बिक रहा है मतदाताओं का डेटा

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*– लोगों का डेटा नहीं है सुरक्षित, चुनाव के दौरान इसमें लगती है और ज़्यादा सेंध

इंट्रो-भारतीय नागरिकों के डेटा की चोरी और असुरक्षा की ख़बरें कई बार ‘तहलका’ ने प्रमुखता से प्रकाशित की हैं। लेकिन इस पर लगाम नहीं लग सकी। चुनावों के दौरान मतदाताओं और दूसरे नागरिकों के डेटा की चोरी और ज़्यादा होती है; क्योंकि इन दिनों डेटा की गुप्त रूप से माँग बढ़ जाती है। चुनाव आयोग की निगरानी और तमाम दावों के बावजूद मतदाता डेटा ट्रेडिंग का प्रसार मतदान जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता और नागरिकों की गोपनीयता की सुरक्षा पर सवाल उठाता है। मतदाता डेटा ट्रेडिंग पर ‘तहलका’ एसआईटी ने इस बार एक बड़ा ख़ुलासा किया है, जिसमें डेटा चुराकर देने वाले साइबर अपराधी और बिचौलिये इस ग़लत काम से पैसा कमाने के लिए अपनी-अपनी दुकानें खोले बैठे हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

‘मैं आपको सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और लोअर कोर्ट के न्यायाधीशों का व्यक्तिगत डेटा प्रदान कर सकता हूँ। इसके अतिरिक्त मेरे पास 2024 के आम चुनावों के लिए वकीलों, डॉक्टर्स, शिक्षकों, इंजीनियर्स, छात्रों और कॉर्पोरेट घरानों का डेटा है। मैं पिछले 5-6 वर्षों से इस व्यवसाय में हूँ। यदि आपको अपने निर्वाचन क्षेत्र के 50,000 लोगों का डेटा चाहिए, तो लागत 90,000 रुपये होगी। लेकिन प्रतिबद्ध होने से पहले मैं आपको अपने डेटा की सटीकता को सत्यापित करने के लिए एक नमूना (सैंपल) दूँगा।’ यह बात नोएडा में कार्यालय वाली एक डिजिटल मार्केटिंग कम्पनी में काम करने वाले एक डेटा विक्रेता अनिमेष कुमार ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही।

अनिमेष उत्तर प्रदेश के आगरा से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले हमारे काल्पनिक उम्मीदवार के लिए उपलब्ध कराये जा सकने वाले मतदाता डेटा पर चर्चा करने के लिए दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आया था। आज के राजनीतिक परिदृश्य में डेटा मुख्य है; यह किसी भी भारतीय चुनाव में जीत या हार निर्धारित कर सकता है। हम सभी ने चुनावों के दौरान इच्छुक राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों को मतदाताओं का डेटा बेचे जाने की ख़बरें सुनी हैं। वर्तमान 2024 के आम चुनाव कोई अपवाद नहीं हैं। चुनावों की आधिकारिक घोषणा के बाद डेटा विक्रेता इस व्यवसाय में वापस आ गये हैं और इच्छुक पार्टियों को पैसा लेकर मतदाताओं का डेटा देने की पेशकश कर रहे हैं।

