भारत-पाकिस्तान सीमा पर संक्षिप्त युद्ध ख़त्म हो गया है। एक और युद्ध है, जिसे ख़त्म किया जाना है। और यह अवसर इसी युद्ध ने दिया है। यह युद्ध है- देश के भीतर पैदा की गयी नफ़रत का; ख़ासकर हिन्दू-मुस्लिम नफ़रत का। अफ़सोस है कि नफ़रत का यह युद्ध किसी सीमा तक अब भी जारी है। इस युद्ध को भड़काने वाले गिरोह अब भी सक्रिय हैं। यह गिरोह राजनीतिक संरक्षण में ताक़तवर हुए हैं, लिहाज़ा उन्हें कोई रोकता नहीं। ज़मीन पर बेशक नफ़रत का यह सैलाब न रुका हो, देश के सर्वोच्च स्तर पर यह साबित किया गया है कि देश भक्ति धर्म से नहीं आँकी जाती, बल्कि यह ख़ून में होती है। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं भारतीय सेना की कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी। जब भी वह प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए टीवी पर दिखीं, देश ने अपने भीतर एक ऊर्जा, एक भरोसा महसूस किया। यही भारत की असली ताक़त है।
पहलगाम की बैसरन घाटी की घटना याद कीजिए। आतंकवादियों ने जब 25 पर्यटकों और एक स्थानीय नागरिक की हत्या की, तो उन्होंने पर्यटकों से उनका धर्म पूछा था। आतंकवादियों का यह तरीक़ा है; क्योंकि आतंक और नफ़रत फैलाना उनका काम है। लेकिन इसकी सज़ा नफ़रती गिरोह, ट्रोल्स ने किसे दी? बेक़ुसूर कश्मीरी मुसलामानों को। दूसरे राज्यों में पढ़ रहे उनके बच्चों को। देश के दूसरे मुसलमानों को भी। उन्हें परेशान किया गया। मारा-पीटा गया। और जब पाकिस्तान के साथ तीन दिन तक युद्ध चला, पाकिस्तान की तोपों की सबसे ज़्यादा त्रासदी इन्हीं कश्मीरियों ने झेली। यह कश्मीरी मुसलमान ही थे, जो पहलगाम की घटना के बाद पूरी ताक़त से आतंकवादियों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे थे।

और उदाहरण देखिये। पाकिस्तानी मीडिया के घटिया प्रोपेगेंडा का सबसे ज़्यादा पर्दाफ़ाश किसने किया? भारतीय पत्रकार और तथ्यों के जाँचकर्ता मोहम्मद ज़ुबैर ने। पहलगाम की घटना के बाद पाकिस्तान क्रिकेट के पूर्व कप्तान अफ़रीदी ने जब बकवास की, तो उनके ख़िलाफ़ सबसे कड़े अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किसने किया? असदुद्दीन ओवैसी ने, जिनके ख़िलाफ़ नफ़रत भरी आग यह गैंग उगलता रहता है। उन्होंने उसके बाद भी युद्ध स्थिति में लगातार भारतीय सेना का हौसला बढ़ाने वाले बयान दिये। जब ट्रोल्स और नफ़रती गिरोह नफ़रत फैलाने में लगा था, ये तमाम मुस्लिम भारत की आवाज़ बुलंद कर रहे थे। ज़ाहिर है जब देश पर हमला होता है, सब भारतीय होते हैं और तमाम चीज़ें भूल जाते हैं।
मुस्लिम छोड़िए, इस नफ़रती गिरोह से ज़्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने तो विदेश सचिव विक्रम मिस्री को ही नहीं छोड़ा, जो एक हिन्दू हैं। क्यों? क्योंकि मोदी सरकार के युद्ध-विराम (सीजफायर) के फ़ैसले की सूचना प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने दी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद हिन्दूवादी ट्रोलर उनके पीछे पड़ गये। बेहद ही सभ्य, मेहनती और ईमानदार राजनयिक मिस्री के ख़िलाफ़ हिन्दूवादी नफ़रती गैंग की इस हरकत से हर समझदार भारतीय हतप्रभ था। और उनके बचाव में सबसे पहले कौन आगे आया? हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी।
