दिल्ली देश की राजधानी है, जहाँ प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री, जज, अधिकारी, अमीर और बड़ी संख्या में ग़रीब भी रहते हैं। इसके बावजूद अब दिल्ली में पानी का गंभीर संकट हो गया है। पानी सर्वोच्च मानवीय ज़रूरत है। संविधान में भारत को वेलफेयर स्टेट कहा गया है। मतलब सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को सड़क, बिजली, पानी मुहैया करवाए। लेकिन संविधान क्योंकि आजकल राजनीतिक अखाड़े में उलझा दिया गया है, पानी की किसी को फ़िक्र नहीं। जनता को पानी मिले, इससे ज़्यादा मेहनत इस बात पर की जा रही है कि पानी की क़िल्लत का राजनीतिक लाभ कैसे उठाया जाए? विरोधी दल को घेरने के लिए धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं; लेकिन जनता बिना पानी के बेचारगी में खड़ी यह तमाशा देखने को मजबूर है। संविधान की बड़ी-बड़ी क़समें खाने वाले हुक्मरान जनता को पानी नहीं दे पा रहे। टैंकर माफ़िया सिस्टम की इस नाकामी का पूरा फ़ायदा उठा रहा है। क्योंकि माफ़िया की पीठ पर धन्नासेठों का ही नहीं, राजनीति के मज़बूत खिलाड़ियों का भी हाथ है।
क़ुदरत ने भी इस बार गर्मी की कड़ी फटकार मारी। दिल्ली कहने को देश की राजधानी है। जन सुविधाओं का यहाँ जो हाल है, वह किसी भी सूरत में देश के पाँच ट्रिलियन इकोनॉमी की देहरी पर खड़े होने की झलक नहीं देता। आप यदि देश की राजधानी में आधी आबादी को पानी ही नहीं दे पा रहे, तो पाँच ट्रिलियन की इकोनॉमी भला किस काम की? आज़ादी के 77 वर्षों में आप देश की राजनधानी तक में जनता को पानी उपलब्ध करवाने का पक्का इंतज़ाम नहीं करवा पाये और कहते हैं कि यह आज़ादी का अमृत-काल चल रहा है। जी नहीं; न तो यह अमृत-काल है और न ही राम-राज्य। क्योंकि आप जनसेवा की सौगंध खाकर भी जनसेवा नहीं कर रहे, सिर्फ़ ग़रीब जनता के टैक्स से उपलब्ध सरकारी सुविधाओं में अपनी सत्ता का सुख भोग रहे हैं।
कोई तीन करोड़ आबादी है देश की राजधानी दिल्ली की। इस आबादी को हर रोज़ क़रीब 130 करोड़ गैलन पानी की ज़रूरत होती है। और यह दिल्ली में पानी उपलब्ध करवाने के लिए ज़िम्मेदार दिल्ली जल बोर्ड के आँकड़े हैं। हो सकता है हक़ीक़त में इससे कहीं ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती हो; क्योंकि कई बस्तियाँ सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हैं। फिर रोज़ देश भर से यहाँ आने वाले हज़ारों लोग भी हैं, जो यहाँ होटलों आदि में ठहरते हैं। वहाँ भी पानी की खपत होती है। यह कोई पहली बार नहीं है, जब राजधानी में पानी का संकट खड़ा हुआ है। पहले भी ऐसा होता रहा है। लेकिन सत्ताधीश इसका कोई ठोस हल नहीं निकाल पाये हैं।
