के. रवि (दादा)
हाल ही में ओडिशा के बालासोर में एक 46 साल के दरिंदे ने नौ साल की आदिवासी बच्ची की रेप के बाद ख़ौफ़नाक तरीक़े से हत्या कर दी। पुलिस ने इस 46 साल के दरिंदे को गिरफ़्तार करके बीएनएस की दफ़ा-103, 165, 4(2) और पॉक्सो एक्ट की संबंधित दफ़ाओं के तहत केस दर्ज करके गिरफ़्तार कर लिया है। अब वह दरिंदा 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में है।
उड़ीसा के रेमुना पुलिस के मुताबिक, मामले का पता तब चला, जब आदिवासी लड़की की 30 अगस्त को सड़ी-गली लाश मिली और उसका पोस्टमार्टम कराया गया। ओडिशा में ही सेना के एक अधिकारी और उनकी मंगेतर के साथ थाने में जिस तरह का दुर्व्यवहार हुआ, उसकी जितनी निन्दा की जाए, कम है। इन घटनाओं ने ओडिशा के साथ-साथ समस्त देश को झकझोर दिया। पर वहाँ की मौज़ूदा भाजपा सरकार इस मामले पर ख़ामोश बैठी है और विपक्ष के नेता बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक ने विधानसभा में इसे लेकर सरकार की घेराबंदी की। ओडिशा विधानसभा में पेश किये गये श्वेत पत्र के मुताबिक, ओडिशा में 2023 में हर दिन सात से ज़्यादा रेप और तीन हत्याएँ हुईं। पूरे साल में 2,826 रेप और 1,362 हत्याओं के केस विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज हुए। यह हाल तब है, जब वहाँ 619 पुलिस थानों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए पुलिस हेल्प डेस्क स्थापित हैं। ओडिशा में हुई इस दरिंदगी को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी को फोन करके उनके शासन में आदिवासियों और मज़दूरों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार रोकने की अपील की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ओडिशा के मुख्यमंत्री माझी से यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल के जो लोग ओडिशा में रहकर काम करते हैं, उन्हें वहाँ बांग्लादेशी कहकर मारा-पीटा जा रहा है और परेशान किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ओडिशा में काम करने वाले अपने राज्य के मज़दूरों से भी वापस लौटने की अपील की है। सवाल ये उठता है कि कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या के मामले में भाजपा के लोग जिस तरह उछल रहे है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफ़े की माँग कर रहे हैं, वे उनकी पार्टी की सरकारों वाले राज्यों में महिलाओं के साथ होने वाली दरिंदगी पर ख़ामोश क्यों हो जाते हैं?
यह माना कि आज के समय में महिलाएँ किसी भी राज्य में सुरक्षित नहीं हैं, पर ये भाजपा वाले वहाँ कोई कांड होने पर क्यों चिल्लाते हैं, जहाँ इनकी पार्टी की सरकार नहीं होती और वहाँ कोई कांड होने पर ख़ामोश क्यों हो जाते हैं, जहाँ इनकी सरकार होती है? उत्तर प्रदेश में राम राज्य का दावा करते हुए भाजपा के लोग महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित इस राज्य को मानते हैं, जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यह दावा करते हैं कि उन्होंने गुंडागर्दी ख़त्म कर दी है; पर वहाँ महिलाओं के साथ दरिंदगी के एक से बढ़कर एक मामले बिना नागा सामने आते ही रहते हैं। यही हाल मध्य प्रदेश का भी है।
असल में दरिंदों और उनको बचाने वालों को यह एहसास ही नहीं होता कि जिस महिला या युवती या बच्ची के साथ दरिंदगी होती है, उनका पूरा जीवन नरक बन जाता है। मुंबई में साल 27 नवंबर, 1973 को किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में अरुणा शानबाग नाम की एक नर्स के साथ ज़ोर-जबरस्ती के साथ दरिंदगी करने वाले बार्ड ब्वाय सोहनलाल वाल्मीकि ने पीड़िता का गला दबाये रखा, जिससे पीड़िता क़रीबन 36 साल ज़िन्दा लाश बनकर रह गयी। बड़ी दर्दनाक ज़िन्दगी गुज़ारने की वजह से अरुणा शानबाग के लिए उनके परिजनों ने इच्छा मृत्यु की माँग की, जिसमें पीड़िता की भी सहमति थी; पर 07 मार्च, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को ठुकराते हुए कहा कि अरुणा को जीना होगा, उन्हें इच्छा मृत्यु की इज़ाज़त नहीं दी जा सकती। क्योंकि यह कहना मुश्किल है कि अरुणा क्या चाहती हैं? उनके हाव-भाव बताते हैं कि उन्हें ज़िन्दगी से अब भी लगाव है। दरिंदगी के 42 साल बाद अरुणा शानबाग को निमोनिया हुआ और वो इस दरिंदगी की दुनिया से हमेशा के लिए अपने सबके लिए एक सवाल छोड़कर चली गयीं कि क्या इस देश में दरिंदों के लिए कोई कड़ी सज़ा नहीं है? क्योंकि अरुणा शानबाग से दरिंदगी करके उन्हें जीते-जी मार देने वाले दरिंदे को सन् 1980 में रहा कर दिया गया। और बेचारी अरुणा को 18 मई, 2015 को मिली तड़प-तड़पकर मौत की सज़ा!