जिंदल को जमीन, जनता पर जुल्म

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उत्तराखंड में अल्मोड़ा और रानीखेत के बीच स्थित डीडा द्वारसो ग्रामसभा के नैनीसार गांव के ग्रामीणों को एक दिन पता चलता है कि उनकी जमीन पर डीएस जिंदल समूह एक अंतर्राष्ट्रीय स्कूल बना रहा है. गांव वालों को हैरानी होती है. न कोई अधिग्रहण, न कोई कानूनी प्रक्रिया, न कोई राय मशविरा. गांव में करीब सात हेक्टेयर जमीन की तारबंदी कर दी गई और उसमें बिजली का करंट दौड़ा दिया गया. अंग्रेजी में बोर्ड लगवा दिया कि नजदीक आने पर खतरा है. गांववालों को अंग्रेजी न आने के बावजूद अंदाजा लग गया कि तार में करंट है, लेकिन जानवरों को बोर्ड की सूचनाएं पढ़नी नहीं आतीं. एक गाय चरते हुए तार की चपेट में आ गई. गांववालों ने इन सबका विरोध करना शुरू किया, लेकिन विरोध के हर कदम के साथ उन्हें पांव के नीचे से जमीन सरका देने वाली सच्चाई से रूबरू होना पड़ा. उनके मुताबिक, पुलिस, प्रशासन, नेता, ग्रामप्रधान सब जिंदल समूह पर मेहरबान हैं, पुलिस भी उनकी है, योजना भी उनकी है. जमीन गांववालों की है, लेकिन मर्जी उनकी नहीं है.

गांववालों ने आरटीआई लगाकर जब सूचना मांगी कि ग्रामसभा की बैठक करके सहमति लिए बगैर जमीन जिंदल समूह को कैसे दे दी गई तो उन्हें ग्राम प्रधान द्वारा दिया गया अनापत्ति प्रमाण पत्र दिखा दिया गया, जिस पर गांववालों के फर्जी दस्तखत हैं. जो गांववाले निपट अनपढ़ हैं और अपना नाम तक नहीं लिख सकते, उनके दस्तखत अंग्रेजी में किए गए हैं. ग्रामप्रधान ने लिख दिया है, ‘गांववालों को जमीन की जरूरत नहीं है.’ इस कथित अनापत्ति प्रमाण पत्र पर तारीख नहीं पड़ी है और न ही वह सत्यापित है. ग्रामीणों ने इसे फर्जीवाड़ा मानते हुए रिपोर्ट भी दर्ज करवाई जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जमीन हस्तांतरित करने की पूरी कार्यवाही गुपचुप तरीके से की गई और आवंटन की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही संस्था ने जमीन पर कब्जा कर लिया.

‘जमीन अधिग्रहण की कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. जब जमीन की घेराबंदी हो गई तब गांव वालों को पता चला कि यहां कुछ होने जा रहा है’