जैसे ही ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पैसे से मतदाताओं का डेटा बेचने वाले विक्रेताओं की बहुत ज़रूरी जाँच शुरू की, हमें आश्चर्यर् हुआ कि कई विक्रेता अलग-अलग पैकेजों के साथ मतदाताओं का व्यक्तिगत डेटा पेश कर रहे हैं, जिसमें मोबाइल नंबर, पता, ईमेल आईडी और नाम आदि शामिल हैं। ‘तहलका’ के रिपोर्टर ने ख़ुद को संभावित ग्राहक के रूप में पेश करते हुए आगरा सीट से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए डिजिटल कम्पनी की सेवाएँ माँगने वाले एक काल्पनिक उम्मीदवार के लिए अनिमेष कुमार (एक डेटा विक्रेता) से मुलाक़ात की। अनिमेष का परिचय ‘तहलका’ रिपोर्टर से एक अन्य डेटा विक्रेता निरंजन कश्यप ने कराया था। अनिमेष और निरंजन दोनों अलग-अलग डिजिटल मार्केटिंग कम्पनियों में काम करते हैं। लेकिन वे ‘तहलका’ रिपोर्टर से अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं में मिले थे, न कि अपनी-अपनी कम्पनियों के प्रतिनिधियों के रूप में। अनिमेष ने रिपोर्टर को ग्राहक के रूप में डील करते हुए बताया कि वह अपनी नियमित नौकरी के अलावा उन निजी ग्राहकों को भी प्रबंधित करता है, जो मतदाताओं के डेटा की तलाश करते हैं।

अनिमेष और निरंजन ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को क्या पेशकश की? इस पर ग़ौर करने से पहले आइए, इस पर क़रीब-से नज़र डालें कि भारत में डेटा-विक्रय व्यवसाय कितना महत्त्वपूर्ण हो गया है; ख़ासकर चुनावों के दौरान। सन् 2018 में भारत में एक विवाद खड़ा हो गया था, जब यूके स्थित एक विवादास्पद डेटा एनालिटिक्स फर्म कैम्ब्रिज एनालिटिका के बारे में पता चला कि उसने भारत में कांग्रेस पार्टी के लिए बड़े पैमाने पर काम किया था; कांग्रेस उसकी ग्राहक थी। व्हिसल-ब्लोअर क्रिस्टोफर वाइली ने ब्रिटेन की संसद के समक्ष गवाही देते हुए यह दावा किया था।

जैसा कि इसकी वेबसाइट पर बताया गया है कि राजनीतिक परामर्शदाता ने सन् 2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में काम किया था और इसके ग्राहकों ने भारी जीत हासिल की थी। सन् 2023 में इस काम में लिप्त हैदराबाद में 17 करोड़ भारतीयों का निजी डेटा चुराने और बेचने के आरोप में सात व्यक्तियों को गिर$फ्तार किया गया था। फिर जनवरी, 2024 में, साइबर सुरक्षा फर्म क्लाउड एसईके ने एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया कि भारत में 750 मिलियन टेलीकॉम उपयोगकर्ताओं का डेटा डार्क वेब पर बेचा जा रहा था। इस उल्लंघन में नाम, मोबाइल नंबर, पता और आधार नंबर जैसे महत्त्वपूर्ण विवरण शामिल थे। पिछले साल के कर्नाटक चुनावों के दौरान भी बेंगलूरु की एक निजी कम्पनी को लाखों मतदाताओं का डेटा मैदान में मौज़ूद उम्मीदवारों को बेचते हुए पाया गया था। भारत निर्वाचन आयोग इस मामले की सक्रियता से जाँच कर रहा है।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने इसकी और अधिक पड़ताल करने के लिए अनिमेष से इसके बारे में पूछा कि वह कितना और किस प्रकार का डेटा उपलब्ध करा सकता है? रिपोर्टर ने अनिमेष से कहा कि हमें वकीलों और सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और निचली अदालत के न्यायाधीशों के व्यक्तिगत डेटा की आवश्यकता है। इस पर अनिमेष चुनाव के लिए अपना डेटा उपलब्ध कराने पर सहमत हो गया।

रिपोर्टर : जैसे मान लीजिए, ..हमें वकीलों का डेटा चाहिए; जजेज का….?

अनिमेष : हाँ; मिल जाएगा, ..टोटल चीज़ का।

रिपोर्टर : हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजेज हैं, …लोअर कोर्ट के, …उनका मिल जाएगा?

अनिमेष : हाँ; मिल जाएगा।

रिपोर्टर : उनकी क्या-क्या जानकारी मिल जाएगी?

