– दरिंदगी, हत्या एवं लूटपाट से लेकर दंगों तक की आग में कई बार झुलस चुका है प्रदेश
– बुलडोज़र एवं एनकाउंटर का डर दिखाने के अलावा योगी के पास नहीं है कोई चारा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कितने भी दावे कर लें मगर उत्तर प्रदेश में राम राज्य का सपना पूरा नहीं हो सका है एवं निकट भविष्य में इसकी संभावना भी दिखायी नहीं दे रही है। धरातल का सच तो यह है कि विज्ञापनों एवं भाषणों में ही उत्तर प्रदेश अपराध मुक्त हुआ है; मगर वास्तव में हत्या, लूट, चोरी, बलात्कार एवं दंगे सरीखे कलंक उत्तर प्रदेश के माथे पर बढ़ते जा रहे हैं, जिन्हें मिटाने के प्रयास ही नहीं हो रहे हैं। ले-देकर एक बुलडोज़र है, जिसका डर आमजन को दिखाया जा रहा है। इस प्रकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कथित राम राज्य वाले उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था राम भरोसे ही चल रही है।
मास्टर नंदराम कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में यदि प्रशासनिक व्यवस्था सँभाल ली जाए, तो शान्ति व्यवस्था बहाल हो जाए। मगर यहाँ स्थिति अलग है; क्योंकि जो जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी जनसेवा के लिए हैं, उन्होंने जनता को लूटने-पीटने को ही अपना कर्तव्य मान रखा है। भड़काऊ राजनीतिक भाषणों एवं धार्मिक त्योहारों पर निकलने वाली यात्राओं एवं जुलूसों में उपद्रवियों को बढ़ावा देने के प्रयासों ने प्रदेश में आपसी भाईचारे को समाप्त कर दिया है।
बहराइच के प्रवीण सिंह कहते हैं कि आज उत्तर प्रदेश धार्मिक उन्माद की उस भट्ठी पर बैठा है, जिसमें लकड़ियाँ नहीं, बल्कि विस्फोटक रखा हुआ है। जैसे ही इस भट्ठी में कोई चिंगारी डालता है, दंगे भड़क जाते हैं। आज बहराइच में जिस तरह दंगे भड़काये गये हैं, वैसी स्थिति कहीं भी पैदा की जा सकती है; क्योंकि आमजन में समझ ही नहीं है कि वह धर्म के नाम पर राजनीति का शिकार हो रहा है। बहराइच में दंगों के उपरांत दंगे भड़काने वाले अधिकतर आरोपी पतली गली से इधर-उधर हो गये। मगर जो पकड़े गये हैं, उनमें अधिकतर निर्दोष हैं।
बहराइच दंगे की पड़ताल
बहराइच में 13 अक्टूबर की सुबह त्योहारी उमंग के साथ सदैव की तरह निकली थी। हिंदुओं के घरों में कन्या पूजन, हवन आदि का आयोजन हो रहा था एवं मुस्लिम घरों में शान्ति पूर्वक सामान्य दिनचर्या का पालन हो रहा था। बहराइच के महाराजगंज क़स्बे में हिंदुओं की एक टोली दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के लिए एक शोभायात्रा निकाल रहे थे। यह शोभायात्रा निकालने के लिए मुस्लिम बस्ती का रास्ता चुना गया। शोभायात्रा की व्यवस्था के लिए पुलिस प्रशासन की एक छोटी-सी टुकड़ी भी थी। अचानक हंगामा होने लगा, जिसके बाद गोली चलने की आवाज़ आयी एवं रेहुवा निवासी रामगोपाल मिश्रा नाम के युवक की मौत हो गयी। इसके उपरांत पूरे महाराज गंज में मारपीट, आगजनी एवं तोड़फोड़ का दृश्य दिखायी देने लगा। मुस्लिम परिवारों पर हमले होने लगे। हिंदुओं ने आरोप लगाये कि दुर्गा विसर्जन के लिए निकल रही शोभा यात्रा पर मुसलमानों द्वारा पथराव किया गया।
