उत्तर प्रदेश: स्टांप ड्यूटी घोटाला

 

फोटोः एपी
फोटोः एपी

उत्तर प्रदेश में रियल इस्टेट कंपनियों, प्रशासनिक अधिकारियों और राजस्व विभाग के कर्मचारियों का एक गठजोड़ संगठित तरीके से कानूनी पेचीदगियों का फायदा उठाते हुए मोटा पैसा बना रहा है और राजकोष को करोड़ों रुपये का चूना लगा रहा है. यह मामला संपत्ति कर विभाग से जुड़ा है.

राज्य में भू-माफिया कृषि योग्य जमीनों को उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार कानून 1950 (यूपीजेडएएलआर) के तहत खरीदते हैं. इसके बाद तत्काल उस भूमि का लैंड यूज कृषि से बदलवा कर आबादी भूमि में करवाया जाता है. यह काम संपत्ति विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से होता है. लैंड यूज बदलने के बाद इस भूमि को आवासीय क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाता है. इसके बाद एक बार फिर से इसका लैंड यूज आबादी की जमीन से कृषि योग्य भूमि में बदलवा दिया जाता है. इसके बाद इसे बाजार भाव पर बेचा जाता है. इस तरह से कृषि भूमि की बिक्री पर सिर्फ चार प्रतिशत स्टांप ड्यूटी भरनी पड़ती है. जबकि आबादी के रूप में रजिस्टर भूमि पर न्यूनतम सात प्रतिशत स्टांप ड्यूटी अदा करनी पड़ती है.

इस घोटाले के अलावा रियल इस्टेट कंपनियां एक और गड़बड़ी में लिप्त हैं. वे अपने हिस्से का संपत्ति कर भी नहीं चुका रही हैं. एक बार किसी जमीन का लैंड यूज कृषि से आबादी में परिवर्तित हो जाने के बाद वह भूमि संपत्ति कर के दायरे से बाहर हो जाती है. उत्तर प्रदेश में पांच लाख तक की जमीनों की खरीद-फरोख्त स्टांप ड्यूटी से मुक्त है.

मथुरा की एक रियल इस्टेट कंपनी ने इस घोटाले से पर्दा हटाने का काम किया है. कंपनी ने अपने क्षेत्र के उपजिलाधिकारी के खिलाफ राज्य के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा के यहां शिकायत दर्ज करवाई. जल्द ही लोकायुक्त ने स्टांप ड्यूटी को धता बताकर राजस्व विभाग को कृषि योग्य भूमि की खरीद-फरोक्त में लगाई जा रही जबर्दस्त चपत की जानकारी प्रदेश सरकार को दी. यह पूरा गिरोह राजस्व विभाग के अधिकारियों, जिले और तहसील के प्रशासनिक अधिकारी और कंपनियों की आपसी मिलीभगत से फल-फूल रहा है.

मथुरा की सदर तहसील के तहसीलदार ने एक रियल इस्टेट कंपनी की याचिका पर कार्रवाई करते हुए तेहरा गांव की चार हेक्टेयर जमीन का लैंड यूज बदल कर पहले उसे कृषि से आवासीय कर दिया. यह दिसंबर 2008 की घटना है. यह आदेश यूपीजेडएएलआर की धारा 143 के तहत पास किया गया. 2013 में मथुरा विकास प्राधिकरण ने इस भूमि के ऊपर एक बहुमंजिला आवासीय योजना को विकसित करने की संस्तुति दी.

भूमि का लगभग आधा हिस्सा खाली छोड़ दिया गया. बाद में कंपनी ने उसी कोर्ट में शेष बचे हुए 2.3 हेक्टेयर भूमि के टुकड़े का लैंड यूज एकबार फिर से आबादी से बदल कर कृषि योग्य करने की याचिका दायर कर दी. यह याचिका यूपीजेडएएलआर की धारा 144 के तहत दायर की गई थी.

