महिला-सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा ?

देश में बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक के साथ हो जाती है दरिंदगी !

आज देश में दो-तीन महीने से लेकर 70 साल की वृद्धाओं तक की अस्मत की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। एक तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर चुनाव में बड़े गर्व से देश भर के लोगों को ज़ुबानी गारंटियों की झड़ी लगाते हैं, तो दूसरी तरफ़ महिला सुरक्षा की गारंटी उनकी गारंटी की तरह ही खोखली साबित हो रही है। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा लोगों को सतर्क करने के लिए है कि अपनी-अपनी बेटी बचा सको, तो बचा लो। सवाल यह है कि देश में इतनी गुंडागर्दी फैल कैसे रही है? बच्चियों से लेकर महिलाओं तक के साथ जो दरिंदगी हो रही है, उसके लिए ज़िम्मेदार कौन-कौन है? एक मनोचिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जब किसी महिला पर कोई अपराध होता है, तो उसमें पाँच तरह के अपराधी होते हैं। पहला अपराधी वो होता है, जो अपराध करने वाला है। दूसरे वो लोग अपराधी हैं, जो अपराधियों को पहचान लेने के बाद भी पुलिस को नहीं बताते। तीसरे नंबर के अपराधी वो लोग हैं, जो अपराध होने के बाद चुप रहते हैं। चौथे नंबर के अपराधी वे लोग हैं, जो क़ानूनी तौर पर अपराध रोकने के लिए तैनात हैं; लेकिन अपराध नहीं रोक पाते। और पाँचवे अपराधी के रूप में वो सरकार होती है, जिसके शासन में अपराध होता है। जब कहीं कोई अपराध हो, तो इन पाँचों तरह के अपराधियों को सज़ा मिलनी चाहिए।

आज भारत के कई राज्यों में बलात्कार की दहला देने वाली घटनाएँ हो रही हैं, और रोकने के बजाय उन पर राजनीति हो रही है। सही आँकड़ों को देखें, तो देश हर घंटे में सैकड़ों बलात्कार होते हैं, जिनमें से मुश्किल से चार फ़ीसदी मामले पुलिस के पास आते हैं। आज देश का ऐसा कोई शहर नहीं है, जहाँ हर रोज़ 10-20 बलात्कार न होते हों। ये बलात्कार कहीं घर में, तो कहीं बाहर होते हैं। लेकिन ज़्यादातर महिलाएँ और लड़कियाँ इसे नियति समझकर ख़ामोश रह जाती हैं; लेकिन ये ख़ामोश रहने वाली महिलाएँ यह नहीं समझतीं कि इनके ख़ामोश रहने से ही अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं। पुलिस अगर अपनी ड्यूटी को अपना फ़ज़र् मानकर सुरक्षा व्यवस्था में लग जाए, तो बलात्कार ही नहीं, हर तरह के अपराध पर रोक लग सकती है। लेकिन ऐसा नहीं होता और तकलीफ़ तो तब होती है, जब कई अपराध पुलिस थाने और पुलिस चौकी के आसपास हो जाते हैं। आज मणिपुर से लेकर कई राज्यों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध हो रहे हैं; लेकिन इन अपराधों को रोकने के लिए बने क़ानून और क़ानून के रखवाले क़ानून के पुतले की तरह हाथ में न्याय की तराजू तो दिखा रहे हैं; लेकिन आँखों पर काली पट्टी बाँधे हुए हैं।