अनिमेष : जो चीज़ यहाँ पर है, वही मिल जाएगी।

रिपोर्टर : फोन नंबर, एड्रेस (पता)?

अनिमेष : हाँ।

रिपोर्टर : तो आप डेटा मुझे दोगे कैसे?

अनिमेष : डेटा हम एक्सेल शीट में देंगे।

इसके अलावा अनिमेष ने ख़ुलासा किया कि वह वैज्ञानिकों, उद्यमियों, छात्रों और अन्य जैसे विभिन्न पेशेवरों पर डेटा प्रदान कर सकता है। उन्होंने निर्दिष्ट किया कि वह किसी भी लेन-देन के साथ आगे बढ़ने से पहले प्रमाणित करने के लिए हमारे लिए एक नमूना डेटा-सेट प्रस्तुत करेंगे। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जिन व्यक्तियों का डेटा वह उपलब्ध कराते हैं, वे इसकी बिक्री से अनजान रहेंगे।

रिपोर्टर : तो ऐसे तो और भी डेटा निकालकर दे दोगे?

अनिमेष : हाँ।

रिपोर्टर : किस-किसका डेटा निकल सकते हो, ये बता दो?

अनिमेष : जिस-जिसका चाहिए हो, निकाल सकते हैं। …मार्केटिंग से रिलेटेड हर चीज़्ड का डेटा निकाल सकते हैं। …इंजीनियर का, डॉक्टर्स का, …टोटल।

रिपोर्टर : कितने डॉक्टर्स हैं? हमें मेल भेजना है, …डेटा में उनका क्या-क्या मिल जाएगा।

अनिमेष : वही ईमेल?

रिपोर्टर : अच्छा, नंबर वग़ौरह नहीं मिलेगा?

अनिमेष : नंबर चाहिए तो वन-वाई-वन (एक-एक करके), …फाइंड करना पड़ेगा, तब नंबर होगा, …नाम, नंबर, ईमेल आईडी, उनका एड्रेस; …सब।

रिपोर्टर : नहीं, अगर हम आपको एक कॉन्ट्रैक्ट दे दें कि हमको इतने लोगों का डेटा चाहिए और डेटा में हमें मेल आईडी चाहिए, उनका फोन नंबर,… मिल जाएगा?

अनिमेष : हाँ।

रिपोर्टर : ये आप टाइअप कर लो हमारे साथ; …अब आप बताओ किस-किस चीज़ का डेटा आप निकाल सकते हो हमारे लिए?

अनिमेष : आपको किस-किस चीज़ का डेटा चाहिए? … देखिए, कोई भी इंडस्ट्री हो, फॉर एग्जांपल (उदाहरण के लिए) डॉक्टर्स का डेटा हो गया, स्कूल का हो गया, टीचर का हो गया; …हम पहले पर्टिकुलर कुछ सैंपल्स आपको सेंड करेंगे, …आप उसको चेक कीजिए।

रिपोर्टर : हमें आप स्कूल्स का दे दीजिए। …वहाँ के प्रिंसिपल, टीचर्स, बच्चों का। …उसमें उनके घर के एड्रेस, टेलीफोन नंबर्स, उनके मेल आईडी; …तीन चीज़ें। ..अच्छा इनका आप डेटा निकालेंगे, तो उनको पता तो नहीं चलेगा?

अनिमेष : नहीं; अभी आप देख सकते हैं एग्जांपल आपको भेज रहे हैं। …नहीं उसके लिए दूसरा टूल होता है, टूल होता है उसके थ्रू (ज़रिये) हम लोग डेटा देते हैं।

रिपोर्टर : ठीक है।

अनिमेष : सिम्पल है; … या तो हम आपको व्हाट्सऐप कर देंगे या इनको शेयर कर देंगे। …उसके बाद आप चेक कर लीजिएगा। उसके बाद आगे फिर…।

रिपोर्टर : इसका ख़र्चा कितना होगा?