गांववालों को पता चला कि डीएस जिंदल समूह की दिल्ली स्थित हिमांशु एजुकेशनल सोसायटी यहां पर एक अंतर्राष्ट्रीय स्कूल बनाने जा रही है. यह स्कूल सात हेक्टेयर की जमीन में होगा. उतनी जमीन पर सोसायटी ने प्रशासन की मदद से घेरेबंदी कर दी है. ग्रामीणों का कहना है, ‘कागज में यह जमीन 353 नाली यानी करीब सात हेक्टेयर है, लेकिन वास्तव में यह 1200 नाली यानी चार गुना है.’ नया क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष जीवनचंद इसकी पुष्टि करते हैं, ‘कब्जाई गई जमीन जितनी बताई जा रही है, उससे काफी ज्यादा है. प्रधान ने ग्रामपंचायत के नियमों का उल्लंघन करके फर्जी पत्र बनाया और अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया है.’ ग्रामीणों ने इस ‘अतिक्रमण’ के खिलाफ डीएम व एसडीएम के यहां शिकायतें कीं, ज्ञापन दिए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महासचिव सुरेश नौटियाल ने बताया, ‘गांव की जमीन पर जबरन कब्जा करके इस पर स्कूल का निर्माण होगा, लेकिन यह गांव के बच्चों के लिए नहीं होगा.’ सोसायटी ने प्रशासन को जो प्रस्ताव दिया है, उसमें बताया गया है कि इस स्कूल में कॉरपोरेट घरानों के बच्चे, एनआरआई बच्चे, उत्तर-पूर्व के बच्चे, माओवाद प्रभावित राज्यों के बच्चे, गैर-अंग्रेजी भाषी देशों के बच्चे, भारत में रहने वाले विदेशी समुदायों के बच्चे और वैश्विक एनजीओ द्वारा भेजे गए बच्चे पढ़ सकते हैं. गांववालों का कहना है कि एक तो इस जमीन को गैरकानूनी ढंग से कब्जाया गया है, कोई मुआवजा नहीं दिया गया, न ही सही प्रक्रिया का पालन किया गया. दूसरे, गांव में ऐसे स्कूल की क्या जरूरत है जिसमें उनके बच्चे ही नहीं पढ़ सकते?

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‘मैं गलत होता तो जांच के लिए क्यों कहता?’

गांव की जमीन का जिंदल समूह को दिया जाना कानूनी है या गैर-कानूनी ये तो एसडीएम या तहसील वाले बता सकते हैं. मैं पुख्ता तौर पर नहीं कह सकता. मैंने शुरुआत में भी गांववालों से यही कहा था कि मेरा पहला फर्ज गांव के प्रति बनता है. मैंने जमीन की जांच कराई और पाया कि वह जमीन ग्रामसभा की नहीं है, वह सरकारी जमीन है. हालांकि, यह मामला कोर्ट में है. जहां तक मुझे पता है, मैंने अभिलेख देखे हैं, उसमें वह सरकारी जमीन है. हमारे यहां जमीनें तीन तरह की हैं, निजी, वनविभाग के अंतर्गत या वन पंचायत के अंतर्गत. ये जमीन इन तीनों की नहीं है, तो राजस्व की होगी. जिस समय हमने चुनाव जीता था, उस समय पूरा गांव हमारे साथ था. आज गांववालों को कुछ संदेह हो गया है, इसलिए वे हमारे विरोध में आ गए हैं. वे कह रहे हैं कि हमने उनके फर्जी दस्तखत करके अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया. उन लोगों ने खुद दस्तखत किए थे, लेकिन अब मुकर रहे हैं. मेरा यही कहना है कि मामले की जांच करवा ली जाए. मैं गलत होता तो जांच के लिए क्यों कहता. दूसरे, ग्रामसभा की खुली बैठक का कोई प्रस्ताव नहीं था.

मुझसे केवल इतना पूछा गया कि हम आपके यहां एक स्कूल की स्थापना कर रहे हैं. हमें ठीक लगा तो हमने हामी भर दी. हम तो गांव का विकास चाहते हैं. अगर विकास हो रहा है तो हमें क्यों विरोध करना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय स्तर का विद्यालय खुलने पर हमारे क्षेत्र का विकास होगा. अब हम ये कोशिश कर सकते हैं कि वह विद्यालय सबके लिए हो और शिक्षा के अधिकार के तहत 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करे. जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे यहां से छह किलोमीटर दूर रहते हैं. चंद परिवार इसके विरोध में हैं. ये विकास विरोधी हैं. हर चीज का विरोध करते हैं. हमने मुख्यमंत्री से कहा था कि जमीन से जो राजस्व मिलेगा, उसका दो तिहाई गांव के विकास के लिए दीजिए. लोगों को रोजगार का भी प्रस्ताव दिया है. लोग पता नहीं क्यों विरोध कर रहे हैं. जो लोग विरोध कर रहे हैं, वे हमेशा करते हैं.