इसी तरह मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह ने एक सभा में कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी का नाम लिए बिना उन्हें पाकिस्तानी आतंकियों से जोड़कर बेहूदा टिप्पणी की, कि ‘हमने उनकी बहन भेजकर उनकी ऐसी-तैसी करवायी।’ मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह के इस विवादित बयान को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सख़्त रुख़ अपनाया है। कोर्ट ने कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी को लेकर दिये गये इस बयान पर स्वत: संज्ञान लेते हुए विजय शाह के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया, जिसके बाद मऊ क्षेत्र में उनके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हुई। जब इस एफआईआर के ख़िलाफ़ शाह सुप्रीम कोर्ट पहुँचे, तो वहाँ उन्हें कड़ी फटकार लगी। ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफिंग में पाँच दिन तक कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ विक्रम मिस्री चेहरा रहे थे। उच्चतम तनावपूर्ण स्थिति में भारत की स्थिति और पक्ष को यह तीन देश के सामने लाये। अफ़सोस की बात है कि एक राजनीतिक पलने में पल रहे इन नफ़रतियों ने विदेश सचिव को भी नहीं बख़्शा। यहाँ तक कि कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी पर भी भद्दी टिप्णियाँ करने से बाज़ नहीं आये।
नफ़रत का सिलसिला तो दश में 2014 के बाद ही शुरू हो गया था; लेकिन हाल के वर्षों में इसे इस हद तक आगे बढ़ाया गया है कि इसके नतीजों की कल्पना करके भी सिहरन होती है। आज देश में कितने लोग हैं, जो यह दावा कर सकें कि उनके पूर्वजों ने देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में भागीदारी की? लेकिन कर्नल सोफ़िया को यह गौरव हासिल है। कर्नल सोफ़िया की परदादी सन् 1857 के विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई के साथ लड़ी थीं। ख़ुद सोफ़िया ने सन् 2017 में एक इंटरव्यू के दौरान यह बात कही थी। उनके दादा भी सेना में रहे। सच यह है कि उनके परिवार का इतिहास भारतीय सेना से जुड़ा है। उनके पिता सन् 1971 के बांग्लादेश युद्ध में लड़े थे। चाचा बीएसएफ में थे। सोफ़िया ने उस इंटरव्यू में कहा था कि दादी उन्हें झांसी की रानी के साथ सन् 1857 के विद्रोह की कहानियाँ सुनाया करती थीं।
जाने-माने लेखक और हिंदी के विद्वान सुरेश पंत कहते हैं कि ‘प्रेस ब्रीफिंग में एक मुसलमान और एक हिन्दू चेहरा होना बड़ा स्वाभाविक है, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता भारत की और भारतीय सेना की पहचान रही है।’ नफ़रती गैंग पर कटाक्ष करते हुए वह कहते हैं- ‘धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास रखने वालों को सेकुलर, लिबरांडू जैसे शब्दों से लपेटकर भद्दी गालियाँ परोसने वाले संप्रदाय को भी विश्व में अपनी छवि बनाये रखने के लिए यही उचित लगा, क्योंकि यही उचित है। यही सनातन रवायत भी है।’
लेकिन नफ़रती टोला ख़ुद को और देश को सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) नहीं मानता। यह माना जाता है कि सेना की तरफ़ से (ज़ाहिर है इसमें कहीं-न-कहीं सरकार का सुझाव रहा होगा) कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी को प्रेस कॉन्फ्रेंस में लाने के पीछे बड़ा कारण उनकी योग्यता तो था ही, युद्ध पाकिस्तान से होने के कारण दुनिया को यह संदेश देना भी था कि हम धर्मनिरपेक्ष हैं। बेशक दिल्ली में सत्तारूढ़ भाजपा का घोषित नारा हिन्दू राष्ट्र हो, अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की एकता का संदेश देने के लिए उसे भी यह ज़रूरी लगा कि एक मुस्लिम अधिकारी को सामने रखा जाए। बेशक सेना में काम करते हुए कोई हिन्दू-मुस्लिम न होकर, सिर्फ़ भारतीय होता है। और यह भी देखिए। पाकिस्तानी आकाओं के इस आरोप कि ‘भारतीय सैनिकों ने उनकी मस्जिदों को निशाना बनाया और उन्हें नुक़सान पहुँचाया’ का जवाब भी कर्नल क़ुरैशी ने 10 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहकर दिया- ‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हमारी सेना देश के संवैधानिक मूल्यों का बहुत प्यारा उदाहरण है।’ बाद में यही बात विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अंग्रेजी में दोहरायी, जिन्होंने अपने सभी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नल सोफ़िया की ही तरह मज़बूत और निर्भीक अधिकारी वाली झलक दिखायी।
तो नफ़रती गैंग और हिन्दूवादी ट्रोल गैंग को यह समझ लेना चाहिए कि देश की एकता और धर्मनिरपेक्षता कैसे एक-दूसरे के पूरक हैं। और जो वे कर रहे हैं, उससे सिर्फ़ और सिर्फ़ पाकिस्तान का मक़सद पूरा होता है। देश का तो सिर्फ़ नुक़सान हो रहा है। देश की यही ताक़त है। ज़्यादातर लोगों का मानना है कि जब पहली बार ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी देने के लिए उन्होंने भारतीय सेना की सिग्नल कोर की अधिकारी कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी को टीवी पर देखा, तो उन्होंने ख़ुशी और गर्व महसूस किया। बहुत-से लोगों से इस पत्रकार की बातचीत से यही सामने आया कि वे सोचते हैं कि पाकिस्तान को जवाब देने के लिए उनसे बेहतर चेहरा शायद ही और कोई होता।
अब ज़रा कर्नल सोफ़िया के ससुर की बात भी सुनिए। मीडिया ब्रीफिंग के बाद ससुर गौसाब बागेवाडी ने जो कहा उसने हर भारतीय का दिल जीत लिया। कर्नाटक के बेलगावी ज़िले के कोन्नूर गाँव में रहने वाले गौसाब साहब ने कहा कि उनकी बहू ने पूरे परिवार को गौरवान्वित किया है। उन्होंने यह भी बताया कि कोई छ: महीने पहले कर्नल सोफ़िया गाँव आयी थीं। उन्होंने जब यह कहा कि टीवी पर देश की सेना की बात रखने का उनको अवसर देने का जब उन्हें पता चला, तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आँसू भर गये। लोगों ने उन्हें बधाई दी। उनके बेटे और कर्नल सोफ़िया के पति भी भारतीय सेना में अधिकारी हैं। यह बताते हुए उनका चेहरा गर्व से भरा था कि गाँव भर में जश्न का माहौल है। और पूरे परिवार को अपने इन बच्चों पर गर्व है।
युद्ध बुरा होता है और सिरफिरों को छोड़कर कोई भी युद्ध से प्यार नहीं करता। लेकिन भारत और पाकिस्तान के इस युद्ध ने देश को एक अवसर दिया है कि वह ख़ुद को सही तस्वीर में परिभाषित करे। यह तस्वीर जो इस समृद्ध संस्कृति वाले देश की मूल पहचान है अर्थात् धर्मनिरपेक्षता। सभी धर्मों के लोग मिलकर इस भारत को ताक़त देते हैं। संकट की हर घड़ी में जो देश के लिए प्राणों को न्योछावर कर देने का जज़्बा रखते हैं। सीमा पर इन कुछ दिनों में पाकिस्तानी हमलों में कई आम मुसलमान नागरिकों ने अपनी जान गँवायी है और सुरक्षा बलों का हिस्सा होते हुए मुस्लिम जवान शहीद भी हुए हैं। इसलिए जो सिर्फ़ नफ़रत की भाषा समझते हैं और इतिहास को नहीं जानते, वे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, ख़ान अब्दुल ग$फ्फ़ार ख़ान, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन, मौलाना हसरत मोहानी, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ और बेग़म हज़रत महल जैसे नाम याद कर लें, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिकाएँ अदा कीं।