सतीशचंद्र सदर बाजार में जिस दुकान से व्यापार करते हैं उसकी रजिस्ट्री 1965 में उनके पिता के नाम हुई थी. उनके पिता के पांच बेटे थे. 29 साल बाद 1994 में पांचों भाइयों में संपत्ति का बंटवारा हुआ. सतीश को अपने पिता से कुछ अधिक ही लगाव था जिसके कारण उन्होंने अपने भाइयों को दुकान की कीमत चुकता कर वह खरीद ली. लेकिन अपने इस फैसले पर बीस साल बाद सतीश अब पछता रहे हैं. सीईपी ने उन्हें नोटिस दिया है कि उनकी दुकान शत्रु संपत्ति के दायरे में आती है. सतीश कहते हैं, ‘जब मैंने दुकान ली तो सोचा कि मेरे बाप की दुकान है, कैसे छोड़ दूं. बाप का नाम जुड़ा है इससे. लेकिन अब लगता है कि मैं तो सड़क पर आ जाऊंगा. ये मैंने क्या बवाल पाल लिया. अकेले बैठकर सोचूं तो लगता है मैं तो फंस गया. अब क्या करूं अपने भाइयों पर मुकदमा करूं? क्योंकि मैंने तो उनसे ही खरीदी थी. सबसे पीछे वाले को कैसे खोजूं जो कि पाकिस्तान गया! क्या भाइयों से कहूं कि आपने मेरे साथ धोखा किया?’ वे आगे बताते हैं, ‘सब भ्रष्टाचार है. जब वो यहां सर्वे करने आए थे तो मांग कर रहे थे पैसों की. कह रहे थे कि हमारा कुछ कराओ फिर देखते हैं. मैंने कहा कि हमारे मार्केट के अध्यक्ष अभी मौजूद नहीं हैं, उनसे बात करके बताऊंगा. उस समय मैंने उन्हें टाल दिया था लेकिन दस दिन बाद मेरे पास नोटिस आ गया.’
अपनी आपबीती सुनाते वक्त सतीशचंद्र के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं. नोटिस का जवाब वे अपने वकील से सीईपी को भिजवा चुके हैं लेकिन आज महीनों बाद भी सीईपी ने उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. अब सरकार शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन करना चाहती है. इसने सतीशचंद्र की चिंता में कई गुना इजाफा कर दिया है. उन्हें लगता है कि अब तो सारे अधिकार सीईपी के पास होंगे, एक बार जिस संपत्ति को उसने शत्रु घोषित कर दिया तो वह उसकी हो जाएगी. उनकी दुकान तो उनके हाथों से कभी भी जा सकती है.