हाल की घटनाओं पर नज़र डालें, तो पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई बलात्कार और हत्या की घटना के बाद तो देश भर में बलात्कारों की घटनाओं की झड़ी लग गयी। लेकिन दूसरी तरफ़ कहीं बलात्कारियों को जमानत मिल जाती है, कहीं उनके ख़िलाफ़ दर्ज केस वापस लिए जाते हैं, तो कहीं पीड़ित महिलाओं के साथ ही बदसलूकी करतेे हुए उन्हें और परेशान किया जाता है। अभी कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के बदलापुर के एक स्कूल में दो नाबालिग़ बच्चियों से बलात्कार की ख़बर आयी। इसी राज्य के अकोला में स्कूल की ही बच्चियों से छेड़छाड़ की घटना हुई, जिसके बाद आम जनता ने सड़कों पर उतरकर विरोध-प्रदर्शन करके दोषियों को फाँसी देने की माँग की। लेकिन आज फाँसी किस आरोपी को होती है। अब तो बलात्कारियों और हत्यारों के बचाव में ही रैलियाँ निकाली जाती हैं। राजनीतिक पार्टियाँ अपने-अपने अपराधी नेताओं और अपने-अपने अपराधी समर्थकों का बचाव खुलकर करती हैं। देश की एक बड़ी पार्टी ने खुलकर अपने आपराधिक आरोपों से घिरे नेताओं और समर्थकों को खुलकर बचाने का काम किया है।

हाल ही की कुछ घटनाओं का ज़िक्र करें, तो अभी 24 अगस्त को हरियाणा के महेंद्रगढ़ सदर थाना क्षेत्र से एक महिला ग़ायब हो गयी। 24 अगस्त को ही असम के नागांव ज़िले में नाबालिग़ लड़की से सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को पकड़ा, तो उनमें से तफ़ज़्ज़ुल इस्लाम नाम का आरोपी भागने लगा और पानी में गिर गया, जिससे उसकी मौत हो गयी। 24 अगस्त को ही महाराष्ट्र में एक नाबालिग़ लड़की के बलात्कार के आरोपी तस्लीम ख़ान को जैसे ही जमानत मिली, पीड़ित लड़की ने आत्महत्या कर ली। कहा जा रहा है कि जमानत पर छूटने पर आरोपी नाबालिग़ लड़की को फिर से परेशान कर रहा था। उसे उसके परिवार वालों को मारने की धमकी दे रहा था। दहीवड़ी पुलिस ने आईपीसी की धारा-107 के तहत मामला दर्ज करके आरोपी को फिर से गिरफ़्तार किया है। देश के कई राज्यों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचार की घटनाओं का अंत ही नहीं है। डेढ़ साल से हिंसा की आग में सुलग रहे मणिपुर में तो महिलाओं के साथ जो हुआ है, उससे पूरा देश शर्मिंदा हुआ; लेकिन ऐसा लगता है कि मणिपुर की और केंद्र की सरकारों को इससे शर्मिंदगी नहीं हुई। शर्मिंदगी होगी भी कैसे? जब आज कई नेता ही दज़र्नों आपराधिक घटनाओं में आरोपी हैं।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक 300 पन्नों की रिपोर्ट के मुताबिक, मौज़ूदा समय में 151 मौज़ूदा विधायकों और सांसदों के ख़िलाफ़ महिला उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं, जिनमें से 16 सांसद हैं और 135 विधायक हैं। ये सभी 23 अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के हैं। देश के कुल 4,809 मौज़ूदा सांसदों और विधायकों में से 4,693 के चुनाव आयोग को सौंपे गये हलफ़नामों के संयुक्त अध्ययन में एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के आधार पर यह रिपोर्ट जारी हुई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, इन सांसदों और विधायकों पर बलात्कार से लेकर महिलाओं से छेड़छाड़, उनके साथ बदतमीजी-मारपीट, नाबालिग़ लड़कियों को वेश्यावृत्ति में धकेलने, उनकी ख़रीद-फ़रोख़्त करने और घरेलू हिंसा जैसे आपराधिक मामले दर्ज हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध करने वाले इन सांसदों और विधायकों में 54 सांसद और विधायक तो अकेले भाजपा के हैं, जो सबसे ज़्यादा क़रीब 40 प्रतिशत हैं। इसके अलावा कांग्रेस के 23 सांसद और विधायक, तेदेपा यानी तेलुगु देशम पार्टी के 17, आम आदमी पार्टी के 13 हैं। बाक़ी दूसरी पार्टियों के हैं।

