‘हम मुकदमा जीत गए तो भी मस्जिद निर्माण तब तक नहीं करेंगे, जब तक हिंदू बहुसंख्यक हमारे साथ नहीं आते’

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अयोध्या में हाशिम अंसारी को ढूंढना सबसे आसान काम है. किसी भी चौराहे पर खड़े होकर अगर आप उनके घर का पता पूछेंगे तो लोग आपको उनके घर पहुंचा देंगे. कोई उन्हें जिद्दी कहता है तो कोई कहता है बहुत बूढ़े हो गए हैं आराम से बतियाना, लेकिन सारे लोग इस बात से सहमत नजर आते हैं कि वे दिल के बहुत नेक इंसान हैं. ज्यादातर लोग बड़ी इज्जत से उनका नाम लेते हैं और घर का पता बताते हुए कहते हैं कि जैसे ही गली के अंदर जाएंगे उनका मैकेनिक बेटा इकबाल गाड़ी ठीक करते हुए मिल जाएगा और वह हाशिम से आपकी बात करा देगा. गौरतलब है कि अयोध्या के मूल निवासी मोहम्मद हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद विवाद के मुकदमे के सबसे पुराने पक्षकार हैं. वे दिसंबर, 1949 से इस मामले से जुड़े हैं जब तत्कालीन बाबरी मस्जिद के अंदर राम जन्मस्थल बताकर भगवान राम की मूर्तियां रख दी गई थीं.

हाशिम को वर्ष 1954 में प्रतिबंध के बावजूद बाबरी मस्जिद में अजान देने के आरोप में फैजाबाद की अदालत ने दो साल की सजा सुनाई थी. वर्ष 1961 में हाशिम और छह अन्य लोगों ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से फैजाबाद दीवानी अदालत में दायर मुकदमे में बाबरी मस्जिद पर मुसलमानों का दावा किया था. अब हाशिम उनमें से एकमात्र जीवित पक्षकार हैं. 1975 में लगे आपातकाल के समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और आठ महीने तक बरेली सेंट्रल जेल में रखा गया.

हाशिम का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में रह रहा है. वे 1921 में पैदा हुए, जब वे 11 साल थे तब सन 1932 में पिता का देहांत हो गया. उन्होंने दर्जा दो तक पढ़ाई की. फिर सिलाई यानी दर्जी का काम करने लगे. यहीं पड़ोस में (फैजाबाद) उनकी शादी हुई. एक बेटा और एक बेटी है. छह दिसंबर, 1992 में बाहर से आए दंगाइयों ने उनका घर जला दिया तब अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को बचाया. इस दौरान मिले मुआवजे से उन्होंने अपने छोटे-से घर को दोबारा बनवाया. उनका परिवार आज भी इस घर में बेहद सादगी से रहता है. उन्हें इस बात का गर्व है कि अयोध्या में कोई भी यह नहीं कहता है कि उन्होंने इस मामले से कोई भी आर्थिक या राजनीतिक फायदा उठाया है.

हाशिम कहते हैं, ‘मैंने इतने दिनों तक इस मामले की पैरवी की लेकिन चंदे के पैसे से घर में एक वक्त का खाना भी नहीं बना है. जब भी मामले की सुनवाई पर जाता था तो अपने पैसे की चाय पीता था. पूरे अयोध्या में आप पूछ लीजिए, अगर कोई यह कह दे कि हमने इस मसले पर किसी का एक रुपया भी लिया हो. मुझे पता है इस मसले से बहुत सारे लोगों को फायदा हुआ है. चंदे के पैसे से लोगों ने बड़ी-बड़ी कोठियां बना लीं. देश में सरकार भी इस मसले पर बनती-बिगड़ती रही है लेकिन मेरी इच्छा इस चंदे के पैसे की नहीं रही. मुझे बस इज्जत कमानी थी. आज अयोध्या का हर शख्स चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान मेरी इज्जत करता है. यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई रही है.’