यह समाचार पूरे जनपद में आग की तरह फैल गया एवं समाचार की तरह ही हिंसा की आग ने भी पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया। हिंसा भड़कने के लगभग डेढ़ घंटे बाद प्रशासन की आँख खुली एवं हिंसक झड़पों को रोकने के प्रयास उसी प्रकार किये जाने लगे, जिस प्रकार किसी घर में भीषण आग लगने पर लोग बाल्टियों से पानी डालते हैं। दंगे रुकने का नाम नहीं ले रहे थे एवं चार दिनों तक शहर भर में दंगाइयों का तांडव चलता रहा। बहराइच के जिस महसी तहसील क्षेत्र में हिंसा की चिंगारी रखी गयी, वह क्षेत्र हरदी थाना पुलिस के अंतर्गत आता है। हिंसा को रोकने में हरदी थाना पुलिस से लेकर जनपद पुलिस एवं जिला प्रशासन ने जिस लापरवाही का परिचय दिया, उससे स्पष्ट लगता है कि दंगों के पीछे कोई बड़ी शक्ति का हाथ है अन्यथा पुलिस इतनी भी लापरवाह नहीं है कि दंगे हो रहे हों और उन्हें वह शान्त न करा सके।
इसके संकेत ये हैं कि हरदी थाने के निलंबित कर दिये गये एसओ सुरेश कुमार वर्मा ने दंगे भड़काने की किसी गोपनीय सूचना के आधार पर प्रतिमा विसर्जन से दो दिन पूर्व ही पुलिस उच्चाधिकारियों को पत्र भेजकर क्षेत्र में प्रतिमा विसर्जन के शान्तिपूर्वक निपटान के लिए डेढ़ सेक्शन पीएसी एवं पैरा मिलिट्री फोर्स तैनात करने की माँग की थी; मगर उनकी माँग पर किसी अधिकारी ने कोई ध्यान नहीं दिया। अंत में वही हुआ, जिसकी आशंका एसओ सुरेश कुमार को थी। मगर दंगे भड़कने के उपरांत महसी थाने के सीओ एएसपी ग्रामीण पवित्र मोहन त्रिपाठी, कुछ पुलिसकर्मियों एवं तहसीलदार के अतिरिक्त एसओ सुरेश कुमार वर्मा भी निलंबन की भेंट चढ़ गये। अब महसी थाने के नए एएसपी दुर्गाशंकर तिवारी बने हैं। दो थानों के 29 पुलिसकर्मी लाइन हाज़िर किये गये।
महाराजगंज क़स्बे के रहने वाले एक बुजुर्ग कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी के शासन में आप शान्ति की आशा नहीं कर सकते। उनका सीधा नियम है कि कहीं भी कुछ हो बुलडोज़र चला दो; मगर उन्होंने कभी नहीं समझा कि न्याय ऐसे नहीं होता है। न्याय के लिए जनता को समान दृष्टिकोण से देखा जाना आवश्यक होता है। गुंडों का आतंक समाप्त करने के उनके दावे खोखले हैं। कहीं भी हिंसा भड़कने पर कुछ अधिकारियों का निलंबन एवं आमजनों की गिरफ़्तारी, यही योगी के शासन में होता ही है।
जिन लोगों ने महराजगंज क़स्बे में दंगे भड़कने को अपनी आँखों से देखा उनमें दो मत सामने आ रहे हैं। एक मत के लोग यह कह रहे हैं कि दुर्गा विसर्जन शोभायात्रा निकालने वालों ने दंगे भड़काये हैं एवं दूसरे मत के लोग यह कह रहे हैं कि मुसलमानों ने शोभायात्रा में भाग लेने वालों पर हमला किया, शोभायात्रा पर पथराव किया एवं रामगोपाल मिश्रा की हत्या कर दी। हालाँकि इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है; क्योंकि अभी तक रामगोपाल मिश्रा की हत्या के ठोस प्रमाण सामने नहीं आये हैं। कुछ वीडियो सामने आये हैं जिनमें से एक वीडियो में रामगोपाल मिश्रा किसी मुस्लिम के घर की छत पर चढ़कर नारे लगाते हुए उसका धार्मिक झंडा गिरा रहा है। शोभायात्रा में चल रही भीड़ में से कुछ लोग उसका साथ दे रहे हैं। इसी बीच मारपीट होती है एवं रामगोपाल मिश्रा को एक गोली आकर लगती है, जिससे उसकी मौत हो जाती है।