गोकुल सिंह राणा, ग्राम प्रधान, नैनीसार [/box]

ग्रामीणों की इस लड़ाई में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कहते हैं, ‘जमीन अधिग्रहण की कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. जब जमीन की घेराबंदी हो गई तब गांववालों को पता चला कि यहां कुछ होने जा रहा है. शुरुआत में एक शासनादेश जारी हुआ था, जिसमें कानूनी प्रक्रिया की सारी अर्हताएं पूरी करने को कहा गया था. डीएम ने वन विभाग की अनुमति और ग्रामीणों से सहमति के लिए प्रस्ताव दिया था, लेकिन बाद में कोई प्रक्रिया पूरी नहीं की गई. बिना अनुमति के पेड़ काट दिए गए और जमीन की घेराबंदी कर दी गई. शिलान्यास के समय हम लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया तो पुलिस ने लोगों को दौड़ाकर पीटा. 26 जनवरी को भी गांववालों ने प्रदर्शन रखा था तो लोगों को रास्ते में जहां-तहां रोक दिया गया ताकि वे प्रदर्शन स्थल तक पहुंच ही न सकें. बावजूद इसके वहां पर चार सौ के आसपास लोग जमा हुए थे.’

जब गांववालों को गैरकानूनी तौर पर सोसायटी को जमीन देने के बारे में पता चला तो वे स्कूल निर्माण को रुकवाने के लिए उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के पीसी तिवारी के पास गए और उनसे हस्तक्षेप की मांग की. उनके नेतृत्व में गांव वालों ने कानूनी लड़ाई छेड़ दी. लगभग तीन महीने तक ग्रामीण आंदोलन करते रहे. इस बीच ग्रामीणों की ओर से निचली अदालत में जमीन हस्तांतरण को चुनौती देते हुए याचिका लगाई गई. 23 जनवरी को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने अगली सुनवाई 15 फरवरी तय की और तब तक के लिए निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश दे दिया.

‘जब हमने एसडीएम से कहा कि हस्तांतरण का कागज दिखाइए तो पता चला कि जमीन का पट्टा नहीं हुआ है लेकिन जमीन पर कब्जा हो गया’

अदालत के आदेश की प्रति लेकर पीसी तिवारी, अदालत के कर्मचारी देवीदत्त, अपने पांच सहयोगियों के साथ निर्माण स्थल पर निर्माण रुकवाने की गरज से पहुंचे. पीसी तिवारी के भाई रघु तिवारी समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं व ग्रामीणों का आरोप है कि बातचीत के दौरान वहां पर तैनात बाउंसरों ने पीसी तिवारी को अंदर खींच लिया और बाकी को एक तरफ खड़ा कर दिया गया. फिर पीसी तिवारी व उनकी सहयोगी रेखा धस्माना के साथ मारपीट की. 

ग्रामीण राजेंद्र सिंह राणा ने बताया, ‘अदालत ने जब हमारी अपील मंजूर करते हुए स्टे दे दिया तो हम लोग निर्माण रुकवाने के लिए वहां गए थे. वहां पर बाउंसर तैनात थे. इसके अलावा उनकी तरफ से करीब 150 लोग वहां पर मौजूद थे. बाउंसरों ने पीसी तिवारी के साथ जमकर मारपीट की. पीसी तिवारी की सहयोगी रेखा धस्माना अपने टैब से उसका वीडियो बनाने लगीं जिसे बाउंसरों ने छीन लिया. वह टैब चालीस हजार का था. इसके बाद रेखा के साथ भी मारपीट की. तिवारी को गंभीर चोटें आईं. दोनों की पिटाई करने के बाद उन्हें वहां से बाहर धकेल दिया गया.’