अब्बा द्वारा ढेरों पैसे न बनाने का मलाल बेटे इकबाल को भी नहीं है. वे कहते हैं, ‘हमारे परिवार को चंदे का पैसा रास नहीं आता है. हम मेहनतकश लोग हैं. जब कमाकर परिवार का पेट भर सकते हैं तो चंदे का पैसा क्यों खाएं. मेरे पिता ने अपनी वसीयत बनाकर सारे मामले मुझे सौंप दिए हैं अब मैं इस बात का ख्याल रखूंगा जैसे उन्होंने कभी इस मामले को लेकर किसी भी तरह का राजनीतिक और आर्थिक फायदा नहीं उठाया उसी तरह से मैं भी किसी भी तरह का फायदा न उठाऊं. अयोध्या में रहते हुए हमारे लिए हमारी इज्जत ही सब कुछ है. हमारे लिए सबसे बड़ी बात यही है. मुझे यह पता है कि इस मामले को लेकर बहुत सारे मुसलमान भाइयों ने बड़ी-बड़ी कोठियां बना ली हैं लेकिन यह कमाई उन्हीं को मुबारक हो. हमें यह कभी रास नहीं आएगी.’

मैंने इतने दिनों तक इस मामले की पैरवी की लेकिन चंदे के पैसे से घर में एक वक्त का खाना भी नहीं बना है. जब भी मामले की सुनवाई पर जाता था तो अपने पैसे की चाय पीता था. पूरे अयोध्या में आप पूछ लीजिए, अगर कोई यह कह दे कि हमने इस मसले पर किसी का एक रुपया भी लिया हो. मुझे पता है इस मसले से बहुत सारे लोगों को फायदा हुआ है. चंदे के पैसे से लोगों ने बड़ी-बड़ी कोठियां बना लीं. देश में सरकार भी इस मसले पर बनती-बिगड़ती रही है लेकिन मेरी इच्छा इस चंदे के पैसे की नहीं रही. मुझे बस इज्जत कमानी थी. आज अयोध्या का हर शख्स चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान मेरी इज्जत करता है. यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई रही है

Photo : Tehelka Archives
Photo : Tehelka Archives

हाशिम अंसारी के घर के बाहर एक तंबू में दो पुलिसवाले बैठे रहते हैं. घर दो-तीन कमरों वाला है. किसी भी मिलने आने वाले के लिए अलग से कोई कमरा नहीं है. अक्सर बीमार रहने वाले हाशिम एक छोटे-से कमरे में तख्त पर कथरी बिछाकर लेटे रहते हैं. उसके बगल में एक प्लास्टिक की कुर्सी रखी रहती है जिस पर उनसे मिलने वाला बैठकर बातें करता है क्योंकि उन्हें सुनने में थोड़ी तकलीफ होती है. गर्म होते जा रहे मौसम में भी वे सिर्फ एक पंखे के सहारे रहते हैं क्योंकि कूलर या एसी में उनकी तबीयत खराब हो जाती है. जब हम उनसे मिलने पहुंचे तो वे बनियान और जांघिया पहने लेटे हुए थे और उसी तरह बातचीत करने के लिए राजी हो गए. बातचीत शुरू होने के साथ ही वे कहते हैं, ‘देखो, मंदिर-मस्जिद की बात मत करना. इस मामले पर बातचीत करनी हो तो जाकर बड़े लोगों से करो जो इस मसले का समाधान नहीं चाहते हैं. हम बहुत छोटे लोग हैं. हम अयोध्या में रहने वाले लोग इस मसले से ऊब चुके हैं और इसका समाधान चाहते हैं लेकिन कुछ लोगों का इसमें स्वार्थ है जो नहीं चाहते हैं कि मामला हल हो. अगर आपको ऐसी कोई बातचीत करनी हो तो आप उन्हीं से करें.’ इतना कहकर वे चुप हो जाते हैं.