सूचना है कि शोभायात्रा में बाबा (योगी) का महिमामंडन करने एवं मुस्लिमों को नाम लिए बिना गाली देने वाला कोई लोकल गाना डीजे पर बजाया जा रहा था, जिसे सुनने के बाद एक मुस्लिम परिवार के व्यक्ति ने उस गाने की जगह भजन बजाने को कहा एवं मस्जिद से निकलकर कुछ मुसलमानों ने गाने पर आपत्ति जतायी। इसी बीच रामगोपाल मिश्रा मुस्लिम की छत पर नारे लगाते हुए चढ़ गया एवं उसका धार्मिक झंडा गिराकर अपना धार्मिक झंडा लहराने लगा। हिंसा भड़काने के लिए जब इतना कुछ पर्याप्त नहीं हुआ, तो गाली-गलौज एवं पथराव का काम कुछ उपद्रवियों ने किया। यह पथराव किधर से हुआ? किसने किया? यह जाँच का मुद्दा है।
लेकिन रामगोपाल मिश्रा की हत्या के उपरांत भड़की हिंसा में कुछ मौतें हुई हैं। कई दज़र्न लोग चोटिल हुए हैं। दज़र्नों घर जला दिये गये। दुकानें एवं वाहन जला दिये गये। समाचार तो बलात्कार के भी हैं; मगर इसकी पुष्टि नहीं हुई है। तीन दिन बाद गिरफ़्तारियाँ होनी शुरू हुईं एवं हिंदू-मुस्लिम सब गिरफ़्तार होने लगे। गिरफ़्तार किये गये कई लोगों ने स्वयं को निर्दोष बताया; मगर पुलिस ने किसी की कुछ नहीं सुनी। कई भाजपा कार्यकर्ता भी गिरफ़्तार हुए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी साख बचाने के लिए दंगों में मारे गये रामगोपाल मिश्रा के परिजनों को मुआव•ो के रूप में 10 लाख रुपये, आयुष्मान कार्ड, घर के एक सदस्य को नौकरी, आवास, शौचालय और पीड़ित परिवार को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ देने की घोषणा कर दी। मगर मृतक के परिजन इससे संतुष्ट नहीं हैं। वे आरोपियों के एनकाउंटर की माँग कर रहे हैं। मृतक की विधवा रोली मिश्रा ने ऐसा न करने पर परिवार समेत आत्मदाह की धमकी दी है। उसका कहना है कि परिवार को सरकार से न्याय की आशा थी, जो नहीं मिला।
अचंभे की बात यह है कि बहराइच के महसी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह ने ही पार्टी के भाजपा की युवा मोर्चा इकाई के नगर अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव समेत उपद्रवी भीड़ पर मुक़दमा दर्ज करा दिया। उनका आरोप है कि जब वह रामगोपाल मिश्रा का शव पोस्टमार्टम हाउस में रखवाकर लौट रहे थे, तब अर्पित श्रीवास्तव एवं उसके साथियों ने उनकी गाड़ी पर पथराव किया एवं फायरिंग की।