23 जनवरी को मारपीट की इस घटना के बाद रेखा धस्माना ने भी बयान दिया, ‘हम लोगों को गेट के भीतर उठाकर ले जाया गया. वहां जिंदल का बेटा बैठा हुआ था. फिर उनके गुंडों ने पीसी तिवारी को लात, घूंसों और लाठियों से बहुत मारा. उन्होंने मेरे साथ भी हाथापाई की और मेरा टैब छीन लिया. हमारे साथ गांव के पांच लोग गए थे. उन्हें किनारे खड़ा कर दिया और हमें अलग ले जाकर मारा. उसके बाद बाहर फेंक दिया. हम लोग 100 नंबर पर फोन करते रह गए लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया.’

राजेंद्र सिंह राणा का कहना है, ‘हमारे फोन करने के करीब एक घंटे के बाद एसडीएम आए और तिवारी को मेडिकल कराने के लिए ले गए. मेडिकल कराने के बाद गांव से पीसी तिवारी समेत करीब तीस लोगों को पुलिस ने उठा लिया.’ दूसरी ओर, ग्रामीणों ने डीएस जिंदल समूह के प्रतीक जिंदल, उसके सहयोगी प्रेमपाल और अन्य के खिलाफ जानलेवा हमला करने के लिए प्राथमिकी दर्ज करवाई है. फिलहाल पीसी तिवारी जेल और उनकी सहयोगी रेखा धस्माना अस्पताल में हैं.

सुरेश नौटियाल ने बताया, ‘इस मामले में सीधे तौर पर मुख्यमंत्री की भागीदारी है. किसी भी जमीन का हस्तांतरण का पट्टा बनता है. जब हम सबने एसडीएम के पास जाकर उसके बारे में पूछा कि हस्तांतरण का कागज दिखाइए तो पता चला कि जमीन का पट्टा नहीं हुआ है. बिना पट्टा हुए जमीन को तार से घेर दिया गया है. ग्राम प्रधान गोकुल सिंह राणा भी उनके साथ मिला हुआ है. कुछ गांववाले प्रधान का साथ दे रहे हैं. ज्यादातर गांव वाले हमारे साथ हैं क्योंकि गांववाले खुद पीसी तिवारी के पास आए थे और मामले में दखल देने की मांग की थी.’ सुरेश ने बताया कि जेल जाने के बाद पीसी तिवारी और रेखा धस्माना के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट लगाते हुए मुकदमा दर्ज कर दिया गया है.

सुरेश नौटियाल के मुताबिक, 26 जनवरी को गांव वाले निर्माण स्थल के बाहर प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए, जिसमें कई सामाजिक कार्यकर्ता और सिविल सोसायटी के लोग भी थे. उस दौरान वहां पर एक आदमी था जिसने मुंह ढंक रखा था. उसने डीएम को डांटते हुए कहा, ‘क्या तुम्हें इसीलिए रखा है कि तुम इनके साथ मिल जाओ?’ लोगों के अनुसार वह जिंदल का बेटा था. सामाजिक कार्यकर्ता रघु तिवारी ने बताया, ‘गांववालों ने 26 जनवरी को कब्जा की गई जमीन पर गांव के बुजुर्ग, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी हैं, से झंडारोहण करवाया. प्रशासन ने वह झंडा तुरंत उतरवा दिया.’ जीवनचंद चिंता जताते हुए कहते हैं, ‘सारे गांव के विरोध के बाद शासन पर कोई असर नहीं हुआ लेकिन जिंदल के कहने पर संयुक्त मजिस्ट्रेट ने 26 जनवरी को राष्ट्रीय झंडे का अपमान करते हुए उसे उतरवा दिया.’ 

ग्रामीण राजेंद्र के मुताबिक, ‘हम लोगों को कोई अंदाजा ही नहीं था. जमीन जिस प्रक्रिया से ली जाती है, वैसी किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. जब वहां पर काम शुरू हो गया तब हमें इसके बारे में पता चला कि गांव की जमीन किसी कंपनी को दी गई है. किसी तरह के मुआवजे की कोई बात ही नहीं चली. कोर्ट ने स्टे का आदेश दिया है, लेकिन उसे प्रशासन ने तामील नहीं करवाई. जमीन कानूनन तो हमारी है लेकिन हमारी ही सुनने वाला कोई नहीं है. हम लोगों ने कोर्ट जाने से पहले एफआईआर दर्ज कराई थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.’