उनके बेटे इकबाल कहते हैं, ‘अब्बा इस मामले का हल न निकल पाने के चलते बहुत नाउम्मीद हो गए हैं. इस मामले के दूसरे पक्षकारों निर्मोही अखाड़ा के राम केवल दास, दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस और भगवान सिंह विशारद जैसे लोगों के गुजरने के बाद से वे ज्यादा ही परेशान रहने लगे हैं. वे अक्सर कहते हैं कि बड़े लोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए इसका हल नहीं निकलने दे रहे हैं. वे अदालत के फैसले को भी नहीं मान रहे हैं. हमने तो अदालत के उस फैसले को भी मान लिया था जिसमें जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया गया था लेकिन वे लोग इसे बड़ी अदालत में लेकर गए. अब देखना यही है कि यह अदालती लड़ाई कब तक चलती है.’

सद्भाव : फैजाबाद में हिंदू धर्मगुरुओं के साथ हाशिम अंसारी  (फाइल फोटो)
सद्भाव : फैजाबाद में हिंदू धर्मगुरुओं के साथ हाशिम अंसारी (फाइल फोटो)

20वीं सदी के अंतिम दशक के शुरुआती बरस ऐसी घटनाओं के साक्षी रहें जिन्होंने देश को दोराहे पर खड़ा कर दिया. एक तरफ जहां उदारीकरण को अपनाकर देश को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक शक्ति बनाने की तरफ कदम बढ़ाया गया वहीं अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना ने हमारी सबसे बड़ी पहचान धर्मनिरपेक्षता पर सवाल भी खड़े कर दिए. जरूरी बात यह है कि इन घटनाओं के करीब-करीब 25 बरस बाद भी हमारा देश उसी दोराहे पर खड़ा है जहां विकास और धर्मनिरपेक्ष छवि के बीच सामंजस्य बनाना है या यूं कहें कि आज हालत और बदतर हुए हैं.

सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी धर्मनिरपेक्ष पहचान पर जिस अयोध्या ने सबसे बड़ा घाव दिया है वही देश की गंगा-जमुनी तहजीब का सबसे बड़ा केंद्र भी है. हाशिम कहते हैं, ‘पिछले कई दशकों से मैं इस मामले की पैरवी कर रहा हूं, लेकिन आज तक अयोध्या में किसी हिंदू ने मुझे और मेरे परिवार के लोगों को एक भी गलत शब्द नहीं कहा है. हमारा उनसे भाईचारा है. आप मेरे पड़ोस को देख लीजिए. अगल-बगल सारे घर हिंदुओं के हैं. वे अपने त्योहारों और शादी-ब्याह के मौके पर हमें दावत देते हैं. मैं उनके यहां सपरिवार दावत खाने जाता हूं. वे लोग हमारी दावतों में शामिल होते हैं, किसी को कोई परेशानी नहीं है लेकिन अगर यह बात सबके सामने आ जाएगी तो राजनीतिक दलों को फायदा मिलना बंद हो जाएगा. वे लोग जानबूझकर ऐसा माहौल बनाए हुए हैं जिससे लगे कि अयोध्या में माहौल ठीक नहीं है.’

हाशिम की इस बात की पुष्टि बाहर तंबू में बैठे ज्यादातर लोगों का धर्म जानने से हो भी जाती है. जब मैं उनके घर मिलने पहुंचा था तो दो पुलिसवालों समेत तकरीबन 15 लोग बैठे हुए थे. इनमें से 12 लोग हिंदू थे. इस दौरान ज्यादातर हिंदू युवक बातचीत में उन्हें चचा-चचा कहते हुए नजर आए. इतना ही नहीं, जब मैंने यह पूछा कि अयोध्या में सांप्रदायिक सौहार्द कैसा है तो हाशिम की सुरक्षा में तैनात एक पुलिसवाले ने कहा, ‘जाकर अयोध्या और रामजन्मभूमि थानों का रिकॉर्ड चेक कर लीजिए. यहां का सांप्रदायिक माहौल हमेशा ही बेहतर रहा है. आपको हिंदू-मुसलमान के बीच ऐसी किसी भी घटना की शिकायत दर्ज नहीं मिलेगी. बाहर बैठे लोगों को लगता है कि अयोध्या का माहौल खराब है. मैं यहां पिछले तीन सालों से तैनात हूं. मुझे ऐसी कोई भी घटना नजर नहीं आई. अभी तीन दिन पहले ही सामने खाली पड़े मैदान में किसी हिंदू का कार्यक्रम था. दोपहर में धूप होने के चलते सब इसी तंबू में आकर सब्जियां काट रहे थे और पानी भी चचा के घर से मंगाकर पी रहे थे. होली के दिन किसी हिंदू के घर जितने लोग मिलने नहीं आते हैं उससे ज्यादा तो यहां हाशिम अंसारी से मिलने लोग आए थे.’

