आख़िर क्यों हिंसक होते जा रहे छात्र?

06 दिसंबर को मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित एक सरकारी स्कूल में 12वीं कक्षा के एक 17 वर्षीय छात्र ने जिस तरह सरेआम प्राचार्य (प्रिंसिपल) की कट्टे से गोली मारकर हत्या कर दी, उससे  आज के छात्रों में पनपती आपराधिक प्रवृत्ति का पता चलता है। प्राचार्य ने उपरोक्त छात्र को स्कूल नहीं आने पर सिर्फ़ डाँट दिया था, जिससे छात्र इतना नाराज़ हुआ कि उसने स्कूल में प्राचार्य की हत्या के बाद बाक़ी शिक्षकों और छात्रों को भी धमकी दी कि अगर किसी ने उसके ख़िलाफ़ बयान दिया, तो वह उसे भी मार डालेगा।

06 दिसंबर को ही छत्तीसगढ़ के धनतरी ज़िले में एक निजी स्कूल में डाँट और पढ़ाई पर ध्यान देने की हिदायत दिये जाने से नाराज़ 11वीं कक्षा के एक छात्र ने दो शिक्षकों पर चाक़ू से हमला कर दिया। इससे पहले 05 दिसंबर को आन्ध्र प्रदेश के विजयनगरम् स्थित एक सरकारी स्कूल में 8वीं कक्षा के छात्र ने शिक्षक पर चाक़ू से हमला कर दिया। वहाँ की पुलिस के अनुसार, छात्र ने कथित तौर पर शिक्षक के ख़िलाफ़ रंजिश पाल रखी थी, क्योंकि जब वह कक्षा सात में पढ़ता था, तबसे वह शिक्षक उसके व्यवहार व ख़राब शैक्षणिक प्रदर्शन के कारण उसे फटकार लगा रहे थे।

ये घटनाएँ स्कूलों में छात्रों के हिंसक व्यवहार की तस्वीर समाज के सामने रखती हैं। छात्रों द्वारा हिंसा भारतीय स्कूलों में न सिर्फ़ गुरु-शिष्य परंपरा को कलंकित कर रही है, बल्कि देश के भविष्य के लिए एक ख़तरे को संकेत दे रही है। ऐसी वारदातें शिक्षकों को छात्रों पर पढ़ने का दबाव न डालने को मजबूर करती हैं। यह एक चिन्तनीय पहलू है।

भारत में गुरु-शिष्य परंपरा को बहुत ही सम्मानित दृष्टि से देखा जाता रहा है। लेकिन व$क्त बदलने के साथ-साथ यह रिश्ता भी दरकने लगा है। भारत में हर वर्ष 05 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है; लेकिन शिक्षकों व छात्रों के बीच मधुर समन्वय की जगह अब तनाव बढ़ता जा रहा है। यही तनाव कई मर्तबा हिंसक शक्ल ले लेता है। कहीं छात्र हिंसक दिखते हैं, तो कहीं शिक्षक भी हिंसक हो जाते हैं।

क़रीब दो साल पहले देश की राजधानी दिल्ली में भी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों पर हमले की ख़बरें चर्चा में थीं और तब दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने शिक्षकों पर शारीरिक हमले के मामले में स्कूल प्रशासन को निर्देश दिया कि वह ऐसे छात्रों को निष्कासित करें या उसी स्कूल में दोबारा दाख़िला लेने से रोकें। स्कूलों में शिक्षकों पर शारीरिक हमले और मारपीट का ख़तरा इसलिए भी मँडराने लगा है, क्योंकि क़ानूनी रूप से शिक्षकों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती। वैसे स्कूल शिक्षक संघ ने शिक्षकों को सुरक्षा देने वाले क़ानून की माँग की थी, जिसके अंतर्गत स्कूल परिसर के भीतर या उसके आसपास होने वाली ऐसी आपराधिक घटनाओं को ग़ैर-जमानती अपराधों के तहत दंडित करने की अपील की गयी थी। लेकिन इसमें संघ को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली।

जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में 2023 में 463 छात्रों पर किये गये एक अध्ययन में आधे से अधिक छात्रों में आक्रामक लक्षण पाये गये। अमेरिकन साइकोलॅाजिकल एसोसिएशन के जर्नल ऑफ़ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी के 2024 अंक में प्रकाशित दो अध्ययनों में हिंसक वीडियो गेम खेलने को प्रयोगशाला सेटिंग और वास्तविक जीवन दोनों में आक्रामक विचारों, भावनाओं और व्यवहार में वृद्धि के साथ जोड़ा गया है।’

ऐसा माना जा रहा है कि किशोर व युवा पीढ़ी को आक्रामक बनाने में इंटरनेट, सोशल मीडिया भी अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। भारत में बच्चों के कल्याण और उनके अधिकारों को प्राथमिकता देने के मक़सद से स्कूलों में बच्चों के लिए ख़ास क़ानूनी व्यवस्था की गयी है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के तहत भारतीय संविधान की धारा-17 में बच्चे के प्रति शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध है और इसे दंडनीय अपराध माना गया है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम-2015 के तहत भारतीय संविधान की धारा-23 के अनुसार, नाबालिग़ों के प्रति दुर्व्यवहार करने वाले व्यस्कों को जेल और ज़ुर्माना दोनों हो सकते हैं। शिक्षाविद् व बाल मनोचिकित्सक बच्चों व किशोरों को शारीरिक दंड व उनके मानसिक उत्पीड़न को उनके विकास के लिए सही नहीं मानते। लेकिन हिंसक छात्रों के ख़िलाफ़ अलग से कोई क़ानून देश में नहीं है।