गांववालों से धोखा होने का उदाहरण देते हुए मुनीष कहते हैं, ‘जब गांववालों ने आंदोलन शुरू किया तो मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बयान दिया था कि यदि गांव वाले नहीं चाहते तो उनकी जमीन नहीं ली जाएगी. इसके बाद गांववालों ने उन्हें एक मेमोरेंडम भेजा कि हम अपनी जमीन किसी को नहीं देना चाहते. इस पर गांववालों ने दस्तखत किए थे. इसका कोई संज्ञान नहीं लिया गया और शासन की मदद से ही जिंदल समूह को कब्जा दिलाया गया.’

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यह हमने एक नीति के तहत किया है. हमारे पहाड़ों में निवेश नहीं आता है और शिक्षा की बड़ी समस्या है. पलायन का यह एक बहुत बड़ा कारण है. शिक्षा संस्थान और अस्पताल अगर आएंगे तो इससे हमारा भला होगा. इसमें तीस प्रतिशत सीटें राज्य के लोगों के लिए होंगी. स्थानीय लोगों और पहाड़ों में काम करने वाले अधिकारियों के बच्चों की पढ़ाई हो सकेगी. इसके निकट के गांवों के चार प्रधानों की इसमें सहमति है. अब यह विरोधी पार्टी के कार्यकर्ता हैं जो प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं

हरीश रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड [/box]

अंतर्राष्ट्रीय स्कूल की यह परियोजना कारोबारी जिंदल परिवार की है. जो सोसाइटी इस स्कूल का निर्माण करवा रही है, वह देवी सहाय जिंदल समूह की है. सोसायटी के उपाध्यक्ष प्रतीक जिंदल हैं, जो नवीन जिंदल के भतीजे हैं. जिंदल परिवार से कांग्रेस पार्टी की नजदीकी किसी से छुपी नहीं है. खुद नवीन जिंदल दस साल तक कांग्रेस के सांसद रहे हैं. पिछला लोकसभा चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था और हार गए थे.

गांववालों के मुताबिक, 22 अक्टूबर को जिस दिन इस स्कूल का शिलान्यास होना था, प्रतीक जिंदल और मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र आनंद रावत एक ही हेलीकॉप्टर में सवार होकर नैनीसार आए थे. शिलान्यास का विरोध करने पर गांववालों को पुलिस ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा. कई लोगों को पकड़कर थाने में बंद कर दिया गया. 22 अक्टूबर को ही विरोध करने वाले गांव के 32 लोगों को नामजद करते हुए 382 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया था.   

गांववालों का सरकार के साथ संघर्ष बढ़ने के साथ यह मामला चर्चा में आया तो दिल्ली से कुछ पत्रकारों का एक स्वतंत्र जांच दल नैनीसार गया था. जांच दल की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘नैनीसार की जो सात हेक्टेयर जमीन हिमांशु एजुकेशन सोसायटी को दी गई है, उस संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय (अल्मोड़ा) द्वारा उपजिलाधिकारी (रानीखेत) को 29 जुलाई, 2015 को भेजे गए एक ‘आवश्यक’ पत्र में तीन बिंदुओं पर संस्तुति मांगी गई थी: एक- प्रस्तावित भूमि के संबंध में संयुक्त निरीक्षण करवाकर स्पष्ट आख्या; दो- ग्राम सभा की खुली बैठक में जनता/ग्रामप्रधान द्वारा प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र की सत्यापित प्रति; और तीसरा- वन भूमि न होने के संबंध में स्पष्ट आख्या. इसके जवाब में 14 अगस्त, 2015 को शासन को जो पत्र भेजा गया, उसमें संयुक्त निरीक्षण का परिणाम यह बताया गया कि कुल 7.061 हेक्टेयर प्रस्तावित जमीन वन विभाग के स्वामित्व की नहीं है. उस पर 156 चीड़ के पेड़ लगे हैं लेकिन वे ‘वन स्वरूप में नहीं हैं’. आकलन के मुताबिक, इस भूमि का नजराना 4,16,59,900.00 रुपये बनता है और वार्षिक किराया 1196.80 रुपये बनता है. जवाब में ग्रामसभा की खुली बैठक का कोई जिक्र नहीं है.’