अनिमेष : ये सब चीज़ें देखकर ना! क्वेश्चन… हम आपको, …कितना डेटा चाहिए? उसके अनुसार हम आपको….; पहले आप सैंपल चेक कर लीजिएगा, उसके बाद कन्फर्म कीजिएगा।

रिपोर्टर : मतलब, पहले आप सैंपल भेजोगे?

अनिमेष : हाँ; हम आपको सैंपल भेजेंगे, उसमें आपको चेक करना होगा; …डेटा है या नहीं।

रिपोर्टर : हम कैसे चेक करेंगे? …क्रॉस चेक कैसे करेंगे हम?

अनिमेष : जैसे हम डेटा निकाले, ….एचआर को शेयर करेंगे, उसमें डॉक्टर का होगा, उसमें पूरा पर्टिकुलर्स है या नहीं है? …वो आप गूगल पर भी डालकर चेक कर सकते हैं ना! …उससे आपको पूरा डिटेल पता चल जाए…।

अपने प्रस्ताव का विस्तार करते हुए अनिमेष ने हमें सूचित किया कि वह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, उनके कर्मचारियों, चार्टर्ड एकाउंटेंट, जीएसटी पंजीकृत कार्यालयों और उत्तर प्रदेश क्षेत्र में, जहाँ हमारा अनुमानित निर्वाचन क्षेत्र स्थित है; डेटा की आपूर्ति कर सकता है।

रिपोर्टर : अच्छा; ये तो वो चीज़ हो गयी, जो हमें चाहिए। इसके अलावा आप हमें और कौन-कौन सी चीज़ का डेटा प्रोवाइड करवा सकते हैं, ये बता दीजिए; …जिससे मैं उनसे पूछ लूँ?

अनिमेष : जो आपको चाहिए, …इसके अलावा ऑफिस स्टाफ का हो जाएगा।

रिपोर्टर : ऑफिस स्टाफ का?

अनिमेष : जैसे कम्पनीज हो गयी, एमएनसीज गयी, जो कम्पनीज यूपी साइड में हैं, …जो इम्प्लॉयर्स वर्किंग हैं।

रिपोर्टर : किस कम्पनी में कितने इंप्लॉई वर्किंग हैं, उनका डेटा?

अनिमेष : इंप्लॉइज का हो गया, इसके बाद सीएज का, जीएसटी रजिस्टर्ड ऑफिस…।

रिपोर्टर : जीएसटी रजिस्टर! …मतलब?

अनिमेष : जीएसटी रजिस्टर्ड ऑफिस, जो होता है ना! उन सबका डेटा भी आपको मिल जाएगा। …गवर्नमेंट डेटा जॉब ही है, टोटल चीज़ मिल जाएगी आपको।

अनिमेष ने हमें निजी बैंकों से डेटा प्रदान करने का भी वादा किया, यह देखते हुए कि निजी बैंकों की तुलना में उनके कड़े सुरक्षा उपायों के कारण सरकारी बैंक डेटा तक पहुँच चुनौतीपूर्ण है। उनके स्पष्टीकरण से सरकारी और निजी बैंक डेटा के बीच पहुँच में असमानता का पता चलता है, कड़े सुरक्षा उपायों के कारण सरकारी बैंक डेटा प्राप्त करना कठिन होता है।

रिपोर्टर : अच्छा; बैंक का डेटा मिल सकता है?

अनिमेष : बैंक? …हाँ।

रिपोर्टर : गवर्नमेंट, प्राइवेट दोनों का?

अनिमेष : गवर्नमेंट का तो नहीं मिल पाएगा; लेकिन प्राइवेट का।

रिपोर्टर : गवर्नमेंट में दिक़्क़त क्यूँ?

अनिमेष : गवर्नमेंट का पब्लिक डोमैन में नहीं आता।

रिपोर्टर : ऐसा क्यूँ?

