हमास के साथ क्यों खड़े हैं भारत के मुस्लिम !

खालिद सलीम

यह एक दिलचस्प, लेकिन बहुत अहम सवाल है कि भारत के मुलमान हमास के साथ क्यों खड़े हैं ! यही नहीं दुनिया भर के मुस्लिमों का बड़ा वर्ग भी हमास के साथ खड़ा दिखता है। उसने 7 अक्टूबर को इजराइल पर जो हमला किया उसे दुनिया के काफी लोग और नेता एक आतंकवादी हमला करार दे रहे हैं। कारण यह है कि हमास के इस हमले में बेकसूर बच्चों सहित कई इजरायली नागरिक मौत का शिकार हो गए थे। दुनिया भर में मुसलमानों ने बहु संख्या में हमास के हमले की कड़ी निंदा की थी क्योंकि मुसलिम हमेशा आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ रहे हैं। कई उदाहरण हैं कि उन्होंने आतंकवादी घटनाओं की मुखालफत की है।

हमास के इस हमले के बाद से इजरायल की तरफ से बड़ी कार्रवाई की संभावना थी ही। हमास के लोग भी जानते थे कि इसराइल उसके इस हमले के जवाब में ग़ाज़ा पर बमबारी करेगा। यही हुआ भी और इजराइल ने ग़ाज़ा पर जो बमबारी की उसमें 4 दिन के युद्धविराम, जिसे और दो दिन के लिए 29 नवंबर तक बढ़ाया गया है, में 14854 फिलिस्तीनियों की जान जा चुकी है जिनमें बच्चे-औरतें शामिल हैं। इस अमानुषिक हमले ने मुस्लिमों को इजरायल के खिलाफ एकजुट किया है। मुस्लिम मानते हैं कि इजरायल के इन हमलों में हमास पर कार्रवाई से ज्यादा ग़ाज़ा के बेकसूर लोगों पर कार्रवाई हो रही है।

इजरायल की इस कार्रवाई में हज़ारों-हज़ार बेक़सूर लोगों के मरने पार दुनिया भर में उसके खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। पश्चिमी लीडरशिप के खिलाफ उन देशो के अलावा  इजरायल के आवाम भी सड़कों पर हैं। लंदन, अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, स्पेन जैसे पश्चिमी देशों में इजरायल के इन बहशियाना हमलों के खिलाफ माहौल है। यहाँ तक कि दुनिया भर के पत्रकार, जिन्होंने इजरायल पर हमले के लिए हमास के खिलाफ आवाज़ उठायी थी, वे भी अब इजरायल के गाज़ा पर हमलों को मानवता पर हमला बता रहे हैं।

उधर इजरायल के भीतर भी पीएम नेतन्याहू के खिलाफ वहां की जनता में नाराजगी है। भारत की जानी मानी पत्रकार बरखा दत्त ने इजरायल के दौरे के दौरान वहां जो कुछ देखा उसे आशुतोष के प्रोग्राम में गाज़ा के लोगों की पीड़ा और जज्बात के बारे में बताया। इजरायल में तो अब पीएम नेतन्याहू के इस्तीफे की मांग तक होने लगी है। युद्धविराम के दौरान काफी बंधकों को छोड़ा गया है लेकिन अभी भी बहुत लोग हमास के पास बंधक हैं। वहां काफी लोग चाहते हैं कि फलस्तीनियों के साथ बातचीत की जाए। दुनिया भर के इंसाफ पसंद लोग, जिनमें यहूदी भी शामिल हैं, चाहते हैं कि इजरायल और फलस्तीनियों के दरमियान बातचीत का सिलसिला शुरू हो ताकि मसले का कोई स्थायी हल निकाला जा सके।

यह देखा गया है कि भारत के मुस्लिम भी दुनिया के अन्य हिस्सों के मुस्लिमों की तरह
हमास के प्रति सहानुभूति रख रहे हैं। किसी हिंदुस्तानी मुसलमान ने कभी आतंकवादी संगठन या उसकी गतिविधियों की हिमायत नहीं की है बल्कि दारुल उलूम देवबंद और दूसरे जो बड़े मुस्लिम संगठन हैं उनके फतवों को भी कभी अहमियत नहीं दी है। याद रहे जब भी आईएस आईस या अल कायदा का गठन हुआ तो भारत के मुसलमानों ने कभी उनके या उनके द्वारा किये जा रहे आतंकवाद का समर्थन नहीं किया। एनडीए सरकार में राजनाथ सिंह जब गृह मंत्री थे, उन्होंने एक बयान में बताया था कि हिंदुस्तान से 5 या 6 लोग ही सिर्फ अल कायदा में शामिल होने के लिए गए। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 25 करोड़ मुस्लिमों की आबादी में महज चार-पांच लोग आतंकी संगठनों के साथ गए।

यहां तक कि भारत के मुस्लिम कश्मीर के मसले पर भी अपनी हुकूमतों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे हैं। लेकिन जहां तक हमास का ताल्लुक है आज वह उसकी हिमायत में क्यों खड़े हुए हैं ? गहराई से देखा जाए तो इसके कई कारण और वजहें  रही हैं। दरअसल फिलिस्तीन का जो मसला है उसमें मुसलमानों की एक धार्मिक आस्था है। वह आस्था जो आखिरी प्रोफेट मोहम्मद सल्लल्लाहो वाले वसल्लम से जुड़ी हुई है। मुसलमान का इनाम है कि प्रॉफिट अल्लाह से मुलाकात करने के लिए मक्का से मस्जिद अक्सा से होकर आसमान पर गए। मुसलमानों का यकीन है कि फलस्तीन में  अल्लाह के प्रॉफिट आए हैं लिहाजा उनके लिए भी फलस्तीन पवित्र जमीन है।

