सर्वोच्च न्यायालय क्यों पहुँचा कांवड़ यात्रा विवाद ?

सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश सरकारों के द्वारा जारी निर्देशों के कार्यान्वयन को रोकने के लिए क़दम उठाया है, जिसमें कांवड़ यात्रा के दौरान खाने-पीने और फलों की दुकानों के मालिकों को अपना नाम लिखकर लगाना अनिवार्य किया गया है। इस अंक में ‘तहलका’ की आवरण कथा ‘पहचान के विवाद में भाजपा सरकारें’ में मुदित माथुर का तर्क है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए खाने-पीने की दुकानों पर उनके मालिकों का नाम लिखने का जो निर्देश यह कहकर जारी किया गया था कि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाएँ संयोग से भी आहत न हों, इसलिए यह निर्देश जारी किया गया; ग़लत है। यह ध्यान देने योग्य है कि याचिकाकर्ताओं ने भी सर्वोच्च न्यायालय में वही बात कही, जो हमारी आवरण कथा में कही गयी है कि इन निर्देशों के परिणामस्वरूप देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नकारने के अलावा भेदभावपूर्ण परिणाम होंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश और दिल्ली को समन जारी करके इस पर जवाब माँगा है।

बहुत पहले उत्तराखण्ड के देहरादून और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थित इंडियन एक्सप्रेस समूह के एक रिपोर्टर के रूप में मैंने देखा कि पिछले कुछ वर्षों में एक पखवाड़े तक चलने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान कई मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग कांवड़ियों की सेवा करते थे और शिव-पूजा में भाग लेने के लिए हिन्दू कांवड़ियों के साथ पैदल यात्रा करते थे। हालाँकि सरकार की ध्रुवीकरण की चाल उसके सहयोगियों- जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के विरोध से उलटी पड़ गयी है। इन दलों ने इस आदेश की आलोचना की है और बसपा अध्यक्ष मायावती ने इसे असंवैधानिक बताया है।

इधर, दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भर जाने की दु:खद घटना, जिसमें यूपीएससी की तैयारी करने वाले तीन अभ्यर्थियों की मौत हो गयी; राजनीतिक विवाद का विषय बन गयी है। इसके लिए जवाबदेह राजनीति और कोचिंग प्रबंधन की कमी पर सवालिया निशान खड़े होते हैं। दिल्ली सरकार इस मामले में केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है और केंद्र सरकार तारीफ़ का जवाब दे रही है। कुछ अनुमानों के अनुसार, भारत में कोचिंग उद्योग 58,000 करोड़ रुपये का है और लगभग 15 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के साथ साल 2028 तक इसके 1.33 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान है। विडंबना यह है कि यह दु:खद घटना ऐसे समय में हुई, जब शिक्षा मंत्रालय देश भर में कोचिंग सेंटर्स के विनियमन के लिए दिशा-निर्देशों का एक सेट लेकर आया है। इन तीन युवाओं- उत्तर प्रदेश की श्रेया यादव, तेलंगाना की तान्या सोनी और केरल के नेविन डाल्विन की मौत सरकारों को अंतिम चेतावनी होनी चाहिए कि विद्यार्थियों की मौत व्यर्थ नहीं जा सकती और आगे से इस तरह की लापरवाही भी नहीं होनी चाहिए।

विनाशकारी ख़बरों के बीच पेरिस ओलंपिक से कुछ अच्छी ख़बरें आयी हैं, जहाँ मनु भाकर ने सरबजोत सिंह के साथ मिलकर आज़ादी के बाद खेलों के एक ही संस्करण में दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बनने का इतिहास रचा है। हरियाणा के अंबाला के सिंह ने 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम में कांस्य पदक जीता। ये दोनों एथलीट हरियाणा से हैं, जो अब तक मुक्केबाज़ों और पहलवानों के लिए अग्रणी जाना जाता है। कहना होगा कि अच्छी शुरुआत और भी अच्छी ख़बरों की शुरुआत करती है।