अनिमेष : ऐसा वहाँ से बन्द किया जाता है।

रिपोर्टर : प्राइवेट वाले क्यूँ नहीं बन्द करते?

अनिमेष : प्राइवेट वाला अपना सक्षम है।

रिपोर्टर : फिर तो प्राइवेट बैंक में खाता खुलवाना बेकार है?

कैमरे पर अनिमेष ने ‘तहलका’ के सामने स्वीकार किया कि डेटा बेचना ग़ौर-क़ानूनी और प्रतिबंधित है, उन्होंने कहा कि गूगल से डेटा प्राप्त करना भी क़ानून के ख़िलाफ़ है। उन्होंने डींगें हाँकी कि अवैधता के बावजूद, उन्हें डेटा बेचने के लिए कभी नहीं पकड़ा गया, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वास्तविकता में कुछ भी निजी नहीं है, क्योंकि सब कुछ बिक्री के लिए उपलब्ध है।

रिपोर्टर : डेटा देना अलाउड नहीं है ऐसे?

निरंजन : नहीं।

रिपोर्टर : इल्लीगल है?

अनिमेष : ऐसे ही डेटा बेचने लगे तो…।

रिपोर्टर : तो आप ये गूगल से निकालोगे, तो ये भी तो अलाउड नहीं है?

अनिमेष : अलाउड नहीं; लेकिन वहीं से हमें मिल जाता है।

रिपोर्टर : कभी कोई दिक़्क़त तो नहीं आयी आपको? किसी ने पकड़ लिया हो?

अनिमेष : नहीं; ऐसा नहीं हुआ।

रिपोर्टर : मतलब कोई भी चीज़, जो है हमारी, वो प्राइवेट नहीं है। हर चीज़ बाज़ार में बिक रही है?

अनिमेष : हाँ।

अब अनिमेष ने ख़ुलासा किया कि वह पिछले 5-6 वर्षों से डेटा व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। हमारी बातचीत के दौरान उसने डेटा-सेलिंग उद्योग में अपनी भागीदारी की पुष्टि करते हुए आगामी चुनावों के लिए 50,000 मतदाताओं के व्यक्तिगत डेटा के बदले में हमसे 90,000 रुपये की माँग की।

रिपोर्टर : कितने टाइम से आप ये डेटा का काम कर रहे हैं?

अनिमेष : 5-6 साल से।

रिपोर्टर : फिर भी एक आइडिया कितना ख़र्चा होगा, …टेंटेटिव (अंदाज़न)?

अनिमेष : आपको कितना डेटा चाहिए? …मतलब एक लाख, 50 हज़ार?

रिपोर्टर : 50 हज़ार मिल जाए अगर; …दोनों का बता दो, एक लाख और 50 का?

अनिमेष : जैसे 50 हज़ार का है ना! तो आपको 90 हज़ार के आसपास पड़ेगा।

रिपोर्टर : 90 हज़ार एक चीज़ का?

अनिमेष : नहीं।

रिपोर्टर : सबका? …जिसमें सबका डेटा होगा, …डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर?

अनिमेष : हाँ-हाँ।

रिपोर्टर : सारी चीज़ें होंगी टोटल 90 हज़ार में? …तो आपने डेटा निकाला है पहले कभी?

अनिमेष : यही मैं काम करता हूँ जी!

