नये रूप में तहलका,मगर तेवर वही

‘तहलका’ के नये लेआउट में अब ज्योतिष, पहेलियाँ, बॉलीवुड के पर्दे के पीछे की ख़बरें और आध्यात्मिक कॉलम जैसी सुविधाएँ शामिल हैं। लेकिन इसका सार निर्भीक खोजी पत्रकारिता पूरी तरह बरक़रार है। नवीनतम संस्करण में ‘तहलका’ की उन असहज सच्चाइयों को उजागर करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गयी है, जिनसे अन्य लोग कतराते हैं।

इस अंक में विभा शर्मा की आवरण कथा- ‘मतदाता पुनरीक्षण और समय के विरुद्ध दौड़’ बिहार में चुनाव आयोग के द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से जुड़े विवाद को उजागर करती है। इस प्रक्रिया को, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल पात्र मतदाता ही सूचीबद्ध हों; विपक्षी नेता जाँच के दायरे में लाना चाहते हैं। उनका तर्क है कि यदि बिहार में मतदाता सूची सुधारने की प्रक्रिया दोषपूर्ण है, तो 40 सांसद, जिन्होंने वर्तमान लोकसभा को आकार देने में मदद की है; को तत्काल अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने अपने निर्णय का बचाव करते हुए कहा है कि संशोधन का उद्देश्य सटीक और त्रुटिरहित मतदाता सूची तैयार करना है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया में पात्र मतदाताओं को शामिल करना तथा मृत्यु प्रवासन या अवैध आव्रजन के कारण अयोग्य मतदाताओं को हटाना शामिल है। 01 अगस्त से 01 सितंबर तक 64 लाख चिह्नित मतदाताओं के भाग्य की समीक्षा की जाएगी, जिसके लिए चुनाव आयोग को प्रतिदिन दो लाख से अधिक लोगों तक पहुँचने की आवश्यकता होगी। हालाँकि आलोचकों ने इस प्रक्रिया के समय और गति को लेकर चिन्ता जतायी है, जो आगामी विधानसभा चुनावों के साथ मेल खाती है। वे नागरिकता और मतदाता पात्रता के प्रमाण के रूप में चुनाव आयोग द्वारा स्वीकार किये जाने वाले दस्तावेज़ों की प्रतिबंधात्मक सूची को भी चुनौती दे रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अब तक संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है; लेकिन इसके क्रियान्वयन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवायी जारी रखी है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार में विशेष रूप से साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार नागरिकों पर आ गया है।

प्रणालीगत भ्रष्टाचार पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) ने ‘फ़र्ज़ी पते पर वाहन पंजीकरण का खेल!’ उजागर किया है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर फ़र्ज़ी वाहन पंजीकरण रैकेट का ख़ुलासा किया गया है। पुरानी कारों के डीलर और दलाल धोखाधड़ी से बने फ़र्ज़ी किरायेनामे और आधार के विवरण का उपयोग करके वाहनों को ग़लत पते पर पंजीकृत करने के लिए ख़ामियों का फ़ायदा उठाते हैं, जिससे ख़रीदारों को स्थानीय पते के प्रमाण के लिए क़ानूनी आवश्यकताओं से बचने का मौक़ा मिल जाता है। ये फ़र्ज़ी पंजीकरण महज़ काग़ज़ी घोटाला नहीं हैं, बल्कि यह प्रक्रिया दलालों और डीलरों के इस संगठित अपराध के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करती है। अपराधी ऐसे वाहनों का उपयोग तस्करी, अवैध व्यापार और क़ानून प्रवर्तन से बचने के लिए करते हैं। फ़र्ज़ी पंजीकरण में इस्तेमाल फ़र्ज़ी दस्तावेज़, नक़ली नंबर प्लेट और वाहन पहचान संख्या (वीआईएन) से ऐसे वाहनों की असली पहचान छिपाने में मदद मिलती है।

‘तहलका’ की इस पड़ताल से पता चलता है कि किस तरह डीलर ग्राहकों को आश्वस्त करते हैं कि वे उचित दस्तावेज़ों के बिना ही दिल्ली-एनसीआर के किसी भी शहर में वाहन पंजीकृत करा सकते हैं। इससे न केवल क़ानून-व्यवस्था को नुक़सान पहुँचता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ख़तरा पैदा होता है। इस बीच वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने 01 नवंबर, 2025 से दिल्ली में 10 वर्ष से अधिक पुराने डीज़ल वाहनों और 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों में ईंधन भरने पर रोक लगाने का फ़ैसला लिया है। पहले यह नियम 01 जुलाई को लागू किया गया था; लेकिन जनता के विरोध के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था। जुलाई में इस प्रतिबंध से 62 लाख से ज़्यादा वाहन प्रभावित हुए थे। वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाना महत्त्वपूर्ण है; लेकिन प्राधिकारियों को व्यापक स्तर पर फैले फ़र्ज़ी पंजीकरण के ख़तरे से भी निपटना होगा, जो कि प्रणाली में एक और अदृश्य प्रदूषक है।

‘तहलका’ की स्टोरीज कार्रवाई का आह्वान करती हैं- दोषपूर्ण शासन, अनियंत्रित अपराध और नियामक उदासीनता के ख़िलाफ़। माध्यम भले ही विकसित हो गया हो; लेकिन हमारा मिशन अपरिवर्तित है- सत्ता के सामने सच बोलना।