इस बात से इकबाल भी सहमत नजर आते हैं. वे कहते हैं, ‘बाहर के लोगों ने आकर अयोध्या की छवि को खराब कर रखा है. 1992 में भी जितने कारसेवक आए थे वे बाहरी थे. इसमें शामिल स्थानीय लोगों की संख्या नगण्य थी. ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिर्फ मुसलमानों को नुकसान पहुंचाया था बल्कि उस दौरान हिंदू परिवार भी परेशान हुए थे. अयोध्या में कोई नहीं चाहता है कि मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में बाहर के लोग आएं. अयोध्या में हिंदू-मुसलमान ईद और नवरात्र साथ में मनाते रहे हैं. अब्बा जब तक चलने लायक थे तो अक्सर शाम को घूमते हुए मंदिरों में साधु-संतों से मुलाकात करने चले जाते थे. वहां उन्हें बड़ी इज्जत के साथ बैठाया जाता था. वहां वे बड़ी देर तक बतियाते रहते थे. आप हमारे घर मिलने आने वाले लोगों से इसका अनुमान लगा सकते हैं. अब्बा से मिलने जितने मुसलमान आते हैं उससे कहीं ज्यादा हिंदू आते हैं. वे अक्सर कहा करते हैं कि अगर हम मुकदमा जीत गए तो भी मस्जिद निर्माण तब तक नहीं शुरू करेंगे, जब तक हिंदू बहुसंख्यक हमारे साथ नहीं आ जाते. मंदिर-मस्जिद से बड़ी बात आपस में अमन-चैन है.’

पिछले कई दशकों से मैं इस मामले की पैरवी कर रहा हूं, लेकिन आज तक अयोध्या में किसी हिंदू ने मुझे और मेरे परिवार के लोगों को एक भी गलत शब्द नहीं कहा है. हमारा उनसे भाईचारा है. आप मेरे पड़ोस को देख लीजिए. अगल-बगल सारे घर हिंदुओं के हैं. वे अपने त्योहारों और शादी-ब्याह के मौके पर हमें दावत देते हैं. मैं उनके यहां सपरिवार दावत खाने जाता हूं. वे लोग हमारी दावतों में शामिल होते हैं, किसी को कोई परेशानी नहीं है लेकिन अगर यह बात सबके सामने आ जाएगी तो राजनीतिक दलों को फायदा मिलना बंद हो जाएगा. वे लोग जानबूझकर ऐसा माहौल बनाए हुए हैं जिससे लगे कि अयोध्या में माहौल ठीक नहीं है

95 साल से ज्यादा की उम्र होने के बावजूद हाशिम अंसारी की याददाश्त दुरुस्त है और वे खबरों के जरिए खुद को बहुत अपडेट भी रखते हैं. जब उनसे यह पूछा गया कि मंदिर-मस्जिद की लड़ाई से अयोध्या को क्या मिला, तो वे हंसते हुए कहते हैं, ‘कुछ भी नहीं मिला. यहां तो ढंग से विकास भी नहीं हो पाया. मस्जिद-मंदिर की लड़ाई का कुछ फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. लेकिन ऐसा नहीं है कि फायदा सिर्फ उन्होंने उठाया. बाकी राजनीतिक दल भी इसमें पीछे नहीं रहे. विवादित ढांचा गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे, उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस थी क्योंकि उस वक्त केंद्र की सत्ता में कांग्रेस की सरकार थी और उसने भी इसे बचाने की कोशिश नहीं की.’