संबंधित लेखपाल और कानूनगो से रिपोर्ट मंगाकर तहसीलदार ने लैंड यूज बदलने का आदेश पारित कर दिया. पिछले दिसंबर महीने में कंपनी ने इस कृषि योग्य भूमि को दिल्ली की एक रियल इस्टेट कंपनी के हाथों चार करोड़ रुपये में बेच दिया. इस पूरे लेन देन में राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी का नुकसान हुआ और आयकर विभाग को इस सौदे से होने वाले 30 प्रतिशत कैपिटल गेन का नुकसान हुआ. इस तरह से लैंड यूज परिवर्तित करना अपने आप में एक अपराध है. इस पूरी कवायद का एकमात्र मकसद स्टांप ड्यूटी बचाना था क्योंकि कृषि योग्य भूमि पर लगने वाली स्टंप ड्यूटी आबादी वाली भूमि के मुकाबले बहुत कम होता है.

इस भूमि की कीमत 26.5 करोड़ रुपये थी जिस पर करीब 1.85 करोड़ रुपये स्टांप ड्यूटी अदा करनी थी. जबकि इस पूरे लेन देन में 28 लाख रुपये की स्टांप ड्यूटी अदा की गई. राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी में करीब 1.58 करोड़ का नुकसान हुआ. इसी प्रकार 26.5 करोड़ पर आयकर विभाग का कैपिटल गेन करीब 6.75 करोड़ रुपये होता है. इस प्रकार केंद्र और राज्य सरकार को एक ही सौदे में करीब नौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

लोकायुक्त की जांच में मथुरा के तत्कालीन जिलाधिकारी विशाल चौहान ने स्टांप ड्यूटी में की गई धांधली की पुष्टि की है. जांच के पश्चात स्टांप विभाग के अतिरिक्त पुलिस निदेशक ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उक्त भूमि का पहले आवासीय उद्देश्य से इस्तेमाल किया गया, उस पर बहुमंजिला आवासीय योजना विकसित की गई और इसके बाद एक बार फिर से उसका लैंड यूज आवासीय से बदल कर कृषि करने का मकसद सिर्फ स्टांप ड्यूटी की चोरी करना था.

वर्ष 2013-14 के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को स्टांप और पंजीकरण विभाग द्वारा 10,000 करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हुई थी. इसमें तीन करोड़ से ज्यादा की भूमि और अन्य संपत्तियों की खरीद फरोख्त हुई थी. वर्ष 2014-15  में सरकार ने स्टांप और पंजीकरण विभाग के लिए 12,722 करोड़ रुपये राजस्व की प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का कुल राजस्व आय का लक्ष्य 81,000 करोड़ रुपये है.

लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा बताते हैं, ‘मथुरा मामले की जांच में जो तथ्य सामने आएं हैं, वह तो इस पूरे घोटाले का बहुत छोटा सा हिस्सा है. यह नेटवर्क पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर काम कर रहा है.’ वे आगे बताते हैं, ‘जहां तक मेरी जानकारी है स्टांप ड्यूटी में चोरी का कारोबार सूबे के पांच बड़े जिलों में धड़ल्ले से चल रहा है. लेकिन मैं इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मेरे पास इन जिलों से कोई शिकायत नहीं आई है. अगर मैं अपने स्तर पर जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को कोई निर्देश जारी भी करता हूं तो कंपनियां हाईकोर्ट में इसे चुनौती देकर इस पर स्टे ले लेंगी.’

लोकायुक्त के मुताबिक स्टांप ड्यूटी में चोरी का कारोबार सूबे के पांच बड़े जिलों में धड़ल्ले से चल रहा है. बिल्डर इसके जरिए सरकार को करोड़ो रुपए का चूना लगे रहे हैं

मथुरा जिले से शिकायत मिलने के बाद लोकायुक्तने दूसरे जिलों के जिलाधिकारियों से भी इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है कि क्या वहां भी इस तरह की गड़बड़ी चल रही है. सभी जिलों के जिलाधिकारियों ने अपने यहां राजस्व विभाग के अधिकारियों और रियल इस्टेट कंपनियों की मिलीभगत से स्टांप ड्यूटी की खुलेआम हो रही चोरी की बात स्वीकार की है.