हमारी जाँच अब दूसरे डेटा विक्रेता रोहन मिश्रा से हुई। रोहन मिश्रा ट्राम्ट टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड नामक कम्पनी का सह-संस्थापक है, जो नोएडा में है। इस कम्पनी की स्थापना सात साल पहले हुई थी। ट्राम्ट सभी आकार के व्यवसायों को डिजिटल मार्केटिंग समाधान प्रदान करने में माहिर है। हमारी जाँच के दौरान हमें ट्राम्ट से हमारे उद्देश्य के बारे में पूछने के लिए एक कॉल प्राप्त हुई। यह समझाने पर कि हम उत्तर प्रदेश से 2024 का आम चुनाव लड़ने वाले एक उम्मीदवार के लिए ब्रांड बिल्डिंग की तलाश कर रहे थे। रोहन अपनी सहयोगी स्मिता के साथ दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में हमसे मिलने के लिए पहुँचा।

बैठक के दौरान रोहन ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह हमारे उम्मीदवार के निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं का डेटा प्राप्त कर सकता है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। उन्होंने निर्दिष्ट किया कि हमें जो भी डेटा चाहिए, वह हमारे लिए व्यवस्थित किया जाएगा, बशर्ते हम उन्हें 24-48 घंटे पहले सूचित करें। इसके अलावा रोहन ने उल्लेख किया कि डेटा ऑनलाइन प्रसारित होने के बजाय हमें एक पेन ड्राइव पर सौंपा जाएगा।

रिपोर्टर : अच्छा, कुछ डेटा हम लोग आपसे परचेज करना चाहें, मिल जाएगा?

रोहन : मिल जाएगा।

रिपोर्टर : मिल जाएगा?

रोहन : 24 टू 48 आवर्स का टाइम देना पड़ेगा। …उसका एक पेन ड्राइव मिलेगा, ऑनलाइन नहीं मिलेगा।

रिपोर्टर : अच्छा, और किस लेवल का डेटा मिल सकता है?

रोहन : जो चाहिए, मिल जाएगा।

रिपोर्टर : मतलब ऐसा डेटा न हो, जो इजीली एवेलेबल है ऑनलाइन।

रोहन : मिलेगा नहीं।

रिपोर्टर : वो नहीं चाहिए।

रोहन : नहीं मिलेगा, कहीं नहीं मिलेगा।

रिपोर्टर : क्या चीज़?

रोहन : जो आप कह रहे हो, मार्केट में इजीली मिलेगा भी नहीं।

रिपोर्टर : मैं ये कह रहा हूँ, जो इजीली एवेलेबल है ऑनलाइन, वो तो हम ही ले लेंगे।

रोहन : फिर मेरा क्या काम? …हम वो ही देंगे, जो नहीं मिलेगा?

रिपोर्टर : हमें वो चाहिए, जो एवेलेबल नहीं है ऑनलाइन।

इस बीच रोहन ने एक विवादास्पद रणनीति की वकालत करते हुए सुझाव दिया कि चुनाव में अपने उम्मीदवार को बढ़ावा देने का सबसे प्रभावी तरीक़ा हमारे प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार की छवि को ख़राब करना है, साथ ही साथ हमारे उम्मीदवार को मतदाताओं के सामने सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना है। उन्होंने दावा किया कि जब तक प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को हमारी योजना के बारे में पता चलता है, तब तक हमारा उद्देश्य प्राप्त हो चुका होता है, जबकि भारत का चुनाव आयोग हमारे कार्यों से बेख़बर रहता है।

रिपोर्टर : जो तरीक़ा आपने बताया, …उसमें बेस्ट तरीक़ा कौन-सा है?

रोहन : बेस्ट तरीक़ा वही है सर! पीआर वाला, …एक को गिराओ, दूसरे को उठाओ।

रिपोर्टर : क्या बोला आपने?

रोहन : एक को नीचे गिराओ, नेगेटिव भी पॉजिटिव भी; …सबसे बेस्ट ये है।

रिपोर्टर : नो वन; मतलब जो सामने कैंडिडेट है?

रोहन : उसको नेगेटिव करो और अपने आपको हाइलाइट करो।

रिपोर्टर : इसमें रोहन भाई! ये भी तो हो सकता है, जब हम सामने वाले को नेगेटिव करेंगे, तो वो भी तो हमको कर सकता है?

