यह कोई छिपा राज नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वरिष्ठ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता शरद पवार के साथ मधुर सम्बन्ध हैं और वे पार्टी के लोगों की असहजता के बावजूद सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा करते रहे हैं। यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नेतृत्व भी इस रुख़ से असहज है। शरद पवार के किसी भी निमंत्रण को मोदी सहर्ष स्वीकार करते हैं और यहाँ तक कि उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जब पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री थे, तब उनका (मोदी का) मार्गदर्शन कैसे किया।
लेकिन हाल ही में एक नया चलन सामने आया है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शरद पवार के ख़िलाफ़ सार्वजनिक बयानबाज़ी शुरू कर दी। शाह ने पवार के लिए भटकती आत्मा और विश्वासघाती जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। शाह का ग़ुस्सा तबसे शुरू हुआ, जबसे पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर उन्हें अनार भेंट किये; जिससे राकांपा के दोनों गुटों के एक साथ आने की चर्चा शुरू हो गयी। इससे महाराष्ट्र में महायुति में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी और किसी के लिए इस भ्रम को तोड़ना ज़रूरी हो गया था। शाह के इस शाब्दिक हमले को पवार द्वारा सन् 1978 में महाराष्ट्र में वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व वाली सरकार से 40 विधायकों के साथ बाहर निकालने और फिर मुख्यमंत्री बनने के संदर्भ में देखा जा रहा है। शाह ने पवार पर धोखा और विश्वासघात की राजनीति के जनक होने का आरोप लगाया।
शरद पवार ने अमित शाह पर पलटवार किया और उन पर गृह मंत्री के पद की मर्यादा न बनाये रखने का आरोप लगाया तथा उन्हें तड़ीपार कह दिया, जिसमें उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरात के मामले में आदेश का ज़िक्र भी किया। बाद में शाह ने यूपीए के तहत देश के कृषि मंत्री के रूप में पवार को बेकार क़रार देते हुए उन पर फिर से हमला किया। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमित शाह का पवार पर शाब्दिक हमला संदेश देने की एक अच्छी तरह से तैयार की गयी रणनीति का हिस्सा है कि जब महाराष्ट्र के मामलों की बात आती है, तो भाजपा का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। इन दिनों संसद में दोनों एक-दूसरे से फूटी आँख नहीं सुहाते।