‘लैंड यूज में फेरबदल करके स्टांप ड्यूटी में चोरी करना कोई नई बात नहीं है,’ स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं. ‘यह धांधली पिछले एक दशक से जारी है, लेकिन सरकार इस गड़बड़ी से निपटने का कोई पुख्ता तरीका आज तक नहीं खोज सकी है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्टांप एवं पंजीकरण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह काम हो रहा है लेकिन वे तब तक अकेले इस काम को अंजाम नहीं दे सकते जब तक कि इसमें राजस्व विभाग के लोग शामिल नहीं हों. क्योंकि अंतत: वे ही भूमि के रिकॉर्ड में फेरबदल करने का काम करते हैं.’

‘भूमि की जांच रेवेन्यु रिकॉर्ड कीपर और राजस्व अधीक्षक द्वारा की जाती है. वे ही किसी भूमि को कृषि अथवा आवासीय होने का प्रमाणपत्र देते हैं. इसी रिपोर्ट के आधार पर भूमि का रजिस्ट्रेशन होता है. जो घोटाला मथुरा में सामने आया है वह तो कुछ भी नहीं है. यहां एक भारी-भरकम नेटवर्क है जो पूरे राज्य में संगठित तरीके से काम कर रहा है. सिर्फ एक साल के भीतर यह नेटवर्क सैंकड़ों करोड़ रुपये का चूना केंद्र और राज्य सरकार को लगा रहा है.’

2007-08 से अब तक सिर्फ मथुरा में ही इस तरह के 32 मामले सामने आ चुके हैं जिसमें लैंड यूज को पहले कृषि से आवासीय में बदला गया और बाद में उसे फिर से कृषि में तब्दील कर दिया गया. अगर जिले के संबंधित अधिकारियों ने यूपीजेडएएलआर की धारा 144 के तहत ये बदलाव नहीं किए होते तो राज्य सरकार के खाते में चार करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व आया होता. अब तक राज्य सरकार ने इन 32 मामलों में कोई भी कर्रवाई नहीं की है. लोकायुक्त भी खुद को इस मामले में अक्षम पाते हैं क्योंकि न तो किसी ने उनके पास शिकायत दर्ज करवाई है न ही राज्य सरकार ने इस मामले की जांच उनके सुपुर्द की है.

एक अध्ययन के मकसद से लोकायुक्त ने पिछले दो सालों के दौरान गौतम बुद्ध नगर, लखनऊ, आगरा, कानपुर, बाराबंकी और गाजियाबाद के जिलाधिकारियों से पिछले दो सालों के दौरान लैंड यूज में किए गए बदलावों की सूचना मांगी थी.

  • गाजियाबाद के जिलाधिकारी ने स्वीकार किया कि लैंड यूज में बदलाव के जरिए स्टांप ड्यूटी में 7.15 करोड़ रुपये का नुकसान राज्य सरकार को हुआ है.
  • कानपुर में लैंड यूज में बदलाव के कुल 32 मामले सामने आए हैं. इस बदलाव से सूबे को करीब तीन करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है.
  • आगरा के जिलाधिकारी ने बताया कि पिछले दो सालों के दौरान लैंड यूज में बदलाव के कुल छह मामले सामने आए हैं. इससे राजस्व को करीब 4 लाख रुपये का घाटा हुआ है.
  • बीते दो सालों के दौरान बाराबंकी जिले में लैंड यूज में बदलाव के कुल 17 मामले सामने आए. इसमें राज्य सरकार को करीब 75 लाख रुपये के राजस्व का नुकसान बताया गया.

राज्य सरकार को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में लोकायुक्त ने पिछले पांच सालों के दौरान हुए इस तरह के सभी भूमि सौदों की जांच की सिफारिश की है. अपनी जांच में उन्होंने कहा है कि इस जांच की जिम्मेदारी राजस्व बोर्ड के चेयरमैन या उसके किसी सदस्य को सौंपी जानी चाहिए. साथ ही रिपोर्ट उन अधिकारियों के लिए कठोर दंड की मांग भी करती हैं जिन्होंने लैंड यूज बदल कर राजकोष को नुकसान पहुंचाया है.