कई अन्य लोगों ने भी अपने विपरीत पक्ष के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी हैं। हिंसा के उपरांत 23 घरों पर अतिक्रमण के आरोप में बुलडोज़र कार्रवाई के समन चस्पा कर दिये गये हैं। अनेक लोग क़स्बा छोड़कर जा चुके हैं। पूरे जनपद में पुलिस तैनात है। बहराइच की पुलिस अधीक्षक वृंदा शुक्ला ने कमान सँभाल रखी है। रामगोपाल की हत्या मामले में पाँच लोगों को हत्यारोपी बनाकर जेल भेजा गया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि पूरे महराजगंज निवासी अभी तक डरे हुए हैं, जबकि कुछ लोग कहे रहे हैं कि अब जनपद में शान्ति है। इस हिंसा से किसको क्या लाभ होगा यह तो नहीं पता; मगर भाईचारे की हत्या हो चुकी है, जिसके चलते निकट भविष्य में ईर्ष्या समाप्त होने की संभावना नहीं है; भले ही लोग पुलिस के डर से शान्त रहें।
दशकों पहले भी हुई थी हिंसा
बुजुर्ग जानकार कहते हैं कि महाराजगंज जनपद में हिंदू मुस्लिम विवाद वर्ष 1975 में आरंभ हुआ था। उस समय विवाद में हिंसा भी हुई थी; मगर तत्कालीन राज्य सरकार ने इसे निपटा दिया था। मगर वर्ष 1985 के अक्टूबर महीने में मुसलमानों ने एक अर्धनिर्मित छोटी मस्जिद में निर्माण कार्य आरंभ कर दिया, जिसके उपरांत हिंदुओं ने अदालत से इसके स्थगन के आदेश लेकर उस विवादित भूमि में बने कुएँ के पास शिवलिंग की स्थापना करके विवाद और बढ़ा दिया। जब विवाद बढ़ा, तो जनपद प्रशासन ने विवाद निपटाने के पूरे प्रयास किये; मगर किसी भी पक्ष ने प्रशासनिक अधिकारियों के सुझाव स्वीकार नहीं किये। इसके उपरांत प्रशासन ने विवादित भूमि को ही कुर्क कर दिया। इस बार बहराइच में उसी महाराजगंज क़स्बे में हिंसा भड़की, जहाँ 49 वर्ष पूर्व इसकी नींव पड़ी थी।
विज्ञापनों एवं भाषणों में प्रशंसा
भाजपा नेताओं की आदत है कि वे लच्छेदार एवं अपनी पीठ थपथपाने वाली बातें करने को ही काम मानते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने भी विज्ञापनों से लेकर अपने भाषणों तक में अपने शासन को सबसे अच्छा बताते हुए अपनी पीठ थपथपाने का कार्य किया है। मगर सच्चाई यह है कुल 75 जनपदों एवं 18 मंडलों वाले प्रदेश की शासन व्यवस्था उनसे भी नहीं सँभल रही है। मात्र बुलडोज़र एवं एनकाउंटर का डर दिखाकर भले ही उन्होंने कुछ ऐसे गुंडों एवं उपद्रवियों को डरा लिया हो, जो उनके विरुद्ध खड़े दिखे हैं। मगर इसका अर्थ यह भी नही है कि जिन लोगों पर अब तब बुलडोज़र कार्रवाई हुई है, वे अपराधी ही थे। क्योंकि योगी सरकार के विरुद्ध जाने वालों पर चुनकर कार्रवाइयों की लंबी सूची है, जबकि योगी एवं उनकी सरकार की प्रशंसा करने वाले अगर अपराधी भी हों, तब भी सुरक्षित रहते हैं। न्याय का यह मापदंड नहीं हो सकता।
उत्तर प्रदेश में मार्च, 2017 से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में शासन कर रहे हैं। तबसे सितंबर, 2024 तक पुलिस ने 12,964 एनकाउंटर किये हैं, जिनमें पुलिस रिकॉर्ड में 207 अपराधी मारे गये हैं। 27,117 अपराधी पकड़े गये हैं एवं 6,000 घायल हुए हैं। इन मुठभेड़ों में 1,601 पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं एवं 17 शहीद हुए हैं। मगर प्रदेश में गुंडाराज समाप्त नहीं हुआ है। हिंसक झड़पें, बलात्कार, हत्याएँ, चोरियाँ एवं लूट की घटनाएँ नहीं रुक रही हैं। आश्चर्य यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं को इसके लिए कभी ज़िम्मेदार नहीं मानते हैं।