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एक अन्य आरटीआई आवेदन के जवाब में प्रशासन की ओर से 22 नवंबर को कहा गया कि सोसायटी ने सरकार के खजाने में दो लाख रुपये का नजराना 20 नवंबर को जमा कराया है.

अब सवाल उठता है कि अगर सरकारी खजाने में पहली बार 20 नवंबर को दो लाख रुपये जमा हुए, तो जिंदल समूह को जमीन पर कब्जा दो महीने पहले कैसे दे दिया गया? पट्टा तो भुगतान के बाद हस्तांतरित होना चाहिए था, जबकि सितंबर में कब्जा ले लिया गया और अक्टूबर में शिलान्यास भी हो गया.

मुनीष ने कहा, ‘इस स्कूल के निर्माण में मुख्यमंत्री हरीश रावत का बेटा शामिल है. प्रतीक जिंदल से उसकी घनिष्ठता है. हरीश रावत का जिंदल परिवार से करीबी रिश्ता है. वे गांव वालों के हित-अहित को नजरअंदाज करके कॉरपोरेट को फायदा पहुंचा रहे हैं.’ ग्रामीणों की परेशानी जो भी हो, लेकिन जिंदल समूह को पहाड़ों की ऊंचाई पर बसी सात हेक्टेयर जमीन की सालाना कीमत अगर 1196.80 रुपये देनी हो, तो उनके लिए इससे अच्छा क्या हो सकता है?

‘सारे गांव के विरोध के बाद शासन पर कोई असर नहीं हुआ लेकिन जिंदल के कहने पर संयुक्त मजिस्ट्रेट ने राष्ट्रीय झंडे का अपमान किया’

ग्राम प्रधान गोकुल सिंह राणा जमीन को सरकारी बताते हुए ग्रामीणों के विरोध को ही अनुचित बताते हैं, लेकिन नया क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष जीवनचंद इस बात को नकारते हुए तथ्य पेश करते हैं, ‘अगर वह जमीन सरकारी थी तो वहां वनपंचायत कैसे संभव हुई? उसमें वनपंचायत की जमीन है, जिसे लेकर 2001 में नोटिफिकेशन जारी हुआ था. चूंकि उस जमीन में एक हिस्सा वनभूमि भी है, इसलिए वह जमीन सरकार द्वारा किसी को भी नहीं दी जा सकती. वनपंचायत के गठन में पांच सरपंच नियुक्त हुए थे, वे अभी जिंदा हैं जिनसे तस्दीक की जा सकती है. इसमें ग्रामीणों की भी जमीन है, लेकिन उनकी राय नहीं ली गई. इस प्रक्रिया में पंचायतीराज एक्ट का भी उल्लंघन हुआ है. दूसरे, आज तक उस जमीन की लीज निष्पादित नहीं हुई है. फिर जिंदल समूह को कब्जा कैसे मिल गया? बिना लीज निष्पादित हुए किसी को कब्जा कैसे दिया जा सकता है? 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उस परियोजना का शिलान्यास भी कर दिया. इससे यह साफ है कि सरकार और मुख्यमंत्री प्रतीक जिंदल पर मेहरबान हैं और पूरा तंत्र इस गैरकानूनी कार्य में शामिल है.’