किसानों की ज़मीनों पर वक़्फ़ बोर्ड की दावेदारी नाजायज़

लातूर के 103 किसानों को उनकी खेती की ज़मीन ख़ाली करने के महाराष्ट्र वक़्फ़ बोर्ड के नोटिस से मचा हड़कंप

के. रवि (दावा)

मस्जिदों के नीचे मंदिरों का चलन भाजपा ने क्या चलाया देश भर में वक़्फ़ बोर्ड ने उन ज़मीनों पर अपनी दावेदारी ठोंक दी है, जो उसने अपनी बतायी हैं। महाराष्ट्र में भी वक़्फ़ बोर्ड ने कई जगह काफ़ी बड़ी-बड़ी ज़मीनों पर अपना अधिकार बताया है। मुंबई से लेकर महाराष्ट्र के गाँवों तक में उसने काफ़ी बड़ी-बड़ी ज़मीनें अपनी बतायी हैं। लेकिन जब वक़्फ़ बोर्ड ने किसानों की ज़मीनों को भी अपना बताया, तो किसानों और तहसील महकमे में अफ़रा-तफ़री मच गयी।

ऐसे ही अधिकार की दावेदारी महाराष्ट्र के लातूर के 103 किसानों की ज़मीन पर वक़्फ़ बोर्ड की सामने आयी। इस दावेदारी ने पूरे लातूर में कोहराम मचा दिया और किसान परिवार अपनी-अपनी ज़मीनों को अपनी दादा-परदादाओं की विरासत बताने के लिए काग़ज़ात दिखाने लगे। वक़्फ़ बोर्ड की दावेदारी वाली किसानों की खेती की यह ज़मीन 300 एकड़ है। किसानों का कहना है कि इस ज़मीन पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके बाप-दादाओं ने खेती की है और उन्हें यह ज़मीन विरासत में मिली हुई है, फिर इस पर किसी का हक़ कैसे हो गया? किसानों ने अपनी ज़मीनों के मालिकाना हक़ के काग़ज़ात और वो नोटिस भी दिखाये हैं, जो वक़्फ़ बोर्ड ने उन्हें भेजे हैं। किसान कहते हैं कि उनके दादाओं-परदादाओं ने 1954, 1955 और 1956 में ये ज़मीनें ख़रीदी थीं, जिसकी रजिस्ट्री और दाख़िल ख़ारिज आदि उनके पास हैं। वे पिछली तीन पीढ़ियों से इस ज़मीन पर खेती कर रहे हैं। फिर भी वक़्फ़ बोर्ड ज़मीन ख़ाली करने के लिए धमका रहा है, जिसके पीछे राजनीतिक ताक़त काम कर रही है।

पहले ऐसी जानकारी सामने आई कि वक़्फ़ बोर्ड ने किसानों को ज़मीन ख़ाली करने का नोटिस भेज दिया। पर बाद में जब महाराष्ट्र वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष समीर क़ाज़ी ने मीडिया को बताया कि वक़्फ़ बोर्ड ने लातूर के किसानों को न कोई नोटिस जारी किया है और न उनकी ज़मीन पर अभी तक कोई दावा किया है। क़ाज़ी ने बताया कि औरंगाबाद के वक़्फ़ ट्रिब्यूनल कोर्ट में किसी व्यक्ति ने दावा किया था, जिस पर मेरे हिसाब से कोर्ट ने किसानों को नोटिस दिया है। हमें इस बारे में मीडिया में आयी ख़बरों से ही पता चला। उन्होंने कहा कि हमने लातूर ज़िले के वक़्फ़ अधिकारी और हमारे मुख्यालय के सुपरिटेंडेंट को शामिल करते हुए एक जाँच टीम गठित की है, जो लातूर जाकर जल्द ही पता करेगी कि असलियत क्या है। टीम की जाँच के बाद ही इस बारे में कुछ कहना उचित होगा। पर एआईएमआईएम के नेता मोहम्मद इस्माइल कह रहे हैं कि किसान वक़्फ़ बोर्ड की जिस ज़मीन पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं, वे उसके काग़ज़ दिखाएँ। अगर यह ज़मीन वक़्फ़ की है, तो उसे यह अधिकार है कि वह अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए किसानों को नोटिस दे। इसमें कोई बुरी बात नहीं है। कोर्ट देखे कि किसके पास ज़मीनों का मालिकाना हक़ है। अगर वक़्फ़ के रजिस्टर में वह ज़मीन है, तो किसानों को आज नहीं तो कल ज़मीन वापस देनी ही होगी।

महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष प्यारे ज़िया ख़ान ने मीडिया के सामने किसानों की पैरवी करते हुए वक़्फ़ बोर्ड की फटकार लगायी है। उन्होंने पूछा है कि वक़्फ़ बोर्ड के पदाधिकारियों ने अगर किसानों को नोटिस भेजा है, तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। अगर किसानों की ज़मीन पुश्तैनी है तो इसमें वक़्फ़ बोर्ड को दख़ल नहीं देनी चाहिए। इसकी जाँच होगी कि वक़्फ़ बोर्ड ने उनको नोटिस कैसे भेज दिये। महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष प्यारे ज़िया ख़ान ने वक़्फ़ बोर्ड के सीईओ को जल्द ही विस्तृत रिपोर्ट के साथ पूछताछ अपने पास आने का हुक्म दिया है। प्यारे ज़िया ख़ान ने कहा है कि किसानों का पूरा सहयोग किया जाएगा। उनके साथ कोई नाइंसाफ़ी नहीं होगी।

भाजपा का आरोप है कि किसानों की ज़मीन और मंदिरों पर वक़्फ़ बोर्ड जबरन क़ब्ज़ा कर रहा है। उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि महायुति सरकार आम जनता की सरकार है। हम किसी के ऊपर भी अन्याय नहीं होने देंगे। इस मामले में शिवसेना (यूबीटी) के विधायक सुनील प्रभु ने लातूर वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष की बात को दोहराया है कि वक़्फ़ बोर्ड ने किसानों की किसी ज़मीन पर अपने अधिकार को लेकर कोई नोटिस नहीं भेजा है। वक़्फ़ ट्रिब्यूनल कोर्ट ने औरंगाबाद के कोर्ट में 103 किसानों की ज़मीन पर दावा करते हुए याचिका दायर की है, जिसकी संख्या 17/2024 है। कोर्ट ने किसानों को नोटिस जारी किया है, जिससे गाँव के लोग परेशान हैं।

इधर, केंद्र सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड क़ानून में क़रीब 40 बदलाव करने की योजना बनायी थी। बीते मानसून सत्र में 08 अगस्त, 2024 को लोकसभा में वक़्फ़ विधेयक भी केंद्र सरकार ने पेश किया था, जिसका विरोध कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों किया और इस बिल को मुस्लिम विरोधी बताया था। इसके बाद लोकसभा में बिना किसी चर्चा के यह बिल 31 सदस्यों (21 लोकसभा सदस्यों और 10 राज्यसभा सदस्यों) वाली ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) को भेज दिया गया। जेसीपी को सभी हितधारकों से चर्चा करके इसी शीतकालीन सत्र में रिपोर्ट पेश करनी थी। जेपीसी की 28 नवंबर, 2024 तक क़रीब आठ बैठकें हो चुकी हैं, जिसके बाद उसे 2025 के बजट सत्र के अंतिम दिन तक रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। सुना तो यह है कि महाराष्ट्र वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष समीर क़ाज़ी के भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं से अच्छे सम्बन्ध हैं, जिसके सुबूत के तौर पर उनके भाजपा नेताओं के साथ गूगल जैसी साइट्स पर फोटो भी देखे जा सकते हैं।

बता दें कि सन् 1954 में तत्कालीन सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड को ज़मीन लेने, उसे बेचने का अधिकार दिया था। आज देश की सबसे बड़ी और ताक़तवर मुस्लिम संस्था वक़्फ़ बोर्ड है। अभी देश में क़रीब 32 वक़्फ़ बोर्ड हैं, जिनके पास क़रीब नौ लाख एकड़ से ज़्यादा ज़मीन है, जो देश की राजधानी दिल्ली से क़रीब 2.5 गुना से ज़्यादा है। अभी के समय में रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे ज़्यादा ज़मीन वक़्फ़ बोर्ड के पास है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपने राज्य में वक़्फ़ बोर्ड को ही भंग कर दिया है।