रोहन : जब तक पकड़ेगा, गेम ख़त्म।

रिपोर्टर : इसमें थोड़ा-सा इश्यू ये भी हो सकता है, ईसी (चुनाव आयोग) की गाइडलाइन हैं- फेक न्यूज और मिस-इंफॉर्मेशन के ख़िलाफ़; …उसमें हम लोग न पकड़े जाएँ तो?

रोहन : नहीं पकड़े जाएँगे। …इसलिए तो मैं पूछ रहा हूँ, किसके लिए करना है? आपको आइडिया मिल जाएगा।

इस मौक़े पर रोहन ने क़ुबूल किया कि वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)-जनित डीपफेक तकनीक में भी काम करता है। उसने हमारे लिए एक डीपफेक बनाने की पेशकश की, जिसकी लागत पर बाद में चर्चा करने को कहा। हालाँकि उसने पहचान के अंतर्निहित जोखिम के कारण डीपफेक का चयन न करने की सलाह दी।

रिपोर्टर : आप डीपफेक भी करवाते हैं क्या?

रोहन : डीपफेक में आजकल पकड़ा जाता है। …पकड़े गये ना! तो आपके लिए नुक़सान है।

रिपोर्टर : मतलब, बन सकता है?

रोहन : किसी का भी बन सकता है?

रिपोर्टर : वैसे आप चाहो, तो बना दोगे? …..कितनी देर का काम है?

रोहन : डिपेंड करता है।

रिपोर्टर : चार्जेज?

रोहन : बता दूँगा।

एक बार फिर रोहन ने हमारे काल्पनिक उम्मीदवारों के लिए मतदाताओं का डेटा प्रदान करने के अपने प्रस्ताव को दोहराया, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इसमें से कोई भी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है; इसके बजाय यह सब गुप्त तरीक़ों से प्राप्त किया जाता है। उन्होंने आधार डेटा हासिल करने की अपनी क्षमता का उल्लेख किया, जिसमें कार्डधारकों का व्यापक विवरण शामिल है। रोहन का मानना है कि हमारे निर्वाचन क्षेत्र को 10 लाख लोगों के डेटा की आवश्यकता है।

रिपोर्टर : डेटा कहाँ से आएगा?

रोहन : डेटा मिल जाएगा। …आधार का जो डेटा रहता है ना! उसका नाम, नंबर, उसका एड्रेस, …कितने नंबर उस आधार पर अपडेट हैं। …4-5 नंबर, वो सारे आपके पास आ जाएँगे।

रिपोर्टर : आपके पास डेटा है या आप ख़रीदोगे?

रोहन : ख़रीदेंगे? किसी के पास नहीं है।

रिपोर्टर : मतलब, इसमें तो लाखों में चाहिए होगा डेटा?

रोहन : हाँ; 10 लाख, 5 लाख, 7 लाख…।

रिपोर्टर : हाँ; क्यूँकि इतनी बड़ी लोकसभा कॉन्स्टीट्वेंसी है।

रोहन : हाँ; मिल जाता है।

रिपोर्टर : कुछ ऐसा डेटा भी है, जो आपको ऑनलाइन नहीं मिलेगा?

रोहन : नहीं; मिल जाता है। ऑनलाइन कुछ नहीं मिलता। …परचेज करना पड़ता है, …बैकडोर (पीछे के दरवाज़े) से। …उसका तरीक़ा होता है।

जाँच की अगली कड़ी में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने तीसरे व्यक्ति गौरव मग्गो से हुई, जो द्वारका (नई दिल्ली) स्थित ओज डिजिटल मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक है। जब हमने पूछा कि क्या उन्होंने मतदाता डेटा प्रदान किया है, तो उन्होंने बताया कि वह विक्रेताओं से डेटा ख़रीदते हैं और हमें इन विक्रेताओं से जोड़ने की पेशकश की।

रिपोर्टर : आप डेटा प्रोवाइड नहीं करते?