राजधानी में पानी के इस संकट के पीछे कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा है ज़मीनी पानी का अंधाधुंध निकास। यह इसलिए है; क्योंकि माँग और आपूर्ति का अंतर बहुत ज़्यादा है और इसे पाटने के लिए दिल्ली जल बोर्ड के पास एक ही हथियार है- ज़मीनी जल का जमकर दोहन। आज की तारीख़ में यह 135 मिलियन गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) पहुँच चुका है, जबकि चार साल पहले क़रीब 86 एमजीडी ही था। ऊपर से पानी प्रबंधन बेहद लचर है। जलस्रोतों में प्रदूषण और पानी के अंतरराज्यीय विवाद दिल्ली में संकट को और बढ़ाते हैं। अमूमन दिल्ली को क़रीब पाँच अरब लीटर पानी की हर रोज़ ज़रूरत होती है; लेकिन उपलब्धता (सप्लाई) औसतन महज़ 3.7 अरब लीटर प्रतिदिन है। लेकिन यह आँकड़ा स्थिर नहीं। ऊपर-नीचे होता रहता है; क्योंकि उपचार संयत्र (डब्ल्यूटीपी) भी कई बार जवाब दे देते हैं। ज़ाहिर है दिल्ली की बड़ी आबादी प्यासी रहने को मजबूर है।
देखें तो दिल्ली हरियाणा में यमुना नदी, उत्तर प्रदेश में गंगा नदी और पंजाब में भाखड़ा नांगल और हिमाचल में रवि-व्यास से मिलने पानी पर निर्भर रहा है। पिछले साल के आँकड़े देखें तो दिल्ली को हरियाणा (यमुना) से औसतन 38.8 करोड़ गैलन, उत्तर प्रदेश (गंगा) से क़रीब 25.3 करोड़ गैलन और पंजाब (भाखड़ा नांगल) से क़रीब 22 करोड़ गैलन पानी, जबकि बाक़ी का हिमाचल से मिलता है, जो कुल मिलाकर क़रीब 95.2 करोड़ गैलन हो जाता है। इस साल की बात करें, तो यह आँकड़ा क़रीब 97 करोड़ गैलन पहुँच गया। हिमाचल से आने वाले पानी में एक पेंच यह है कि यह दिल्ली को सीधे नहीं मिलता।
हिमाचल हरियाणा को अतिरिक्त पानी देता है। इस बार दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायी है कि यह पूरा अतिरिक्त पानी दिल्ली को मिलना चाहिए। इस पर सर्वोच्च अदालत ने हिमाचल सरकार को आदेश दिया कि बिना देरी के यह अतिरिक्त पानी दिल्ली के लिए छोड़े। साथ ही हरियाणा सरकार को भी आदेश दिया गया कि हिमाचल के इस पानी को दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था करे।
हिमाचल सरकार ने पहले तो कहा कि पानी छोड़ दिया है; लेकिन इसके बाद अदालत में उसने कहा कि उसके पास अतिरिक्त पानी ही नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने हिमाचल को 137 क्यूसेक अतिरिक्त पानी दिल्ली के लिए छोड़ने का आदेश दिया था। जब पानी के विवाद को लेकर सर्वोच्च अदालत में सुनवाई हुई, तो अदालत ने दिल्ली सरकार को कहा कि जल आपूर्ति के लिए वह अपर यमुना रिवर बोर्ड (यूवाईआरबी) जाए। सर्वोच्च अदालत भी मानती है कि राज्यों के बीच यमुना जल बँटवारा जटिल विषय है और तमाम पक्षों के साथ बातचीत से ही कोई सर्वसम्मत नतीजा निकल सकता है। अदालत का मानना है कि पानी के बँटवारा का विवाद अपर यमुना रिवर फ्रंट पर छोड़ देना चाहिए, जो पहले ही दिल्ली सरकार से मानवीय आधार पर 152 क्यूसेक पानी देने की गुहार लगा चुका है।
जल संकट में एक बड़ा कारक टैंकर माफ़िया भी हैं। ऐसी दज़र्नों रिपोर्ट्स हैं, जिनमें बताया गया है कि यह माफ़िया अवैध रूप से दिल्ली को जल सप्लाई के इकलौते स्रोत मुनक नहर से पम्पों के ज़रिये पानी टैंकरों में भरकर उन्हें ज़्यादा पैसे में दिल्ली में बेचता है। यह टैंकर हज़ारों की संख्या में हैं और इनके मालिक धन्नासेठों से लेकर राजनीति के ताक़तवर लोग तक हैं। दिल्ली के एलजी वी.के. सक्सेना दिल्ली पुलिस आयुक्त से पानी की इस चोरी को रोकने के लिए कड़ी निगरानी रखने को कह चुके हैं। दिल्ली सरकार पहले ही अपने हलफ़नामे में इस माफ़िया की ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के मामले में अपने हाथ खड़े कर चुकी है। उसका कहना है कि टैंकर माफ़िया के ख़िलाफ़ कार्रवाई करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। होता, तो वह ज़रूर कार्रवाई करती।