केंद्र सरकार के साल 2023 के आँकड़े बताते हैं कि भारत में आये दिन महिलाओं और लड़कियों के अपहरण के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। साल 2023 में संसद में केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा पेश किये आँकड़ों के मुताबिक, भारत में साल 2019 से साल 2021 के बीच महज़ तीन साल में क़रीब 13.13 लाख महिलाएँ और लड़कियाँ ग़ायब हुई हैं। इनमें से सबसे अधिक 1,60,180 महिलाएँ और 38,234 लड़कियाँ मध्य प्रदेश से ग़ायब हुई हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल से 1,56,905 महिलाएँ और 36,606 लड़कियाँ ग़ायब हुईं। महाराष्ट्र से1,78,400 महिलाएँ और 13,033 लड़कियाँ ग़ायब हुईं। ओडिशा से 70,222 महिलाएँ और 16,649 लड़कियाँ ग़ायब हुईं। छत्तीसगढ़से 49,116 महिलाएँ और 10,187 लड़कियाँ ग़ायब हुईं। दिल्ली से 61,054 महिलाएँ और 22,919 लड़कियाँ ग़ायब हुईं। जम्मू-कश्मीर से 8,617 महिलाएँ और 1,148 लड़कियाँ ग़ायब हुईं। इसमें उत्तर प्रदेश के आँकड़े नहीं हैं। साल 2021 में एक आरटीआई के जवाब में मिली जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में हर दिन तीन लड़कियाँ ग़ायब होती हैं। इस जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश से एक साल कुल 1,763 बच्चे ग़ायब हुए, जिनमें से 1,166 लड़कियाँ थीं। इनमें से 12 से 18 साल की 1,080 लड़कियाँ थीं। हालाँकि पुलिस के मुताबिक, 1166 लड़कियों में से 966 लड़कियाँ ढूँढ निकाली थीं, जबकि 200 का पता नहीं चल पाया था।

साल 2019 से साल 2021 के बीच तीन साल में भारत से ग़ायब हुई 10,61,648 महिलाएँ और लड़कियाँ में बालिग़ यानी 18 साल से ज़्यादा उम्र की थीं। जबकि 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 2,51,430 है। एक लोकतांत्रिक देश और न्याय की गारंटी देने वाली सरकार के शासन में महिलाओं और लड़कियों के ग़ायब होने की स्पीड इतनी ज़्यादा है कि इस अपराध को समझने और अपराधियों को पकड़ने में समय नहीं लगना चाहिए; लेकिन इतना बड़ा और गंभीर मुद्दा आज केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों और चुनावों में पार्टियों की गारंटियों से बाहर ही दिखता है।

भारत को विकसित और राम राज्य जैसा शासन बताने वाली भाजपा सरकारों को इस ओर ध्यान देना चाहिए और समय रहते महिला उत्पीड़न की इन घटनाओं पर रोक लगानी चाहिए। भारत में कड़े क़ानून हैं; लेकिन सज़ा देने की रफ़्तार बढ़ाते हुए सज़ा को और सख़्त करना चाहिए। देश भर में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराधों पर राजनीति करने से अच्छा है, अपराधियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए। सरकारों, पुलिस प्रशासन, अदालतों के अलावा समाज और परिवार की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि अपने घर से लेकर बाहर तक अपराधियों पर नज़र रखें। आम आदमी को चाहिए कि अगर कोई अपराधी कहीं नज़र आता है, तो उसकी सूचना तुरंत पुलिस को दे। इसके लिए हर राज्य में अपराध निरोधक शाखाएँ खुली हुई हैं और पुलिस तैनात है। समाज की अच्छी सोच अपराधियों को डरा सकती है। बाक़ी काम क़ानून को करना चाहिए। लेकिन ऐसा करने से पहले सभी पार्टियों को अपराधी नेताओं को सज़ा दिलाने के लिए क़दम उठाने होंगे, जिसकी शुरुआत हर पार्टी को अपनी ही पार्टी के आरोपी नेताओं से करनी होगी और उन्हें जेल पहुँचाना होगा। वर्ना महिला सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा?