असुरक्षित कोचिंग सेंटर

– भारत में बच्चों की जान जोखिम में डालकर चल रहे कई कोचिंग सेंटर्स

इंट्रो- भारत के सभी शहरों, क़स्बों और गाँवों में चलने वाले कोचिंग सेंटर्स में से ज़्यादातर सरकार के दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर चलाये जा रहे हैं। इसकी पड़ताल ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ख़ुद एक कोचिंग सेंटर के मालिक से जानकारी लेकर की। हाल ही में दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर में पानी भरने से आईएएस की तैयारी करने वाले तीन अभ्यर्थियों की डूबकर दु:खद मौत और छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र ‘तहलका’ द्वारा की गयी पड़ताल से पता चलता है कि कैसे ये कोचिंग सेंटर छात्रों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित न करके सरकारी दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-


‘कोचिंग सेंटर मृत्यु कक्ष बन गये हैं और छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर में एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में आईएएस की तैयारी करने वाले तीन अभ्यर्थियों के डूबने की घटना के सम्बन्ध में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को समन जारी किया। मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि यह घटना सभी के लिए आँखें खोलने वाली थी। पीठ ने कहा कि ‘यह भयानक है, जो हम पढ़ रहे हैं। अगर ज़रूरत पड़ी, तो हम इन कोचिंग सेंटर्स को भी बंद कर देंगे। फ़िलहाल कोचिंग ऑनलाइन होनी चाहिए, जब तक कि भवन नियमों और अन्य सुरक्षा मानदंडों का सावधानीपूर्वक पालन न हो। ये स्थान (कोचिंग सेंटर) मौत के घर बन गये हैं। कोचिंग सेंटर इन अभ्यर्थियों के जीवन से खेल रहे हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों से सपने लेकर आते हैं और कड़ी मेहनत कर रहे हैं।’

‘सरकारी अधिकारी सुबह 11:00 बजे, 12:30 बजे या अधिकतम 1:30 बजे तक औचक निरीक्षण के लिए आते हैं। उसके बाद वे जाँच के लिए नहीं आते। इसलिए मैं 16 साल से कम उम्र के नाबालिग़ छात्रों को अपने कोचिंग सेंटर में प्रवेश दूँगा और उनकी कक्षाएँ दोपहर 3:00 बजे आयोजित करूँगा; जिस समय कोई सरकारी अधिकारी जाँच के लिए नहीं आता है। एक दिन कुछ सरकारी अधिकारी निरीक्षण के लिए मेरे कोचिंग सेंटर में आये; लेकिन मैंने अपने सेंटर के ख़िलाफ़ किसी भी कार्रवाई को रोकने के लिए उन्हें रिश्वत दी।’ दिल्ली-एनसीआर में एकलव्य नाम के कई कोचिंग सेंटर्स के मालिक प्रशांत (उनके पहले नाम से जाना जाता है) ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर से यह बात कही।

रिपोर्टर ने अपने दोस्त के 16 साल से कम उम्र के (काल्पनिक) बच्चों को नीट की तैयारी के लिए दाख़िला दिलाने के बहाने नोएडा के सेक्टर-15, एकलव्य की शाखा में प्रशांत से मुलाक़ात की। प्रशांत ने शिक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए उन्हें प्रवेश देने पर सहमति व्यक्त की, जो पूरे भारत में किसी भी कोचिंग संस्थान में 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है। छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों, आग की घटनाओं, कोचिंग सेंटर्स में सुविधाओं की कमी और उनके द्वारा अपनायी जाने वाली शिक्षण पद्धतियों की शिकायतों के बाद इस साल जनवरी में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे। केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोचिंग सेंटर 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों का नामांकन नहीं कर सकते, भ्रामक वादे नहीं कर सकते, या रैंक या अच्छे अंकों की गारंटी नहीं दे सकते। कोचिंग संस्थानों को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश एक क़ानूनी ढाँचे के आवश्यक और निजी कोचिंग सेंटर्स की अनियमितताओं को प्रबंधित करने के लिए तैयार किये गये थे। इन दिशा-निर्देशों के बाद ‘तहलका’ ने यह देखने के लिए एक जाँच की कि कितने कोचिंग सेंटर सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं। हमें आश्चर्य हुआ कि इस जाँच के दौरान ‘तहलका’ रिपोर्टर न जिन भी कोचिंग सेंटर्स से संपर्क किया, उनमें से किसी ने भी सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करने की ज़हमत नहीं उठायी। इनमें से लगभग सभी खुलेआम सरकारी नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।

प्रशांत ने न केवल सरकारी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया, बल्कि यह भी बताया कि कैसे उन्होंने अपने कोचिंग सेंटर को गुप्त रूप से संचालित करके सीओवीआईडी-19 लॉकडाउन के दौरान अधिकारियों को चकमा दिया। प्रशांत ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से बात करते हुए कहा- ‘कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मैं गुप्त रूप से अपना कोचिंग सेंटर चला रहा था। मैंने गेट पर एक आदमी को तैनात कर दिया, ताकि अगर कोई पुलिसकर्मी आये, तो मुझे सूचित कर सकूँ। अधिकारियों को गुमराह करने के लिए मैं अपने सेंटर की सभी लाइटें बंद कर देता था, ताकि उन्हें लगे कि मेरा कोचिंग सेंटर बंद हो गया है। लेकिन मैं सभी कक्षाएँ अपने केंद्र पर ले रहा था। मैंने छात्रों से कहा कि वे बैग नहीं, बल्कि कॉपी और पेन लेकर आएँ। इस तरह मैं लॉकडाउन के दौरान अधिकारियों की आँखों में धूल झोंकने में कामयाब रहा।’

नई दिल्ली के पुराने राजिंदर नगर में एक कोचिंग सेंटर में बाढ़ के कारण तीन यूपीएससी अभ्यर्थियों की मौत की दु:खद घटना को टाला जा सकता था, अगर प्रभारी अधिकारी शहर भर के कई कोचिंग सेंटर्स द्वारा किये गये सुरक्षा उल्लंघनों के बारे में सतर्क रहते। घटना के बाद ख़बरें आ रही हैं कि नोएडा और गुरुग्राम के कई अनियमित कोचिंग संस्थान जाँच के दायरे में हैं। यह पता चला है कि गुरुग्राम में 300 से अधिक कोचिंग सेंटर अग्निशमन विभाग से अनिवार्य अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनओसी) के बिना चल रहे हैं।

यह उजागर करने के लिए कि कोचिंग सेंटर किस तरह से सरकारी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं; ‘तहलका’ रिपोर्टर ने प्रशांत से नोएडा के सेक्टर-15 में उनके एकलव्य कोचिंग सेंटर में मुलाक़ात की। ‘तहलका’ रिपोर्टर न उनके सामने एक काल्पनिक सौदे का प्रस्ताव रखा कि हमारे मित्र के बच्चे, जो 16 वर्ष से कम उम्र के हैं, नीट की तैयारी के लिए उनके कोचिंग सेंटर में दाख़िला लेना चाहते हैं। प्रशांत बच्चों का नामांकन करने के लिए सहमत हो गये, जो कि सरकारी दिशा-निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है कि कोई भी कोचिंग सेंटर 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का नामांकन नहीं कर सकता है।

रिपोर्टर : ठीक है, …क्यूँकि उनको थोड़ा ये था कि गाइडलाइंस आयी हैं ना!

प्रशांत : कितने स्टूडेंट हैं?

रिपोर्टर : कम से कम 8-10 मिल जाएँगे।

प्रशांत : ले आइए, …विजिट करा दीजिए।

रिपोर्टर : दिखा देता हूँ बच्चों को भी, …पैरेंट्स को भी। हैं सब 14-15 साल के…।

प्रशांत : कहो तो मैं अपने टीचर्स से कहूँ, काउंसलिंग कर आए। ऐसी कोई जगह है, जहाँ सारे पैरेंट्स बैठ जाएँ?

रिपोर्टर : नहीं, ऐसी तो नहीं है। कहो तो पार्क में…?

प्रशांत : हाँ; पार्क भी चलेगा। हम खड़े होकर स्पीच दे सकते हैं।

रिपोर्टर : थोड़ा-सा वो यही सोच रहे थे, …जबसे सरकार की गाइडलाइन आयी हैं ना! …16 साल से कम एज के कोचिंग सेंटर में एडमिशन नहीं ले सकते। कहीं ऐसा न हो दिक़्क़त-परेशानी हो जाए? …ये है।

प्रशांत : 3:00 बजे के बाद हम कर सकते हैं। …आप उनको बता दीजिए। …अवेयर कर दीजिए।

रिपोर्टर : कन्फर्म कर दूँ?

प्रशांत : एक दम कर दीजिए सर!

जब प्रशांत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का नामांकन करने के लिए सहमत हो गये, तो उन्होंने अपने केंद्र में उन छात्रों के प्रबंधन के लिए अपनी योजना हमारे संवाददाता के साथ साझा की। उन्होंने बताया कि सरकारी अधिकारी आमतौर पर दोपहर 2:00 बजे से पहले औचक निरीक्षण करते हैं। इसलिए पहचान से बचने के लिए वह इन कक्षाओं को दोपहर 3:00 बजे निर्धारित करेंगे।

रिपोर्टर : अच्छा, हमारी सोसायटी में कई बच्चे हैं, जिनको नीट और जेईई की कोचिंग चाहिए; पर हैं वो नाइंथ में। …एज है उनकी कम, 15 साल से। …नाइंथ के हैं, 16 साल से कम, तो कैसे करोगे फिर आप?

प्रशांत : एक बार पूछ लेता हूँ XXXX सर से।

रिपोर्टर : xxxxx कौन?

प्रशांत : xxxxx सर अथॉर्टी में xxxx हैं। वो कह रहे थे ऐसा होगा, तो मेरे को बताना। बात कर लूँगा। यहाँ नोएडा अथॉरिटी में हैं। हो सकता है…।

रिपोर्टर : ठीक।

प्रशांत : स्कूल से बच्चा कै बजे आता है?

रिपोर्टर : स्कूल से आता है 1:00-1:30 पीएम।

प्रशांत : तो हम 3:00 बजे के बाद ही क्लास कर सकते हैं।

रिपोर्टर : ठीक है। …3:00 पीएम के बाद रख लेंगे।

प्रशांत : रख लेंगे। क्यूँकि 3:00 बजे तक जनरली सारे ऑफिसर्स घूमकर चले जाते हैं। विजिट तो होती हैं ना ऑफिसर की, वो 11:00 बजे, 12:00 बजे, मोस्टली ज़्यादा-से-ज़्यादा 1:30 पीएम से पहले…।

रिपोर्टर : अच्छा; इसका मतलब शाम को नहीं आते? शाम को कोई डर नहीं है?

प्रशांत : डर नहीं है।

रिपोर्टर : ओके, शाम को रखते हैं। …3:00 बजे के बाद।

प्रशांत : डन सर!

रिपोर्टर : फाइनल करूँ?

प्रशांत : हाँ, सर!

प्रशांत ने उल्लेख किया कि उनकी एक कक्षा शाम 4:00 बजे के बाद ख़ाली रहती है, जिससे रिपोर्टर ने परिसर के निरीक्षण के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि ये निरीक्षण बेसिक शिक्षा कार्यालय (बीओ) के अधिकारियों द्वारा किये जाते हैं, जो ज़िला शिक्षा अधिकारी (डीओ) के आदेश पर कार्य करते हैं।

प्रशांत : और मेरा एक रूम ख़ाली भी रहता है अभी। …4:00 बजे से पूरी क्लास ख़ाली है।

रिपोर्टर : ये चेक करने वाले कहाँ से आते हैं?

प्रशांत : सर! ये बीओ से आते हैं।

रिपोर्टर : बीओ मतलब?

प्रशांत : बेसिक एजुकेशन ऑफिसर। …ये ब्लॉक लेबल पर होता है, और डीओ उसको ऑर्डर देता है। डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिसर…डीओ।

प्रशांत ने अब हमारे रिपोर्टर के सामने स्वीकार किया कि वह अपनी अवैध गतिविधियों को छुपाने के लिए सिस्टम में किस हद तक हेरफेर करता है। उन्होंने एक विशेष उदाहरण का ज़िक्र किया, जहाँ उन्होंने अपने कोचिंग सेंटर में औचक निरीक्षण के दौरान सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी थी, इस तथ्य को छुपाते हुए कि वह 16 साल से कम उम्र के छात्रों को निर्देश दे रहे थे। उन्होंने ख़ुलासा किया कि कैसे उन्होंने औचक निरीक्षण के दौरान माता-पिता के रूप में प्रस्तुत अधिकारियों की पहचान की थी, और कैसे उन्होंने जानकारी छिपाकर और बाद में बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसओ) को रिश्वत देकर स्थिति को नियंत्रित किया था।

रिपोर्टर : वो (जाँच अधिकारी) आ चुके हैं,  …वहाँ आपके इंस्टीट्यूट में?

प्रशांत : हाँ; एक बार आये थे बीओ और दो पुलिस ऑफिसर।

रिपोर्टर : आजकल बच्चों को देखकर एज ही पता नहीं चलती। बच्चों की फिजिक्यू ही ऐसी है, …सब बच्चे नहीं लगते।

प्रशांत : जब आये, तो मुझे बताया नहीं। जैसे आप कैसे पैरेंट्स बनके आये हो। पैरेंट्स ही हो?…हाहाहा (हँसते हुए)… वो पैरेंट्स बनके आये थे। हाँ; असल में तीनों बंदे, …एक यहाँ बैठे और दो यहाँ सोफे पर। अच्छा बाद में बताया- मैं बेसिक एजुकेशन का अधिकारी हूँ। …बहुत बाद में बताया। पूरा जायज़ा ले लिया मेरे से। वो तो अच्छा हुआ मैंने बताया नहीं, मैं पढ़ाता भी हूँ स्कूल के…, ये नाइंथ -टैंथ के बच्चों को।

रिपोर्टर : आपने नहीं बताया?

प्रशांत : हाँ; नहीं बताया। बोले आप पढ़ाते हो? मैंने कहा नहीं सर! फिर बोले- आप रजिस्ट्रेशन दिखाइए। मैंने बोला- ऐज अ पैरेंट आप रजिस्ट्रेशन कैसे देख सकते हो? आप मेरे वेबसाइट पर जाओ, सारा उसमें दिया हुआ है; आप देखो सर! उन्होंने कहा- अच्छा; बताइए आपने एमसीआर में रजिस्टर करवाया है? मैंने कहा- मैंने लोकल अथॉरिटी में कराया हुआ है। और एमसीआर के लिए फाइल दिया हुआ है सर! वहाँ भी सर हो जाएगी। मैंने सीए से बात कर ली है। बोले- लोकल अथॉरिटी में कराया है? मैंने कहा- कराया है सर! मैंने कहा- लोकल अथॉरिटी तो छोड़ो, मैंने भारत सरकार का अति शूक्ष्म लघु उद्योग होता है, उसमें भी कराया है। बोले- अच्छा, दिखाइए उसकी कॉपी। ड्राउर खोला, निकाला दिखा दिया। अच्छा; कोर्स का कुछ पूछ ही नहीं रहा है। जैसे आप पूछ रहे हो। मैं भई सोचूँ, बंदा कोर्स नहीं पूछ रहा है। ऊल-जुलूल पूछ रहा है। ये नहीं कराया, वो नहीं; …इधर-उधर का पूछ रहा है।

रिपोर्टर : आपको डाउट नहीं हुआ?

प्रशांत : मेरे को डाउट हुआ।

रिपोर्टर : ये भी तो पैसे उगाही के साथन हैं?

प्रशांत : फिर डाउट तब हुआ, जब दूसरा जो है ना! कोचिंग वाला, करियर लाउंचर, उसका फोन आया मेरे पास। ऐसा है, हम लोग की कोचिंग की एक टीम है, मीटिंग होती है ना हमारी सैटर्डे-संडे को, या तो सप्ताह में एक दिन, …या 15 दिन में। हम लोग आपस में मिलते हैं एक जगह कोचिंग संचालक होते हैं। उनका फोन आया, प्रशांत सर! वो चेक करने वाला आपके यहाँ आया क्या? मैंने पूछा, कौन? कितने बच्चें हैं? कि सर तीन बच्चे हैं। दो सर प्रिंसिपल और एक सर चेक शर्ट में, पीला-पीला शर्ट में, वो हैं बीएसओ साहब। वही थे। मैंने कहा सर! बीएसओ साहब आपको जो-जो पूछना है, डायरेक्ट पूछो। मैं सर पहचान गया आपको।

रिपोर्टर : अब तो चेहरा पहचान गये आप, …अब तो आ ही नहीं सकता कोई?

प्रशांत : मैंने कहा- आपको मैंने पहचान लिया अब बताओ क्या लोगे, …चाय-कॉफी? वो सर- कुछ नहीं, मैं बात कर लूँगा। उसको सर पैसा भी दिया था।

रिपोर्टर : किसको दिया?

प्रशांत : बीएसओ को, कुछ दे दिया मैंने. …मैनेज कर लो।

रिपोर्टर : मैंने यही तो बोला आपको, ये साधन हैं पैसा उगाही के….।

प्रशांत : हाँ।

प्रशांत ने उन युक्तियों पर भी प्रकाश डाला, जिनका उपयोग उन्होंने सरकारी अधिकारियों को औचक निरीक्षण के दौरान अपने केंद्र में 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों को खोजने से रोकने के लिए किया था। उदाहरण के लिए, उन्होंने आख़िरी केबिन में कक्षाएँ संचालित करने का उल्लेख किया, एक ऐसा स्थान जहाँ निरीक्षण दल शायद ही कभी पहुँचते हैं।

रिपोर्टर : नाइंथ-टैंथ की क्लास आप कैसे करते हो?

प्रशांत : क्लास सर अंदर होती हैं। लास्ट केबिन में। अगर नाइंथ का बच्चा होगा, उसका क्लास अलग लूँगा। टैंथ का होगा, उसका अलग लूँगा। एक साथ मर्ज नहीं किया जाएगा।

रिपोर्टर : हाँ; तो नाइंथ-टैंथ की एज होगी 15-16 साल।

प्रशांत : हाँ; उसको अलग-अलग क्लास में करवाएँगे।

रिपोर्टर : तो आप नाइंथ और टैंथ की यही कराते हैं क्लास?

प्रशांत : हाँ; अंदर है। थोड़ा ठीक रहेगा।

यह ख़ुलासा करते हुए कि कैसे वह 16 साल से कम उम्र के छात्रों का नामांकन करके सरकारी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं; प्रशांत ने यह भी बताया कि कैसे उन्होंने कोरोना-काल में लगे लॉकडाउन के दौरान भी नियमों का उल्लंघन किया था। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने केंद्र में लाइटें बंद करके कक्षाएँ संचालित कीं और किसी भी पुलिस के आगमन के बारे में पहले से जानकारी देने के लिए गेट पर किसी को तैनात किया।

प्रशांत : कोरोना में तीन बार चेक करने आया। मैं ढीठ हूँ, अंदर से बंद करके पढ़ा रहा था बच्चों को।

रिपोर्टर : कोरोना में?

प्रशांत : जी सर! वो बड़े वाले रूम में, मतलब यहाँ पर सब लाइट ऑफ कर दिया, एक ऑफिस बॉय गेट पर रख दिया मैंने, …मैंने बोला- सायरन बजता देखे, तो मुझे बोलना आकर। मैं बच्चों को बोलता था, एक कॉपी लेकर आना, कोई बेग-वैग नहीं। कॉपी बच्चा लाता था, …लड़के भी लड़कियाँ भी। ख़ाली एक कॉपी, वो भी छुपाके, शक न हो।

अब, प्रशांत कोटा में छात्रों पर पड़ने वाले भारी दबाव पर प्रकाश डालते हैं, जो अपनी गहन कोचिंग संस्कृति के लिए जाना जाता है। वह बताते हैं कि पढ़ाई के लंबे और कठिन घंटे, माता-पिता और शिक्षकों दोनों की उच्च अपेक्षाओं के साथ मिलकर, छात्रों के लिए मानसिक रूप से तनावपूर्ण माहौल बनाते हैं। उनका सुझाव है कि यह छात्रों को कगार पर धकेल सकता है, जिससे गंभीर तनाव हो सकता है और कुछ मामलों में तो आत्महत्या भी हो सकती है। प्रशांत छात्रों को इस चुनौतीपूर्ण परिदृश्य से निपटने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत परामर्श की पेशकश के महत्त्व पर भी बात करते हैं।

रिपोर्टर : कोटा में इतना दबाव क्यूँ बना देते हैं बच्चों पर?

प्रशांत : सर! चार घंटे कौन क्लास लेता है? लगातार 4:00-4:30 घंटे, …चार घंटा-पाँच घंटा, पैरेंट्स का ऊपर से भी दबाव रहता है। इस बार टेस्ट में अच्छे नंबर नहीं लाया ना! मैं बताऊँगा अभी। और टीचर भी दबाव में, टीचर इसलिए दबाव करता है, टीचर को रिजल्ट चाहिए। बच्चों पर मेंटली प्रेशर आ जाता है। … सुसाइड करेगा, क्या करे? अब मैं इस लड़की को बार-बार बोलूँ- अरे तू फेल होगी, मैं इसलिए बैठा हूँ क्या? मैं तो कहूँगा ना! आप अच्छा करोगे, बहुत अच्छा करोगे। …इस तरह से बोलूँगा। इसलिए हम अपने बुक में लिखते हैं, पर्सनल मेंटर्शिप, पर्सनल लेवल पर भी गाइडेंस देते रहते हैं।

इसके बाद प्रशांत ने नाबालिग़ों को कोचिंग प्रदान करने के लिए विभिन्न कोचिंग शुल्कों का हवाला दिया। शुरुआत में एनईईटी कोचिंग के एक वर्ष के लिए 82,000 रुपये की माँग की। कुछ बातचीत के बाद उन्होंने नामांकन सुरक्षित करने के लिए छूट की पेशकश करते हुए क़ीमत घटाकर 71,500 रुपये कर दी। बातचीत से प्रशांत के अपने संकाय के साथ सावधानीपूर्वक समन्वय का भी पता चलता है, जो प्रतिशत के आधार पर काम करते हैं, और उनका आश्वासन है कि कक्षाओं के समय-निर्धारण में कोई समस्या नहीं होगी।

रिपोर्टर : चार्जेज कितना होगा सर?

प्रशांत : चार्जेज…, सर! एक बार मैं बात कर लेता हूँ अपनी फैकल्टी से, क्यूँकि वो पर्सेंटेज बेस पर हमारे यहाँ काम करते हैं।

रिपोर्टर : फिर भी, एक आइडिया टेंटेटिव?

प्रशांत : सर! दो मिनट का समय दीजिए, पूछ लेता हूँ। …सर! बच्चा नाइंथ से, टैंथ में जाएगा?

रिपोर्टर : हाँ, सर!

प्रशांत : इसमें सर ये ही है, …82 थाउजेंट लेते हैं। 82 के (हज़ार) पर ईयर।

रिपोर्टर : अच्छा; 82 के? …इसकी ज़्यादा है।

प्रशांत : बता रहा हूँ कैसे ज़्यादा है। और अभी सर हम उसका ले लेंगे 71,500 में। …डिस्काउंट दे रहे हैं।

रिपोर्टर : तो 72 के में बोल दूँ?

प्रशांत : हाँ; ईयरली, …रुपीज 71,500, ऊपर-नीचे हम देख लेंगे।

रिपोर्टर : डन कर दूँ फिर?

प्रशांत : हाँ; कर दीजिए। देख लेंगे अभी कैमिस्ट्री वाले को भी बुला लेंगे, …फिजिक्स वाले की क्लास चल रही है।

रिपोर्टर : आपके कोचिंग सेंटर में कोई दिक़्क़त तो नहीं होगी?

प्रशांत : नहीं, कोई दिक़्क़त नहीं है।

प्रशांत : 3:30 पीएम बजे के बाद कभी भी उसको ले सकते हैं।

पता चला है कि इस साल अकेले कोटा में नीट-जेईई की तैयारी कर रहे 15 छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गयी है, जबकि पिछले साल शहर में ऐसी 27 मौतें हुई थीं। अधिकारी कोचिंग सेंटर्स के उच्च दबाव वाले माहौल से उत्पन्न होने वाले मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों के समाधान के लिए काम कर रहे हैं। 27 जुलाई को पास के नाले के फटने से कथित तौर पर तीन छात्रों की मौत हो गयी और कई अन्य फँस गये, जिससे दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर में यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में बाढ़ आ गयी। चौंकाने वाली घटना पर प्रतिक्रिया करते हुए, छात्रों ने कोचिंग सेंटर के बाहर विरोध-प्रदर्शन और नारे लगाये और मौतों के लिए जवाबदेही की माँग की।

देश भर में कोचिंग सेंटर्स को विनियमित करने के प्रयास में शिक्षा मंत्रालय ने इस साल जनवरी में 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों के नामांकन पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश पेश किये थे। हालाँकि हमारी जाँच से पता चला है कि कैसे कोचिंग सेंटर इन दिशा-निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं, यहाँ तक कि राजधानी दिल्ली में भी। इससे 500 किलोमीटर से अधिक दूर स्थित कोटा जैसे शहरों की स्थिति के बारे में चिन्ता पैदा होती है। पुराने राजिंदर नगर में दु:खद मौतों और कोटा में आत्महत्या की चल रही ख़बरों ने राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है।

सरकार द्वारा इन मुद्दों को संबोधित करने और कोचिंग सेंटर्स पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से नियम लागू करने के बावजूद कोचिंग सेंटर्स ने आँखें मूँद ली हैं। कई अधिकारी भी दिशा-निर्देशों को सख़्ती से लागू करने में अनिच्छुक दिखायी देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन कोचिंग सेंटर्स को छात्रों के जीवन को ख़तरे में डालने वाला ‘मृत्यु कक्ष’ बताया है। क्या ‘तहलका’ की जाँच सरकार को दिशा-निर्देशों का पालन न करने वाले इन सेंटर्स के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करेगी?