दिल्ली जल बोर्ड ने राजधानी में पानी की आपूर्ति के लिए एक योजना तैयार की है, जिसके ज़मीन पर उतरने का इंतज़ार है। दावा है कि यह ब्लूप्रिंट हक़ीक़त में आने के बाद दिल्ली में पानी संकट को लगभग ख़त्म कर देगा। पानी के रिसाव की समस्या का हल होना बहुत ज़रूरी है। राजधानी के वीआईपी इलाक़ों में तो पानी सप्लाई की पाइपें चकाचक हैं। लेकिन अन्य कई इलाक़ों में वर्षों पुरानी पाइपों से काम चलाया जा रहा है, जो जगह-जगह फटी पड़ी हैं। उनसे न सिर्फ़ पानी की बर्बादी होती है, बल्कि बैक साइफनिंग के कारण गन्दा पानी इन पाइपों से लोगों के घर पहुँच जाता है। दिल्ली जल बोर्ड ने पानी की माँग और सप्लाई में कमी की देखते हुए 587 ट्यूबवेल लगाने की एक योजना भी तैयार की थी। योजना के पहले चरण में कुछ इलाक़ों में ट्यूबवेल लगे भी, जिनसे 19 एमजीडी पानी उपलब्ध हुआ। लेकिन दूसरे चरण में 259 ट्यूबवेल लगाने के लिए जल बोर्ड ने सरकार से 1,800 करोड़ रुपये की माँग की। दिल्ली सरकार का वित्त विभाग यह पैसे नहीं दे पाया, जिससे योजना अटक गयी।
दिल्ली में पानी के संकट पर राजनीति भी ख़ूब हुई है। हरियाणा में भाजपा की सरकार है और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की। ज़ाहिर है आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी है। धरने हो रहे हैं। प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन मिल-बैठकर समस्या का स्थायी हल निकालने की कोई कोशिश नहीं हो रही। राजधानी को कच्ची जल आपूर्ति जिन चार स्रोतों से होती है, उनमें से 40 फ़ीसदी हरियाणा के ज़रिये यमुना से होती है। हाल के ह$फ्तों में दिल्ली सरकार की जल मंत्री आतिशी आरोप लगा चुकी हैं कि भाजपा की हरियाणा सरकार मुनक नहर से दिल्ली के हिस्से का पानी रोक रही है।
भाजपा इससे इनकार कर चुकी है। उसका आरोप है कि केजरीवाल सरकार अपनी नाकामी का ठीकरा हरियाणा सरकार पर फोड़ रही है। आतिशी आप कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर भी बैठीं और सेहत बिगड़ने के कारण उन्हें अनशन ख़त्म करना पड़ा। दिल्ली सरकार 31 मई को राजधानी को ज़्यादा पानी आपूर्ति के हरियाणा को निर्देश देने की माँग के लिए ही सर्वोच्च अदालत का रुख़ किया था।
जल सबसे बड़ी मानवीय ज़रूरत है। लेकिन यही उपलब्ध नहीं हैं, तो सरकारों का होना, न होना कोई मायने नहीं रखता। सरकारों को जनता चुनती है। लिहाज़ा कोई दल या उसकी सरकार राजनीतिक विरोध की भावना से यदि पानी देने जैसे काम में अड़चन पैदा करती है, तो वह मानव के प्रति ही अपराध नहीं करती, बल्कि संविधान की मूल भावना का भी अनादर करती है। समय आ गया है कि पानी जैसे मुद्दों पर मिल-बैठकर रास्ता निकाला जाए। पानी प्रकृति की देन है, यह किसी राजनीतिक दल विशेष की जागीर नहीं है। जनता का उस पर बराबर का हक़ है।