अगर आप मेरे विचार से सहमत नहीं हैं तो बहस कीजिए, गाली क्यों देते हैं : सागरिका घोष

sagarikaghose-web

आप लगातार देख सकते हैं कि जो भी महिला जनता के बीच आ रही है, सवाल उठा रही है, जिसकी जनता के बीच कोई पहचान है, उसको निशाना बनाया जाता है. उसके खिलाफ अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हुए बेहद घटिया तरीके से उस पर हमले किए जाते हैं. मुझे तो लगता है कि आजकल के दिग्गज नेता हैं, उनकी ओर से भी ऐसे लोगों को बढ़ावा मिलता है. अभी हमने देखा कि बीजेपी के माननीय अध्यक्ष अमित शाह ने सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को ‘सोशल मीडिया के योद्धा’ कहा है. इनका भी समारोह हुआ है, इनको भी संबोधित किया गया है. ऐसे में उनको लगता है कि उन्हें सरकार का समर्थन हासिल है.

ऐसे बहुत-से अकाउंट हैं जो खूब गाली-गलौज करते हैं और उन्हें हमारे प्रधानमंत्री जी भी फॉलो करते हैं. इससे शायद गाली देने वालों को सरकार की ओर से मनोवैज्ञानिक तौर पर बढ़ावा मिलता है. मुझे लगता है कि महिलाओं को लेकर समाज में एक तरह की घृणा है, जो बढ़ रही है. जहां भी महिलाएं आगे आ रही हैं, उन्हें लेकर एक तरह की आक्रामक प्रतिक्रिया हो रही है. इसके पीछे महिलाओं के प्रति घृणा दिखती है कि कैसे ये लोग आगे आ रही हैं. अजीब तरह का विरोधाभास है कि एक तरफ हम किरण बेदी, सानिया नेहवाल, सानिया मिर्जा और दूसरी तमाम महिलाओं की सफलता को सेलिब्रेट करते हैं, दूसरी तरफ तमाम महिलाओं के साथ गाली-गलौज और अभद्रता की जाती है. हमारा समाज पाखंडी समाज है जिसका महिलाओं को लेकर दोहरा रवैया है. एक तरफ हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारा लगा रहे हैं, महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं और दूसरी तरफ जो महिलाएं आगे आ रही हैं, उन पर इस तरह का अत्याचार हो रहा है. मैं इसे अभद्रता नहीं मानती, यह हमला है. अगर महिलाओं के प्रति रंडी, रखैल, वेश्या आदि शब्द इस्तेमाल करेंगे तो यह हमला ही है. आप लगातार किसी के चरित्र हनन की कोशिश करते हैं. मेरे ख्याल से समाज में महिलाओं के खिलाफ आक्रामकता बढ़ रही है.

मुझे लगता है ये यौन-कुंठित लोग हैं जो पहचान छिपाकर ट्विटर पर बैठकर कुछ भी कह सकते हैं. ये एक तरह की यौन-कुंठा है. रवीश, राजदीप या दूसरे पुरुष पत्रकारों के साथ जो होता है, उनके साथ बहस भी होती है. लेकिन मेरे, बरखा दत्त औैर राना अयूब के साथ जो होता है, वो ज्यादातर गैंगरेप की श्रेणी में चला जाता है. रेप कर देंगे, गैंगरेप कर देंगे, स्लट, वेश्या, रंडी… ये जो यौन उत्पीड़न है ये महिला पत्रकार के साथ ही होता है. अगर आप मेरे विचार से सहमत नहीं हैं तो बहस कीजिए, गाली क्यों देते हैं? अच्छा रवीश और राजदीप के साथ भी बहस होगी, गालियां दी जाएंगी तो उनकी मां को, बहन को गालियां दी जाएंगी. मुझे और मेरी बेटी को गैंगरेप की धमकी दी गई. मैंने एफआईआर भी दर्ज कराई.

Sagarika

यह इतना भयानक है कि देखिए कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी, भाजपा नेता अंगूरलता डेका, अरुण शौरी के बेटे जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं, सबके साथ यही सब हुआ. विराट कोहली जितने मैच खेलता है उतनी बार अनुष्का की फोटो लगाकर घटिया कमेंट और जोक्स शेयर किए जाते हैं. हम वहां इसलिए हैं कि तर्क हो और उसका काउंटर हो. अगर मेरी पत्रकारिता में कमी है तो आप जरूर कहिए. आप कमेंट कीजिए, लेख लिखिए. पहले ऐसा ही होता था. लेकिन इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कभी नहीं होता था. मुझे लगता है यह सब प्रायोजित है. वरना इतनी संख्या में लोग बोले जा रहे हैं रंडी-रंडी-रंडी, राहुल गांधी की रखैल, अरविंद केजरीवाल की वेश्या, स्लट… ये सब एक ही समय में एक साथ कैसे कहा जा रहा है? मैं बहुत निराश हूं कि निर्भया के बाद इतना कुछ हुआ, हमने समाज बदलने की कोशिश की. कानून बनाए. लेकिन हमारा समाज कहां जा रहा है? सोशल मीडिया को देखें तो लगता है हम तो पीछे जा रहे हैं.

मैं बहुत बार प्रतिक्रिया देती हूं लेकिन नहीं जानती कि क्या करना चाहिए. इतनी बड़ी संख्या में लोग गाली-गलौज करेंगे तो उनको कौन रोकेगा? केस दर्ज कराइए तो कार्रवाई भी नहीं होती. अब यही उम्मीद कर सकते हैं कि अच्छी सोच चलन में आएगी और यह सब रुकेगा. या फिर पार्टी की तरफ से इस पर काबू किया जाए. अगर पार्टी की तरफ से इन्हें रोका जाए तो शायद यह रुक सकता है. हम यह नहीं कह सकते कि तर्क मत करो, हम भी तर्क ही कर रहे होते हैं, लेकिन गाली तो मत दो. धमकी तो मत दो कि मार देंगे, गैंगरेप कर देंगे.

अब अंगूरलता का मसला लीजिए, वो तो भाजपा की ही हैं. उनका अपराध क्या था? वह एक युवा महिला हैं, उन्होंने कुछ बोला नहीं, कुछ किया भी नहीं, मैं समझ नहीं पाई कि उसने किया क्या है! बस उसके पीछे लग गए और लगे हैं. ये सब कुंठित मर्द हैं. हमारे देश में लिंगानुपात कम होता जा रहा है, लड़कियों का प्रतिशत कम होता जा रहा है. ऐसे ही रहा तो धीरे-धीरे शादी करने के लिए लड़कियां नहीं मिलेंगी. इससे मर्दों की कुंठा बढ़ेगी. अभी भी यौन-कुंठित मर्दों की संख्या बहुत बड़ी है. हमारे यहां आॅनलाइन पॉर्न के सर्वाधिक उपभोक्ता हैं. मुझे तो यही लगता है कि मर्दों की यह गाली-गलौज यौनकुंठा का नतीजा है.

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(बातचीत पर आधारित)