है कि ऐसे लोगों को थप्पड़ मारे जा रहे हैं। इसके पीछे भी राज ठाकरे का एक बयान माना जा रहा है, जो गुड़ी पड़वा के रोज़ 30 मार्च को मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने दादर वाले शिवाजी पार्क में दिया था। राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा था कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा का सम्मान होना ही चाहिए। अगर कोई मराठी भाषा का अपमान करता है, तो उसे करारा जवाब दो। सरकारी और अर्ध-सरकारी संस्थानों में मराठी का इस्तेमाल अनिवार्य होना चाहिए। जो लोग जानबूझकर मराठी नहीं बोलते, उन्हें थप्पड़ मारा जाएगा।
शिवाजी पार्क उस रोज़ मनसे कार्यकर्ताओं से खचाखच भरा था। यहीं से ग़ैर-मराठी मानुसों को मराठी बोलने पर मजबूर किया जाने लगा और जिसने मराठी नहीं बोली, उस पर थप्पड़ों की बरसात होने लगी। हालाँकि अब काफ़ी सियासत गर्माने के बाद राज ठाकरे ने कहा है कि अब इस आन्दोलन को रोकना ठीक रहेगा। हमने इस मुद्दे पर काफ़ी जागरूकता फैलायी है। हमने यह भी दिखा दिया है कि अगर मराठी भाषा का सम्मान नहीं किया गया, तो क्या हो सकता है। अब मराठी लोगों को ख़ुद आगे आकर आग्रह करना चाहिए। अगर हमारे अपने लोग ही पीछे हट जाएँगे, तो फिर आन्दोलन करने का क्या फ़ायदा? पर मनसे कार्यकर्ताओं ने इन दो-ढाई महीने में ग़ैर-मराठियों को थप्पड़ मारे और बहुत-सी जगह तोड़फोड़ भी की। इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बयान जारी किया था कि क़ानून हाथ में लेने का किसी को अधिकार नहीं है। इसके जवाब में राज ठाकरे ने कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सरकार की है। रिजर्व बैंक के नियम उन्हें पता हैं और उन नियमों का पालन करवाना सरकार का काम है।
मनसे की इस कर्मकांड से महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश का राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। पर ऐसा कहा जा रहा है कि यह सब देश के सबसे अमीर नगर निगम अर्थात् बृहन्मुंबई महानगरपालिका, जिसे संक्षेप में बीएमसी कहते हैं; के चुनाव के चलते किया गया है।
मनसे की स्थापना 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर मनसे की थी। मनसे का प्रमुख एजेंडा मराठों के हितों की रक्षा करना और हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देना रहा है। मनसे ने 2009 के विधानसभा चुनावों में 13 सीटें जीती थीं; पर 2014 और 2019 के चुनावों में उसका प्रदर्शन बहुत कमज़ोर रहा और 2024 में तो यह हाल हुआ कि विधानसभा में उसे एक भी सीट नहीं मिल सकी। 119 सीटों पर तो मनसे के उम्मीदवारों की ज़मानत तक ज़ब्त हो गयी। ऐसे में मनसे के लिए एक मौक़ा बीएमसी चुनाव में अपनी साख बचाने का आ रहा है। मुंबई मनसे का गढ़ है और बीएमसी जैसे महत्त्वपूर्ण निकाय में अगर उसकी अच्छी मौज़ूदगी रहती है, तो उसकी राजनीतिक ताक़त बढ़ेगी।
बीएमसी का बजट हज़ारों करोड़ रुपये का होता है और जो पार्टी बीएमसी में शासन करती है, उसको भ्रष्टाचार का ख़ूब मौक़ा मिलता है। बीएमसी पर शासन करने वाली पार्टी महाराष्ट्र सरकार के बाद सबसे ज़्यादा आर्थिक और राजनीतिक ताक़त मिलती है। लंबे वक़्त तक बीएमसी पर शिवसेना का शासन रहा है। पर 2022 में हुई शिवसेना की फूट में उद्धव ठाकरे कमज़ोर पड़े हैं। इसलिए राज ठाकरे ख़ुद को मज़बूत दिखाकर बीएमसी में न रहते हुए अपनी राजनीतिक ताक़त दिखाना चाहते हैं। यह कहना मुश्किल है कि बीएमसी चुनाव में राज ठाकरे भाजपा की मदद करना चाहते हैं या उद्धव ठाकरे की, पर भाजपा बीएमसी पर हर हाल में शासन चाहती है। इसलिए ऐसे आसार नहीं लगते कि अभी यह राजनीति ख़त्म हुई है। बीएमसी के चुनाव से पहले न तो मराठी और ग़ैर-मराठी मानुसों के बीच तनाव कम होने के आसार नज़र आ रहे हैं और न ही राजनीति की आग को ठंडा होने के आसार नज़र आ रहे हैं। यह सब तो ठीक है; पर मराठी न बोलने पर मारपीट किसलिए? किसी पर भाषा न बोल पाने के नाम पर मारना-पीटना उचित ही नहीं है। भारतीय संविधान इसकी इजाज़त किसी को नहीं देता।