गौरव : डेटा हम लोग प्रोवाइड नहीं करवाते। …मैं अरेंज कर दूँगा। आप उससे बात कर लेना।

रिपोर्टर : मतलब, पर्सनल डेटा मिल जाएगा?

गौरव : मैं आपको बंदा अरेंज कर दूँगा, ..थर्ड पार्टी होते हैं ये लोग। …हम भी थर्ड पार्टी लेते हैं। मैं आपको प्रोवाइड कर दूँगा।

रिपोर्टर : कितना पर्सनल डेटा मिल सकता है?

गौरव : ये तो मेरे को नहीं पता, …जो बंदा आएगा, आप बात कर लेना।

रिपोर्टर : अभी तक आपने कराया तो होगा?

गौरव : सर! देखो, हम डील नहीं करते; …हम बंदा प्रोवाइड करते हैं। क्यूँकि हम तो सर्विसेज पर हैं; इंस्टा सर्विसेज पे। …इन चीज़ों पर जाएँगे, तो सारा दिन ख़राब होगा।

अब ‘तहलका’ रिपोर्टर को गौरव ने 3-4 विक्रेताओं के संपर्क नंबर प्रदान करने की पेशकश की, जो मतदाता डेटा प्रदान करने में विशेषज्ञ हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि ये विक्रेता उत्तर प्रदेश निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं से सम्बन्धित डेटा प्रदान करेंगे, जहाँ से हमारा उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है।

रिपोर्टर : किस लेवल का डेटा हमें मिल जाएगा?

गौरव : सर! आपको लोकल चाहिए होगा, इलेक्शन का वो तो मिल जाएगा। जो बंदा होगा, वो ही आपसे बात करेगा।

रिपोर्टर : वो दिल्ली का ही होगा बंदा?

गौरव : सर! डिपेंड करता है। …यूपी का भी हो सकता है। 3-4 वेंडर्स हैं हमारे पास, जो अटैच्ड हैं। …उन चारों का नंबर मैं आपको दे दूँगा।

रिपोर्टर : ठीक है। लेकिन दिल्ली में मीटिंग कर लेगा वो?

गौरव : दिल्ली में मीटिंग कर सकते हैं।

जैसे ही हम इस रिपोर्ट के समापन की ओर बढ़ते हैं, यह ध्यान देने योग्य है कि मतदाता डेटा की बिक्री में ‘तहलका’ की जाँच चुनावी अभियानों के आसपास की अवैध प्रथाओं को उजागर करने में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। सम्बन्धित व्यक्तियों की सहमति के बिना मतदाता डेटा बेचने के लिए तीनों विक्रेताओं की तत्परता भारत में व्यापक डेटा संरक्षण क़ानून की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। डेटा संरक्षण विधेयक की अनुपस्थिति नियामक ढाँचे में अंतराल को रेखांकित करती है, जिससे व्यक्ति गोपनीयता उल्लंघन के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। जबकि एक मज़बूत डेटा संरक्षण क़ानून की संभावना आशा प्रदान करती है, प्रवर्तन की चुनौतियाँ बनी रहती हैं। प्रवर्तन की चुनौतियाँ तो बनी रहती हैं, जो व्यक्तियों के डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा के लिए चल रहे संघर्ष पर ग़ौर करने को मजबूर करती हैं। जैसे-जैसे चुनाव डिजिटल युग में विकसित हो रहे हैं, मतदाता डेटा व्यापार का अनियंत्रित प्रसार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता और नागरिकों की गोपनीयता की सुरक्षा के बारे में गम्भीर सवाल उठाता है। हमारी जाँच नीति निर्माताओं के लिए इन चिन्ताओं को दूर करने और ऐसे क़ानून बनाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, जो राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढाँचे को संरक्षित करते हुए व्यक्तियों के डेटा अधिकारों की प्रभावी ढंग से रक्षा करता है।