इस सवाल पर उनके बेटे इकबाल कहते हैं, ‘अयोध्या में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है. अभी देख लीजिए रामनवमी आने वाली है तो सफाई व्यवस्था जोरों पर है, जैसे ही वह बीत जाएगी फिर किसी को अयोध्या की परवाह नहीं रहेगी. फिर चाहे चारों तरफ गंदगी ही क्यों न फैली रहे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है. आपको ऐसे वक्त में आकर अयोध्या घूमना चाहिए. आपको समझ में आ जाएगा कि हमें क्या मिला. वैसे थोड़े तल्ख शब्दों में कहें तो इस विवाद से अयोध्या के लोगों को सिर्फ परेशानी मिली है.’

हाशिम अंसारी की उम्र 95 साल से ज्यादा है. उनकी देखरेख उनके बेटे इकबाल अंसारी (नीले स्वेटर में) करते हैं. (फाइल फोटो)
हाशिम अंसारी की उम्र 95 साल से ज्यादा है. उनकी देखरेख उनके बेटे इकबाल अंसारी (नीले स्वेटर में) करते हैं.
(फाइल फोटो)

 

उत्तर प्रदेश में अगले साल 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस दौरान फिर से अयोध्या मसले को गरमाए जाने की आशंका है. विधानसभा चुनावों के दरमियान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके अपने वोट बैंक को बढ़ाने का प्रयास भी राजनीतिक दलों द्वारा किया जाएगा, लेकिन अगर बात मुस्लिमों के विकास की हो तो सभी दल इस पर बात करने से कतराते हैं. हाशिम कहते हैं, ‘मुस्लिमों के विकास की बात कोई भी दल नहीं करता है. मुस्लिमों को तो सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस ने पहुंचाया है. उनका कोई विकास नहीं करता है. सब चाहते हैं कि वे ऐसे ही मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में उलझे रहें.’

हाल में बढ़ी असहिष्णुता की घटनाओं और भारत माता की जय के नारे बोले जाने पर इकबाल कहते हैं, ‘अब ओवैसी भारत माता की जय का नारा नहीं लगाते हैं तो न लगाएं उससे क्या फर्क पड़ता है. वे पूरे देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व तो नहीं करते हैं. मीडिया वाले भी बेकार में उनके बयान को दिखाते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि आप भारत माता की जय का नारा नहीं लगाएंगे तो आप अपने देश को प्यार नहीं करते हैं. हम पैदा इसी अयोध्या में हुए हैं और मरेंगे भी इसी अयोध्या में. हमें अपने देश से बहुत प्यार है. वैसे भी असहिष्णुता की घटनाएं जहां हुई होंगी वहां का तो मुझे नहीं पता पर मुझे अयोध्या में ऐसा कुछ भी नहीं लगता है. हम पहले भी बहुत प्रेम से रह रहे थे और आज भी वह प्रेम हमें यहां के लोगों से मिलता रहता है.’

वैसे हाशिम अंसारी के पास कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन बढ़ती उम्र इसके आड़े आ जाती है. हमारे पास उनसे बतियाने के लिए बहुत कुछ होता है लेकिन इतना बोलने में ही वे बहुत थक जाते हैं. उनसे मिलने आए स्थानीय निवासी वंशगोपाल तिवारी कहते हैं, ‘हाशिम चचा पिछले छह-सात दशकों से अपने धर्म व बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और कानून के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं. जहां समाज का उच्च वर्ग अपने ड्रॉइंगरूम में बैठकर सिस्टम का रोना रोता है वहीं हाशिम ने हर स्तर पर सरकारी और न्यायिक व्यवस्था को झेलकर अपनी बात कहना सीखा है. अपनी बेबाक बातचीत के चलते कई बार उन्हें अपने समुदाय समेत दूसरे लोगों से परेशानी का सामना करना पड़ा है, लेकिन इससे वे परेशान नजर नहीं आते हैं.’