उनकी इसी आस्था की वजह से फिलिस्तीन में पहले ईसाइयों के साथ जंग होती रही हैं। इसी मस्जिद-ए-अक्सा की वजह से 70 साल से यहुदियों  के साथ मुसलमान जंग है। देखा जाए तो मुस्लिमों ने इतनी कुर्बानियां दी हैं कि उसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। उस ज़मीन की इसी पवित्रता और उससे मोहब्बत की वजह से पिछले 70 साल से फिलिस्तीनी मुसलमान कुर्बानियां दे रहे हैं। लाखों की तादाद में फिलिस्तीनी मुस्लिमों का कत्ल हो चुका है, लेकिन उनकी इन कुर्बानियों का किसी पर कोई असर नहीं हुआ है। अमेरिका और पश्चिमी देश लगातार इजरायल के साथ खड़े दिख रहे हैं। यही ताकतें हैं जिन्होंने फिलिस्तीन की ज़मीन पर इजरायल बसाया था। इसके बाद  इजरायल ने कंई बार हमले करके फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा कर लिया।

इन तथ्यों के कारण ही दुनिया के मुसलमान, जिनमें भारत के मुस्लिम भी शामिल हैं, हमास के साथ खड़े दिख रहे हैं। फिलिस्तीन की अथॉरिटी के संचालक महमूद अब्बास साहब, जो देश के पीएम भी हैं, यदि इजरायल के साथ इसी तरह जंग करते और अपनी ज़मीन के इजरायल के खिलाफ कब्जों के खिलाफ खड़े होते, तो दुनिया भर के मुसलमान उनके साथ होते। भारत में इजरायल के समर्थन और विरोध में दो धड़े बन गाये हैं। उसके उनके अपनी कारण हैं। इनमें एक का कहना है कि 70 साल से देश की सभी हुकूमतों ने फिलिस्तीन की आज़ादी का समर्थन किया है। यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कहा था कि वह फिलिस्तीन की हिमायत में खड़े हैं। उन्होंने कहा था कि उनकी यही सॉझ है कि इजरायल भी कायम रहे और फिलिस्तीन  एक आजाद रियासत के रूप में दुनिया के नक्शे पर वजूद में आए और हमेशा के लिए यह झगड़ा खत्म हो जाए।

फिल्म स्टार कंगना रनौत जैसे लोग हैं जो चीजों को बिना समझे विवादित ब्यान दे रहे हैं। रनौत ने कहा था कि मुसलमानों के पास 57 मुल्क हैं। उन्हें एक इजराइल से इतनी परेशानी क्यों है, समझ में नहीं आता ? दुर्भाग्य से कंगना जैसे लोगों को फलस्तीनियों के संघर्ष और कुर्बानियों की जानकारी नहीं है और एक विचारधारा विशेष के प्रति अपनी आस्था जताने के लिए उन्होंने ऐसा ब्यान दिया। भारत में जन्म लेने वाले और अब अमेरिकी नागरिक मशहूर पत्रकार रफीक जकारिया ने अपने एक बयान में कहा है कि पिछले 70 साल से फलस्तीनियों की शांतिपूर्वक चलायी गयी मुहीम का कोई नतीजा नहीं निकला है, इसीलिए हमास ने इजरायल पर घातक हमला करके दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा।

संयुक्त राष्ट के महासचिव तक ने हमास के हमले को परिस्थितियों के मद्देनजर देखने का समर्थन किया है। उनके मुताबिक हमास के हमले के पीछे बहुत सारे कारक हैं। उनके बयान से इजरायल बुरी तरह बौखला गया और उसनेउनके इस्तीफे की मांग तक कर दी। भले अब 4 दिन के बाद दो और दिन का युद्धविराम घोषित हुआ है, आशंका है कि इजरायल के हमले युद्धविराम ख़त्म होने के बाद फिर शुरू हो जायेंगे। उसने पहले ही जमीन से हमले शुरू कर रखे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इसराइल जमीन के हमले में कितना कामयाब होता है क्योंकि हमास के पास जमीन पर लड़ने की जो क्षमता है वह इजरायल के पास नहीं।

अब सवाल यह भी है कि इस पुराने झगड़े को सुलझाने और जंग से बचने में कैसे मदद मिलेगी। सवाल यह भी पैदा होता है कि यह जंग क्या इजरायल जीत पाएगा ? दुनिया भर के कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इजरायल जंग नहीं जीत सकता और अगर अमेरिका भी जंग में उसके साथ शामिल हो गया तो तब भी उसको इस जंग में कामयाबी नहीं मिल पाएगी। कारण हमास के अलावा लेबनान के लड़ाके संगठन हिज्बुल्लाह और सीरिया के मिलीशिया के अलावा ईरान की ताकत को कमजोर करके नहीं आंका जा सकता। ऐसा होने पर युद्ध बड़ा स्वरुप ले सकता है। इसी आशंका के चलते दुनिया भर में इजराय-फिलिस्तीन के बीच अमन के लिए प्रदर्शन किये जा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र में दो बार इस मसले पर लाये गयी प्रस्ताव पर वोटिंग हो चुकी है। अमेरिका ने जग बंदी पर होने वाली वोटिंग को अपने वेट ऑफ पावर से निष्फल कर दिया। दरअसल अमेरिका और इसराइल चाहते हैं कि इस बार हमास के साथ आर-पार का मामला किया जाए और हमास को जड़ से उखाड़ फेंका जाए। लेकिन ज्यादातर जानकार मानते हैं हैं कि यह बिलकुल आसान नहीं है। हाँ, यदि फिलिस्तीन की स्वतंत्रता पर कोई ठोस निर्णय आ जाये तो बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है।